मूंगफली की खेती Mungfali ki kheti : मूंगफली की आधुनिक खेती कैसे करें पूरी जानकारी हिंदी Peanut farming in hindi, मूंगफली की खेती वानस्प...
मूंगफली की खेती Mungfali ki kheti : मूंगफली की आधुनिक खेती कैसे करें पूरी जानकारी हिंदी Peanut farming in hindi,
मूंगफली की खेती
वानस्पतिक नाम - Arachis Hypogaea
कुल - Fabaceae
गुणसूत्रों की संख्या -उद्भव स्थल - ब्राजील
पोषक मूल्य : मूंगफली
के दाने में 22-28 प्रतिशत,
प्रोटीन 10-12 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट व 48-50 प्रतिशत वसा पाई जाती है।
क्षेत्रफल व वितरण ; | मूंगफली खरीफ की मुख्य तिलहनी फसल है । भारत
के अलावा मूंगफली की खेती चाइना,जापान,म्यमार,ऑस्ट्रेलिया,पश्चिमी अफ्रीका,आदि
देशों की जाती है | हमारे देश में यह
तमिलनाडु,आंध्रप्रदेश,गुजरात,महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश आदि राज्यों
में की जाती है | उत्तर
प्रदेश में यह मुख्यतः झांसी, हरदोई,
सीतापुर, खीरी, उन्नाव, बहराइच, बरेली, बदायूं, एटा, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद एवं सहारनपुर जनपदों में अधिक
क्षेत्रफल में उगाई जाती है।जलवायु व तापमान : मूंगफली एक ऊष्ण कटिबन्धीय पौधा है | इसके पौधों में वृद्धि व विकास के लिए ग्रीष्मकालीन जलवायु उत्तम रहती है | यह वायु और वर्षा द्वारा भूमि को कटने से बचाती है। 100 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मूंगफली की पैदावार अच्छी होती है। मूंगफली के फसल के लिए 21 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होती है | कम तापमान इसकी फसल के लिए हितकर नही है |
मूंगफली की खेती हेतु उन्नत किस्में :
मूंगफली के अंतर्गत क्षेत्रफल, कुल उत्पादन तथा उत्पादकता के विगत 5 वर्षों के आंकड़े परिशिष्ट-2 में दिये गये है।निम्न सघन पद्धतियां अपनाकर मूंगफली की उत्पादकता में पर्याप्त वृद्धि की जा सकती है।
1. संस्तुत उन्नत प्रजातियां
निम्न प्रजातियां सम्पूर्ण उ.प्र. संस्तुत की गयी है।
·
प्रजाति
पकने
की अवधि (दिनों में) उपज (कु./हे.) सेंलिंग प्रतिशत
विशेषता क्षेत्र
·
चित्रा
(एम०ए-10)
125-130 25-30 72 फैलने एक से दो मध्यम आकार, बीज कवच चित्र वर्ण फैलाने वाली प्रजाति
है |
·
कौशल
(जी०201) 108-112 असिंचित दशा में 15-20
72 फलियों
में 1-3 दाने
·
118-120 सिंचित
दशा में 20-25 65
गुच्छेदार
मध्यम आकार के दाने
·
प्रकाश
(CSMG-884) 115-120 18-20
70 फैलने
वाली
·
अम्बर(CSMG-84-1)
115-130 25-30 72
फैलने
वाली दो दाने वाली दाना गुलाबी एवं सफेद चित्रवर्ण
·
टी०जी०-37
A 105-110 20-25 72
गुच्छेदार
मध्यम 1 से 2 दाने | शुष्क क्षेत्रों के लिए
·
उत्कर्ष
CSMG-9510 125-130 20-25
72 फैलने
वाली 1 से 2 दाने सम्पूर्ण
·
दिव्या(CSMG-2003-19)
125-130 20-28 72
अर्ध
फैलने वाली 1-2 दाने
वाली
मूंगफली की खेती हेतु बीज दर,
बुवाई
का समय : हमारे
देश में मूंगफली की बुवाई विभिन्न क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा व जलवायु के
ध्यान में रखकर की जाती है -
·
दक्षिण
भारत के सिंचित क्षेत्रों में - 15 मई - 15 जून तक
·
उत्तर
भारत में - 15 जून से 15 जुलाई तक
अंतरण व दूरी - कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटरपौध से पौध की दूरी 15 सेंटीमीटर
बोने की गहराई - मूंगफली के बीजों को हल्की भूमि में 5 से 7 सेंटीमीटर व भारी भूमि में 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में बोते हैं |
बीज की मात्रा - मूंगफली की फसल हेतु बीज की मात्रा मूंगफली की किस्म व अंतरण,भूमि की नमी व बीज के आकार आदि पर निर्भर करती है -
