एलोवेरा की खेती से आज किसान भाई लाखों रुपए कमा रहे है। एलोवेरा को घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा,क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी औषधीय पौधा में गिनती होती है । एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। एलोवेरा जिसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा कहा जाता है. यह पौधा साल भर हरा भरा रहता है । इसकी उत्पति दक्षिणी यूरोप एशिया या अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में मानी जाती है । भारत में एलोवेरा का व्यासायिक उत्पादन सौन्दर्य प्रसाधन के साथ दवा निर्माण के लिए किया जाता है । एलोवेरा की पट्टी ही व्यवसायिक इस्तेमाल में आती है । एलोवेरा का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई 60-100 सेंटीमीटर तक होती है। पत्ते चारो तरफ लगे होते हैं। एलोवेरा (Aloe Vera) के पत्ते के आगे का भाग नुकीला होता है। इसके किनारों पर हल्के कांटे होते हैं। पत्तों के बीज से फूल का दंड निकलता है जिस पर पीले रंग के फूल लगे होते हैं।इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार,मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे दांतों की एक पंक्ति होती है। गर्मी के मौसम में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।
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एलोवेरा का वानस्पतिक परिचय | एलोवेरा क्या है? What is Aloe Vera in Hindi
यह लिलीएसी कुल का बहुवर्षीय मांसल पौधा है । एलोवेरा का वानस्पतिक नाम Aloe vera (Linn.) Burm.f. (एलोवेरा) । एलोवेरा को घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा,क्वारगंदल, या ग्वारपाठाजिसकी ऊंचाई 2-3 फीट तक होती है। इसका तना बहुत छोटा तथा जड़े भी धृतकुमारी झकड़ा होती है। जो कि जमीन के अन्दर कुछ ही गहराई तक रहती है। मूल के ऊपर से काण्ड से पत्ते निकलते है। पत्ते मांसल, फलदार, हरे तथा एक से डेढ़ फुट तक लम्बे होते है। पत्तों की चौड़ाई 1 से 3 इंच तक मोटाई आधी इंच तक होती है। पत्तों के अन्दर घृत के समान चमकदार गुदा होती है। जिसमें कुछ हल्की गंध आती है तथा स्वाद में कड़वा होता है। पत्तों को काटने पर एक पीले रंग का द्रव्य निकलता है जो ठण्डा होने पर जम जाता है जिसे कुमारी सार कहते है।
आयुर्वेद में इसे घृतकुमारी के नाम से पहचानते है। ग्वारपाठा मुख्यतः फलोरिडा, वेस्टइंडीज, मध्य अमेरिका तथा एशिया महाद्वीप में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। भारत में पूर्व में विदेशों से लाया गया था लेकिन अब पूरे देश में खास कर शुष्क इलाको में जंगली पौधों के रूप में मिलता है।
एलोवेरा के अन्य भाषाओं में नाम (Name of Aloe Vera in Different Languages)-
एलोवेरा का वानस्पतिक नाम Aloe vera (Linn.) Burm.f. (एलोवेरा) Syn-Aloe barbadensis Mill है, और इसके अन्य ये भी नाम हैं
Aloe Vera name in Hindi Language – घीकुआँर, ग्वारपाठा, घीग्वार
Aloe Vera name in English Language – एलो वेरा (Aloe vera), कॉमन एलो (Common aloe), बारबडोस एलो (Barbados aloe), मुसब्बार (Musabbar), कॉमन इण्डियन एलो (Common Indian aloe)
Aloe Vera name in Sanskrit Language – कुमारी, गृहकन्या, कन्या, घृतकुमारी
Aloe Vera name in Kannada Language – लोलिसर (Lolisar)
Aloe Vera name in Gujarati Language – कुंवार (Kunwar), कड़वी कुंवर (Kadvi kunvar)
