अदरक की खेती : Adrak ki kheti, Ginger farming

अदरक वाली चाय! के बिना आप जीवन की कल्पना भी नही कर सकते। आजकल तो टीवी में भी अदरक वाली चाय का प्रचार आता है। माँ कहती है इसमें अदरक होती है…। हमारे देश में अदरक का उपयोग प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है। अदरक जिंजीबरेसी (zingiberaceae) कुल परिवार से है।
इसका अदरक का वैज्ञानिक नाम जिंजीवर ओफिसिनेल (zingiber officinale ) है। अदरक का उपयोग साग-सब्ज़ी बनाने में, छौंका लगाने में, चटनी सलाद व अचार आदि के साथ तमाम प्रकार की खाद्य सामग्रियों को बनाने में किया जाता है। आज कल अदरक की खेती को लोग एक बिज़नेस के रूप में कर रहे हैं ।पूरे वर्ष की अदरक की माँग बाज़ार में बनी रहती है। सर्दी, ख़ासी, ज़ुकाम सहित तमाम बीमारियों में अदरक औषधि के रूप में काम आती है । अदरक में औषधीय तत्वों की बात करें । तो अदरक प्रोटीन,वसा, कार्बोहाईड्रेट, तथा थायमिन,रिबोफ्लेविन, निकोटीन अम्ल, विटामिन A, C, से भरपूर होता है।

अदरक का परिचय –

अदरक‘ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के स्ट्रिंगावेरा से हुई, जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा सींग या बारहा सिंधा के जैसा शरीर ।अदरक मुख्य रूप से उष्ण क्षेत्र की फसल है । संभवत: इसकी उत्पत्ति दक्षिणी और पूर्व एशिया में भारत या चीन में हुई । भारत की अन्य भाषाओं में अदरक को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे- आदू (गुजराती), अले (मराठी), आदा (बंगाली), इल्लाम (तमिल), आल्लायु (तेलगू), अल्ला (कन्नड.) तथा अदरक (हिन्दी, पंजाबी) आदि । अदरक का प्रयोग प्रचीन काल से ही मसाले, ताजी सब्जी और औषधी के रूप मे चला आ रहा है । अब अदरक का प्रयोग सजावटी पौधों के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा है । अदरक के कन्द विभिन्न रंग के होते हैं । जमाइका की अदरक का रंग हल्का गुलाबी, अफ्रीकन अदरक (हल्की हरी) होती है ।

अदरक की खेती : Adrak ki kheti,Ginger Cultivation,Ginger Farming

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इसे सुखकर सोंठ बनायी जाती है। किसान भाइयों आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी। कि अदरक की खेती अन्य फ़सलों के मुक़ाबले अधिक की जाने लगी है। अगर हम विश्व स्तर पर अदरक की खेती की बात करें। तो यह भारत से पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और मास्को सहित बहुत सारे देशों में भेजा जाता है। हम विश्व का 15 प्रतिशत अदरक अपने देश में पैदा करते हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है।

वानस्पतिक परिचय –

अदरक (Ginger) का वानस्पतिक नाम जिनजिबेर ओफिसिनेल (Zingiber officinale) है जो जनजीबेरेसी (Zingiberace)परिवार से सम्बंध रखती है । अदरक की करीब 150 प्रजातियाँ उष्ण- एवॅ उप उष्ण एशिया और पूर्व एशिया तक पाई जाती हैं । जिनजीबेरेसी परिवार का महत्व इसलिऐ अधिक है क्योंकि इसको “मसाल परिवार“ भी कहा जाता है । जिसमें अदरक के अलावा इस परिवार में अन्य मसाले फसले जैसे – हल्दी, इलायची, बड़ी इलायची आदि बड़ी महत्वपूर्ण मसाला फसलें सम्मिलित है । इसी परिवार की कुछ जगंली प्रजातियाँ भी पाई जाती है जिनको अलपाइना (Alpinia) अमोनम (Amomum) में रखा गया है। kheti kisani में आज हम अदरक की खेती (adrak ki kheti ) की जानकारी देने जा रहे हैं।