·
फैलने
वाली किस्मों के लिए - 60-70 किलोग्राम
·
गुच्छेदार
किस्मों के लिए - 90-100 किलोग्राम
मूंगफली के बीजों को प्रमाणित/बीज उपचारित करना -बोने से पूर्व बीज (गिरी) को थीरम 2.0 ग्राम और 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घु चू० प्रति किलो बीज की दर से शोधित करना चाहिए अथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम+1 ग्राम कार्बक्सिन प्रति किग्रा० बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।इस शोधन के 5-6 घन्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। कल्चर को बीज में मिलाने के लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोल लें। फिर इस घोल में 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पूरा पैकट मिलायें, इस मिश्रण को 10 किलोग्राम बीज के ऊपर छिड़कर कर हल्के हाथ से मिलाये, जिससे बीज के ऊपर एक हल्की पर्त बन जाय। इस बीज को साये में 2-3 घन्टे सुखाकर बुवाई प्रातः 10 बजे तक या शाम को 4 बजे के बाद करें। तेज धूप में कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है। ऐसे खेतों में जहां मुंगफली पहली बार या काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
मूंगफली की बुवाई की विधि : हमारे देश में मूंगफली की बुवाई निम्न प्रकार से करते हैं -
हल के पीछे बुवाई करने की परम्परागत विधि - इस विधि में किसान भाई हल के द्वारा कूंड बनाते हुये 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में 30-45 सेंटीमीटर कूंडों के अन्तराल पर बुवाई करते हैं | बुवाई के बाद पटेला चलाकर खेत को समतल कर लेते हैं |
सीड प्लांटर यंत्र द्वारा मूंगफली की बुवाई करना - इस विधि से किसान भाई अधिक क्षेत्रफल में कम समय में बुवाई कर सकते हैं | इस विधि से बुवाई करने पर बीज निश्चित गहराई व अंतराल सामान रूप से बोया जाता है | बीज की मात्रा के साथ-साथ प्रति इकाई क्षेत्र में बुवाई करने पर खर्च भी कम आता है |
डिबलर द्वारा बुवाई करना - कम क्षेत्रफल के लिए इस विधि से बुवाई कर सकते हैं किन्तु अधिक क्षेत्रफल में बुवाई हेतू यह बिलकुल अव्यवहारिक है | इस विधि से बुवाई करने में श्रम व लागत अधिक लगती है |
मूंगफली की फसल में खाद व उर्वरक :
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिए उर्वरकों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। यह उचित होगा कि उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाय। यदि परीक्षण नहीं कराया गया है तो नत्रजन 20 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम, पोटाश 45 किलोग्राम (तत्व के रूप में) जिप्सम 250 किलोग्राम एवं बोरेक्स 4 किलोग्राम, प्रति हे० की दर से प्रयोग किया जाय। फास्फेट का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में किया जाय तो अच्छा रहता हैं यदि फास्फोरस की निर्धारित मात्रा सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में प्रयोग की जाय तो पृथक से जिप्सम के प्रयोग की आवश्यकता नहीं रहती हैं नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश खादों की सम्पूर्ण मात्रा तथा जिप्सम की आधी मात्रा कूड़ों में नाई अथवा चोगें द्वारा बुवाई के समय बीज से करीब 2-3 सेमी० गहरा डालना चाहिए। नत्रजन एवं जिप्सम की शेष आधी मात्रा तथा बोरेक्स की सम्पूर्ण मात्रा फसल की 3 सप्ताह की अवस्था पर टाप ड्रेसिंग के रूप में बिखेर कर प्रयोग करें तथा हल्की गुड़ाई करके 3-4 सेमी० गहराई तक मिट्टी में भली प्रकार मिला दें। जीवाणु खाद जो बाजार में वृक्ष मित्र के नाम से जानी जाती है। इसकी 16 किग्रा० मात्रा प्रति हे० डालना अच्छा रहेगा क्योंकि इसके प्रयोग से फलियों के उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ गुच्छेदार प्रजातियों में फलियॉ एक साथ पकते देखी गई है।