Aloe Vera name in Tamil Language – कत्तालै (Kattale), अंगनी (Angani), अंगिनी (Angini)
Aloe Vera name in Telugu Language – कलबन्द (Kalband), एट्टाकलाबन्द (Ettakalaband)
Aloe Vera name in Bengali Language – घृतकुमारी (Ghritkumari)
Aloe Vera name in Nepali Language – घ्यूकुमारी (Giukumari)
Aloe Vera name in Punjabi Language Language – कोगर (Kogar), कोरवा (Korwa)
Aloe Vera name in Malayalam Language – छोट्ठ कथलाइ (Chotthu kathalai)
Aloe Vera name in Marathi Language – कोरफड (Korphad), कोराफण्टा (Koraphanta)
Aloe Vera name in Arabic Language Language– तसाबार अलसी (Tasabrar alsi), मुसब्बर (Musabbar)
Aloe Vera name in Persian Language – दरखते सिब्र (Darkhate sibre), दरख्तेसिन (arkhteesinn)
कहाँ होती है एलोवेरा की खेती – where to grow aloe vera in india –
भारत में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा हरियाणा के शुष्क इलाकों में की जाती है।
एलोवेरा के फायदे- health benefits of What is Aloe Vera in Hindi
आयुर्वेद के अनुसार एलावेरा अथवा ग्वारपाठा कडुवा, शीतल, रेचक, धातु परिवर्तक, मज्जावर्धक, कामोद्दीपक, कृमिनाशक और विषनाशक होता है। नेत्र रोग, अवूर्द, तिल्ली की वृद्धि, यकृत रोग, वमन, ज्वर, खासी, विसर्ग, चर्म रोग, पित्त, श्वास, कुष्ठ पीलियां, पथरी और व्रण में लाभदायक होता है। आयुर्वेद की प्रमुख दवायें जैसे घृतकारी अचार, कुमारी आसव, कुवारी पाक, चातुवर्गभस्म, मंजी स्याडी तेल आदि इसके मुख्य उत्पाद है। प्रसाधन सामग्री के निर्माण में भी उपयोग मुख्य प्रमुख रूप में किया जाता है। त्वचा में नयापन लाने के लिए इसके उत्पादों का उपयोग पौराणिक काल से ही हो रहा है। उत्पादों का विश्व बाजार में काफी माँग के चलते ग्वारमाठा के खेती की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
औषधीय पौधे एलोवेरा की उन्नत खेती की जानकारी | Aloe vera farming in hindi । Aloe vera ki kheti

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तापमान –
एलोवेरा की बेहतर खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड होता है । परंतु यह पौधा किसी भी तापमान पर अपने को बचाए रख सकता है ।
मिट्टी का चुनाव –
एलोवेरा की खेती के लिए उष्ण जलवायु अच्छी रहती है। इसकी खेती आमतौर पर शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा और गर्म आर्द्र क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जाती है। यह पौधा अत्यधिक ठंड की स्थिति के प्रति बहुत संवेदनशील है। बात करें इसके लिए मिट्टी या भूमि की तो इसकी खेती रेतीली से लेकर दोमट मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। रेतीली मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी होती है। इसके अलावा अच्छी काली मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। भूमि चयन करते समय हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि इसकी खेती के लिए भूमि ऐसी हो जो जमीनी स्तर थोड़ी ऊंचाई पर हो और खेत में जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि इसमें पानी ठहरना नहीं चाहिए। इसकी मिट्टी का पीएच मान 8.5 होना चाहिए।
भूमि तैयारी व खाद –