अदरक की खेती के फायदे –

– अदरक का प्रयोग मसाले, औषधिया तथा सौंदर्य सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं । खुशबू पैदा करने के लिये आचारो,चाय के अलावा कई व्यजंनो में अदरक का प्रयोग किया जाता हैं । सर्दियों में खाँसी जुकाम आदि में किया जाता हैं । अदरक का सोंठ कें रूप में इस्तमाल किया जाता हैं । अदरक का टेल, चूर्ण तथा एग्लिओरजिन भी औषधियो में उपयोग किया जाता हैं
औषधियों के रूप में-
– सर्दी-जुकाम, खाँसी ,खून की कमी, पथरी, लीवर वृद्धि, पीलिया, पेट के रोग, वाबासीर, अमाशय तथा वायु रोगीयों के लिये दवाओ के बनाने में प्रयोग की जाती हैं ।मसाले के रूप में-
– चटनी, जैली, सब्जियो, शर्बत, लडडू, चाट आदि में कच्ची तथा सूखी अदरक का उपयोग किया जाता हैं ।
सौंदर्य प्रसाधन में-
अदरक का तेल, पेस्ट, पाउडर तथा क्रीम को बनाने में किया जाता हैं ।

जलवायु व तापमान –

किसी भी फ़सल को उगाने के लिए सबसे पहले हमें पौधे के लिए उपयुक्त जलवायु की जानकारी होनी चाहिए। अदरक एक गरम व तर जलवायु का पौधा है। 50-60 वार्षिक सेमी0 वाले स्थानों में अदरक की खेती आसानी से की जाती है। अदरक की खेती (adrak ki kheti ) समुद्र तक 1500 मीटर की ऊँचाई तक की जा सकती है । अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती है । मध्यम वर्षा बुवाई के समय अदरक की गाँठों (राइजोम) के जमाने के लिये आवश्यक होती है । इसके बाद थोडा ज्यादा वर्षा पौधों को वृद्धि के लिये तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती हैं । अगेती वुवाई या रोपण अदरक की सफल खेती के लिये अति आवश्यक हैं । 1500-1800 मि .मी .वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी उपज के साथ की जा सकती हैं । परन्तु उचित जल निकास रहित स्थानों पर खेती को भारी नुकसान होता हैं । औसत तापमान 25 डिग्री सेन्टीग्रेड, गर्मीयों में 35 डिग्रीसेन्टीग्रेड तापमान वाले स्थानो पर इसकी खेती बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप मे की जा सकती हैं ।

भूमि का चयन –

adrak ki kheti के लिए bhumi ki jankari होना बहुत ज़रूरी है । उचित जल निकास वाली दोमट, रेतीली भूमि सर्वोत्तम होती है। इसके अलावा अदरक की खेती (adrak ki kheti ) रेतीली, चिकनी दोमट, लाल दोमट और लैटराइट दोमट मृदाओं में भी की जाती है।

अदरक की खेती के लिए भूमि की तैयारी –

सबसे पहले 4 से 5 जुताइयाँ देशी हल अथवा कल्टीवेटर के करनी चाहिए। फिर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। ऐसा करने से ढेले टूट जाएँगे और खेत भुरभुरा हो जाएगा। बुवाई से पहले थीमेट 10 जी की 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भूमि को उपचारित कर लेना चाहिए।

बुवाई का समय –

सिंचित क्षेत्रों में अदरक की बुवाई अप्रैल से मई तथा असींचित क्षेत्रों में मई से जून में की जाती है। किसान भाई याद रखे अदरक की खेती (adrak ki kheti ) हेतु बुवाई का फ़सल उत्पादन में बड़ा प्रभाव होता है।

अदरक की नवीन उन्नत क़िस्में-

कोल 117,एक्सेशन 35, सुप्रभा व सुरुचि अदरक की उन्नत क़िस्में है इन क़िस्मों से 18-25 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है।