मूंगफली की फसल में सिंचाई करना -
यदि वर्षा न हो और सिचांई की सुविधा हो तो आवश्यकतानुसार दो सिंचाइयां खूंटियों (पेगिंग) तथा फली बनते समय देना चाहिए।
मूंगफली की फसल में निकाई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण :
मॅूगफली की बुवाई के 2 दिनों के अन्दर लासो 50 ई.सी. (एलाक्लोर) 5.0 लीटर प्रति हे. की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना चाहिए।
उपरोक्त के अतिरिक्त आक्सीफ्लोरोफेन 23.5 ई.सी. की 600 मिली. मात्रा 500-600 लीटर पानी प्रति हे. अथवा 240 से 250 लीटर पानी के साथ उपरोक्तानुसार स्प्रे करने से सभी खरपतवारों का अंकुरण नहीं होता है।
बुवाई के तुरन्त पूर्व वेसालिन 45 र्इ.सी. (फ्लूक्लोरेलिन) अथवा ट्रेफ्लान 48 ई.सी. (ट्रेइफ्लूरेलिन) 1500 मिली. मात्रा 500 से 600 लीटर पानी प्रति हे. अथवा 600 मिली. की बुवाई करने पर घास कुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का बहुत ही अच्छा नियन्त्रण सम्भव है।
परस्यूट/लगान 10 ई.सी. (इमेजीथाइपर) की 1000 मिली. मात्रा 500 से 600 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टर अथवा 400 मिली. मात्रा 200 से 250 लीटर प्रति एकड़ बुवाई के तीन दिन के अन्दर अथवा बुवाई के 10 से 15 दिनों पर स्प्रे करने से घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
मूंगफली की फसल में लगने वाले रोग व उनकी रोकथाम :
1. मूंगफली की सफेद गिडार
इसकी गिडारें पौधों की जड़ें खाकर पूरे पौधे को सुखा देती हैं। गिडारें पीलापन लिए हुए सफेद रंग की होती हैं, जिनका सिर भूरा कत्थई या लाल रंग का होता है, ये छूने पर गेन्डुल के समान मुड़कर गोल हो जाती हैं। इसका प्रौढ़ मूंगफली की फसल को हानि नहीं करता। यह प्रथम वर्षा के बाद आसपास के पेड़ों पर आकर मैथुन क्रिया करता है तथा पुनः 3-4 दिन बाद खेतों में जाकर अण्डे देता है। या प्रौढ़ को पेड़ों पर ही मार दिया जाय तो इनकी संख्या की वृद्धि में काफी कमी हो जायेंगी।
बचाव व रोकथाम : मानसून के प्रारम्भ पर 2-3 दिन के अंदर पोषक पेड़ों जैसे नीम, गूलर आदि पर प्रौढ़ कीट को नष्ट करने के लिए कार्बराइल 0.2 प्रतिशत या मोनोक्रोटोफास 0.05 प्रतिशत या फेन्थोएट 0.03 प्रतिशत या क्लोरपाइरीफास 0.03 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए।
बुवाई के 3-4 घंटे पूर्व क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. या क्यूनालफास 25 ई.सी. 25 मिली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचारित करके बुवाई करें।
खड़ी फसल में प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास या क्यूनालफास रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग किया करें।
एनी सोल फैरोमोन का प्रयोग करें।
2. दीमक : पहचान ये सूखे की स्थिति में जड़ों तथा फलियों को काटती हैं। जड़ कटने से पौधे सूख जाते हैं। फली के अन्दर गिरी के स्थान पर मिट्टी भर देती है।
बचाव व रोकथाम : सफेद गिडार के लिए किये गये बीजोपचार एंव कीटनाशक का प्रयोग सिंचाई के पानी के साथ करने से दीमक का प्रकोप रोका जा सकता हैं।
हेयरी कैटरपिलर : जब फसल लगभग 40-45 दिन की हो जाती है तो पत्तियों की निचली सतह पर प्रजनन करके असंख्य संख्यायें तैयार होकर पूरे खेत में फैल जाते हैं। पत्तियों को छेदकर छलनी कर देते हैं, फलस्वरूप पत्तियां भोजन बनाने में अक्षम हो जाती हैं।
