ब्रोकली की खेती Broccoli farming : ब्रोकली की उन्नत खेती वैज्ञानिक तरीके से कैसे करें,हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें Broccoli farming Broccoli farming: How to cultivate broccoli in a scientific way, read full information in Hindi

ब्रोकली की खेती Broccoli farming : ब्रोकली की उन्नत खेती वैज्ञानिक तरीके से कैसे करें,हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें Broccoli farming Broccoli farming: How to cultivate broccoli in a scientific way, read full information in Hindi

ब्रोकली की खेती Broccoli
वानस्पतिक नाम – Brassica Oleracea
कुल – Italica
गुणसूत्रों की संख्या – 18
उद्भव स्थल- ब्रोकली अथवा हरी फूलगोभी एक गोभीवर्गीय सब्जी है | इसके उद्भव स्थान के सम्बन्ध में कोई भी मत स्थिर नही है,पर वैज्ञानिकों का मानना है कि फूलगोभी कण जन्मस्थान इटली हो सकता है,भारत में फूलगोभी लाने का श्रेय 15वीं सदी के प्रारम्भ में वास्कोडिगामा नामक नाविक को है,कुछ फूलगोभी का जन्मस्थान साइप्रस को मानते हैं,तथा भारत में फूलगोभी का आगमन 1822 में डॉ० जेम्सन द्वारा माना जाता है |
पोषक तत्व – कुल 100 ब्रोकली में पाए जाने वाले पोषक
कैलोरी                                    Calories 34
प्रतिशत में
कुल वसा (Total Fat)  0.4 g
0%
संतृप्त वसा (Saturated fat)  0 g
0%
पाली संतृप्त वसा(Polyunsaturated fat)  0 g
मोनो संतृप्त वसा (Monounsaturated fat)  0 g
कोलेस्ट्रोल (Cholesterol)  0 mg
0%
सोडियम (Sodium)  33 mg
1%
पोटेशियम (Potassium)  316 mg
9%
कुल कार्बोहाइड्रेट (Total Carbohydrate)  7 g
2%
फाइबर (Dietary fiber)  2.6 g
10%
शर्करा (Sugar)  1.7 g
प्रोटीन (Protein)  2.8 g
5%
विटामिन (Vitamin)  A
12%
Vitamin C
148%
कैल्सियम (Calcium)
4%
Iron
3%
विटामिन (Vitamin)  D
0%
Vitamin B-6
10%
विटामिन (Vitamin)  B-12
0%
Magnesium
5%

