कैरिका पपीता नारंगी और हरे फल का वैज्ञानिक नाम है जिसे आमतौर पर पपीता के नाम से जाना जाता है । इसका स्वाद मीठा होता है और इसकी बनावट नरम होत...
कैरिका पपीता नारंगी और हरे फल का वैज्ञानिक नाम है जिसे आमतौर पर पपीता के नाम से जाना जाता है । इसका स्वाद मीठा होता है और इसकी बनावट नरम होती है जो कई लोगों को आकर्षक लगती है। बीज भी खाने योग्य होते हैं, हालाँकि वे फल से अधिक कड़वे होते हैं।पपीता उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में सबसे अच्छा उगता है जहां प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है लेकिन लंबे समय तक बाढ़ नहीं आती है। बर्फ़ीली तापमान से पपीते की फसल को नुकसान हो सकता है।
पपीता की बागवानी वैज्ञानिक व आधुनिक विधि की जानकारी हिन्दी में -
पपीता मूल रूप से मध्य अमेरिका का है।उस क्षेत्र के स्वदेशी लोग पपीता खाते थे और औषधीय प्रयोजनों के लिए उनका उपयोग करते थे। 1500 और 1600 के दशक में, स्पेनिश और पुर्तगाली उपनिवेशवादी फिलीपींस और भारत सहित दुनिया के अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बीज लाए। आज, हवाई, फिलीपींस, भारत, सीलोन, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र शीर्ष पपीता उत्पादक क्षेत्र हैं। मध्य और दक्षिण अमेरिका में छोटे पपीते की खेती का कार्य अभी भी मौजूद है। दुनिया भर में पपीते के कई अलग-अलग नाम हैं। ऑस्ट्रेलिया में इसे पंजा कहा जाता है। दक्षिणी एशिया में, इसे कभी-कभी केपाया, लापाया या तपाया भी कहा जाता है। फ़्रेंच में इसका नाम कभी-कभी "फिगुएर डेस आइल्स" या द्वीपों का अंजीर होता है। पपीते के कुछ स्पैनिश नामों में "तरबूज जैपोटे," "फ्रूटा बोम्बा," या "मामोना" शामिल हैं।Papaya Farming Information Guide
पपीता, विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला महत्वपूर्ण फल है। केला के पश्चात् प्रति ईकाई अधिकतम उत्पादन देने वाली एवं औषधीय गुणों से भरपूर फलदार पौधा है। पपीता को भारत में लाने का श्रेय डच यात्री लिन्सकाटेन को जाता है जिनके द्वारा पपीता के पौधे वेस्टइंडीज से सन् 1575 में मलेशिया लाया फिर वहां से भारत आया। बड़वानी में भी लगभग 958 हे. क्षेत्रफल में पपीतें की व्यावसायिक खेती की जा रही है। बड़वानी जिले की लाल तथा पीली किस्मे प्रसिध्द हैं पपीते के फलो से पपेन तैयार किया जाता है। जिसका प्रसंस्कृत उत्पाद हेतु उपयोग किया जाता है। पपीता प्यूरी का भी बडा निर्यातक है।पपीता की वानस्पतिक जानकारी -
वानस्पतिक नाम : सारिका पपाया (Carica Papaya) कुल : Caricaceae, गुणसूत्रों की संख्या : 18.36, उद्भव स्थल : ऊष्ण कटिबन्धीय अमेरिकापपीता की उन्नत किस्में -
पूसा मजेस्टी पूसा नन्हा, पूसा डेलिशियस पूसा ड्वार्फ पूसा जायंट कोयम्बटूर 1 कोयम्बटूर 2 कोयम्बटूर 3 कोयम्बटूर 4 कोयम्बटूर 5 कोयम्बटूर 6 सूर्या वाशिंगटन सिंगापुर पिंक पन्त पपीता 1 हनीड्यू कुर्ग हनीड्यूपपीते के लिए भूमि का चयन-
पपीते के पौधे की उचित वृद्धि व विकास के लिए सिंचित व उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है । पपीते की बागवानी के लिए भूमि का पीएच 6.5 से 7.0 होना चाहिए । इसकी खेती दोमट मृदा के अलावा बलुई दोमट,हल्की काली भूमि में भी सफलतापूर्वक की जाती है ।बीज की मात्रा-
पपीते की एक हेक्टेयर पौध के लिए 250 से 400 ग्राम पर्याप्त होता है ।बीजों को उपचारित करना -
बुवाई से पूर्व बीज को रोगों से बचाव हेतु किसी भी फफूंदनाशी जैसे थायरम या कप्तान की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए ।पपीते के पौध तैयार करने में लिए नर्सरी तैयार करना (प्रवर्धन) -
पपीते की रोपाई के दो माह पहले ही पौधे तैयार कर लेना चाहिए । देश मे उत्तरी मैदानी भागों में पपीते के बीजों की बुवाई जून महीने तक बोते हैं । पपीते की पौध के लिए अधिकतर बीज के द्वारा ही पौधे तैयार किये जाते हैं । आवश्यकता के अनुसार 10-15 सेंटीमीटर भूमि की सतह से ऊंची व 1.5 मीटर चौड़ी क्यारियां बना लें । किसान भाई इन क्यारियों में सड़ी हुई गोबर की खाद कार्बनिक खाद के रूप में मिला दें । पपीते की पौध के लिए तैयार क्यारियों में फफूंदनाशी से उपचारित व शोधित बीज को 15 सेंटीमीटर की पंक्ति बनाकर 1.5 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करें ।बुवाई के बाद क्यारियों को खाद व मिट्टी से ढक देते हैं । किसान भाई क्यारियों को घास व पुवाल से ढककर आवश्यकता के अनुसार पानी दें । बुवाई के 10 - 15 दिन बाद बीजों में जमाव शुरू हो जाता है । किसान भाई क्यारियों से घास हटा दें ताकि नन्हे पौधों को पर्याप्त खुली हवा व ताप मिल सके । पपीते के पौधे जब 8 से 10 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाएं पौधों को मिट्टी सहित आधा किलो क्षमता वाली पॉलीथिन में खाद व मिट्टी के मिश्रण भरकर रख देते हैं । पॉलीथिन थैलों में भरने के 3 से 4 दिन तक पौधों को छाया में रखना चाहिए । पौधों में नियमित रूप से पानी देते रहें । पपीते के पौधे रोपाई हेतु 30 से 40 दिन में तैयार हो जाते हैं ।