पाले और शीतलहर से फसलों को कैसे बचाएँ पूरी जानकारी पढ़ें

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इस समय किसानों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए । पाला पड़ने के लक्षण सबसे पहले आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है. सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे और हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाये. दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाए और आसमान साफ रहे, या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाये तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है ।

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रात को विशेषकर तीसरे और चौथे प्रहर में पाला पड़ने की संभावना रहती है । सामान्य तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, अगर शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है । लेकिन यही इसी बीच हया चलना रूक जाए और आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है ।

एक तरफ इन दिनों किसान फसल कटने के बाद गेहूं की बुआई में जुटे हुए हैं, तो दूसरी तरफ ठंड के कारण फसलों को नुकसान भी हो सकता है । आइए, इस रिपोर्ट में जानते हैं कि कब सिंचाई करें, अधिक ठंड में कितनी मात्रा में करें, फसलों को अत्यधिक ठंड में कैसे बचाएं, रासायनिक तरीके से कैसे बचाएं? जब भी पाला यानी ठंड पड़ने की संभावना हो या मौसम विभाग का पूर्वानुमान, फसल में हल्की सिंचाई देनी चाहिए । जिससे तापमान 0 डिग्री से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पहले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है । सिंचाई करने से 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी होती है ।

पौधों को ढंके-

पाल यानी अत्यधिक ठंड से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में लगे पौधों को होता है । इससे बचने के लिए नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढंकने की सलाह दी जाती है । ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, जिससे सात का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता और पौधे पहले से बच जाते हैं । पॉलिथिन की जगह पुआल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है ।

रासायनिक तरीके से फ़सलों को बचाएं -

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थोयोयूरिया @ 1 ग्राम प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं, और 15 दिनों के बाद छिडक़ाव को दोहराना चाहिए। जिस दिन पाला पड़ने की संभावना हो, उसे दिन फसलों पर सल्फर के 80 WDG पाउडर को 3 किलोग्राम एक एकड़ के हिसाब से छिड़काव कर दें और इसके बाद खेतों की सिंचाई कर दें ।

ये पेड़ लगाकर ठंडी हवा से बचाएं -

फसलों को पहले से बचाने के लिए खेत की उत्तरी पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु अवरोध पेड़ जैसे शहतूत शीशम बाबुल एवं जामुन आदि लगा दिए जाएं, तो ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है । यदि किसान भाइयों इनमें से कोई भी कीट रोग की संभावना दिखे तो तत्काल कृषि विभाग या संबंधित अधिकारी से संपर्क करें, या अपने निकटतम कृषि रक्षा इकाई से संपर्क कर सकते हैं । उपनिदेशक कृषि विजय कुमार ने बताया, इन दिनों बुंदेलखंड में ठंड का प्रकोप है, कोहरे के कारण पाला पड़ रहा है, इस वजह किसान भाई ठंड से फसलों को बचाएं, पाला से बचाने के लिए सिंचाई करें जिससे तापमान में बढ़ोतरी होती है । पौधों को प्लास्टिक या पुआल डालकर बचाएं । ठंड से खेती को बचाने के लिए और एवं कीट नाशकों से बचाने के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं ।

खेत की सिंचाई की जाए –

यदि पाला पडऩे की संभावना हो या मानसून विभाग से पाला पडऩे की चेतावनी दी गई हो तो फसलों की हल्की सिंचाई करें जिससे खेत के तापमान में 0.5 से 2 डिग्री से.ग्रे. तक वृद्धि हो जाएगी इससे फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। फसलों को पाले से बचाने के लिए खेत के उत्तर-पश्चिम मेड़ पर तथा बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे- शीशम, बबूल, खेजड़ी, आड़ू, शहतूत, आम तथा जामुन आदि के लगाए जाएं तो सर्दियों में पाले व ठण्डी हवा के झोकों के साथ ही गर्मी में लू से भी बचाव हो सकता है।

गुनगुने पानी का छिडक़ाव-

प्रात: काल फसल पर हल्के गुनगुने पानी का छिडक़ाव हो सकता है, छोटी नर्सरी या बगीचे में इस तकनीक का उपयोग सरलता से किया जा सकता है ।

वायुरोधी टाटिया का उपयोग-

नर्सरी में तैयार हो रहे पौधों को पाले से ज्यादा नुकसान होता है अत: वायुरोधी टाटिया को नर्सरी में हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाएं तथा दिन में हटा दें । अत: देखा जा सकता है कि पाले के कारण रबी की फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। किसान बंधु ऊपर वर्णित किसी भी विधि का उपयोग अपनी सुविधा अनुसार कर पाले से फसल का बचाव कर सकता है ।

पौधों को ढकें –

पाले से सर्वाधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को प्लास्टिक की चादर, पुआल आदि से ढंक दें ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री से. ग्रे. तक बढ़ जाता है जिससे तापमान जमाव बिन्दु तक नहीं पहुंच पाता और पौधा पाले से बच जाता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधे का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे ताकि उन्हे सुबह और दोपहर को धूप मिलती रहे।

खेत के पास धुआँ करना-

फसल को पाले से बचाने के लिए खेत के किनारे धुआँ करने से तापमान में वृद्धि होती है जिससे पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

रस्सी द्वारा –

पाले के समय रस्सी का उपयोग करना काफी प्रभावी रहता है, इसके लिए दो व्यक्ति सुबह के समय (भोर में) एक रस्सी को उसके दोनों सिरों में पकडक़र खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते हैं, जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस नीचे गिर जाती है और फसल सुरक्षित हो जाती है ।

शीतलहर और पाला से फसल की सुरक्षा के उपाय-

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सरकारी एडवाइजरी के मुताबिक, जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेत के उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य घास फूल जला कर धुआं करना चाहिए ताकि खेत में धुआं आ जाये और वातावरण में गर्मी आ जाए ।

सुविधा के लिए मेड़ पर 10 से 20 फुट के अन्तर पर कूड़े करकट पर ढेर लगाकर धुआं करें । धुआं करने के लिए अन्य पदार्थो के साथ क्रूड आयॅल का भी प्रयोग कर सकते हैं । इस विधि से 4 डिग्री सेल्शियस तापक्रम आसानी से बढ़ाया जा सकता है 

- पौधशालाओं कें पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों, नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें ।

- वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ बांधें । जब पाला पडने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए ।

- नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है और भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है । इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की सम्भावना कम रहती है ।

- वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है । जिन दिनों पाला पडने की संभावना हों उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1% घोल का छिड़काव करना चाहिए । इसके लिए एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें ।

- ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगें । छिड़काव का असर दो हफ्ते तक रहता है । अगर इस अवधि के बाद भी शीतलहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 से 15 दिन के अंतर से दोहराते रहें ।

सरसों, गेहूं चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक और रसायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है ।

दीर्घकालिन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी अरडू और जामुन आदि लगा दिये जाए तो पाले और ठंडी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता है ।

पाले के दिनों में फसलों में सिंचाई करने से भी पाले का असर कम होता है । पौधशालाओं में पौधों और उद्यानों व नकदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलो को टाट, पॉलीथीन अथवा भूसे से ढक दे ।

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