उन्नतशील प्रजातियों का चयन

क्र.
राज्य
प्रजातियों के नाम
विशेषता
1. आसाम बेला अदा, मोरन अदा, जातिया अदा छोटे आकार के कन्द तथा औषधिय उपयोग के लिये प्रयुक्त
2. अरूणाचल प्रदेश केकी, बाजार स्थानीय नागा सिंह, थिंगिपुरी अधिक रेशा एवं सुगन्ध
3. मणिपुर नागा सिंह, थिंगिपुरी अधिक रेशा एवं सुगन्ध
4. नागालैण्ड विची, नाडिया सोठ एवं सुखी अदरक हेतु
5. मेघालय सिह बोई, सिंह भुकीर,काशी औषधिय उत्तम अदरक
6. मेजोरम स्थानीय,तुरा,थिंग पुदम, थिगंगिराव रेशा रहित तथा बहुत चरपरी अदरक
7. सिक्किम भैसी अधिक उपज

उपज, रेशा तथा सूखी अदरक के आधार पर विभिन्न प्रजातियाँ

क्र.
प्रमुख प्रजातियाँ
औसत उत्पादन (किग्रा/हे.)
रेशा(%)
सूखी अदरक(%)
1. रियो-डे-जिनेरियो 29350 5.19 16.25
2. चाइना 25150 3.43 15.00
3. मारन 23225 10.04 22.10
4. थिंगपुरी 24475 7.09 20.00
5. नाडिया 23900 8.13 20.40
6. नारास्सपट्टानम 18521 4.64 21.90
7. वायनाड 17447 4.32 17.81
8. कारकल 12190 7.78 23.12
9. वेनगार 10277 4.63 25.00
10 आर्नड मनजार 12074 2.43 21.25
11 वारडावान 14439 2.22 21.90

ताजा अदरक, ओरेजिन,तेल, रेशा, सूखा अदरक एवं परिपक्क अवधि के अनुसार प्रमुख प्रजातियाॅ

प्रजाति
प्रजातियो के नाम
परिपक्क अवधि (दिन)
ओले ओरेजिन (%)
तेल(%)
रेशा(%)
सूखी अदरक(%)
आई.आई. एस. आर . (रजाता) 23.2 300 300 1.7 3.3 23
महिमा 22.4 200 200 2.4 4.0 19
वर्धा (आई आई.एस.आर ) 22.6 200 6.7 1.8 4.5 20.7
सुप्रभा 16.6 229 8.9 1.9 4.4 20.5
सुरभि 17.5 225 10.2 2.1 4.0 23.5
सुरूचि 11.6 218 10.0 2.0 3.8 23.5
हिमिगिरी 13.5 230 4.5 1.6 6.4 20.6
रियो-डे-जिनेरियो 17.6 190 10.5 2.3 5.6 20.0
महिमा (आई.एस.आर.) 22.4 200 19.0 6.0 2.36 9.0

विभिन्न उपयोग के आधार पर प्रजातियाँ के नाम

क्र. प्रयोग प्रजातियो के नाम
1.
सूखी अदरक हेतु
कारकल, नाडीया, मारन, रियो-डी-जेनेरियो
2.
तेल हेतु
स्लिवा, नारास्सापट्टाम, वरूआसागर, वासी स्थानीय, अनीड चेन्नाडी
3.
ओलेरिजिन हेतु
इरनाड, चेरनाड, चाइना, रियो-डी-जिनेरियो
4.
कच्ची अदरक हेतु
रियो-डे-जिनेरियो, चाइना, वायानाड स्थानीय, मारन, वर्धा

कीट अवरोधी सहनशील प्रजातियाँ

क्र. कीटो के प्रति लक्षण प्रजाति लक्षण
1. तना भेदक रियो-डे-जिनेरियो सहनशील
2. कन्द स्केल वाइल्ड-21, अनामिका कम प्रभावित
3. भण्डारण कीट वर्धा, एसीसी न. 215, 212 प्रतिरोधी
4. स्ूत्रिकृमि (अदरक) वालयूवानाड, तुरा और एस.पी.एसीसी न. 36, 59 और 221 कम प्रभावित प्रतिरोधी

