फूलगोभी की खेती : भारत में फूलगोभी की उन्नत खेती कैसे करें ? वैज्ञानिक तरीके से फूलगोभी की खेती करने के तरीके हिंदी में जाने(How to cultivate cauliflower in India? How to cultivate cauliflower in scientific way)

फूलगोभी की खेती : भारत में फूलगोभी की उन्नत खेती कैसे करें ? वैज्ञानिक तरीके से फूलगोभी की खेती करने के तरीके हिंदी में जाने(How to cultivate cauliflower in India? How to cultivate cauliflower in scientific way)

फूलगोभ की खेती 

वानस्पतिक नाम : Brassica Oleracea Var. Botrytis
गुणसूत्रों की संख्या : 18
पोषक तत्व :
सब्जीवर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का उत्तर भारत में बड़ा महत्व है उत्तर भारत में फूलगोभी की खेती बहुतायत होती है, फूलगोभी का प्रयोग हम सब्जी,सलाद और आचार तथा सूप के रूप में करते हैं ।

फूलगोभी की उत्पत्ति : फूलगोभी के उद्भव स्थान के सम्बन्ध में कोई भी मत स्थिर नही है, पर वैज्ञानिकों का मानना है कि फूलगोभी कण जन्मस्थान इटली हो सकता है,भारत में फूलगोभी लाने का श्रेय 15वीं सदी के प्रारम्भ में वास्कोडिगामा नामक नाविक को है,कुछ फूलगोभी का जन्मस्थान साइप्रस को मानते हैं,तथा भारत में फूलगोभी का आगमन 1822 में डॉ० जेम्सन द्वारा माना जाता है.
फूलगोभी की उन्नत किस्में : फूलगोभी की किस्मों को तैयार होने के समय के हिसाब से हम निम्न में वर्गीकृत कर सकते हैं-
A. अत्यंत अगेती किस्में
B. अगेती किस्में
C. मध्यमी किस्में
D. पछेती किस्में
A. अत्यंत अगेती किस्में :- कुंवारी 327, कुंवारी 351, 234 एस
 B. अगेती किस्में : पूसा कार्तिकी, पूसा दीपाली, 75-IC,75-2C,75-4C, पन्तगोभी 4
C.  मध्यमी किस्में : पूसा अगहनी,पन्त शुभ्रा, जापानी इम्प्रूव्ड,हिसार-1, जाइंट स्नोबाल, पूसा सिंथेटिक,
D. पछेती किस्में : स्नोबाल -16, पूसा स्नोबाल -1, पूसा स्नोबाल 2, पूसा हाइब्रिड – 2,पूसा हाइब्रिड 5, पूसा हिम ज्योति,विश्वभारती,
फूलगोभी के लिए भूमि :
फूलगोभी की खेती के लिए दोमट मिटटी उत्तम होती है, बलुई मिटटी में अगेती तथा दोमट मिटटी में पिछेती किस्मों को उगाना लाभकारी होगा,फूलगोभी की फसल अम्ल के प्रति सहनशील होती है,फूलगोभी के लिए 5.5-6.6 ph. वाली भूमि सर्वोत्तम होती है,भूमि में पीएच अधिक होने पर बोरान की प्रचुरता कम हो जाती है,
अधिक अम्लीय अथवा क्षारीय भूमि में फूलगोभी की खेती करने से बोरान तथा मोलिब्डेनम की मात्रा कम हो जाती है,जिसकी आपूर्ति के लिए 0.3% बोरेक्स 10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर व सोडियम मॉलिब्डेट का 1 से 1.5 किलोग्राम/हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए,
भूमि की तैयारी :
फूलगोभी की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए सबसे आवश्यक कारक है भूमि की तैयारी, 20 सेंटीमीटर गहराई से मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए, खेत में देशी हल से जुताई करने के साथ-साथ पटेला चलाकर भूमि ढेला रहित करते हुएम समतल भी करते रहना चाहिए, फूलगोभी की फसल हेतु देशी हल से जुताई करना काफी है,
फूलगोभी फसल हेतु जलवायु :
फूलगोभी एक शीतोष्ण कटिबन्धीय पौधा है,फूलगोभी के पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए औसतन 15-20० सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है,
फूलगोभी की बुवाई का समय ; फूलगोभी की किस्मों को तैयार होने के समय के हिसाब से हम बुवाई के समय को भी किसान भाई इस तरह वर्गीकृत कर सकते हैं-
A. अत्यंत अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय : मई माह की समाप्ति से जून माह के प्रथम सप्ताह तक,
B. अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय : पूरे जून माह तक,
C. मध्यमी किस्मों के लिए बुवाई का समय : मध्य जुलाई से अगस्त माह तक,
D. पछेती किस्मों के लिए बुवाई का समय : सितम्बर माह और अक्टूबर तक,
बीज की मात्रा :
अगेती व मध्यमी किस्मों के लिए : 600-700 ग्राम/हेक्टेयर
पिछेती किस्मों के लिए : 375-400 ग्राम/हेक्टेयर
फूलगोभी की पौध तैयार करने के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चुनाव करना चाहिए,फूलगोभी की पौध के लिए पर्याप्त जल निकास वाली,उपजाऊ दोमट भूमि उपयुक्त रहती है,किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में फूलगोभी की खेती करना चाहते हैं तो 100 वर्ग मीटर में तैयार की गयी पौध पर्याप्त होगी,सबसे पहले भूमि को पाटा चलाकर समतल लें,इसके बाद 5 मीटर लम्बी 1 मीटर चौड़ी क्यारियां बना लें,ध्यान रहें क्यारियां जमीन से करीब 15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए,पौध में सिंचाई अथवा बारिश का अनावश्यक पानी न रुके इसके लिए 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बना लें,फूलगोभी की पौध की 8 सेंटीमीटर ऊपरी सतह [पर कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद,सड़ी-गली पत्तियों से तैयार खाद कम्पोस्ट मिलाना चाहिए, खाद मिलाने के बाद पाटा चलाकर क्यारी को समतल कर लें,
फूलगोभी के नर्सरी हेतु बीजशोधन : पौध को रोगों से बचाने के लिए केप्टान अथवा थायरम की 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की मात्रा की दर से उपचारित कर लेना चाहिए,किसान भाई उपचारित बीज को क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दूरी तथा एक सेंटीमीटर के अंतर पर तथा करीब 1.50 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करें,बीजों की बुवाई के पश्चात मिटटी के मिश्रण और सड़ी-गली गोबर की खाद का 1:1 के अनुपात में मिश्रण बनाकर क्यारियों को ढक दें, बीजों के सही जमाव हेतु उचित तापमान व नमी अति आवश्यक होती है इसके लिए क्यारियों को पुआल अथवा गन्ने की सूखी पत्तियों व सूखी घास से ढक दें, किसान भाई क्यारियों में हजारे की सहायता से पानी दें,जैसे बीजों का अंकुरण अच्छी तरह हो जाये तो घास की परत हटा दें,अगर ऐसा लगे की फूलगोभी की पौध में पत्तियां पीली व पौधे लग रहे हों तो 5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर क्यारियों में छिडकाव करें,पौध को कीटों से बचाव हेतु 0.2% इंडोसल्फान 35 E.C. का घोल बनाकर हजारे से छिडकाव करें,पौध को वर्षा व धूप से बचाने के लिए क्यारियों के ऊपर पोलीथीन की चादर अथवा घास या फिर छप्पर से ढक देना चाहिए,फूलगोभी के पौधे रोपाई हेतु 30 से 45 दिन में तैयार हो जाते हैं,
फूलगोभी की किस्मों के अनुसार अंतरण :
A. अगेती किस्में : 45*45 सेंटीमीटर
C. मध्यमी किस्में : 60*45 सेंटीमीटर
D. पछेती किस्में : 60*45 सेंटीमीटर
फूलगोभी के पौध की रोपाई  
किसान भाई फूलगोभी की रोपाई हेतु खेत की तैयारी कर लें,पौध की रोपाई शाम के समय ही करें,रोपाई करते समय रोगी व कमजोर पौधों को निकाल कर फेंक दें तथा फूलगोभी के पौधों की रोपाई के पश्चात सिंचाई अवश्य कर दें,
खाद व उर्वरक
फूलगोभी की रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय 150-200 कुंतल/हेक्टेयर की दर गोबर की खाद को भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए,खेत में सदैव मृदा परीक्षण के पश्चात् ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए,किन्ही कारणों से यदि मृदा परीक्षण न हो पाए तो –
नाइट्रोजन : 120 किलोग्राम/हेक्टेयर
फॉस्फोरस ; 60 किलोग्राम/हेक्टेयर
पोटॉस ; 40 किलोग्राम/हेक्टेयर
की दर से प्रयोग करना चाहिए/
