Compost khad kaise banaye hindi me
प्राचीन युग से ही “खाद” का पौधों, फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। खाद” का पौधों फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है। खाद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के खाद्य शब्द से हुई है।
खाद क्या है - खाद की परिभाषा -
जल के अतिरिक्त वे सब पदार्थ जो मिट्टी में मिलाए जाने पर उसकी उर्वरता में सुधार करते हैं खाद कहलाते हैं।
कंपोस्ट खाद बनाने की विधि । Compost khad kaise banaye hindi me jane
खाद देने के उद्देश्य -
संतुलित पोषक तत्व उपलब्ध करना-पौधों को अधिक से अधिक एवं संतुलित मात्रा में सभी आवश्यक तत्वों की उपलब्धि कराना।
फसलों से अधिक लाभ प्राप्त करना- भूमि में बार-बार फसलोत्पादन से मिट्टी व गमलों में उपस्थिति मिट्टी के पोषक तत्व, पौधों व फसलों के रूप में काट दिये जाते हैं।अतः धीरे-धीरे गमलों व भूमि में अधिक उपज देने वाली फसलों की जातियाँ उगाने से मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश गमलों व मिट्टी में मिलाएं जाते हैं। भौतिक दशा में सुधार- खाद मिट्टी की भौतिक दशा में सुधार करके भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाकर उसकी शक्ति में वृद्धि करती है।
गोबर खाद की रचना रासायनिक रचना एवं संघटन- (Gobar Ki khad)
पशुओं के ताजे गोबर की रासायनिक रचना जानने के लिए, गोबर को ठोस व द्रव को दो भागो में बांटते हैं। बहार के दृष्टिकोण से ठोस भाग 75% तक पाया जाता है। सारा फास्फोरस ठोस भाग में ही होता है तथा नत्रजन व् पोटाश, ठोस द्रव भाग में आधे-आधे पाए जाते हैं। गोबर खाद की रचना अस्थिर होती है। किन्तु इसमें आवश्यक तत्वों का मिश्रण निम्न प्रकार है।
नाइट्रोजन - 0.5 से 0.6 %
फास्फोरस - 0.25 से 0.३%
पोटाश - 0.5 से 1.0%
गोबर की खाद : घर पर बनाएँ कम्पोस्ट की खाद | Compost Manure - KhetiKisani.Org
गोबर की खाद में उपस्थित 50% नाइट्रोजन, 20% फास्फोरस व पोटेशियम पौधों को शीघ्र प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त गोबर की खाद में सभी तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैंगनीज, तांबा व जस्ता आदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं।
गोबर की खाद का गमलों व भूमि पर लाभ दायक प्रभाव -
मिट्टी में भौतिक सुधार -
- मिट्टी में वायु संचार बढ़ता है।
- मिट्टी में जलधारण व् जल सोखने की क्षमता बढ़ती है।
- मिट्टी में टाप का स्तर सुधरता है।
- पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है।
- मिट्टी के कण एक-दुसरे से चिपकते हैं। मिट्टी का कटाव कम होता है।
- भारी चिकनी मिट्टी तथा हल्की रेतीली मिट्टी की संरचना का सुधार होता है।मिट्टी के रासायनिक गुणों का प्रभाव -
- पौधों को पोषक तत्व अधिक मात्रा में मिलते हैं।
- मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है।
- मिट्टी की क्षार विनिमय क्षमता बढ़ जाती है।
- मिट्टी में पाये जाने वाले अनुपलब्ध पोषण तत्व, उपलब्ध पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- पोटेशियम व फास्फोरस सुपाच्य सरल यौगिकों में आ जाते हैं।