बीज की मात्रा –

एक हेक्टेयर अदरक की खेती (adrak ki kheti ) में बुवाई के लिए 20-25 कुन्तल प्रकंदो की आवश्यकता होती है।अदरक की खेती (adrak ki kheti ) के लिए दो आँखों वाले प्रकंड का भार औसतन 25-30 ग्राम होना चाहिए। बीज रोग रहित होना चाहिए इसके लिए डाईथेन एम-45 की 0.25% अथवा बाविस्टीन 0.1% के घोल को 60 मिनट तक डुबा कर बीज उपचारित कर लेना चाहिए।

बीज उपचार –

प्रकन्द बीजों को खेत में वुबाई, रोपण एवं भण्डारण के समय उपचारित करना आवश्यक हैं । बीज उपचारित करने के लिये (मैंकोजेब .मैटालैक्जिल) या कार्बोन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर के पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को 30 मिनट तक डुवो कर रखना चाहिये । साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन ध् प्लान्टो माइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते है जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके । पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाय और फिर से दवा की मात्रा भी । चार बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल वनायें । उपचारित करने के बाद बीज कों थोडी देर उपरांत वोनी करें ।

अछाया का प्रभाव –

अदरक को हल्की छाया देने से खुला में बोई गयी अदरक से 25 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है । तथा कन्दों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पायी गयी हैं ।

फसल प्रणाली –

अदरक की फसल को रोग एवं कीटों में कमी लाने एवं मृदा के पोषक तत्वो के बीच सन्तुलन रखने हेतु । अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का और मूँगफली के साथ फसल को उगाया जा सकता है ।
वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में 3-4 साल में एकबार आलू, रतालू, मिर्च, धनियाॅ के साथ या अकेले ही फसल चक्र में आसकती हैं । अदरक की फसल को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं । मक्का या उर्द के साथ अन्तरावर्ती फसल लेने में मक्का 5-6 किग्रा / एकड़ .उर्द 10-15 किग्रा / एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं । मक्का और उर्द अदरक की फसल को छाया प्रदान करती हैं । तथा मक्का 6-7 कु / एकड़ और उर्द 2 कु / एकड़ ।
अदरक की फसल को रोग एवं कीटों में कमी लाने एवं मृदा के पोषक तत्वो के बीच सन्तुलन रखने हेतु । अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का और मूँगफली ी के साथ फसल को उगाया जा सकता है । वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में 3-4 साल में एकबार आलू, रतालू, मिर्च, धनियाॅ के साथ या अकेले ही फसल चक्र में आसकती हैं । अदरक की फसल को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं ।
मक्का या उर्द के साथ अन्तरावर्ती फसल लेने में मक्का 5-6 किग्रा / एकड़ .उर्द 10-15 किग्रा / एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं । मक्का और उर्द अदरक की फसल को छाया प्रदान करती हैं । तथा मक्का 6-7 कु / एकड़ और उर्द 2 कु / एकड़ ।मक्का या उर्द के साथ अन्तरावर्ती फसल लेने में मक्का 5-6 किग्रा / एकड़ .उर्द 10-15 किग्रा / एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं । मक्का और उर्द अदरक की फसल को छाया प्रदान करती हैं । तथा मक्का 6-7 कु / एकड़ और उर्द 2 कु / एकड़ ।
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बीज अंतरण व दूरी –

अदरक की बुवाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 25-30 सेंटीमीटर व पौध से पौध की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखें।

बुवाई की विधि –

बीज उपचार के बाद घंटे भर अदरक के प्रकंदों को छाया में सुखा लेना चाहिए। अदरक की बुवाई शाम को करना अच्छा माना जाता है। अदरक की खेती (adrak ki kheti ) इसके बाद ‘कंदो को ऊपर बतायी दूरी के अनुसार लगभग 4 सेंमी0 की गहराई पर दबा देना चाहिए। तेज़ धूप से बचाव के लिए बुवाई के बाद खेत को गोबर, घास फूस अथवा पत्तियों से ढक देना चाहिए। ऐसा करने से अंकुरण अच्छा होता है।

