एक बारह मासी पौधा है जिसका उपयोग इंत्र के निर्माण में किया जाता है। इसका नाम लैटिन भाषा ट्वरोज से निकला है। इसका हिन्दी नाम “रजनीगंधा” है। रजनीगंधा का मतलब “सुगंधित रात” (रजनी = रात; गंधा= सुगंधित) होता है। इसे रात की राना भी कहते है। इसके फूलों का पौराणिक महत्व भी हैं। भारत में यह बैंगलोर, मैसूर और देहरादून में पाया जाता है।
अगर आप अपना खुद का बिजनेस करना चाहते हैं और यह सोच रहे हैं कि ऐसा कौन से बिजनेस है जिसमें लागत तो कम लगती है,लेकिन मुनाफा बहुत ही ज्यादा होता है.साथ ही साथ आप कुछ अलग करना चाहते हैं जो सब नहीं कर रहे हो तो हम आपको आज एक ऐसे ही बिजनेस के बारे में बताएंगे जिसमें लागत ज्यादा नहीं है और कमाई बहुत ज्यादा है और साथ ही साथ यह बिजनेस बहुत ही कम लोग करते हैं और इसका बिजनेस करने में आपको फायदा होगा. आपने रजनीगंधा का नाम तो सुना ही होगा.बता दें कि रजनीगंधा के फूलों की मार्केट में बहुत ज्यादा डिमांड होती है. इसकी खुशबू बहुत ही शानदार होने के कारण है. रजनीगंधा के फूल लंबे समय तक सुगंध देते हैं.इसलिए अगर आप इसकी खेती करते हैं तो आपको अच्छा मुनाफा हो सकता है तो चलिए हम आपको इसके बारे में सब कुछ बताते हैं. भारत में, रजनीगंधा की खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है, अगर आप नहीं जानते हैं तो हम आपको बता दें कि रजनीगंधा की उत्पत्ति मेक्सिको में हुई थी.
रजनीगंधा की खेती | How to cultivate Rajnigandha aromatic medicinal plant? Read complete information in Hindi
श्रेणी (Category) : सुगंधीय, समूह (Group) : कृषि योग्य, वनस्पति का प्रकार : शाकीय, वैज्ञानिक नाम : पोलिंथेस ट्यूवरोजा, कुल : एसेपरागेऐसी, आर्डर : एसपेरागेलेस, प्रजातियां : पी. ट्वीरोज, सामान्य नाम : रंजनीगंधा, उत्पति स्थल - यह मूल रुप से मेक्सिको का पौधा है।
वितरण : एक बारह मासी पौधा है जिसका उपयोग इंत्र के निर्माण में किया जाता है। इसका नाम लैटिन भाषा ट्वरोज से निकला है। इसका हिन्दी नाम “रजनीगंधा” है। रजनीगंधा का मतलब “सुगंधित रात” (रजनी = रात; गंधा= सुगंधित) होता है। इसे रात की राना भी कहते है। इसके फूलों का पौराणिक महत्व भी हैं। भारत में यह बैंगलोर, मैसूर और देहरादून में पाया जाता है।
उपयोग :
इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन इत्र, आवश्यक तेलों और पान मसाला आदि के उत्पादन में किया जाता है।इससे प्राप्त आवश्यक तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं, पेय पदार्थ, डेंटल क्रीम और माऊथ वाश के निर्माण मे किया जाता है। धार्मिक समारोह, शादी समारोह माला सजावट और विभिन्न पारंपरिक रस्मों में फूलों का उपयोग किया जाता है।इससे प्राप्त कंद का उपयोग प्रमेह के उपचार में किया जाता है।
रासायिनक घटक :
मिथाइलबेंजोयएट,मिथाइल एन्थ्रानिलेट, बुटेरिक एसिड फिनाइल एसिटिक एसिड, मिथाइल सैलिसिलेट, यूजेनाल, नेरोल फारनेसोल और मिथाइल वानीलिन पाया जाता है।
मिथाइलबेंजोयएट,मिथाइल एन्थ्रानिलेट, बुटेरिक एसिड फिनाइल एसिटिक एसिड, मिथाइल सैलिसिलेट, यूजेनाल, नेरोल फारनेसोल और मिथाइल वानीलिन पाया जाता है।
