जावा घास (सिट्रोनेला) खुशबूदार औषधीय पौधे की खेती कैसे करें ? हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें,How to cultivate Javanese grass (Citronella) aromatic medicinal plant? Read complete information in Hindi

जावा घास (सिट्रोनेला) खुशबूदार औषधीय पौधे की खेती कैसे करें हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें,How to cultivate Javanese grass (Citronella) aromatic medicinal plant? Read complete information in Hindi

जावा घास की खेती
  • श्रेणी (Category) सुगंधीय
  • समूह (Group) कृषि योग्य
  • वनस्पति का प्रकार शाकीय
  • वैज्ञानिक नाम क्य्म्बोपोगों विन्टेरियेनस
  • सामान्य नाम जावा घास
  • कुल पोएसी
  • आर्डर पोएलेस
  • प्रजातियां : सिम्बोपोगान विन्टोरियानस
वितरण : सिट्रोनेला तेल एक महत्वपूर्ण तेल है जो कि जावा सिट्रोनेला की पत्तियों और तने से प्राप्त होता है इसके आयुर्वेदिक और औषधीय गुण ही जावा सिट्रोनेला को अत्याधिक उपयोगी पौधा बनाते है। भारत में इसकी खेती 1961 से प्रारंभ हुई और वाणिज्यिक फसल के रूप सीमांत क्षेत्र में अच्छी उत्पादकता के कारण इसका महत्तपूर्ण स्थान है। गर्मधारण के दौरान इसका उपयोग वर्जित है। भारतग्वाटेमालाहोंडुरासमलेशिया और अनेक दूसरे देशो में इसकी बहुयायत खेती की जाती है। भारत में यह घास कर्नाटकआसामओडिशाआंध्रप्रदेशतामिलनाडुमहाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है।

पत्तिंया : पत्तियाँ अरोमिलअंदर की तरफ लाल रंग की, 40-80 से.मी. लंबी और 1.5 से 2.5 से.मी. चौड़ी होती है। पत्तियाँ अलग – अलगलंबी और रेखीय होती है।फूल : सिट्रोनेला  के पौधे में फूल सितम्बर – नवंबर माह में खिलते है।फल : सिट्रोनेला में फल अप्रैल से जून माह में आते है।भूमि : किसान भाईयों सिट्रोनेला की खेती के लिए भारी चिकनी और रेतीली मिट्रटी विकास के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। सिट्रोनेला की खेती के लिए  जिस मिट्टी का pH मान 5.8 से.मी. के बीच होता है वह मृदा सर्वोत्तम  मानी जाती है।फसल पानी की अधिकता के लिए अति संवेदन शील होती है। इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है परन्तु उत्तम विकास और उपज रेतीली दोमट मिट्टी से प्राप्त होती है।सिट्रोनेला के बुवाई/रोपाई  का समय –  जुलाई से सितम्बर फसल पद्धति विवरण : सिट्रोनेला के पौधे की रोपाई के लिए प्रत्येक स्लिप में से टिलर होना चाहिए। स्लिप को 50-60 से.मी की दूरी में और 10 से.मी. की गहराई में लागाया जाता है।सिट्रोनेला घास की वाणिज्यिक खेती स्लिप द्दारा की जाती है।
सिंचाई प्रबंधन : सिट्रोनेला के पौधे को  वर्षा न होने की स्थिति में रोपाई के 24 घंटे के भीतर ही  सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त मौसम और मिट्टी की स्थिति को देखते हुए वर्षा रहित सूखे प्रदेशो में 8-10 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।घासपात नियंत्रण प्रबंधन : रोपण के पहले सभी प्रकार के खरपतवार को उखाड़ फेकना चाहिए। प्रत्येक कटाई के बाद निराई की जानी चाहिए। संपूर्ण फसल आने तक खेत को खरपतवार से मुक्त रखा जाता है। निराई करने के बाद पौधे के जड़ों में मिटटी चढ़ा देना चाहिए | ताकि जड़ें न खुलने पायें |आसवन (Distillation) : भाप आसवन एक विशेष प्रकार की प्रकिया है जो तापमान संवदेनशील साम्रगी के लिए उपयोग की जाती है।कुछ कार्बनिक यौगिक उच्च तापमान में विघटित हो जाते है अत : समान्य आसवन विधि इस के लिए उपयुक्त नहीं होती है।इसलिए उपकरण में पानी को मिलाया जाता है। आसवन पूर्ण होने के बाद वाष्प को संघनित कर लिया जाता है और संघटक को आसानी से अलग कर लिया जाता है।भडांरण (Storage) : सिट्रोनेला को तेल को ऐल्युमीनियम के ड्रम और प्लास्टिक के ड्रम में भंडारित किया जाता है।शीत भंडारण अच्छे होते हैं ।परिवहन : सिट्रोनेला को सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।