बोने की विधि एवं बीज व क्यारी अन्तराल –

प्रकन्दों को 40 सेमी0 के अन्तराल पर बोना चाहिये । मेड़ या कूड़ विधि से बुवाई करनी चाहिये । प्रकन्दों को 5 सेमी0 की गहराई पर बोना चाहिये । बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिये । यदि रोपण करना है तो कतार से कतार 30 सेमी0 और पौध से पौध 20 सेमी .पर करे । अदरक की रोपाई 15*15, 20*40 या 25*30 सेमी0 पर भी कर सकते हैं । भूमि की दशा या जल वायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की वुवाई या रोपण किया जाता है ।
(क) समतल विधि- हल्की एवं ढालू भूमि में समतल विधि द्वारा रोपण या वुवाई की जाती हैं । खेती में जल निकास के लिये कुदाली या देशी हल से 5-6 सेमी .गहरी नाली बनाई जाती है जो जल के निकास में सहायक होती हैं । इन नालियों में कन्दों को 15-20 सेमी0 की दूरी अनुसार रोपण किया जाता हैं । तथा रोपण के दो माह बाद पौधो पर मिट्टी चढ़ाकर मेडनाली विधि बनाना लाभदायक रहता हैं ।
(ख) ऊँची क्यारी विधि- इस विधि में 1*3 मी. आकार की क्यारीयों को जमीन से 20 सेमी .ऊची बनाकर प्रत्येक क्यारी में 50 सेमी .चैड़ी नाली जल निकास के लिये बनाई जाती हैं । बरसात के बाद यही नाली सिचाई के कसम में असती हैं । इन उथली क्यारियों में 30ग20 सेमी .की दूरी पर 5-6 सेमी गहराई पर कन्दों की वुवाई करते हैं । भारी भूमि के लिये यह विधि अच्छी है।
(ग) मेड़ नाली विधि- इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती हैं । तैयार खेत में 60 या 40 सेमी .की दूरी पर मेड़ नाली का निर्माण हल या फावडे से काट के किया जा सकता हैं । बीज की गहराई 5-6 सेमी0 रखी जाती हैं ।

रोपण हेतु नर्सरी तैयार करना –

यदि पानी की उपलब्धता नही या कम है तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं । पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिये रखा जाता । अदरक की नर्सरी तैयार करने हेतु उपस्थित बीजो या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद और रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैलाकर उसी मिश्रण से ठक देना चाहिए तथा सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये । कन्दों के अंकुरित होने एवं जड़ो से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिये ।

खाद व उर्वरक –

अदरक की उन्नत खेती सफलतापूर्वक करने करने के लिए जैविक खेती बढ़िया होती है। इसके लिए गोबर की खाद 25-30 टन को जुताई के पहले खेत में बिखेर देना चाहिए। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों में N:P:K – 75 : 50 : 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें । नाइट्रोजन की आधी मात्रा व बाक़ी सभी उर्वकों की पूरी मात्रा खेत में जुताई के समय डाल देंना चाहिए ।

पोषक तत्व प्रबन्धन-

अदरक एक लम्बी अवधि की फसल हैं । जिसे अधिक पोषक तत्चों की आवश्यकता होती है । उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए । खेत तैयार करते समय 250-300 कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए। प्रकन्द रोपण के समय 20 कुन्टल /है. मी पर से नीम की खली डालने से प्रकन्द गलब एवं सूत्रि कृमि या भूमि शक्ति रोगों की समस्याँ कम हो जाती हैं ।
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रासायनीक उर्वरकों की मात्रा को 20 कम कर देना चाहिए यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है तो । संन्तुष्ट उर्वरको की मात्रा 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा. कम्पोस्टस और 50 किग्रा .पोटाश /है. हैं । इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिऐ (तालिका) प्रत्येक बार उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी में 6 किग्रा .जिंक/है. (30 किग्रा .जिंक सल्फेट) डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती हैं ।