- पौधों की कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज व सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- कार्बनिक पदार्थ के विच्छेदन से कार्बनडाई ऑक्साइड मिलती है। अनेक घुलनशील कार्बोनेट व बाईकार्बोनेट बनाती है।
मिट्टी के जैविक गुणों पर प्रभाव -
- मिट्टी में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है।
- लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता भी बढ़ती है।
- अनेक जीवाणु मिट्टी से पोषक तत्व लेकर पौधों को प्रदान करते हैं।
- जीवाणुओं द्वारा वातावरण की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है।
- जीवाणु द्वारा वातावरण की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है।
- जीवाणु जटिल नाइट्रोजन को अमोनिया नाईट्रेट आयन्स में बदलते है। नाइट्रोजन का यही रूप पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है।
गोबर खाद प्रयोग करने की विधि -
गोबर की खाद को गमलों व खेत में किस विधि से डालें, यह काई बातों जैसे खाद की मात्रा, खाद की प्रकृति, मिट्टी की किस्म व फसल के प्रकार पर निर्भर करता है।
गोबर की खाद डालने का समय -
गोबर की सड़ी हुई खाद को ही सदैव फसल बोने अथवा गमलों एवं पौधों को लगाने के लिए ही प्रयोग करें। फसलों में बुआई से पूर्व खेत की तैयारी के समय व गमलों को मिट्टी भरते समय अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर पौधे रोपने से एक सप्ताह पूर्व भरें।
भारी चिकनी मिट्टी में ताजा गोबर की खाद बुआई से काफी समय पूर्व प्रयोग करना अच्छा होता है क्योंकि विच्छेदित खाद से मिट्टी में वायु संचार बढ़ जाता है। जलधारण क्षमता भी सुधरती है। हल्की रेतीली मिट्टी एवं पर्वतीय मिट्टी में वर्षाकाल के समय में छोड़कर करें।
गोबर खाद की मात्रा -
गोबर की खाद - compost khad खेत में मोटी परत की अपेक्षा पतली डालना सदैव अच्छा रहता है। लंबे समय की फसल में समय-समय पर खाद की थोड़ी मात्रा देना, एक बार अधिक खाद देने की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। सभी फसलों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर एक-एक में 10 टन, गोबर की खाद खेत में दी जाती है। सब्जियों के खेत में 50-100 टन प्रति हेक्टेयर व गमलों में साईज व मिट्टी के अनुसार 200 से 600 ग्राम बड़े गमलों में 1 किग्रा, से 1.5 किग्रा. तक प्रति गमला साल में 2-3 बार डालें।
गोबर की खाद -
गोबर की खाद पषुओं जैसे गाय, भैंस-बकरी, घोड़ा, सुअर, मुर्गी एवं अन्य पषु पक्षियों के ठोस तथा द्रव मल-मूत्र, विभिन्न पोषक पदार्थों जैसे बिछावन, भुसा, पुआल, पेड़ पोधों की पत्तियां आदि को मिलाकर तैयार किया जाता है ।
गोबर से जो खाद तैयार की जाती है उसके तीन मुख्य घटक होते है -
1. गोबर -
पषुओं का ताजा गोबर बहुत से पदार्थों का जटिल मिश्रण है । गोबर में जल लगभग 70 से 80 प्रतिषत एवं ठोस पदार्थ 20 से 30 प्रतिषत होता है । ठोस पदार्थों में बिना पचे व अघुलनषाल खाद्य पदार्थ होते हैं, इसके अलावा पोषक तत्व, स्टार्च एवं सेलुलोज पाये जाते हैं जो अघुलनषाल होते है और पौधों को इनकी उपलब्धता तुरन्त नही हो सकती । गोबर का पूर्ण विच्छेदन एवं अपघटन होने पर ही पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में प्राप्त होते हैं...