ब्रोकली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व तापमान –
फूलगोभी एक शीतोष्ण कटिबन्धीय पौधा है | फूलगोभी के पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए औसतन 15-20० सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है | ब्रोकली के बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। सामान्यत : ब्रोकली के पौधों के समुचित वृद्धि व विकास के लिए ठंडी और आर्द जलवायु उपयुक्त होती है | इसकी अच्छी बढवार छोटे दिन और लम्बी रातों में होती है | तापमान बढने पर फूल छितरेदार हो जाते हैं व पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं | इसलिए किसान भाई ब्रोकली की खेती करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें की तापमान अधिक न हो |
ब्रोकली की खेती के भूमि का चयन –
ब्रोकली की खेती के लिए दोमट मिटटी उत्तम होती है,बलुई मिटटी में अगेती तथा दोमट मिटटी में पिछेती किस्मों को उगाना लाभकारी होगा,ब्रोकली की फसल अम्ल के प्रति सहनशील होती है | ब्रोकली की खेती के लिए 6.0-7.0 ph (Power of hydrogen0 वाली भूमि सर्वोत्तम होती है | भूमि में पीएच अधिक होने पर बोरान की प्रचुरता कम हो जाती है | अधिक अम्लीय अथवा क्षारीय भूमि में फूलगोभी की खेती करने से बोरान तथा मोलिब्डेनम की मात्रा कम हो जाती है,जिसकी आपूर्ति के लिए 0.3% बोरेक्स 10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर व सोडियम मॉलिब्डेट का 1 से 1.5 किलोग्राम/हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए | हल्की संरचना वाली मृदा में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद  डालकर ब्रोकली की खेती से किसान भाई लाभ ले सकते हैं |
ब्रोकली की उन्नत प्रजातियाँ –
किसान भाईयो ब्रोकली की तीन मुख्य प्रजाति होती है- सफेद,हरी और बैंगनी |
उक्त किस्मों में हरे रंग की हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली ब्रोकली की किस्में बाजार में अधिक पसंद की जाती है |
हरे रंग की ब्रोकली किस्में – नाइन स्टार , पेरिनियल,इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड ब्रोक्ली,
ब्रोकली की संकर किस्में – ग्रीन सर्फ़, क्लीपर,पाईरेट पेकमे, प्रिमिय क्राप, क्रुसेर,स्टिक
केटीएस 9 : इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा किया गया है | इस किस्म के पौधे माध्यम ऊंचाई के होते हैं जिसका तना छोटा व शीर्ष सख्त होता है | इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है |
ब्रोकली 1 – भारतीय कृषि अनुसन्धान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गयी अभी हाल की किस्म है | ब्रोकली की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए इस किस्म को बोने की सिफारिश की गयी है |
बीज बुवाई का समय
मैदानी भागों में – 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक |
पर्वतीय क्षेत्रों में –
·         कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में – सितम्बर – अक्टूबर माह तक |
·         मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में – अगस्त – सितम्बर तक |
·         अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में – मार्च – अप्रैल तक |
बीज की मात्रा Seed Rate)
ब्रोकली को नर्सरी में उगाकर खेत में र्रोपाई की जाती है | इसके पौधे बहुत छोटे – छोटे होते हैं | ब्रोकली की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु 375 से 400 ग्राम बीज की मात्रा से तैयार पौध पर्याप्त होती है।


फूलगोभी की नर्सरी के लिए क्यारी तैयार करना –
ब्रोकली की पौध तैयार करने के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चुनाव करना चाहिए,ब्रोकली की पौध के लिए पर्याप्त जल निकास वाली,उपजाऊ दोमट भूमि उपयुक्त रहती है,किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में ब्रोकली की खेती करना चाहते हैं तो 100 वर्ग मीटर में तैयार की गयी पौध पर्याप्त होगी,सबसे पहले भूमि को पाटा चलाकर समतल लें,इसके बाद 5 मीटर लम्बी 1 मीटर चौड़ी क्यारियां बना लें,ध्यान रहें क्यारियां जमीन से करीब 15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए,पौध में सिंचाई अथवा बारिश का अनावश्यक पानी न रुके इसके लिए 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बना लें, ब्रोकली की पौध की 8 सेंटीमीटर ऊपरी सतह पर कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद,सड़ी-गली पत्तियों से तैयार खाद कम्पोस्ट मिलाना चाहिए, खाद मिलाने के बाद पाटा चलाकर क्यारी को समतल कर लें,
किसान भाई उपचारित बीज को क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दूरी तथा एक सेंटीमीटर के अंतर पर तथा करीब 1.50 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करें,बीजों की बुवाई के पश्चात मिटटी के मिश्रण और सड़ी-गली गोबर की खाद का 1:1 के अनुपात में मिश्रण बनाकर क्यारियों को ढक दें, बीजों के सही जमाव हेतु उचित तापमान व नमी अति आवश्यक होती है इसके लिए क्यारियों को पुआल अथवा गन्ने की सूखी पत्तियों व सूखी घास से ढक दें, किसान भाई क्यारियों में हजारे की सहायता से पानी दें,जैसे बीजों का अंकुरण अच्छी तरह हो जाये तो घास की परत हटा दें,अगर ऐसा लगे की ब्रोकली की पौध में पत्तियां पीली व पौधे लग रहे हों तो 5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर क्यारियों में छिडकाव करें,पौध को कीटों से बचाव हेतु 0.2% इंडोसल्फान 35 E.C. का घोल बनाकर हजारे से छिडकाव करें,पौध को वर्षा व धूप से बचाने के लिए क्यारियों के ऊपर पोलीथीन की चादर अथवा घास या फिर छप्पर से ढक देना चाहिए, ब्रोकली के पौधे रोपाई हेतु 30 से 45 दिन में तैयार हो जाते हैं, पौध को रोगों तथा कीटों के बचाने के एकीकृत जीवनाशी व एकीकृत कीटनाशी प्रबन्धन का प्रयोग करें |

