सहफसली खेती : सहफसली खेती में अपनायी जाने वाली शस्य क्रियाएं (Sapphire farming: Shudras) सहफसली खेती ( intercropping ) रबी के मौसम म...
सहफसली खेती : सहफसली खेती में अपनायी जाने वाली शस्य क्रियाएं (Sapphire farming: Shudras)
सहफसली खेती ( intercropping )
रबी के मौसम में मुख्य फसलों के साथ सहफसलों को लेने से
किसानों को उनकी भूमि में न केवल कुल उत्पादन बढ़ानें में सहायता मिलती है अपितु
प्रतिकूल परिस्थितियों में क्षति के कम होने की भी सम्भावना बढ़ जाती हैं। इससे विभिन्न कृषि
निवेशों की लागत में कमी लायी जा सकती है तथा भूमि में उपलब्ध तत्वों व सूर्य की
रोशनी का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। साथ ही किसानों को इसके कार्य दिवस में भी
बढ़ोत्तरी होती है, अतः सहफसली खेती का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना उचित होगा |
सहफसली खेती में अपनायी जाने वाली शस्य क्रियाएं :
सहफसली खेती में मुख्यतः दो फसलें (मुख्य फसल एवं सहफसल)
होती है। इन फसलों के चुनाव के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है।
जैसे, दोनों फसलें एक ही जाति की न हो तथा दों फसलों का पोषक तत्व उपयोग करने का भूमि
स्तर अलग-अलग हो, साथ ही एक फसल की छाया दूसरे पर न पड़े। उपयुक्त होगा कि दो फसलों में
से एक फसल दलहनी हो।
मुख्य फसल की शस्य क्रियाएं सामान्यतः इस पुस्तिका में दिए
गए विवरण के अनुसार अपनायी जाएं। इसी प्रकार मुख्य फसल एवं सहफसल पर लगने वाले रोगों व
कीटों की रोकथाम भी सामान्यतः पूर्व में दी गई संस्तुतियाँ के
अनुसार की जाएं। अन्य शस्य क्रियाएं निम्न प्रकार होगी :-
आलू +राई की सहफसली खेती में आलू में वाइरस फैलाने वाले
माहूँ के नियंत्रण का विशेष ध्यान रखा जाय तथा आलू का बीज उत्पदन करने वाले क्षेत्रों
में आलू तथा राई-सरसों की सहफसली खेती न की जाय।
क्र०सं०
|
सहफसलें
|
उन्नत प्रजातियाँ
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पंक्ति अनुपात
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बीज दर प्रति हेक्टेयर
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मुख्य फसल
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सहफसल
|
मख्य फसल
|
सहफसल
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|||
1
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आलू+राई
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कुफरी अशोक‚ कुफरी-चन्द्रमुखी‚ कुफरी बहार‚ कुफरी ज्योति‚कुफरी-अलंकार‚अथवा शीघ्र पकने वाली अन्य प्रजातिया
|
रोहणी वरूणा नरेन्द्र-राई (एन०डी०आर०)-8501 माया
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3:1:50
सेमी० की दूरी पर बनी आलू की तीन मेड़ी के बाद राई की एक लाइन
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20-25
कुन्तल
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1-1.5
किग्रा०
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2
|
आलू+गेहूँ
|
कुफरी-चन्द्रमुखी‚ कुफरी बहार‚ कुफरी ज्योति‚कुफरी-अलंकार‚आदि शीघ्र पकने वाली अन्य प्रजातियाँ
|
के० 7903 यू०पी० 2338 पी०बी० डब्लू 373 के०9162 के० 9533
|
3:3
(आलू की चौथी लाइन की जगह गेहूँ की 3 लाइनें)
|
20-25
कुन्तल
|
40 किग्रा०
|
3
|
गन्ना+तोरिया
|
को० पंत 84 212 को पंत 90223 को०शा०767‚को०शा०802 को०शा०955255 को०शा०88216-88230
|
पी०टी०30 पी०टी०303 टा०-9 तपेश्वरी
|
1:2
(90 सेमी० की दूरी पर बनी गन्ने की दो लाइनों के मध्य तोरिया की 2 लाइनों)
|
65-70
कुन्तल
|
2 किग्रा०
|
4
|
गन्ना+राई
|
को०शा० 8315 को०शा०7918 को०शा०8412
|
वरूण रोहणी नरेन्द्र राई
|
1:2
(90 सेमी० की दूरी पर बनी गन्ने के मध्य राई की 2 लाइनें)
|
65-70
|
4-5 किग्रा०
|
5
|
गन्ना+गेहूं
|
को० 1158‚ बी०ओ०91 को०शा०767 को०शा०802
|
यू०पी० 2338 पीबीडब्लू०343 पीबीडब्लू०373 के०9644 के०7903के०9533
|
1:3(90
सेमी० की दूरी पर बनी गन्ने की 2 लाइनों के मध्य गेहूँ की 3 लाइनें)
|
65-70
कुन्तल
|
75 किग्रा०
|
6
|
गन्ना+मसूर
|
तदैव
|
नरेन्द्र‚ मसूर‚पी०एल० 639 पी०एल०406
|
1:3‚
|
65-70
कुन्तल
|
75 किग्रा०
|
7
|
गेहूँ+राई अनुमोदित किस्मे
|
वरदान‚
|
9:1
(गेहूँ की 9 लाइनों के बाद 1 लाइन राई की)
|
90 किग्रा०
|
500 ग्राम
|
|
8
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चना+अलसी
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उदय पूसा-256‚ अवरोधी डी०सी०पी०-92-3 जे०जी०-16 राधे
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नीलम गरिमा शेखर
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4:1(30
सेमी० की दूरी पर बनी चने की 4 लाइनों के बाद एक लाइन अलसी की)
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60-70
किग्रा०
|
8-10
किग्रा०
|
9
|
चना+राई
|
राधे‚ पूसा-256
|
वरूणा‚ वैभव
|
5:1
(30 सेमी० की दूरी पर बनी चने की 5 लाइनों के बाद एक लाइन राई की)
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60-70
किग्रा०
|
1.00
किग्रा०
|
10
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रबी मक्का+सब्जी मटर
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रबी मक्का+राजमा गन्ना+आलू
|
1:1
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11
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गन्ना+मटर
|
|||||
12
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रबी मक्का+वाकला
|
1:1
|
||||
13
|
रबी मक्का+धनिया
|
1:1
|
||||
14
|
रबी मक्का+पत्ता गोभी
|
1:1
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