खरीफ मौसम में औद्यानिक फसलों की सघन पद्धतियाँ – Intensive practices of oudicial crops in kharif season
खरीफ मौसम में औद्यानिक फसलों की सघन पद्धतियाँ-
अ. फलोत्पादन –
क्रम संख्या |
फल का नाम |
उन्नत प्रजातियाँ |
रोपण दूरी |
अन्य उपयोगी बिंदु |
1 | आम | अगेती – बाम्बे ग्रीन, गौरजीत
मध्यम – दशहरी, लंगड़ा स्वर्णरेखा, रामकेला (अचार हेतु) दशहरी-51 पिछेती- लखनऊ सफेदा, आम्रपाली, चौसा, फजरी, नीलम |
मल्लिका 10×10 आम्रपाली 2.5×2.5 | बागों में परागी किस्मों को अवश्य लगाना चाहिए उदाहरण दशहरी के बाग में बाम्बे ग्रीन |
2 | अमरूद | इलाहाबाद, सफेदा, सरदार (एल-49), ललित, संगम | 6×6 | व्यावसायिक दृष्टि से जाड़ें की अधिक पैदावार के लिए 10 प्रतिशत यूरिया (100ग्राम प्रति ली० पानी का घोल) इलाहाबाद सफेदा एवं 15 प्रतिशत(150ग्राम प्रति लि०) पानी, लखनऊ-49 किस्म में अप्रैल मई (पुष्पावस्था)में दो छिड़काव 8 से 10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। |
3 | आँवला | ऑवला कृष्णा, कंचन, नरेन्द्र-आँवला 6,7 एवं 10, लक्ष्मी-52 | 6×6 | अच्छी फसल के लिए दो प्रजातियों को एक साथ लगाना चाहिए। |
4 | लीची | अर्ली सीडलेस, अर्ली लार्ज रेड, मुजफ्फरपुर, कलकतिया, शाही, रोज सेन्टेड | 10 | |
5 | कटहल | एन०जे०-1,एन०जे०-3, पडरौना, खाजा, रूद्राक्षि | 10 | |
6 | नींबू | कागजी, पंत लेमन-1, विक्रम परमालिनी | 4.5-6 | |
7 | बेर | उमरान, बनारसी,कड़ाका, गोला, पैवन्दी, दनदन | 8×8 | |
8 | बेल | कागजी, मिर्जापुर, नरेन्द्र बेल-5 एवं 9 | 10×10 | |
9 | पपीता | हनीड्यू, पूसा नन्हा, पूसा डेलिसियस पूसा ड्रवार्फ, पूसा मेजिस्टिक | 1.5 से 2.5 व 1.80×1.80 | माह सितम्बर में रोपण करना अच्छा पाया गया है। |
10 | केला | ग्रैण्डनेन, रोबस्टा, ड्रवार्फ, केवेन्डिश पूवन, रसथाली, हरीछाल | 1.5 से 2.0 मीटर व 1.80×1.80 |
1. खरीफ मौसम में शाकभाजी उत्पादन के लिए विभिन्न शाकभाजी फसलों की नवीन उन्नतिशील प्रजातियों के बीजों का प्रयोग करें। सब्जियों की विभिन्न उन्नतिशील प्रजातियां निम्नलिखित हैं –
तालिका देखें-
2. शाकभाजी की उत्पादकता बढ़ाने हेतु संकर प्रजातियों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रजातियॉ निम्नलिखित है-
क्रम संख्या |
शाक व सब्ज़ी |
उन्नत क़िस्में |
संकर क़िस्में |
1 | भिंडी | आजाद भिण्डी-1 व 2, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, बी०आर०ओ०-6ए बी०आर०ओ०-10 | उदय, वर्षा, विजया, सुप्रिया, प्रिया, सुकोमल एफ-1
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2 | लोबिया | पूसा बरसाती, पूसा दो फसली, पूसा कोमल, नरेन्द्र लोबिया-1, बी०आर०ए०, सी०पी०-2 | |
3 | मिर्च | (मसाला हेतु) – पूसा ज्वाला, पंत सी-1, कल्यानपुर चंचल, पंत सी-2 पूसा सदाबहार, आजाद मिर्च-1
मिर्च(गृहवाटिका हेतु) – कल्याणपुर चंचल, पूसा, सदाबहार, आजाद मिर्च-1 |
सी०एस०एच०-1ए तेजस्वनी, अग्नि, चैम्पियन
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4 | बैंगन | (गोल फल) पन्त, ऋतुराज, हिसार श्यामल, हिसार प्रगति, के०एस०-224, पूसा अंकुर, पूसा परपिल राउण्ड, पूसा बहार,कल्यानपुर टी-3 बैंगन (लम्बे फल) पूसा परपिल लॉग, पंत सम्राट, आजाद बी-3, पूसा परपिल क्लस्टर, पंजाब बरसाती, आजाद क्रान्ति, नरेन्द्र बैंगन-1 |
पूसा हाईब्रिड-6, अर्का नवनीत, आजाद हाईब्रिड ए पूसा हाईब्रिड-5,(लम्बा), पंत बैंगन हाईब्रिड-1, नरेन्द्र हार्इब्रिड बैंगन-1
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5 | लौकी | कल्यानपुर लम्बी हरी, लम्बी आजाद हरित,आजाद नूतन, पूसा नवीन, पंजाब कोमल | पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी, आजाद संकर-1, वरद, नरेन्द्र संकर लौकी-4, पंत संकर लौकी-1 व 2, प्रतिभा, एन०एस०-381