सिट्रोनेला की उत्पत्ति – सिट्रोनेला मूल रूप से श्रीलंका में पाया जाने वाला पौधा है | श्रीलंका के स्थानीय भाषा में इसे महापेन्गिरी के नाम से जाना जाता है।


सिट्रोनेला का औषधीय  उपयोग : इससे प्राप्त तेल का उपयोग साबुनइत्रप्रसाधन सामग्री और भोजन स्वादिष्ट बनाने के लिए पूरी दुनिया में किया जाता है। यह पौधा बुखारगाठियावातमामूली सक्रंमणपेट और मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है। इसके तेल का उपयोग कीट निरोधक के रूप में भी किया जाता है।अनिद्रा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है यह पौधा बुखारगाठियावातमामूली सक्रंमणपेट और मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है। इसके तेल का उपयोग कीट निरोधक के रूप में भी किया जाता है। अनिद्रा के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

जावा घास (सिट्रोनेला)  का स्वरूप : यह एक बारहमासी प्रकंदो सहित शाकीय पौधा है। इसका तना सीधामजबूतचिकना और कलगीदार होता है।

जड़ : सिट्रोनेला  के पौधे की जड़े रेशेदार होती है।

जलवायु व तापमान  : सिट्रोनेला का यह पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय परिस्थिति में अच्छी तरह बढ़ता है। सिट्रोनेला इसके अच्छे विकास के लिए प्रचुर मात्रा में धूप और नमी की आवश्यकता होती है।एक उपयुक्त आर्द्र जलवायु इसके विकास के लिए आदर्श मानी जाती है | 


भूमि की तैयारी : बरसात यानि मानसून के शुरूआत में खेत देशी हल अथवा हैरो से 25 से 30 सेंटीमीटर गहरी 2-3 जुताई करें | हर जुताई के बाद पटेला चलाकर खेत को ढेला रहित बना लें | खेत को अच्छी प्रकार भुरभूरा बनाकर खेत में मेड़ ओर लकीरे बना लें |

अंतरण : किसान भाई  सिट्रोनेला के पौधे की रोपाई 60X90 से.मी. अंतरण पर करें | यानि कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौध से पौध की दूरी 90 सेंटीमीटरगहराई – 10 सेंटीमीटर 


खाद एवं उर्वरक  : सिट्रोनेला के पौधे के विकास हेतु अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। उत्तम विकास और अच्छी उपज के लिए 200 कि.ग्रा. N(नाइट्रोजन) 80 कि.ग्रा. P2O5(फोस्फोरस) और 40-80 कि.ग्रा. K2O(पोटाश) की खुराक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रति वर्ष दी जाती हैं। रोपाई के पहले खेत में 10 टन/हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है। बेहतर परिणाम के लिए महीने के अतंराल में की खुराक बराबर भागों में दी जाती है। P और की पूरी आधारीय दूरी खुराक एक ही समय में दी जानी चाहिए।

तुडाईफसल कटाई का समय : सिट्रोनेला के रोपण के 270-280  दिन के बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है |

आसवन (Distillation) :

कटाई जमीन से 20-45 से.मी. ऊपर से हसिऐं द्दारा की जाती है।समान्यत: पत्तियों की फाँक (ब्लेड्रस) को काटा जाता है और कोष को छोड़ दिया जाता है। एक वर्ष में लगभग बार कटाई की जा सकती है। कटाई को महीने के अतंराल में किया जा सकता है।

सुखाना काटी गई घास को छाय़ा में सुखाया जाता है और 24 घंटे के अंदर भाप आसवन के लिए भेजा जाता है।

उत्पादन क्षमता : सिट्रोनेला की 200-250 कि.ग्रा./हेक्टेयर/वर्ष उपज प्राप्त होती है |

अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
सिट्रोनेला को तेल