अदरक की खेती के लिये उर्वरको का विवरण (प्रति हेक्टयर)

उर्वरक आधारीय उपयोग 40 दिन बाद 90 दिन बाद
नत्रजन – 37.5 किग्रा. 37.5 किग.
फास्फोरस 50 किग्रा
पोटाश 149.1 4.7
कमपोस्ट गोबर की खाद 250 300 कु. 25 किग्रा .
नीम की खली 2 टन

उन्नतशील प्रजातियों का चयन

क्र.
राज्य
प्रजातियों के नाम
विशेषता
1. आसाम बेला अदा, मोरन अदा, जातिया अदा छोटे आकार के कन्द तथा औषधिय उपयोग के लिये प्रयुक्त
2. अरूणाचल प्रदेश केकी, बाजार स्थानीय नागा सिंह, थिंगिपुरी अधिक रेशा एवं सुगन्ध
3. मणिपुर नागा सिंह, थिंगिपुरी अधिक रेशा एवं सुगन्ध
4. नागालैण्ड विची, नाडिया सोठ एवं सुखी अदरक हेतु
5. मेघालय सिह बोई, सिंह भुकीर,काशी औषधिय उत्तम अदरक
6. मेजोरम स्थानीय,तुरा,थिंग पुदम, थिगंगिराव रेशा रहित तथा बहुत चरपरी अदरक
7. सिक्किम भैसी अधिक उपज

उपज, रेशा तथा सूखी अदरक के आधार पर विभिन्न प्रजातियाँ

क्र.
प्रमुख प्रजातियाँ
औसत उत्पादन (किग्रा/हे.)
रेशा(%)
सूखी अदरक(%)
1. रियो-डे-जिनेरियो 29350 5.19 16.25
2. चाइना 25150 3.43 15.00
3. मारन 23225 10.04 22.10
4. थिंगपुरी 24475 7.09 20.00
5. नाडिया 23900 8.13 20.40
6. नारास्सपट्टानम 18521 4.64 21.90
7. वायनाड 17447 4.32 17.81
8. कारकल 12190 7.78 23.12
9. वेनगार 10277 4.63 25.00
10 आर्नड मनजार 12074 2.43 21.25
11 वारडावान 14439 2.22 21.90

ताजा अदरक, ओरेजिन,तेल, रेशा, सूखा अदरक एवं परिपक्क अवधि के अनुसार प्रमुख प्रजातियाॅ

प्रजाति
प्रजातियो के नाम
परिपक्क अवधि (दिन)
ओले ओरेजिन (%)
तेल(%)
रेशा(%)
सूखी अदरक(%)
आई.आई. एस. आर . (रजाता) 23.2 300 300 1.7 3.3 23
महिमा 22.4 200 200 2.4 4.0 19
वर्धा (आई आई.एस.आर ) 22.6 200 6.7 1.8 4.5 20.7
सुप्रभा 16.6 229 8.9 1.9 4.4 20.5
सुरभि 17.5 225 10.2 2.1 4.0 23.5
सुरूचि 11.6 218 10.0 2.0 3.8 23.5
हिमिगिरी 13.5 230 4.5 1.6 6.4 20.6
रियो-डे-जिनेरियो 17.6 190 10.5 2.3 5.6 20.0
महिमा (आई.एस.आर.) 22.4 200 19.0 6.0 2.36 9.0

विभिन्न उपयोग के आधार पर प्रजातियाँ के नाम

क्र. प्रयोग प्रजातियो के नाम
1.
सूखी अदरक हेतु
कारकल, नाडीया, मारन, रियो-डी-जेनेरियो
2.
तेल हेतु
स्लिवा, नारास्सापट्टाम, वरूआसागर, वासी स्थानीय, अनीड चेन्नाडी
3.
ओलेरिजिन हेतु
इरनाड, चेरनाड, चाइना, रियो-डी-जिनेरियो
4.
कच्ची अदरक हेतु
रियो-डे-जिनेरियो, चाइना, वायानाड स्थानीय, मारन, वर्धा