वर्षा ऋतु से पहले खेत में एक दो जुताई 20-30 से०मी० की गहराई तक पर्याप्त है जुताई के समय 10-15 टन गोबर की खाद एकसार भूमि में अंतिम जुताई के साथ मिला देनी चाहिये।
एलोवेरा की उन्नत क़िस्में – अलोइवेरा
भारत के अलग-अलग देशों में एलोवेरा की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। मुख्यतया दो प्रजातियों का चिकित्सा में विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है जो ये हैं-
Aloe vera (Linn.) f.-
Aloe abyssinica (पीतपुष्पा कुमारी)
वर्षों के शोध के बाद पता चला कि एलोवेरा 300 प्रकार के होते हैं। इसमें 284 किस्म के एलो वेरा में 0 से 15 प्रतिशत औषधीय गुण होते हैं। 11 प्रकार के पौधे जहरीले होते हैं बाकी बचे पांच विशेष प्रकार में से एक पौधा है जिसका नाम एलो बारबाडेन्सिस मिलर है जिसमें 100 प्रतिशत औषधि व दवाई दोनों के गुण पाए गए हैं। वहीं इसकी मुसब्बर Arborescens प्रजाति जिसमें लाभकारी औषधीय और उपचार गुण होते हैं और विशेष रूप से जलने को शांत करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसकी एक ओर प्रजाति जिसे मुसब्बर Saponaria कहते हैं इसे इसे असली चिता या मुसब्बर मैकुलता के रूप में जाना जाता है। इसका प्रयोग सभी प्रकार की त्वचा की स्थिति के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसमें होने वाले उच्च स्तर के रस के कारण इसे सौंदर्य प्रसाधनों में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान में आईसी111271, आईसी111269 और एएल-1 हाईब्रिड प्रजाति के एलोवेरा को देश के हर क्षेत्र में उगाया जा सकता है।
आई. सी. – 111271, आई.सी. – 111280, आई. सी. – 111269 और आई. सी.- 111273 का कमर्शियल उत्पादन किया जा सकता है. इन किस्मों में पाई जाने वाली एलोडीन की मात्रा 20 से 23 प्रतिशत तक होती है । केन्द्रीय औषधीय संघ पौधा संस्थान के द्वारा सिम-सीतल, एल- 1,2,5 और 49 एवं को खेतों में परीक्षण के उपरान्त इन जातियों से अधिक मात्रा में जैल की प्राप्ति हुई है । इनका प्रयोग खेती (व्यवसायिक) के लिए किया जा सकता है । अगर आप एलोवेरा की खेती बड़े पैमाने पर करना चाहते है, वो इसकी चार पत्ती वाली चार पत्तों वाली लगभग चार महीना पुरानी 20-25 सेंटीमीटर लंबाई वाले पौधे का चयन करना सही होता है. एलोवेरा के पौधे की यह खासियत होती है कि इसे उखाड़ने के महीनों बाद भी लगया जा सकता है ।
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बुवाई का समय –
इसकी बिजाई सिंचित क्षेत्रों में सर्दी को छोड़कर पूरे वर्ष में की जा सकती है लेकिन उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त है।
बीज की मात्रा –
इसकी बिजाई 6-8′ के पौध द्वारा किया जाना चाहिए। इसकी बिजाई 3-4 महीने पुराने चार-पांच पत्तों वाले कंदो के द्वारा की जाती है। एक एकड़ भूमि के लिए करीब 5000 से 10000 कदों/सकर्स की जरूरत होती है। पौध की संख्या भूमि की उर्वरता तथा पौध से पौध की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी पर निर्भर करता है।
एलोवेरा के बीज कहाँ से प्राप्त करें –
एलोईन तथा जेल उत्पादन की दृष्टि से नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लान्ट जेनेटिक सोर्सेस द्वारा एलोवेरा की कई किस्में विकसित की गई है। सीमैप, लखनऊ ने भी उन्नत प्रजाति (अंकचा/ए.एल.-1) विकसित की है। वाणिज्यिक खेती के लिए जिन किसानों ने पूर्व में एलोवेरा की खेती की हो तथा जूस/जेल आदि का उत्पादन में पत्तियों का व्यवहार कर रहे हों,तो वे नई किस्म के लिए संपर्क कर सकते हैं।
रोपण विधि –
इसके रोपण के लिए खेत में खूड़ (रिजेज एण्ड फरोज) बनाये जाते है। एक मीटर में इसकी दो लाईंने लगेगी तथा फिर एक मीटर जगह खाली छोड़ कर पुनः एक मीटर में दो लाईने लगेंगी। यह एक मीटर की दूरी ग्वारपाठे काटने, निकाई गुड़ाई करने में सुविधाजनक रहता है। पुराने पौधे के पास से छोटे पौधे निकालने के बाद पौधे के चारो तरफ जमीन की अच्छी तरह दबा देना चाहिये। खेत में पुराने पौधों से वर्षा ऋतु में कुछ छोटे पौधे निकलने लगते है इनकों जड़ सहित निकालकर खेत में पौधारोपण के लिये काम में लिया जा सकता है। नये फल बाग में अन्तरवर्ती फसल के लिए ग्वारपाठा की खेती उपयुक्त है।
खाद एवं उर्रवरक –
एलोवेरा की खेती कम उपजाऊ जमीन पर होती हैं, साथ ही कम खाद में भी बेहतर उत्पादन पा सकते हैं. लेकिन अच्छी उपज के लिए खेत को तैयार करते समय 10-15 टन सड़ी हूए गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए इससे उत्पादन में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है ।
सिंचाई और कीट नियंत्रण –
पौधों की रोपाई के बाद पानी दिया जाता है । ड्रिप इरिगेशन या संप्रिंक्लर से इसकी सिंचाई की जाती है । इसे एक साल में तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. कीट नियंत्रण के लिए समय समय खेत से खर पतवार निकालते रहना चाहिए. पौधों के आसपास पानी नहीं रुकने देना चाहिए ।
एलोवेरा के फायदे- health benefits of What is Aloe Vera in Hindi
सिर दर्द में एलोवेरा के फायदे (Benefits of Aloe Vera in Relief from Headache in Hindi)
एलोवेरा के फायदे (aloe vera ke fayde) लेकर सिर दर्द से आराम पा सकते हैं। इसके लिए एलोवेरा जेल लें, और इसमें थोड़ी मात्रा में दारु हल्दी (दारुहरिद्रा) का चूर्ण मिला लें। इसे गर्म करके दर्द वाले स्थान पर बांधें। इससे वात और कफ दोष के कारण होने वाले सिरदर्द से आराम मिलता है।
आंखों की बीमारी में एलोवेरा (ग्वारपाठा) के फायदे (Aloe Vera Benefits to Treat Eye Disease in Hindi)
आप एलोवेरा के औषधीय गुण से आंखों की बीमारी का इलाज कर सकते हैं। एलोवेरा जेल को आंखों पर लगाएंगे तो आंखों की लालिमा खत्म होती है। यह विषाणु से होने वाले आखों के सूजन (वायरल कंजक्टीवाइटिस) में लाभदायक होता है। एलोवेरा का औषधीय गुण आँखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आप एलोवेरा के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म कर लें। इसे आंखों पर बांधने से आंखों के दर्द का इलाज होता है।
कान दर्द में एलोवरा के औषधीय गुण फायदेमंद (Aloe Vera Benefits for Ear Pain in Hindi)
कान दर्द में भी एलोवेरा से लाभ मिलता है। एलोवेरा के रस को हल्का गर्म कर लें। जिस कान में दर्द हो रहा है, उसके दूसरी तरफ के कान में दो-दो बूंद टपकाने से कान के दर्द में आराम (aloe vera ke fayde) मिलता है।
एलोवेरा के सेवन से खूनी बवासीर का इलाज (Aloe Vera Benefits for Piles Treatment in Hindi)
आप बवासीर में एलोवेरा के प्रयोग से फायदा ले सकते हैं। एलोवेरा जेल (aloe vera ke fayde) के 50 ग्राम गूदे में 2 ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाएं। अब इसकी टिकिया बना लें। इसे रूई के फाहे पर फैलाकर गुदा स्थान पर लंगोट की तरह पट्टी बांधें। इससे मस्सों में होने वाली जलन और दर्द में आराम मिलता है। इससे मस्से सिकुड़कर दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में भी लाभदायक है।
एलोवेरा के सेवन से पीलिया का इलाज (Aloe Vera Uses in Fighting with Jaundice in Hindi)
पीलिया का इलाज करने के लिए भी एलोवेरा का सेवन करना फायदेमंद होता है। इसके लिए 10-20 मिलीग्राम एलोवेरा के रस को दिन में दो तीन बार पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है। इस प्रयोग से कब्ज से मुक्ति पाने में भी मदद मिलती है। एलोवेरा रस की 1-2 बूंद नाक में डालने से भी लाभ होता है। कुमारी लवण को 3-6 ग्राम तक की मात्रा में छाछ के साथ सेवन करें। इससे लीवर, तिल्ली के बढ़ाना, पेट की गैस, पेट में दर्द और पाचनतंत्र से जुड़ी अन्य समस्याओं में लाभ होता है।
लीवर विकार में एलोवेरा (ग्वारपाठा) के फायदे (Aloe Vera Uses for Liver Disorder in Hindi)
दो भाग एलोवेरा के पत्तों का रस और 1 भाग शहद लेकर उसे चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस बर्तन का मुंह बन्द कर 1 सप्ताह तक धूप में रख दें। एक सप्ताह बाद इसे छान लें। इस औषधि को 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से लीवर से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से पेट साफ होता है। उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात से जुड़ी समस्याएं ठीक होने लगती हैं। इससे लीवर स्वस्थ हो जाता है।
मूत्र रोग में एलोवेरा के औषधीय गुण से लाभ (Uses of Aloe Vera for Urinary Disease in Hindi)
एलोवेरा के औषधीय गुण से मूत्र संबंधी अनेक रोग में फायदा होता है। इसके लिए 5-10 ग्राम एलोवेरा जेल में चीनी मिलाकर खाएं। इससे पेशाब में दर्द और जलन से आराम मिलता है।
एलोवेरा के औषधीय गुण से खांसी-जुकाम का इलाज (Benefits of Aloe Vera in Fighting with Cough and Cold in Hindi)
खांसी-जुकाम में एलोवेरा के फायदे (aloe vera ke fayde) लेने के लिए इसका गूदा निकालें। गूदा और सेंधा नमक लेकर भस्म तैयार कर लें। इस भस्म को 5 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे पुरानी खांसी और जुकाम में लाभ होता है।
पेट की बीमारी में एलोवेरा का सेवन फायदेमंद (Aloe Vera Uses for Abdominal Disease in Hindi)
घृतकुमारी (aloe vera ke fayde) के औषधीय गुण से पेट के रोग में भी लाभ होता है। गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। इस उपचार से आंतों में जमा हुआ मल भी आराम से बाहर निकल जाता है।
एलोवेरा की 10-20 ग्राम जड़ को उबाल लें। इसे छानकर भुनी हुई हींग मिला लें। इसे पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है। एलोवेरा के 6 ग्राम गूदा और 6 ग्राम गाय का घी, 1 ग्राम हरड़ चूर्ण और 1 ग्राम सेंधा नमक लें। इसे मिलाकर सुबह-शाम खाने से वात विकार से होने वाले गैस की समस्या ठीक होती है। गाय के घी में 5-6 ग्राम घृतकुमारी के गूदे में त्रिकटु सोंठ, मरिच पिप्प्ली, हरड़ और सेंधा नमक मिला लें। इसका सेवन करने से गैस की समस्या में लाभ होता है।
60 ग्राम घृतकुमारी के गूदे में 60 ग्राम घी, 10 ग्राम हरड़ चूर्ण तथा 10 ग्राम सेंधा नमक मिला लें। इसे अच्छी तरह मिला लें।इसको 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से वात दोष से होने वाले पेट की गैस की समस्या से निजात मिलता है। इस पेस्ट का सेवन पेट से जुड़ी बीमारियों व वात दोष से होने दूसरे रोगों में भी फायदेमंद होता है।
एलोवेरा के पत्ते के दोनों ओर के कांटों को अच्छे से साफ कर लें। इसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर मिट्टी के एक बर्तन में रख लें। इसके 5 किलो के टुकड़े में आधा किलो नमक डालकर बर्तन का मुंह बंद कर दें। इसे 2-3 दिन धूप में रखें। इसे बीच-बीच में हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें 100 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम धनिया, 100 ग्राम सफेद जीरा, 50 ग्राम लाल मिर्च, 6 ग्राम भुनी हुई हींग डाल लें। इसी में 30 ग्राम अजवायन, 100 ग्राम सोंठ, 6 ग्राम काली मिर्च, 6 ग्राम पीपल, 5 ग्राम लौंग भी डाल लें। इसके साथ ही 5 ग्राम दाल चीनी, 50 ग्राम सुहागा, 50 ग्राम अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम बड़ी इलायची और 300 ग्राम राई डालकर महीन पीस लें। रोगी की क्षमता के अनुसार 3-6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम देने से पेट के वात-कफ संबंधी सभी विकार खत्म होते हैं। सूखने पर अचार, दाल, सब्जी आदि में डालकर प्रयोग करें।
तिल्ली (प्लीहा) विकार एलोवेरा के औषधीय गुण से लाभ (Benefits of Aloe Vera to Treat Spleen Disorder in Hindi)
तिल्ली बढ़ गई हो तो एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदा होता है। 10-20 मिलीग्राम एलोवेरा के रस में 2-3 ग्राम हल्दी चूर्ण मिलाकर सेवन करें। इससे तिल्ली के बढ़ने के साथ-साथ अपच में लाभ होता है।
डायबिटीज (मधुमेह) में एलोवेरा के सेवन से फायदा (Uses of Aloe Vera to Controlling Diabetes in Hindi)
250-500 मिलीग्राम गुडूची सत् (पानी को गर्म कर सुखा कर नीचे बचा हुआ पदार्थ) में 5 ग्राम घृतकुमारी (Aloe Vera) का गूदा मिलाकर लेने से मधुमेह में लाभ होता है। डायबिटीज को नियंत्रित करने में एलोवेरा के औषधीय गुण बहुत फायदेमंद होते हैं।
मासिक धर्म विकार में एलोवेरा के सेवन से लाभ (Aloe Vera Helps to get Relief from Menstrual Disorders in Hindi)
एलोवेरा के 10 ग्राम गूदे पर 500 मिलीग्राम पलाश का क्षार बुरककर दिन में दो बार सेवन करें। इससे मासिक धर्म की परेशानियां दूर होती हैं।
मासिक धर्म के 4 दिन पहले से दिन में तीन बार कुमारिका वटी की 1-2 गोली का सेवन करें। इसे मासिक धर्म खत्म होने तक सेवा करना है। इससे मासिक धर्म के समय होने वाला दर्द, गर्भाशय का दर्द और योनि से जुड़ी अनेक बीमारी से आराम मिलता है।
चेचक के घावों में एलोवेरा के फायदे (Aloe Vera Benefits to Treat Chicken Pox in Hindi)
एलोवेरा जेल के फायदे (aloe vera gel ke fayde) से चेचक में भी लाभ होता है। चेचक होने पर दर्द, जलन और सूजन से राहत पाने के लिए आप एलोवेरा का इस्तेमाल कर सकते हैं। चेचक के घावों पर एलोवेरा के गूदे का लेप करने से लाभ होता है।
चर्म रोग में एलोवेरा के फायदे (Aloe Vera Uses for Skin Disease in Hindi)
कई तरह के चर्म रोग में एलोवेरा का प्रयोग करने पर फायदा होता है। अगर आपकी त्वचा पर मस्से निकल आए हैं तो एलोवेरा के पत्ते को एक तरफ से छीलकर मस्सों पर बांधें। इससे मस्से खत्म हो जाते हैं।
बुखार में एलोवेरा के औषधीय गुण से फायदा (Aloe Vera Benefits in Fighting with Fever in Hindi)
एलोवेरा के सेवन से बुखार का इलाज किया जा सकता है। एलोवेरा की जड़ से काढ़ा बना लें। 10-20 मिलीग्राम काढ़ा को दिन में तीन बार पिलाने से बुखार ठीक होता है।
कुमारी लवण कैसे बनाएं?