2. मूत्र -
पषु पक्षियों के मूत्र में अनेक रासायनिक पदार्थ घुलनषील अवस्था में होते हैं । यूरिया, मूत्र का महत्वपूर्ण अवयव है और मूत्र में 2 प्रतिषत तक पाया जाता है जो फसलों के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व है । अतः गोबर की खाद बनाते समय पषुओं के मूत्र को एकत्रित करके षामिल करना अति आवश्यक है ।
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3. बिछावन -
पशुशाला में पषुओं के नीचे मूत्र आदि की नमी को षोषित करने के लिए बिछावन का प्रयोग करते है । बिछावन मूत्र की गैस व मूत्र के साथ कुछ अंष खाद का भी अपने अन्दर षोषित करते है । बिछावन से गोबर की खाद के गुणों में भी सुधार होता है, क्योंकि बिछावन में पौधों के पोषक तत्व अनुपलब्ध अवस्था में पाये जाते है जो गोबर की खाद के अपघटन के दौरान उपलब्ध अवस्था में बदल जाते है ।बिछावन से गोबर की खाद को सड़ाने में भी सहायता मिलती है क्योंकि इससे खाद के ढेर में आवष्यकतानुसार लम्बे समय तक नमी मिलती रहती है एवं वायु का संचार अधिक होता है । बिछावन हेतु विभिन्न अनाजों के भूसे, सूखी घास, लकड़ी का बुरादा आदि को काम में लिया जा सकता है, क्योंकि इन पदार्थों में नमी सोखने की क्षमता बहुत अधिक होती है एवं इनके कारण गोबर का सड़ाव भी तेजी से होता है । बिछावन हेतु उपरोक्त पदार्थों के अलावा पेड़-पौधों की सूखी पत्तियां, गन्ने, मक्का, बाजरा, ज्वार, कपास व सरसों आदि के डण्ठल भी प्रयोग में लिये जा सकते है ।
वैज्ञानिक विधि से गोबर की खाद तैयार करना-
कृषक साधारणतया गोबर की खाद को ढेर अथवा कूरड़ी के रूप में एकत्रित करते हैं तथा पषुओं के मूत्र एवं बिछावन को एकत्रित नहीं करते है जो कि पौधों के पोषक तत्व का महत्वपूर्ण स्रोत है। उपरोक्त गोबर के ढ़ेर अथवा कूरड़ी में से पौधों के आवष्यक पोषक तत्व तेज धूप एवं हवा के कारण वाष्पीकृत होकर उड़ जाते हैं एवं वर्षा के मौसम में ढ़ेर में बचे हुए पोषक तत्व पानी के साथ घुलकर व बहकर चले जाते हैं । अतः आवष्यक है कि गोबर की खाद उपयुक्त वैज्ञानिक ढ़ंग से तैयार की जाएं जिससे उपरोक्त पोषक तत्वों का नुकसान नहीं हो । वैज्ञानिक ढ़ंग से गोबर की खाद तैयार करने के लिए भूमि में 3-4 फीट गहरे, 5-6 फीट चौड़े एवं आवष्यकतानुसार लम्बाई के दो गड्ढे तैयार करने चाहिए । पशु बांधने के स्थान के पास खेत पर उपलब्ध कूड़ा करकट, पषुओं का गोबर एवं बिछावन को एकत्रित कर लेना चाहिए तथा इन्हें अच्छी तरह से मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए। भरे हुए गड्ढे में आवष्यकतानुसार पानी डाल कर उसे 4-6 इंच मिट्टी की परत से ढक देना चाहिए । जब तक इस भरे हुए गड्ढे में गोबर की खाद सड़ कर तैयार होती है (लगभग 3 माह में) तब तक दूसरे गड्ढ़े को भर देना चाहिए । इस प्रकार गड्ढ़े में वैज्ञानिक विधि से तैयार गोबर की खाद में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में होते हैं जिन्हें पौधे आसानी से प्राप्त कर सकते हैं । उपरोक्त गोबर का अच्छा सड़ाव होने के कारण इसे खेत में डालने पर दीमक का प्रकोप कम होता है एवं खरपतवारों के बीजों का आंषिक सड़ाव हो जाने के कारण खेत में खरपतवार भी कम उगते है । उपरोक्त विधि से तैयार गोबर की खाद में लगभग 0.5-0.6 प्रतिशत नत्रजन, 0.2-0.3 प्रतिषत फास्फोरस एवं 0.5-1.0 प्रतिषत पोटाश पाई जाती है एवं सभी आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व भी संतुलित मात्रा में पाये जाते है ।
वर्मी कम्पोस्ट-