अंतरण –
कतार से कतार की दूरी – 60 सेंटीमीटर
पौधों से पौधों की दूरी – 45 सेंटीमीटर

फूलगोभी के पौध की रोपाई :
किसान भाई फूलगोभी की रोपाई हेतु खेत की तैयारी कर लें,पौध की रोपाई शाम के समय ही करें,रोपाई करते समय रोगी व कमजोर पौधों को निकाल कर फेंक दें तथा फूलगोभी के पौधों की रोपाई के पश्चात सिंचाई अवश्य कर दें |

खाद तथा उर्वरकों की मात्रा
फूलगोभी की रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय 200-300 कुंतल/हेक्टेयर की दर गोबर की खाद को भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए,खेत में सदैव मृदा परीक्षण के पश्चात् ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए,किन्ही कारणों से यदि मृदा परीक्षण न हो पाए तो –
नाइट्रोजन : 80 – 100 किलोग्राम/हेक्टेयर
फॉस्फोरस 50 – 60 किलोग्राम/हेक्टेयर
पोटॉस ; 60 – 70  किलोग्राम/हेक्टेयर
की दर से प्रयोग करना चाहिए/
किसान भाई उक्त खाद व उर्वरक की मात्रा में से क्रमश : नाइट्रोजन की आधी मात्रा व गोबर की खाद,जैविक खाद वर्मी कम्पोस्ट,फॉस्फोरस और पोटॉस की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें | शेष नाइट्रोजन की मात्रा को तीन बराबर भागों में बाँट लें | इसकी पहली मात्रा ब्रोकली के रोपाई के 25 -30 दिन बाद,45 दिन बद व अंतिम नाइट्रोजन की मात्रा 60 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए | बोरोन की कमी होने पर 0.3% का छिडकाव करना चाहिए |
सिंचाई :
रोपाई के तुरंत बाद ही प्रथम सिचाई करना चाहिये, रोपाई के 4-5 दिन बाद दूसरी सिंचाई करना चाहिए,अगेती फसल में 7 दिन तथा पिछेती फूलगोभी में 10-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करना अच्छा होता है,स्मरण रहे फूलगोभी के खेत में पानी इकट्ठा न होने पाये,अन्यथा पौधे पीले पड़कर मर जायेंगे,उचित जल निकासी द्वारा अनावश्यक पानी को निकाल दें,

खरपतवार नियंत्रण ;
ब्रोकली की फसल पर रोपाई के कुछ दिन बाद ही खरपतवार उग आते हैं,ये खतपतवार अधिकतर एक वर्षीय आयुकाल वाले होते हैं जिसमें – बथुवा,प्याजी,जंगली गाजर,हिरनखुरी,चटरी-मटरी,आदि मुख्य है,इन्हें खुरपी से निराई कर अथवा हैण्ड हो की मदद से निकाल देना चाहिए, आमतौर पर 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है | ब्रोकली की जड़ें उथली रहती रहती हैं इसलिए निराई करते समय उन पर मिटटी चढ़ाते रहना चाहिए | जिससे जड़ें जमीन में मजबूती से टिकी रहें |
ब्रोकली की फसल पर अधिक खरपतवार होने पर टोक ई-25 की 5लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर 625 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें,दवा से असर से लगभग 45 दिन तक खरपतवार नही उगते,इसके बाद उगे खरपतवारों को निराई कर फसल से हटा देना चाहिए,

