दिसम्बर माह का कृषि पंचांग/कृषि कैलेंडर( Agriculture Calender for December) दिसम्बर महीने में किये जाने वाले खेती किसानी के कार्य- फस...
दिसम्बर माह का कृषि पंचांग/कृषि कैलेंडर(Agriculture Calender for December)
दिसम्बर महीने में किये जाने वाले खेती किसानी के कार्य-
फसलोत्पादन
गेहूँ
- गेहूँ की अवशेष बोआई शीघ्र पूरी कर लें। ध्यान रहे कि
बोआई के समय मिट्टी में भरपूर नमी हो।
- इस समय बोआई के लिए पी०वी०डब्ल्यू 373, मालवीय-234, यू०पी० 2425 तथा डी०बी
डब्ल्यू०-16 प्रजातियाँ उपयुक्त हैं।
- देर से बोये गेहूँ की बढ़वार कम होती है और कल्ले भी
कम निकलते हैं। इसलिए प्रति हेक्टेयर बीज दर बढ़ाकर 125 किग्रा कर
लें, लेकिन अगर यू०पी० 2425 प्रजाति ले
रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर 150 किग्रा बीज
लगेगा।
- बोआई कतारों में हल के पीछे कूड़ों में या फर्टीसीड
ड्रिल से करें।
- गेहूँसा या गेहूँ के मामा की रोकथाम के लिए प्रति
हेक्टेयर 75 प्रतिशत वाली आइसोप्रोट्यूरान 1.25 किग्रा या
सल्फोसल्फ्यूरान 75 डब्लू०जी० की 33 ग्राम मात्रा
500-600 ली० पानी में घोलकर पहली सिंचाई के बाद, परन्तु 30 दिन के
अवस्था से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
- सल्फोसल्फ्यूरान का प्रयोग करने पर चौड़ी पत्ती वाले
खरपतवार व गेहूँसा, दोनों का नियंत्रण हो जाता है।
जौ
- जौ में पहली सिंचाई बोआई के 30-35 दिन बाद
कल्ले बनते समय करनी चाहिए।
चना
- बोआई के 45 से 60 दिन के बीच पहली सिंचाई कर दें।
- झुलसा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 2.0 किग्रा 500-600 लीटर (मैंकोजेव 75 प्रतिशत 50 डब्यू०पी०) को पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तर पर दो बार छिड़काव करें।
मटर
- बोआई के 35-40 दिन पर पहली सिंचाई करें।
- खेत की गुड़ाई करना भी फायदेमन्द होगा।
मसूर
- बोआई के 45 दिन बाद पहली हल्की सिंचार्इ करें। ध्यान रखे, खेत में पानी
खड़ा न रहे।
राई-सरसों
- बोआई के 55-65 दिन पर फूल निकलने के पहले ही दूसरी सिंचाई कर दें।
शीतकालीन मक्का
- मक्का की बोआई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करके सिंचाई कर दें और पुनः समुचित नमी
बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहें।
शरदकालीन गन्ना
- आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। इससे गन्ना सूखने
नहीं पायेगा और वजनी भी बनेगा।
बरसीम
- बोआई के 45 दिन बाद पहली कटाई करें। फिर हर 20-25 दिन पर कटाई
करते रहें।
- हर कटाई के बाद सिंचाई करना जरूरी है।
जई
- हर तीन सप्ताह यानि 20-25 दिन पर
सिंचाई करते रहें।
सब्जियों की खेती
- पौधे को पाले से बचाव के लिए छप्पर या धुएँ का प्रबन्ध
करें।
- आलू में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तर
पर सिंचाई करते रहें तथा झुलसा एवं माहू के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 2 ग्राम तथा
फास्फेमिडान 0.6 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिन के
अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।
- सब्जी मटर में फूल आने के पूर्व एक हल्की सिंचाई कर
दें। आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय करनी चाहिए।
- टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज
की बोआई कर दें।
- प्याज की रोपाई के लिए 7-8 सप्ताह
पुरानी पौध का प्रयोग करें।
- टमाटर एवं मिर्च में झुलसा रोग से बचाव के लिए मैकोजेब
0.2 प्रतिशत (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
फलों की खेती
- आम तथा लीची में ‘मिलीबग’ की रोकथाम के
लिए प्रति वृक्ष 250 ग्राम मिथाइल पैराथियान का बुरकाव पेड़ के एक मीटर के
घेरे में कर दें। फिर पेड़ के
तनेपर जमीन से 30-40 सेन्टीमीटर की ऊँचार्इ पर 400 गेज वाली
एल्काथीन की 30 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी सुतली आदि से कसकर बांध दें और उसके दोनों सिरों पर गीली मिट्टी या ग्रीस से लेप कर
दें। पेड़ पर मिली बग का प्रकोप नहीं होगा।
पुष्प व सगन्ध पौधे
- ग्लैडियोलस में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई
करें। मुरझाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें।
- मेंथा के लिए भूमि की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर
प्रति हेक्टेयर 100 कुन्टल गोबर की खाद, 40-50 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फेट एवं 40-45 किग्रा०
पोटाश भूमि में मिला दें।
पशुपालन/दुग्ध विकास
- पशुओं को ठंड से बचाये रखे।
- हरे चारे के साथ दाना भी पर्याप्त मात्रा में दें।
- पशुओं में जिगर के कीड़ों (लीवर फ्लूक) से रोकथाम के
लिए कृमिनाशक पिलायें।
मुर्गीपालन
- अण्डा देने वाली मुर्गियों को लेयर फीड दें और सीप का
चूरा भी दें। बरसीम का हरा चारा भी थोड़ी मात्रा में दे सकते हैं।
- चूजों को ठंड से बचाने हेतु पर्याप्त गर्मी की
व्यवस्था करायें।