नाइट्रोजन की आधी मात्रा यानि 60 किलोग्राम तथा फॉस्फोरस और पोटॉस की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए,शेष नाइट्रोजन की मात्रा को दो भागों में बांटकर पहला भाग यानि 30 किलोग्राम को रोपाई के एक माह बाद तथा दूसरी 30 किलोग्राम मात्रा को फूल बनते समय टॉपड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए,बोरोन की कमी होने पर 0.3% का छिडकाव करना चाहिए,
सिंचाई :
रोपाई के तुरंत बाद ही प्रथम सिचाई करना चाहिये,रोपाई के 4-5 दिन बाद दूसरी सिंचाई करना चाहिए,अगेती फसल में 7 दिन तथा पिछेती फूलगोभी में 10-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करना अच्छा होता है,स्मरण रहे फूलगोभी के खेत में पानी इकट्ठा न होने पाये,अन्यथा पौधे पीले पड़कर मर जायेंगे,उचित जल निकासी द्वारा अनावश्यक पानी को निकाल दें,
खरपतवार नियंत्रण ;
फूलगोभी की फसल पर रोपाई के कुछ दिन बाद ही खरपतवार उग आते हैं,ये खतपतवार अधिकतर एक वर्षीय आयुकाल वाले होते हैं जिसमें – बथुवा,प्याजी,जंगली गाजर,हिरनखुरी,चटरी-मटरी,आदि मुख्य है,इन्हें खुरपी से निराई कर अथवा हैण्ड हो की मदद से निकाल देना चाहिए, आमतौर पर 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है,फूलगोभी की जड़ें उथली रहती रहती हैं इसलिए निराई करते समय उन पर मिटटी चढ़ाते रहना चाहिए,जिससे जड़ें जमीन में मजबूती से टिकी रहें
फूलगोभी की फसल पर अधिक खरपतवार होने पर टोक ई-25 की 5लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर 625 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें,दवा से असर से लगभग 45 दिन तक खरपतवार नही उगते,इसके बाद उगे खरपतवारों को निराई कर फसल से हटा देना चाहिए,
PREVENT CURD OF HEAD BY SUNLIGHT CALLED BLANCHING : फूलगोभी के सफ़ेद फूलों को सूर्य की तेज रौशनी से बचाने के लिए फूलगोभी के पत्तियों को तोड़कर ढकने की प्रक्रिया ब्लान्चिंग (Blanching) कहलाती है, (पांच दिन से अधिक फूलगोभी के फूल के ढककर नही रखना चाहिए,अन्यथा वह पीले पड़ जायेंगे,)
फूलगोभी की फसल की दैहिक विषमतायें :
ब्राउनिंग : (browning)
लक्षण और कारण : बोरोन की कमी से होता है,तना खोखला व भूरा हों जाता है,
उपचार : बोरोन 10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर की मात्रा का छिडकाव करें
हिपटेल (whiptale)
लक्षण और कारण : मॉलिब्डेनम की कमी से होता है पत्तियों का अविकसित होना इसकी मुख्य पहचान है,
उपचार : अमोनियम मोलिब्डेनम की 1 किलोग्राम/हेक्टेयर मात्रा का छिडकाव करना चाहिए,
बटनिंग (Buttoning)
लक्षण और कारण : नाइट्रोजन की कमी से पौधों में यह विषमता उत्पन्न होती है,पौधे अविकसित व कम बढवार वाले होते हैं,ऐसा देरी से रोपाई के कारण भी होता है,
उपचार : उचित मात्रा में नाइट्रोजन का छिडकाव करें
ब्लाइंडनेस
लक्षण और कारण : कम तापमान के कारण पौधों में ऐसी विषमता आ जाती है,
उपचार : पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल देना चाहिए,
रिकेट्स
लक्षण और कारण : यह विषमता देरी से कटाई के कारण होती है,फूलगोभी के फूल (curd) के ऊपर पुष्पकलिकाओं के विकसित होने लगते हैं,
उपचार : फूलों की समय से कटाई करें
रोग व रोग नियंत्रण :
डैम्पिग ऑफ (damping off)
लक्षण व कारण : यह नर्सरी में लगने वाला फंफूद जनित रोग है,जड़ तथा तने सड़ने लगते हैं,पौधे गिरकर मर जात्ते हैं,
उपचार : बीजों को केप्टान/थायराम की 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए,अथवा ब्रेसिकाल की 0.2% मात्रा से बुवाई से पूर्व नर्सरी की सिंचाई कर देनी चाहिए,
काला विगलन
(black rot)