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6 | तरोई | चिकनी) पूसा चिकनी, कल्यानपुर हरी चिकनी, पूसा सुप्रिया, आजाद (चिकनी) तरोई-1 तरोई (नसदार) पंजाब सदाबहार, पूसा नसदार, स्वर्णमंजरी, पी०के०एम०-1, सतपुतिया |
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7 | करेला | पूसा दो मौसमी,कल्यानपुर बारामासी, पूसा विशेष | विवेक, एम०बी०टी०एच०-101
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8 | टिंडा | एस०-48, अर्का हिसार, सेलेक्शन-1 | |
9 | खीरा | कल्यानपुर हरा, प्वाइनसेट, स्वर्ण अगेती, हिसार चयन-1, जापानी लॉग ग्रीन | पूसा संयोग, प्रिया, अमन-1
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10 | कद्दू | आजाद कद्दू-1, पूसा विश्वास, अर्का चन्दन, नरेन्द्र अमृत | |
11 | प्याज़ | (खरीफ) एन०-53, एग्री फाउण्ड डार्क रैड, अर्लीग्रेनो | |
12 | हल्दी | आजाद हल्दी-1, राजेन्द्र सोनिया, सुगन्धा, स्वर्णा, सुगना | |
13 | फूलगोभी | अर्ली कुंवारी, पूसा कार्तिकी, पूसा दीपाली, पूसा अर्ली सिन्थेटिक | |
14 | पेठा | सी०ओ०-2 | |
15 | अदरक | नाड़िया, बरूआ सागर, रिओडिजेनरो, सुप्रभा तथा मैरान, कालीफर | |
16 | अरबी | आजाद अरबी-1 |
3.संकर शाकभाजी उत्पादन लेने के लिए उत्पादन तकनीक की जानकारी आवश्यक है। जैसे टमाटर की रोपाई सितम्बर, अक्टूबर एवं जनवरी-फरवरी में करने से लाभ होता है संकर प्रजातियों में सामान्य प्रजातियों की अपेक्षा प्रति हैक्टर लगभग दुगने उर्वरक तथा बीज आधी मात्रा की ही आवश्यकता होती है। उचित होगा कि उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के अनुसार करें। संकर प्रजातियों को मेड़ों पर रोपाई तथा असीमित बढ़वार की प्रजातियों के पौधों को सहारा देना एवं रोग व कीट नियंत्रण की व्यवस्था सुनिश्चित करने से भरपूर उत्पादन प्राप्त होता है।
4. खरीफ में लता वाली फसलों की खेती मचान पर करने से अधिक उत्पादन तथा उत्तम किस्म की फसल मिलती है, जिससे बाजार में मूल्य अधिक प्राप्त होता है।
5. प्याज की खरीफ में खेती हेतु एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, एन-53 एवं फुले सम्राट की पौध जून में (10-12 किग्रा०/हे०की दर से) डालें तथा रोपाई समतल व ऊँचे खेतों में 10 से 15 सेमी० पर अगस्त माह में करके अक्टूबर-नवम्बर में फसल प्राप्त की जा सकती है।
6. बैंगन, मिर्च, टमाटर, प्याज व अगेती फूलगोभी की पौध को अधिक वर्षा से बचाव के लिए बांस की पटि्टयों के सहारे या लो पालीथीन टनेल्स बनाकर समय से स्वस्थ्य पौधे तैयार कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
7. बैंगन की पौध को 0.25% कार्बेण्डाजिम के घोल में 10 मिनट के लिए जड़ों को डुबा कर खेत में रोपाई करने के 25 दिन बाद से 15 दिन के अन्तराल पर कार्बेण्डाजिम 0.25% घोल से तीन बार ड्रेंचिंग करने पर विल्ट रोग कम आता है तथा उत्पादन बढ़ता है किसान को व्यय आय अनुपात 1:2:84 में लाभ प्राप्त होगा।
8. नये बगीचों में एवं पापलर रोपण के द्वारा हल्दी की आजाद हल्दी-1, मेडेकर, राजेन्द्र, सोनिया, रंगा व रोमा प्रजातियों की खेती अपनाकर अधिकतम आय प्राप्त की जा सकती है।
9. शाकभाजी फसलों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कीट व रोग आने से पूर्व ही समय-समय पर जैविक कीटनाशकों का सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए। कीटनाशकों के छिड़काव के 7 से 8 दिन बाद ही फल तोड़े।
10. रोग, खरपतवार एवं कीट नियंत्रण हेतु 15 दिन के अन्तर पर खेत की 2-3 जुताई कर दी जाय। खरीफ प्याज में खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमेथलीन (3.5 ली़/हे०) को रोपाई के 45 दिन पश्चात प्रयोग करके एक निराई खुरपी से करना लाभप्रद रहता है।
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