अदरक के हानिकारक रोग हेतु उपयोगी रासायनिक, फुफुंद नाशी की मात्रा

क्र. रोग का नाम फफुंद नाशी प्रबन्धन
1. पर्णदाग मैंकोजेव 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे ।
2. उकठा या पीलिया मैंकोजेव + मैटालैक्जिल 3मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दो को उपचारित करके वुवाई करे या खडी फसल में ड्रेनिचिंग करे ।
3. कन्द गलन मैंकोजेव + मैटालैक्जिल 3मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दरो उपचारित करके वुवाई करे या खडी फसल में ड्रेनिचिंग करे ।
4. जीवाणु उकठा स्ट्रेप्पोसाइकिलिन 200 पी. पी.एन के घोल को कन्दों को उपचारित करे ।

अदरक के हानिकारक कीटों हेतु उपयोगी रासायनिक, कीटनाशकों की मात्रा

पलवार –

अदरक की फसल में पलवार विछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं । रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम एवं नमी का सामंजस्य बना रहता है । जिससे अंकुरण अच्छा होता है । खरपतवार भी नही निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही होने पाता है । रोपण के तुरन्त बाद हरी पत्तियाँ या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता हैं । 10-12 टन या सूखी पत्तियाँ 5-6 टन/है. बिछाना चाहिये । दुबारा इसकी आधी मात्रा को रोपण के 40 दिन और 90 दिन के बाद विछाते हैं , पलवार विछाने के लिए उपलब्धतानुसार गोवर की सड़ी खाद एवं पत्तियाँ, धान का पूरा प्रयोग किया जा सकता हैं । काली पाॅलीथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार का काम लिया जा सकता हैं । निदाई, गुडाई और मिट्टी चढाने का भी उपज पर अच्छा असंर पडाता हैं । ये सारे कार्य एक साथ करने चाहिये ।

सिंचाई व जल प्रबंधन –

पलवार के कारण खेत में खरपतवार नही उगते अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निदाई 4-5 माह बाद करनी चाहिये । साथ ही मिट्टी भी चढाना चाहिऐ । जब पौधे 20-25 सेमी .ऊँचीी हो जाये तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं । इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है । तथा प्रकंद का आकार बड़ा होता है, एवं भूमि में वायु आगमन अच्छा होता हैं । अदरक के कंद बनने लगते है तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं । इन्हे खुरपी से काट देना चाहिऐ, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं ।

खरपतवार नियंत्रण –

बिजाई के 3 दिन बाद एट्राज़िन 4-5 ग्राम प्रति लीटर पानी की नमी वाली मिट्टी पर स्प्रे करें। उन नदीनों को खत्म करने के लिए जो पहली नदीन नाशक स्प्रे के बाद पैदा होते हैं, बिजाई के 12-15 दिनों के बाद गलाइफोसेट 4-5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। नदीन नाशक की स्प्रे करने के बाद खेत को हरी खाद से या धान की पराली से ढक दें। जड़ों के विकास के लिए जड़ों में मिट्टी लगाएं। बिजाई के 50-60 दिनों के बाद पहली बार जड़ों में मिट्टी लगाएं और उसके 40 दिन बाद दोबारा मिट्टी लगाएं।

कीट नियंत्रण –

अदरक के हानिकारक कीटों हेतु उपयोगी रासायनिक, कीटनाशकों की मात्रा

क्र. कीट का नाम कीटनाशक प्रबन्धन
1. केले की माहुँ क्लोरोपाइरिफॉस 2 मिली. प्रति लीटर पानी
2. चइनीज गुलाब भृंग क्लोरोपाइरिफॉस  (5%)  धूल 25किग्रा/हे. वुवाई के खेत में डाले
3. अदरक का घुन क्लोरोपाइरिफॉस  (5%)धूल 25किग्रा/हे. वुवाई के खेत में डाले
4. हल्दी कन्द शल्क क्लोरोपाइरिफॉस  (5%) 25किग्रा/हे. वुवाई के खेत में डाले
5. नाइजर शल्क क्विनालफॉस  धूल 20 मिनट तक कन्दों को वोने और भण्डारन के पहले उपचारित करे
6. इलायची थ्रिप्स डाइमेथोएट 2 मिली /ली. पानी के साथ छिडकाव करें
7. तना छेदक डाइमेथोएट 2 मिली / ली. पानी के साथ छिडकाव करें
8. पत्ती मोडक डाइमेथोएट 2 मिली / ली. पानी के साथ छिडकाव करें