केंचुऐं जिन्हें आमतौर पर किसान का मित्र कहा जाता है, भूमि एवं फसल दोनों के लिए लाभदायक जीव है । केंचुऐ साधारणतया मिट्टी में पाये जाते हैं, परन्तु रासायनिक कीटनाषकों, उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से लगातार भूमि में इनकी संख्या कम होती जा रही है । सघन खेती में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि में पोषक तत्वों का असंतुलन एवं अनेक आवष्यक पोषक तत्वों की कमी की समस्या उत्पन्न हो गई है इसे दूर करने के लिए जैविक खाद का प्रयोग ही एक मात्र विकल्प है जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सके । जैविक खाद में वर्मी कम्पोस्ट एक महत्वपूर्ण खाद है जिसे कृषक थोड़ी सी मेहनत से अपने खेत पर केंचुओं के द्वारा बेकार वानस्पतिक पदार्थों को 50 से 60 दिन की अल्प अवधि में ही मूल्यवान जैविक खाद वर्मी कम्पोस्ट में बदल सकते हैं एवं इनके मृदा में प्रयोग से मृदा की उर्वरता एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते है ।
केंचुए की दो प्रजातियां होती है -
इन्डोगीज एवं ऐपीगीज
गहरी सुरंग बनाने वाले लम्बे केंचुऐ इन्डोगीज कहलाते हैं जो 8 से 10 इंच तक लम्बे होते हैं एवं उनका औसत वजन 4 से 5 ग्राम होता है । ये मृदा में नमी की तुलना में 8 से 10 इंच की गहराई तक चले जाते है एवं ये मिट्टी को 90 प्रतिषत एवं कार्बनिक पदार्थों को कम मात्रा में (10 प्रतिषत) खाते हैं तथा ये मुख्यत: वर्षा ऋतु में दिखाई देते हैं । ऐपीगीज केंचुऐ छोटे आकार के एवं भूमि की ऊपरी सतह पर रहते हैं जिनकी क्रियाशीलता एवं जीवन अवधि कम लेकिन प्रजनन दर अधिक होती है ये कार्बनिक पदार्थ अधिक (90 प्रतिषत) एवं मृदा कम मात्रा में (10 प्रतिषत) खाते है । इनका औसत वजन आधे से एक ग्राम होता है एवं ये वर्मी कम्पोस्ट बनाने में अधिक प्रभावी एवं उपयोगी होते है । ये वानस्पतिक पदार्थों को अधिक तेजी से अपघटित करते हैं एवं वर्मी कम्पोस्ट अधिक बनाते है ।
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वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि -
1. वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए सबसे पहले 6-8 फुट की ऊंचाई का एक छप्पर तैयार करें ताकि उपयुक्त तापमान एवं छाया रखी जा सके । वर्मी कम्पोस्ट बनाने की क्यारी की लम्बाई सुविधानुसार, चौड़ाई 3 फीट एवं ऊँचाई डेढ से ढाई फीट रखी जानी चाहिए ।
2. वर्मी कम्पोस्ट के लिए क्यारी में सरसों, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ने, नीम की पत्तियों आदि के अवशेष की 3 ईंच की तह बिछायें । इस तह पर अब 2 ईंच की मोटाई तक अधसड़ी गोबर की खाद बिछाकर पानी डालकर गीला किया जाता है । इस गीली तह पर 1 ईंच मोटी वर्मी कम्पोस्ट की परत जिसमें पर्याप्त केंचुए मिले होते हैं, डाली जाती है । इस तीसरी परत पर 3-4 दिन पुराना गोबर का खाद या गोबर के साथ घास-फूस, पत्तियाँ मिले हुए टुकड़ों का कचरा 2 ईंच मोटाई में बिछा दिया जाता है । 10 ग 3 ग 1 फीट की क्यारी हेतु 2 किलो केंचुए चाहिए ।
3. अन्त में इस परत पर 10-12 इंर्च मोटाई में गोबर के साथ घास-फूस, पत्तियों के मिले हुए टुकड़ों का कचरा बिछायें ताकि सबसे निचले स्तर से ऊपर की सतह तक ऊंचाई लगभग डेढ़ से ढाई फुट हो जाए । नमी बनाये रखने के लिए हर परत पर पानी छिड़का जाता है ।अब इनको बोरी के टाट से अच्छी तरह से ढ़क कर 30 प्रतिशत तक नमी बनाये रखें ।
4. 45-60 दिन के अन्दर ही गोबर एवं गोबर मिश्रित घास-फूस, पत्तियों एवं कचरा वर्मी कम्पोस्ट में बदल जाते हैं ।
