चने की फसल पर लगने वाले जीवाणु रोगों की जैव रोगनाशी स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स से करें रोकथाम,जाने महत्व,उपयोगिता व प्रयोग करने का तरीका व व...
चने की फसल पर लगने वाले जीवाणु रोगों की जैव रोगनाशी स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स से करें रोकथाम,जाने महत्व,उपयोगिता व प्रयोग करने का तरीका व विधि (Biodegranate Pseudomonas fluorescence Importance and Uses and Method)
यह जीवाणु चने की फसल में उपयोगी पाया गया है। यह जीवाणु पौधों में लगने वाले तीन रोगकारक कवाकों फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी, राइजोक्टोनिया वटारीकोला व पाइथियम को रोकने में सक्षम हैं।
प्रयोग करने की विधि
- बीज उपचार500 ग्राम सूखी गोबर की खाद केा 2.5 लीटर पानी में डालकर गाढ़ा घोल (स्लरी) बनाने के बाद 500 ग्राम स्यूडोमोनास को डाल कर इस गाढ़े घोल में पौधों की जड़ को डुबो कर उपचारित करने के उपरान्त लगाना चाहिए। इस प्रकार के उपचारकण अधिकांशतः सब्जियों वाली फसलों यथा फूलगोभी, टमाटर बैंगर, मिर्चा व प्याज मे तथा धान की पौधों की जड़ों पर करना चाहिए।
- पौधों की जड़ का उपचारसवा एक लीटर पानी में 115 ग्राम गुड़ अथवा 55 ग्राम चीनी को गरम करके चिपचिपा घोल तैयार करने के उपरान्त उसमें 500 ग्राम स्यूडोमोनास का संवर्धन डाल कर गाढ़ा घोल तैयार कर लेना चाहिए, यह गाढ़ा घोल 10 किग्रा० बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है। बीज में घोल अच्छी तरह से मिलाने के बाद छाया में सुखाकर ही बुवाई करना चाहिए।
- मृदा उपचारस्यूडोमोनास के संवर्धन की 800 ग्राम मात्रा विभिन्न फसलों के अनुसार 10-20 किग्रा० महीन पिसी हुई मृदा या बालू में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से खेतों में फसलों की बुवाई के पूर्व उर्वरकों की तरह छिड़काव करना लाभप्रद होता है।