उपयोगी भाग : फूल
स्वरूप : यह पर्णपाती झाड़ी है।
पत्तिंया : पत्तियाँ हल्की हरी, लंबी, संकीर्ण और घनी होती है। आधार पर पत्तियाँ 30 - 40 से.मी. लंबी, 1.2 से 1.5 से.मी. चौड़ी और कभी – कभी लाल होती है।
फूल : फूल सफेद होते है। फूल जोड़े में होते है और लंबाई 3 से 6 से.मी. होती है।ततु, दलपुंज के ऊपरी हिस्सों से जुड़े होते है।
बीज : बीज चपटे होते है।
परिपक्व ऊँचाई : यह पौधा 40 – 75 से.मी. ऊँचाई तक बढ़ता है।
जलवायु :
यह गर्म जलवायु का पौधा है लेकिन हल्का पाला भी सहन कर सकता है।इसे 20-300C तापमान की आवश्यकता होती है।
भूमि :
इसे सभी प्रकार की मिट्टी में विकसित किया जा सकता है। जल निकासी के साथ चिकनी बुलई रेतीली मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का pH मान 6 से 7 होना चाहिए।
भूमि की तैयारी :
गर्मी के मौसम के शुरूआत में भूमि की जुताई करना चाहिए। अंतिम जुताई के समय मिट्टी में FYM मिलाना चाहिए।
फसल पद्धति विवरण :
स्वस्थ और उचित आकार के कंदो का चयन करते समय सावधानी रखना चाहिए। कंदो को अप्रैल से जून के माह में रोपित करना चाहिए। फूलों की अच्छी उपज के लिए कदों का आकार 2 से.मी. या अधिक रखना चाहिए। पौधों से पोधों के बीच 10-20 से.मी., का अंतराल रखते हुए 4 से 8 से.मी. की गहराई में कंदो को लगाना चाहिए।
खाद :
रोपाई के पहले खेत में 25 टन NPK/ हेक्टेयर की दर से FYM दी जानी चाहिए ।100:50:50 के अनुपात में खुराक अच्छे विकास के लिए देना चाहिए।नत्रजन की आधी खुराक और फास्फोरस और पोटाश पूरी खुराक रोपाई के समय देना चाहिए और नत्रजन की शेष खुराक 45 दिनों के बाद देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन :
पौधो की वृध्दि के दौरान नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है।फसल को अति जल की सघनता से बचाना चाहिए।कंदो की रोपाई के पहले सिंचाई करना चाहिए और इसके बाद अगली सिंचाई तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कंद अंकुरित न हो जाये।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन :
रोपण के पहले चरण में निंदाई की आवश्यकता होती है।नियमित रूप से निंदाई करना चाहिए।
तुडाई, फसल कटाई का समय :
3-3.5 महीने के बाद गर्मी में फूल तैयार हो जाते है। पूर्ण खिले हुये फूलों को उनकी ऊपरी सतह से काटा जाता है। प्रात: काल या शाम को फूलों को काटना चाहिए। 1 हेक्टेयर से 8000 कि.ग्रा. फूल प्राप्त होते है। कटाई के बाद फूलों को तुरंत आसवन इकाई भेजा जाना चाहिए।
आसवन (Distillation) :
तेल प्राप्त करने के लिए फूलों को आवसित किया जाता है।
भडांरण (Storage) :
रजनीगंधा को सीमित हवा परिसंचरण के साथ शुष्क वातापरण में संग्रहित किया जाना चाहिए।
परिवहन :
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचाता हैं।दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्बारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं। परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
रजनीगंधा तेल, रजनीगंधा इत्र, रजनीगंधा अत्तर, रजनीगंधा पान मसाला