5. ढेर का रंग काला होना और केंचुओं का ऊपरी सतह पर आना वर्मी कम्पोस्ट तैयार होने का सूचक है ।
6. वर्मी कम्पेस्ट से केंचुए अलग करने के लिए 3-4 फुट ऊँचा वर्मी कम्पोस्ट को ढेर बनाये तथा पानी छिड़कना बन्द कर दें । जैसे-जैसे ढ़ेर सूखता जायेगा केंचुए नमी की तरफ नीचे चले जायेंगे । कुछ समय बाद अधिकांश केंचुए नीचे चले जायेंगे और ऊपर से वर्मी कम्पोस्ट इकट्ठा कर लेंगे ।
7. वर्मी कम्पोस्ट से केंचुए अलग करते समय ढ़ेर से नीचे के 1/10वें भाग को बचाकर केंचुए सहित वर्मी कम्पोस्ट बनाये जाने वाले जीवांश पदार्थ पर डालें । इस ढ़ेर में कोकून रहते हैं।
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मात्रा -
अनाज फसलों में 5 टन प्रति हैक्टयर
सब्जी, फसलों में 7 टन प्रति हैक्टयर
फलदार वृक्षों में 8 से 10 किलो प्रति वृक्ष
नेडेप कम्पोस्ट-
नेडेप कम्पोस्ट कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक से अधिक मात्रा में खाद बनाने की विधि है। इस विधि से तैयार खाद नत्रजन 0.5 से 1.5, फॉस्फोरस 0.5 से 0.9 प्रतिशत तथा पौटेशियम 1.2 से 1.4 प्रतिशत होता है ।
नेडेप बनाने का तरीका-
नींव भरकर जमीन के ऊपर ईंट का एक हवादार टांका बनाया जाता है । इसके लिए टांका बांधते समय चारों दीवारों में छेद रखे जाते हैं । दीवारें 9 ईंच चौड़ी होती है, टांके की लम्बाई 12 फुट, चौड़ाई 5 फुट एवं ऊँचाई 3 फुट, कुल आयतन 180 घन फुट होता है ।
कम्पोस्ट टांका भरने की विधि -
टांका भरने से पहले टांके के अन्दर की दीवार एवं फर्श पर गोबर के पानी का घोल छिड़कें । पहले 6 ईंच तक वानस्पतिक पदार्थ (घास-फूस, कचरा) भर दें । इस तीस घन फुट में 90 से 110 किग्रा. वानस्पतिक पदार्थ प्रयोग में आयेगा । वानस्पतिक पदार्थ के साथ-साथ कड़वा नीम, पलाश की हरी पत्ती मिलाना लाभप्रद होगा ।
दूसरी परत में 125-150 लीटर पानी में चार किग्रा. गोबर घोलकर पहली परत पर इस प्रकार छिड़कें कि पूरा कचरा अच्छी तरह भीग जाये । गोबर के स्थान पर अगर गोबर गैस संयंत्र की स्लरी प्रयोग में लाई जाये तो गोबर की मात्रा का ढाई गुना यानि दस लीटर स्लरी काम में ली जाए ।
दूसरी परत पर 50-50 किग्रा. मिट्टी समतल बिछा दें और उस पर थोड़ा पानी का छिड़काव करें । टांके को इसी प्रकार परतें लगाते हुए टांके के मुंह के ऊपर डेढ़ फुट ऊंचाई तक झोंपड़ीनुमा आकार में भर दें । साधारणतया 11-12 तहों में टांका भर जायेगा । टांका भरी सामग्री के ऊपर तीन ईंच मिट्टी की तह जमायें और उसे गोबर के घोल से लेप दें । इसमें दरारें पड़े तो उन्हें फिर से लेप कर दें ।
15-20 दिन में टांके में भरी सामग्री सिकुड़कर टांके के मुँह से 8-9 ईंच नीचे खिसक जाये तब पहली भराई की तरह कचरा, गोबर का घोल, छनी मिट्टी की परतों से पुनः टांके को सतह से डेढ़ फुट की ऊंचाई तक पहले जैसा ही भरकर ऊपर तीन ईंच मोटी मिट्टी की परत देकर लीप कर सील कर दें ।
नेडेप कम्पोस्ट में नमी बनाये रखने के लिए और दरारें बन्द करने के लिए गोबर के पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये । खाद पर दरारें न पड़ने दें ।
खाद का पकना -
तीन-चार माह में खाद गहरे भूरे रंग की हो जाती है और दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है । इस खाद को एक फुट में 35 छेद वाली छलनी से छान लेना चाहिये। छना हुआ कम्पोस्ट खाद उपयोग में लाना चाहिये और छलनी के ऊपर का अधपका कच्चा खाद, नया टांका भरते समय कचरे के साथ उपयोग में लाना चाहिये ।