रोग नियंत्रण –

अदरक के हानिकारक रोग हेतु उपयोगी रासायनिक, फुफुंद नाशी की मात्रा

क्र. रोग का नाम फफुंद नाशी प्रबन्धन
1. पर्णदाग मैंकोजेव 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे ।
2. उकठा या पीलिया मैंकोजेव + मैटालैक्जिल 3मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दो को उपचारित करके वुवाई करे या खडी फसल में ड्रेनिचिंग करे ।
3. कन्द गलन मैंकोजेव + मैटालैक्जिल 3मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दरो उपचारित करके वुवाई करे या खडी फसल में ड्रेनिचिंग करे ।
4. जीवाणु उकठा स्ट्रेप्पोसाइकिलिन 200 पी. पी.एन के घोल को कन्दों को उपचारित करे ।

खुदाई –

अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिये जब पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे । खुदाई से देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है, तथा भण्डारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं । खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है । बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुॅचती है जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिऐ ।
खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तीयो, मिट्टी तथा अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये । यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर खुदाई किया जाना चाहिऐ । प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये । सूखी अदरक के प्रयोग हेतु 8 महीने बाद खोदी गई है, 6-7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम व्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये ।
धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के 100 पी पी एम के घोल में 10 मिनट के लिये डुबोना चाहिऐ । जिससे सूक्ष्मे जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बड़ती है।अधिक देर तक धूप ताजी अदरक (कम रेशे वाली) को 170-180 दिन बाद खुदाई करके नमकीन अदरक तैयार की जा सकती है । मुलायम अदरक को धुलाई के बाद 30 प्रतिशतनमक के घोल जिसमें 1% सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता हैं । जिसे 14 दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग हो जाती है ।

उपज –

ताजा हरे अदरक के रूप में 100-150 कु. उपज/हे. प्राप्त हो जाती है । जो सूखाने के बाद 20-25 कु. तक आ जाती हैं । उन्नत किस्मो के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300कु./हे. तक प्राप्त की जा सकती है।इसके लिये अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पडता है जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है । और मोटी भी हो जाती हैं।

भण्डारण-

ताजा उत्पाद बनाने और उसका भण्डारण करने के लिये जब अदरक कडी, कम कडवाहट और कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है। सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूण परिपक्व होने पर खुदाई करना चाहिऐ अगर परिपक्व अवस्था के वाद कन्दो को भूमि में पडा रहने दे तो उसमें तेल की मात्रा और तिखापन कम हो जाऐगा तथा रेशो की अधिकता हो जायेगी । तेल एवं सौठं बनाने के लिये 150-170 दिन के बाद भूमि से खोद लेना चाहिये ।
अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रकार एवं प्रजातियो पर निर्भर करता है । गर्मीयों में ताजा प्रयोग हेतु 5 महिने में, भण्डारण हेतु 5-7 महिने में सूखे ,तेल प्रयोग हेतु 8-9 महिने में बुवाई के बाद खोद लेना चहिये ।बीज उपयोग हेतु जबतक उपरी भाग पत्तीयो सहित पूरा न सूख जाये तब तक भूमि से नही खोदना चाहिये क्योकि सूखी हुयी पत्तियाॅ एक तरह से पलवार का काम करती है । अथवा भूमि से निकाल कर कवक नाशी एवं कीट नाशीयों से उपचारित करके छाया में सूखा कर एक गडडे में दवा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिये।