आम की उन्नत खेती mango farming ; आम की खेती आधुनिक व वैज्ञानिक बागवानी की हिंदी में पूरी जानकारी(Complete knowledge of modern and scientific horticulture in the field of mango cultivation)

आम की उन्नत खेती mango farming ; आम की खेती आधुनिक व वैज्ञानिक बागवानी की हिंदी में पूरी जानकारी(Complete knowledge of modern and scientific horticulture in the field of mango cultivation)
की खेती
वानस्पतिक नाम : Mangifera Indica L.
कुल ; Aanacardiaceae
गुणसूत्रों की संख्या : 2n = 40
उद्भव स्थल – भारत वर्मा क्षेत्र
जलवायु :
आम ऊष्ण व उपोष्ण दोनों जलवायु में उगायन जाने वाला पौधा है | समुद्र तल से 1000 ऊंचाई तक पर्वतीय इलाकों में इसकी खेती सफतापूर्वक की जाती है | आम के पौधे के समुचित विकास फलने फूलने के लिए न्यूनतम 4 से 5 ० C व अधिकतम 44०C तापमान उपयुक्त होता है | औसतन आम की बागवानी के लिए 23.8 ०C से 26.6०C तापमान आदर्श माना जाता है |
आम की खेती के लिए भूमि :
आम की फसल को लगभग हर प्रकार की खेती में उगाया जा सकता है | आम के पौधों की अच्छी बढवार व फलमे फूलने की दृष्टि से उचित जल निहास वाली दोमट मिटटी उपयुक्त होती है | आम की खेती के लिए मिटटी का पीएच 5.5  से 7.5 होना चाहिए | काली व भारी भूमि आम की खेती के लिए उपयुक्त नही होती | आम के पौधों का ऐसी भूमि में उचित विकास नहीं हो पाता | आम की बागवानी जलोढ़ तथा लैटराइट मिटटी में भी उगाया जाता है | काली मृदा आम के लिए उत्तम मृदा है |
आम की उन्नत किस्में :
आम की एकलभ्रूणी किस्में – इन किस्मों के बीजों में एक ही भ्रूण पाया जाता है –बम्बई, दशहरी, लंगड़ा, चौसा, आदि |
आम की बहुभ्रूणी किस्में – इन किस्मों के बीज में एक से अधिक भ्रूण पाए जाते हैं –चन्द्राकिरण, बेलारी, ओलूर, बापकाई
आम की काटकर खायी जाने वाली किस्में – मलिक, अल्फैन्सो, आम्रपाली, लंगड़ा, दशहरी, नीलम, चौसा, आदि |
आम की चूसकर खायी जाने वाली किस्में – मिठवा, लखनऊ सफेदा, बिगरोन, गाजीपुर, शरबती, रसपुनिया,आदि |
आम की अगेती किस्में – (जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के द्वितीय सप्ताह तक) – अल्फैन्सों, गोपालभोग, गुलाबख़ास, बम्बई हरा, बम्बई पीला, स्वर्णरेखा, हिमसागर आदि | 
आम की मध्यमी किस्में – (जुलाई के द्वितीय सप्ताह से अगस्त के द्वितीय सप्ताह तक) – कृष्णभोग, लंगड़ा, जाफरानी, दशहरी, फजरी,आदि |
आम की पछेती किस्में – (अगस्त के द्वितीय सप्ताह के बाद पकने वाली) – कंचन, नीलम, मोतिया, मनपसंद, तैमूरिया, चौसा,
आम की दक्षिण भारत में उगाई जाने वाली किस्में – तोतापरी, नीलम, रेड स्माल, वलगेरा आदि |
आम के पौधे लगाने का समय :
आम के पौधे जुलाई व अगस्त माह में लगाना उत्तम रहता है | सिंचाई का उचित प्रबंध होने पर मार्च में भी आम के पौधे लगाए जा सकते हैं | आम के पौधे लगाने के लिए गड्ढे खोदने का काम मई व जून माह में करते हैं |
आम का प्रवर्धन :
आम के प्रवर्धन की दो विधियाँ हैं –
बीज द्वारा व
वानस्पतिक भागों के द्वारा
बीज द्वारा : इस विधि में आवश्यकता के हिसाब के लंबाई व चौड़ाई वाली क्यारियाँ बना लेते हैं | क्यारियों की ऊंचाई सतह से 15-20 सेंटीमीटर रखते हैं | अब आम के फलों से गुठलियों को अलग करने के बाद,क्यारियों में 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई पर बो देते हैं | दो से तीस सप्ताह बाद बीज उग आते हैं | इन नये पौधों को रोग व कीटों से बचाते हुए 4 – 5 सप्ताह पौधशाला में लगा देते हैं | पौधशाला में लगाने के करीब 18-24 माह में ये पौध लगाने योग्य हो जाते हैं |
वानस्पतिक विधि द्वारा बीज का प्रवर्धन :
बीज से तैयार किये गये पौधों में मातृ वृक्ष के समान वास्तविक गुण नही आ पाते हैं ऐसे में मातृ वृक्ष के समान तैयार पौधे में गुणों की अभिव्यक्ति के लिये वानस्पतिक भागों द्वारा प्रवर्धन किया जाता है |
वानस्पतिक भागों से प्रवर्धन की विधियाँ –
1 – कलम बांधना (grafting)– कलम विधि से वानस्पतिक भागों द्वारा आम का प्रवर्धन चार तरीके से किया जाता है –
1.       भेंट कलम द्वारा(inarching)
2.       गुठली भेंट द्वारा(stone)
3.       मृदु शाख कलम द्वारा(soft wood grafting)
4.       विनियर चढ़ाना (veneer grafting)
2- चश्मा  चढ़ाना(budding) – चश्मा चढाने की विधि से वानस्पतिक भागों का प्रवर्धन दो विधियाँ हैं –
1-      टी चश्मा चढ़ाना (T – budding)
2-      फारकर्ट चश्मा चढ़ाना ( T – forkert budding)
3 गूटी बाँधना (air layering)
4 ठूंठ प्ररोह दाब लगाना (stooling)
आम का वानस्पतिक भागों द्वारा प्रवर्धन अधिकतर विनियर भेंट कलम व भेंट कलम के द्वारा ही किया जाता है |
आम के पौधे का अंतरण –
बीजू पौधे का अंतरण – 15*15 मीटर
वानस्पतिक भागों से संवर्धित पौधे के लिए – 10*10 मीटर
किस्म विशेष के लिए अंतरण –
आम्रपाली – 2.5*2.5 मीटर
बस्ती 5 व दशहरी – 9 *9 मीटर
लंगड़ा व चौसा के लिए – 10*10 मीटर
आम के पौधे लगाना
सामान्यत : आम के पौधे जुलाई माह में लगाए जाते हैं | जिन क्षेत्रों में सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो वहां मार्च माह में भी आम के पौधे लगाये जाते हैं | आम लगाने के लिए समतल व उचित जल निकास वाली भूमि की जुताई करना चाहिए | पाटा चलाकर भूमि को समतल कर लेना चाहिए | अब 10 * 10 म्मित्र दूरी पर करीब 1 मीटर अथवा 90 सेंटीमीटर व्यास के गड्ढे बना लें | किसान भाई ध्यान दें गड्ढे की ऊपर की आधी व नीचे की आधी मिटटी अलग-अलग रखें | अब इन गड्ढों में 35-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद व 2.5-3.0 किलोग्राम सुपर फास्फेट फंफूदी जनित रोगों से बचाव के लिए 150-200 ग्राम एल्ड्रिन धूल मिलाकर रख 15-20 दिन के लिए छोड़ दें | किसान भाई गड्ढे को भूमि की सतह से 15-20 सेंटीमीटर उठा हुआ गड्ढा भरें | गड्ढे की भराई के बाद उसमें सिंचाई कर दें जिससे मिटटी गड्ढे में अच्छे से बैठ जाए | शाम के समय आम के पौधे को गड्ढे के बीच में लगाकर पौधे को चारों ओर से मिटटी से दबा देते हैं |
आम के पौधे में खाद व उर्वरक
आम के पौधे की रोपाई से माह भर पहले तैयार गड्ढे में 45 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद,तथा नाइट्रोजन 225 ग्राम व फोस्फोरस 225 ग्राम तथा एल्ड्रिन 5 % धुल की 100 ग्राम
मात्रा डालनी चाहिए |
पेड़ की उम्र वर्ष KG
गोबर की खाद/पेड़ KG
नाइट्रोजन KG/पेड़
फास्फोरस KG/पेड़
पोटाश KG/पेड़
1
10
100
75
100
2
20
200
150
200
3
30
300
225
300
4
40
400
300
400
5
50
500
375
500
6
60
600
450
650
7
70
700
525
700
8
80
800
600
800
9
90
900
675
900
10 से अधिक
100
1000
750
1000
आम के पौधें में किसान भाई फास्फोरस की पूरी मात्रा दिसंबर में दें तथा नाइट्रोजन की मात्रा की दो खुराक क्रमश: जनवरी व मार्च माह में दें | किसान आम के फलों की तुड़ाई के बाद नाइट्रोजन की मात्रा जड़ों के पास – निराई – गुड़ाई कर दें जिससे फलों की गुणवता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है | आम के पौधों पर बोरान की कमी होने पर महीने में 15 दिन के अंदर पर दो बार बोरेक्स अथवा सुहागा का छिड़काव करें | आम के पौधों पर शीघ्र फूल व फल आयें इसके लिए माह जुलाई व अगस्त में 5 से 10 ग्राम पाली ब्यूट्राजोल की मात्रा किसान भाई हर पौधें में डालें |
आम के पौधों में सिंचाई व जल निकास प्रबन्धन –
आम के पौधों पर सिंचाई जलवायु व भूमि के प्रकार पर निर्भर करती है वैसे आम के बड़े पौधों में कूंड विधि से सिंचाई करनी चाहिए | दिसम्बर-जनवरी में 20-26 के अंतर पर,मार्च से जून के बीच नियमित रूप से 12-से 15 दिन के अंतर पर करनी चाहिए |
आम के पौधों में निराई व गुड़ाई –
आम के पौधों के समुचित विकास व वृद्धि के लिए साल में कम से कम दो बार थालों की सफाई व गुड़ाई जुताई करनी चाहिए |
आम के पौधों में कटाई-छटाई व पौधों की पाले से बचाव –
आम के पौधों के छुटपन से कटाई छटाई करना आरम्भ करते हैं ताकि पौधे सुडौल बने | पौधों में बारिश के बाद अक्टूबर व नवंबर में सूखी डालियों की काट छांट किसान भाई करें |
आम के पौधे में फलों का आना :
सामान्यत आम के पौधों में कलम लगाने के 5 वर्ष बाद फलं आरम्भ हो जाती है | वहीं बीजू पौधे में 10 से 12 साल में फलन शुरू होती है |
आम के फलों की तुड़ाई :
देश के उत्तरी भाग में आम के फलों की तुड़ाई जून से अगस्त में करते हैं |
आम के पौधे से उपज :
आम के पौधे 5 – 10 वर्ष की आयु से 50 से 60 साल त फल देते हैं –
आम की उपज – 5 से 10 वर्ष के आयु वाले प्रति पौधों से उपज 50-60 किलोग्राम,
आम की उपज –  10 से 15 वर्ष के आयु वाले प्रति पौधों से उपज 90-100 किलोग्राम,
आम की उपज – 15 से 20 वर्ष के आयु वाले प्रति पौधों से उपज 150-200 किलोग्राम,
आम के पौधों से प्रति हेक्टेयर 150-200 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल जाती है |