लक्षण व कारण : यह जीवाणुजनित रोग पत्तियों के किनारों पर V आकार में दिखता है,धीरे-धीरे शिरायें काली व भूरी हो जाती हैं,अंतत: पत्तियाँ मुरझाकर पीली पड़कर गिर जाती है,
उपचार : बीजों को बोने से पहले 50 C पर आधे घंटे के लिए गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए,रोगी पौधे के मलवे को उखाड़कर जला देना चाहिये ताकि संक्रमण अधिक न हो,
पत्ती का धब्बा रोग (altenaria black leaf spot)
लक्षण व कारण : फफूंदजनित रोग है,पत्तियों पर गहरे रंग के छोटे-छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं,
 उपचार : रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें,साथ ही इंडोफिल M-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 पानी में घोलकर छिड़काव करें,
लालामी रोग :
लक्षण व कारण : यह बोरान की कमी से होने वाला रोग हैं,फूल का रंग कत्थई हो जाता है फूलों के बीच-बीच में डंठल व पत्तियों पर काले काले धब्बे बन जाते हैं,धीरे-धीरे पौधे अविकसित हो जाते हैं और डंठल खोखले हो जाते हैं,
उपचार : इस रोग से बचाव के लिए 0.3% बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें,
काली मेखला (black leg)
लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है,इसका प्रभाव नर्सरी में ही बुवाई के 15-20 दिनों में दिखाई देने लगता है,पत्तियों पर धब्बे,तथा बीच का भाग राख जैसा धूसर हो जाता है,फूलों के बड़े होने पर रोगी पौधे गिर जाते हैं,
उपचार : फसल चक्र नेब तीन साल के लिए बदलाव कर सरसों कुल के पौधों को मही बोना चाहिए,साथ ही बीजों को बुवाई से पहले 50०C पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए,

काला तार (wire stem)
लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है,तना तारकोल का काला पड़ जाता है,
उपचार व बचाव : पौधों के रोपने के 10 से 15 दिन के अंतर पर ब्रेसिकाल 0.2% मात्रा को घोल बनाकर छिड़काव कर बचाव कर सकते हैं,
कीट नियंत्रण :
माहू : आकाश में बादल छाने व मौसम नम होने पर माहू के छोटे-छोटे पौधों का प्रकोप बढ़ जाता है ये फसल को कमजोर कर देते हैं,
पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट : एक प्रकार की हरे रंग की सुंडी होती है जो पत्तियों में जाला बुनकर हानि पहुचाती है,
गोभी की तितली : इस तितली को सूंडी पौधे की पत्तियों,कोपलों व पौधे के ऊपरी भाग को खाती है,
उपचार व रोकथाम : उक्त तीनों के कीटों के रोकथाम हेतु नुवान 0.05% (0.5 मिलीलीटर/लीटर पानी) का घोल बनाकर छिडकाव करें,
फ्ली बीटल : इस कीट का प्रकोप पौधे छोटी अवस्था में होता है, मुलायम पत्तियों पर छेड़ बनाकर,ये कीट उसे खत्म कर देते हैं,
आरा मक्खी : 20 सेंटीमीटर शरीर पर पांच धारियों वाली इस कीट की सूंडी फूलगोभी के मुलायम पत्तियों को फसल को नुकसान पहुचाती हैं,
डायमंड बैक मोथ : इसका प्रकोप फसल पर अगस्त-सितम्बर के महीने में होता है,इसकी सूंडी पौधे की पत्तियों को खाती हैं, छेद बनाकर पत्तियां खाने से पत्तियों में सिर्फ नसें की बचती हैं,
बंदगोभी की सूंडी : इस सूंडी का प्रकोप पत्तियों पर होता है,छोटे-छोटे बच्चे पतियों से भोजन प्राप्त कर बड़े होने पर पूरी पत्ती को ही खा जाते हैं,

उपचार व रोकथाम : उक्त कीटों से बचाव हेतु सेविन 10% धूल का 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए,
फूलगोभी की कटाई (harvesting) :
जब फूलों का आकार बड़ा सुडौल,व ठोस व सफेद रंग का हो जाये तब फूलगोभी की कटाई करना चाहिए,फूलगोभी की कटाई के लिए विलम्ब करने से फूलों की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है,
फूलगोभी की उपज :
अगेती किस्मों से – 100-125 कुंतल प्रति हेक्टेयर
मध्यमी व पिछेती किस्मों से – 150-250 कुंतल प्रति हेक्टेयर