ब्लान्चिंग (Blanching) : फूल गोभी की तरह ब्रोकली के फूलों को सूर्य की तेज रौशनी से बचाने के लिए फूलगोभी के पत्तियों को तोड़कर ढकने की प्रक्रिया ब्लान्चिंग (Blanching) कहलाती है, (पांच दिन से अधिक फूलगोभी के फूल के ढककर नही रखना चाहिए,अन्यथा वह पीले पड़ जायेंगे)

ब्रोकली की फसल की दैहिक विषमतायें :

ब्राउनिंग : (browning)
लक्षण और कारण : बोरोन की कमी से होता है,तना खोखला व भूरा हों जाता है,

उपचार : बोरोन 10-15 किलोग्राम/हेक्टेयर की मात्रा का छिडकाव करें

हिपटेल (whiptale)                                   

लक्षण और कारण : मॉलिब्डेनम की कमी से होता है पत्तियों का अविकसित होना इसकी मुख्य पहचान है,
उपचार : अमोनियम मोलिब्डेनम की 1 किलोग्राम/हेक्टेयर मात्रा का छिडकाव करना चाहिए,

बटनिंग (Buttoning)
लक्षण और कारण : नाइट्रोजन की कमी से पौधों में यह विषमता उत्पन्न होती है,पौधे अविकसित व कम बढवार वाले होते हैं,ऐसा देरी से रोपाई के कारण भी होता है,

उपचार : उचित मात्रा में नाइट्रोजन का छिडकाव करें

ब्लाइंडनेस
लक्षण और कारण : कम तापमान के कारण पौधों में ऐसी विषमता आ जाती है,

उपचार : पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल देना चाहिए,
रिकेट्स

लक्षण और कारण : यह विषमता देरी से कटाई के कारण होती है,ब्रोकली के फूल (curd) के ऊपर पुष्पकलिकाओं के विकसित होने लगते हैं,

उपचार : फूलों की समय से कटाई करें

रोग व रोग नियंत्रण :

डैम्पिग ऑफ (damping off)
लक्षण व कारण : यह नर्सरी में लगने वाला फंफूद जनित रोग है,जड़ तथा तने सड़ने लगते हैं,पौधे गिरकर मर जात्ते हैं,

उपचार : बीजों को केप्टान/थायराम की 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए,अथवा ब्रेसिकाल की 0.2% मात्रा से बुवाई से पूर्व नर्सरी की सिंचाई कर देनी चाहिए,

काला विगलन (black rot)

लक्षण व कारण : यह जीवाणुजनित रोग पत्तियों के किनारों पर V आकार में दिखता है,धीरे-धीरे शिरायें काली व भूरी हो जाती हैं,अंतत: पत्तियाँ मुरझाकर पीली पड़कर गिर जाती है, 

उपचार : बीजों को बोने से पहले 50 C पर आधे घंटे के लिए गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए,रोगी पौधे के मलवे को उखाड़कर जला देना चाहिये ताकि संक्रमण अधिक न हो,

पत्ती का धब्बा रोग (altenaria black leaf spot)

लक्षण व कारण : फफूंदजनित रोग है,पत्तियों पर गहरे रंग के छोटे-छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं,

 उपचार : रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें,साथ ही इंडोफिल M-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 पानी में घोलकर छिड़काव करें,

लालामी रोग :
लक्षण व कारण : यह बोरान की कमी से होने वाला रोग हैं,फूल का रंग कत्थई हो जाता है फूलों के बीच-बीच में डंठल व पत्तियों पर काले काले धब्बे बन जाते हैं,धीरे-धीरे पौधे अविकसित हो जाते हैं और डंठल खोखले हो जाते हैं,

उपचार : इस रोग से बचाव के लिए 0.3% बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें,

काली मेखला (black leg)

लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है,इसका प्रभाव नर्सरी में ही बुवाई के 15-20 दिनों में दिखाई देने लगता है,पत्तियों पर धब्बे,तथा बीच का भाग राख जैसा धूसर हो जाता है,फूलों के बड़े होने पर रोगी पौधे गिर जाते हैं,

उपचार : फसल चक्र नेब तीन साल के लिए बदलाव कर सरसों कुल के पौधों को मही बोना चाहिए,साथ ही बीजों को बुवाई से पहले 50०C पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए,


काला तार (wire stem)

लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है,तना तारकोल का काला पड़ जाता है,

उपचार व बचाव : पौधों के रोपने के 10 से 15 दिन के अंतर पर ब्रेसिकाल 0.2% मात्रा को घोल बनाकर छिड़काव कर बचाव कर सकते हैं,

कीट नियंत्रण :

माहू : आकाश में बादल छाने व मौसम नम होने पर माहू के छोटे-छोटे पौधों का प्रकोप बढ़ जाता है ये फसल को कमजोर कर देते हैं,

पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट : एक प्रकार की हरे रंग की सुंडी होती है जो पत्तियों में जाला बुनकर हानि पहुचाती है,

गोभी की तितली : इस तितली को सूंडी पौधे की पत्तियों,कोपलों व पौधे के ऊपरी भाग को खाती है,

उपचार व रोकथाम : उक्त तीनों के कीटों के रोकथाम हेतु नुवान 0.05% (0.5 मिलीलीटर/लीटर पानी) का घोल बनाकर छिडकाव करें,

फ्ली बीटल : इस कीट का प्रकोप पौधे छोटी अवस्था में होता है, मुलायम पत्तियों पर छेड़ बनाकर,ये कीट उसे खत्म कर देते हैं,

आरा मक्खी : 20 सेंटीमीटर शरीर पर पांच धारियों वाली इस कीट की सूंडी फूलगोभी के मुलायम पत्तियों को फसल को नुकसान पहुचाती हैं,

डायमंड बैक मोथ : इसका प्रकोप फसल पर अगस्त-सितम्बर के महीने में होता है,इसकी सूंडी पौधे की पत्तियों को खाती हैं, छेद बनाकर पत्तियां खाने से पत्तियों में सिर्फ नसें की बचती हैं

बंदगोभी की सूंडी : इस सूंडी का प्रकोप पत्तियों पर होता है,छोटे-छोटे बच्चे पतियों से भोजन प्राप्त कर बड़े होने पर पूरी पत्ती को ही खा जाते हैं,

उपचार व रोकथाम : उक्त कीटों से बचाव हेतु सेविन 10% धूल का 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए,

ब्रोकली की कटाई (harvesting) :
जब फूलों का आकार बड़ा सुडौल,व ठोस व हरे रंग का हो जाये तब ब्रोकली की कटाई करना चाहिए | पौध रोपाई के 60 से 65 दिन बाद फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से ध्यानपूर्वक काटना चाहिए। ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो और उस में कोई कली खिलने न पाए। ब्रोकली की कटाई के लिए विलम्ब करने से फूलों की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है | किसान भाई ध्यान दें अगर ब्रोकली की फसल तैयार होने पर भी समय से कटाई की जाएगी तो ब्रोकली वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी। इस प्रकार ब्रोकली के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान भाइयों को अनावश्यक हानि उठानी पड़ती है |
फसल कटाई व प्राप्त उपज
 ब्रोकली के गुच्छे कटने के बाद तने में नई शाखाएं निकलने लगती हैं ब्रोकली का मुख्य गुच्छा 200-500 ग्राम तक का होता है जबकि नई शाखाओं से निकले गुच्छे 100-200 ग्राम तक के होते हैं | कुल मिलाकर एक पौधे से 800-1000 अथवा 1 किलोग्राम ब्रोकली प्राप्त हो जाती है | इसी प्रकार एक हेक्टेयर 150-200 कुंतल ब्रोकली की उपज प्राप्त हो जाती है |