जैविक खेती प्रोत्साहन योजना बिहार - वर्ष 2017-18 में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु जैविक कोरिडौर का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें प्रथम ...
जैविक खेती प्रोत्साहन योजना बिहार - वर्ष 2017-18 में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु जैविक कोरिडौर का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें प्रथम चरण में पटना से भागलपुर तक के गंगा के किनारे पड़ने वाले गाँव तथा दनियावाँ से बिहारशरीफ तक के राष्ट्रीय/राजकीय मार्ग के किनारे बसे गाँवों में जैविक कोरिडौर का निर्माण किया जायेगा। पटना एवं नालंदा जिला में जैविक कोरिडोर का निर्माण परम्परागत कृषि विकास योजना से किया जायेगा। पटना, नालंदा, लखीसराय, बेगुसराय, मुंगेर एवं भागलपुर जिलों के दियारा क्षेत्र में जैविक कोरिडौर का निर्माण दियारा विकास योजना से कराया जायेगा।
जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत अंगीकरण एवं प्रमाणीकरण के कार्य हेतु - पटना, नालंदा, वैशाली, समस्तीपुर, बेगुसराय, खगडि़या, मुंगेर, भागलपुर जिलों में गंगा के किनारे के गाँवों में कोरिडौर का निर्माण किया जायेगा।
जैविक खेती योजना से कोरिडौर में किसानों/उत्पादकों का समूह बनाकर राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के अनुसार जैविक खेती के लिए निर्धारित पैकेज पर अनुदान देकर अंगीकरण कराकर प्रमाणीकरण कराया जायेगा। जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत जैविक खेती का अंगीकरण का कार्य जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा किया जायेगा तथा प्रमाणीकरण संबंधी अन्य कार्य बिहार स्टेट सीड एण्ड आॅरगेनिक सर्टिफिकेशन एजेन्सी द्वारा किया जायेगा।
योजना के कार्यान्वयन के लिए सब्जी की खेती करने वाले किसान/उत्पादन समूह का चयन कर अनुदान पर जैविक उपादान का वितरण कराया जायेगा। सभी किसानों को कलस्टर में जैविक खेती करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।
जैविक कोरिडौर में किसानों को अधिक-से-अधिक पक्का वर्मी कम्पोस्ट इकाई, गोबर गैस तथा अन्य उपादान का वितरण किया जायेगा। जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत प्रत्येक जिला में एक जैविक ग्राम की स्थापना की जायेगी जिसमें किसानों को अधिक-से-अधिक पक्का वर्मी कम्पोस्ट इकाई एवं गोबर गैस इकाई का लाभ दिया जायेगा। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन में वृद्धि के लिए किसानों को 75घन फीट क्षमता के स्थायी/अर्द्धस्थायी उत्पादन इकाई पर मूल्य का 50% अधिकतम 3,000 रू॰ प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रावधान है। एक किसान अधिक-से-अधिक 05 इकाई के लिए अनुदान का लाभ ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्यमी/सरकारी प्रतिष्ठानों को सहायता का प्रावधान है।
वर्मी कम्पोस्ट वितरण में मूल्य का 50% अधिकतम 300 रू॰/क्विं॰ की दर से अधिकतम02 हेक्टेयर के लिए अनुदान का प्रावधान किया गया है। व्यवसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई की स्थापना हेतु निजी उद्यमी को प्रतिवर्ष 1,000, 2,000 एवं3,000 मे॰ टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का 40% अधिकतम 6.40, 12.80 एवं 20.00 लाख रूपये क्रमशः अनुदान देने का प्रावधान किया गया है, जो पॉच किस्तों में प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता का कम-से-कम 50% उत्पादन करने के उपरांत देय होगा अर्थात् कुल अनुदान राशि का प्रथम वर्ष में 30%, द्वितीय वर्ष में 20प्रतिशत, तृतीय वर्ष में 20%, चतुर्थ वर्ष में 15% एवं पंचम वर्ष में 15% अनुदान राशि देने का प्रावधान किया गया है। सरकारी प्रतिष्ठानों को प्रतिवर्ष 1,000, 2,000 एवं 3,000मे॰ टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का शत्-प्रतिशत अधिकतम 16.00 32.00 एवं 50.00 लाख रूपये क्रमशः अनुदान देने का प्रावधान है।
जैव उर्वरक पोषक तत्वों को जमीन में स्थिर करने तथा इसे पौधों को उपलब्ध कराने में उपयोगी है। इस कार्यक्रम अन्तर्गत जो किसान जैव उर्वरक खरीदना चाहते हैं, उनके लिए मूल्य का 50% अधिकतम 75 रूपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दर प्रस्तावित की गई है। व्यावसायिक जैव उर्वरक में सरकारी/गैर सरकारी संस्थाओं को अनुदान देने का प्रावधान किया गया है।
हरी खाद के रूप में ढैंचा तथा मूँग की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। गरमा/पूर्व खरीफ 2016 के लिए इस कार्यक्रम में ढैंचा बीज 90% तथा मूंग का बीज 80%अनुदान पर उपलब्ध कराने का कार्यक्रम स्वीकृत किया गया है।
गोबर/बायो गैस के प्रोत्साहन के लिए किसानों को 02 घनमीटर क्षमता के लिए इसके लागत मूल्य का 50%अधिकतम 19,000 रू॰ प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रावधान है। सूक्ष्म पोषक तत्व समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के लिए कमी वाले क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, बोरॉन आदि के व्यवहार से फसल उत्पादन बढ़ेगा। इस उद्देश्य से जिन क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, बोरॉन आदि की कमी हो रही है वहाँ किसानों को इनके व्यवहार के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए मूल्य का 50% अधिकतम 500रू॰ प्रति हेक्टेयर अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया जायेगा।
समेकित कीट प्रबंधन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीज का उपचार आवश्यक है। बीज के उपचार की तकनीक को अपनाने के लिए किसानों को बीजोपचार रसायन पर मूल्य का 50% अधिकतम 150 रूपये प्रति हेक्टेयर सहायता दी जाएगी। फसलों के लिए कुछ अत्यंत नुकसानदेह कीड़े जैसे चना का पिल्लू (पॉड बोरर), बैगन का पिल्लू (सूट एण्ड फ्रूट बोरर) आदि के नर कीट को फिरोमोनट्रेप लगाकर फँसाया जा सकता है तथा इसकी आबादी को बढ़ने से रोका जा सकता है। यह नयी तकनीक है। इसके प्रति रूझान बढ़ाने के लिए मूल्य का 90%अधिकतम 900 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान राशि स्वीकृत की गई है। रासायनिक कीटनाशी/फफुंदनाशी के व्यवहार से पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त करने के लिए जैविक विकल्प अपनाना आवश्यक हैं। इनके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए किसानों को मूल्य का 50% अधिकतम500 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान राशि की सहायता दी जाएगी।