बचाव व रोकथाम : डाईक्लोरवास 75% प्रति ई.सी. 1 ली०/हे० की दर से वर्णीय छिड़काव करना चाहिए।
सूत्रकृमि : सूत्रकृमि जनित बीमारियों रोकने के लिये हरी खाद गर्मी की गहरी जुताई या खलियों की खाद का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाये।
बचाव व रोकथाम : 10 किग्रा. फोरेट 10 जी बुवाई से पूर्व प्रयोग करें अथवा नीम की खली 10-15 कुन्तलध/हे. की दर से प्रयोग करें।
मूंगफली की फसल पर लगने वाले रोग व उनकी रोकथाम :
1. मूंगफली क्राउन राट : अंकुरित हो रही मूंगफली इस रोग से प्रभावित होती है। प्रभावित हिस्से पर काली फफूंदी उग जाती है जो स्पषट दिखायी देती है।
बचाव व रोकथाम : इसके लिए बीज शोधन अवश्य करना चाहिए।
2. डाईरूट राट या चारकोल राट : नमी की कमी तथा तापक्रम अधिक होने पर यह बीमारी जड़ो में लगती है। जड़ो भूरी होने लगती हैं और पौधा सूख जाता है।
बचाव व रोकथाम : बीज शोधन करें। खेत में नमी बनाये रखें। लम्बा फसल चक्र अपनायें।
3. बड नेक्रोसिस : शीर्ष कलियां सूख जाती हैं। बाढ़ रूक जाती है। बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती हैं और गुच्छे में निकलती हैं। प्रायः अंत तक पौधा हरा बना रहता है, फूल–फल नहीं बनते।
बचाव व रोकथाम : जून के चौथे सप्ताह से पूर्व बुवाई न की जाय । थ्रिप्स कीट जो रोग का वाहक है का नियंत्रण निम्न कीटनाशक दवा से करें। डाईमेथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टर की दर से ।
4. मूंगफली का टिक्का रोग (पत्रदाग)
पहचान पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके चारों तरफ निचली सतह पर पीले घेरे होते हैं। उग्र प्रकोप से तने तथा पुष्प शाखाओं पर भी धब्बे बन जाते हैं।
बचाव व रोकथाम : खड़ी फसल पर मैंकोजेव ( जिंक मैगनीज कार्बामेंट) 2 कि.ग्रा. या जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 कि.ग्रा. अथवा जीरम 27 प्रतिशत तरल के 3 लीटर अथवा जीरम 80 प्रतिशत के 2 कि.ग्रा. के 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करना चाहिए।
मूंगफली की फसल को कीटों व रोगों से बचाव (फसल सुरक्षा ) हेतु बिंदु -
·
विभिन्न
प्रजातियों के लिए निर्धारित बीज दर का ही प्रयोग करें एवं शोधित करके बोयें।
·
समय
से बुवाई करें एवं दूरी पर विशेष ध्यान दें।
·
मृदा
परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग संस्तुति के अनुसार अवश्य करें।
·
विशिष्ट
राइजोबियम कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
·
खूटिंयां
एवं फली बनते समय (पानी की कमी पर ) सिंचाई अवश्य करें।
·
फसल
पूर्ण पकने पर ही खुदाई करें।
·
कीट/रोगों
का सामायिक एवं प्राभावी नियन्त्रण अवश्य करें।
·
20 किग्रा.
प्रति हेक्टेयर सल्फर का प्रयोग अवश्य करें।
मूंगफली की खुदार्इ
एवं भण्डारण :यह देखा गया है कि कृषक बाजार में अच्छी कीमत लेने के उद्देश्य से तथा गेहूँ की बुवाई शीघ्र करने के उद्देश्य से मूंगफली की खुदाई फसल के पूर्ण पकने से पूर्व पकने से पूर्व कर लेते हैं। जिससे दाने का विकास अच्छा नहीं होता दाना घटिया श्रेणी का होता है और उपज कम हो जाती है। अतः इसकी खुदाई तभी करें जब मूंगफली के छिलके के ऊपर नसें उभर आयें तथा भीतरी भाग कत्थई रंग का हो जाय और मूंगफली का दाना गुलाबी हो जाय।खुदाई के बाद फलियों को खूब सूखाकर भण्डारण करें। यदि भीगी मूंगफली किया जायेगा तो फलियां काले रंग की हो जायेंगी जो खाने एवं बीज हेतु सर्वथा अनुपयुक्त हो जाती हैं।
मूंगफली की फसल से प्राप्त उपज :