एलोवेरा (घृतकुमारी) के पत्तों का गूदा निकाल लें। बाकी के छिलकों को मटकी में रख लें। इसमें इतनी ही मात्रा में नमक मिलाकर मुंह बंद कर दें। अब इसे गोबर के कंडों की आग पर रख दें। भीतर का पानी जब जलकर काला हो जाए तो इसे महीन पीसकर शीशी में भर लें। इसी को कुमारी लवण कहते हैं।
लिंग में छाले होने पर एलोवारा के फायदे (Aloe Vera Helps in Getting Relief from Penis Ulcers in Hindi)
पुरूषों के यौन संबंधी समस्याओं में एलोवेरा जूस से फायदा होता है। एलोवेरा के साथ जीरा को पीसकर लिंग पर लेप करने से लिंग की जलन और छाले दूर होते हैं। यह प्रयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
गठिया के इलाज की आयुर्वेदिक दवा है एलोवेरा (Benefits of Aloe Vera to Treat Arthritis in Hindi)
जोड़ो के दर्द में भी एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। 10 ग्राम एलोवेरा जेल नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करें। इससे गठिया में लाभ होता है।
एलोवेरा के सेवन से कमर दर्द का इलाज (Uses of Aloe Vera in Reducing Backache in Hindi)
कमर दर्द से परेशान रहते हैं तो एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदा ले सकते हैं। गेंहू का आटा, घी और एलोवेरा जेल (एलोवेरा का गूदा इतना हो जिससे आटा गूंथा जाए) लेकर आटा गूंथ लें। इससे रोटी बनाएं। रोटी का चूर्ण बनाकर लड्डू बना लें। रोज 1-2 लड्डू को खाने से कमर दर्द ठीक होता है। एलोवेरा जेल कमर दर्द में दर्दनिवारक दवा की तरह काम करता है।
घाव और चोट में एलोवेरा के गुण से फायदा (Aloe Vera Helps for Healing Wound and Injury in Hindi)
फोड़ा ठीक से पक न रहा हो तो एलोवेरा के गूदे में थोड़ा सज्जीक्षार और हरड़ चूर्ण मिलाकर घाव पर बांधें। इससे फोड़ा जल्दी पक कर फूट जाता है।
घृतकुमारी के पत्ते को एक ओर से छील लें। इस पर थोड़ा हरड़ का चूर्ण बुरक कर हल्का गर्म कर लें। इसे गांठ पर बांधें। इससे गांठों की सूजन दूर होगी। स्त्रियों के स्तन में गांठ पड़ गई हो या सूजन हो गई हो तो एलोवेरा की जड़ का पेस्ट बना लें। इसमें थोड़ा हरड़ चूर्ण मिलाकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। इसे दिन में 2-3 बार बदलना चाहिए। घृतकुमारी का गूदा घावों को भरने के लिए सबसे उपयुक्त औषधि है। रेडिएशन के कारण हुए गंभीर घावों पर इसके प्रयोग से बहुत ही अच्छा फायदा मिलता है। आग से जले हुए अंग पर एलोवेरा के गूदे को लगाने से जलन शांत हो जाती है। इससे फफोले नहीं होते हैं। एलोवेरा और कत्था को समान मात्रा में पीसकर लेप करने से नासूर में फायदा होता है। एलोवेरा के रस को तिल और कांजी के साथ पका लें। इसका लेप करने पर घाव में लाभ होता है। केवल एलोवेरा के रस को पकाकर घाव पर लेप करने से भी लाभ होता है।