इलायची की खेती | Cardamom farming – इलाइची (cardamom) का एक अपना ही महत्व है भारतीय रसोई में इलाइची को मसालों की रानी के नाम से भी जाना जाता है । इसका उपयोग कई कार्यों में किया जाता है । खाने की वस्तुवों से लेकर चाय बनाने तक इसकी एक अहम् भूमिका है| इलाइची का प्रयोग फ्लेवर्ड के रूप में किया जाता है | इलाइची का प्रयोग हम सब अपने मुख की शुद्धी के लिए तथा मसाले के रूप में करते हैं । यह अपनी खुशबु के लिए भी बहुत मशहूर है । आयुर्वेद में इसको एक अहम् स्थान मिलता है । इलायची को CARDAMON के नाम से भी जाना जाता है । छोटी इलायची का उपयोग पुराने समय से मसाले के तौर पर किया जाता रहा है । इलायची एक बहुत महंगा मसाला है । यह दिखने में बहुत छोटा होता है । लेकिन इसमें खुशबु अधिक होती है । इलायची के उपर एक छिलका होता है जिसके अंदर इलायची के बीज उपस्थित होते है । इसका उपयोग मसाले के रूप में ही नही बल्कि एक औषधि के रूप में भी किया जाता है।
कहाँ होती है इलायची कि खेती – where to grow cardamom farming in india-
वैसे तो पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है कुछ राज्य जहाँ इसकी खेती की प्रसिधी है उनमें से कुछ कर्नाटक, केरल और तमिलनाडू हैं।
इलाइची के फायदे – cardamom health benefits in hindi
आयुर्वेद के अनुसार इलाचयी शीतल, तीक्ष्ण, मुख को शुद्ध करनेवाली, पित्तजनक तथा वात, श्वास, खाँसी, बवासीर, क्षय, वस्तिरोग, सुजाक, पथरी, खुजली, मूत्रकृच्छ तथा हृदयरोग में लाभदायक है। वैसे तो इलाइची खाने के कई फायदे हैं पर हम कुछ ख़ास के बारे में बात करते हैं –
इलायची से मुँह की बदबू से राहत मिलती है –
इलाइची खाने से होने वाला सबसे पहला फायदा यह है की मुह की बदबू से निजात पाया जा सकता है|
कब्ज की बीमारी में असरदार –
इलाइची खाने से होने वाले फायदे में ये भी एक सच है की ये कब्ज में काफी कारगार साबित होता है| छोटी इलाइची को पकाकर अगर आप पानी में डालकर उसे भी गर्म करके पिये तो इससे निश्चित लाभ मिलता है|
मानसिक तनाव को दूर करती है इलायची –
छोटी इलाइची को चबाने से हार्मोन में तुरंत बदलाव हो जाता है और आप तनाव से मुक्त हो जाते हैं|
एसिडिटी/क़ब्ज़ की बीमारी दूर करे इलायची –
इलायची में मौजूद इसेंशियल ऑयल पेट की अंदरुनी लाइनिंग को मजबूत करता है| एसिडिटी की समस्या में पेट में एसिड जमा हो जाते हैं| इसके सेवन से वो धीरे-धीरे हट जाते हैं|
इलायची मर्दानी ताक़त बढ़ाए व नपुंसकता दूर करती है –
वैवाहिक जीवन में भी इसका बहुत लाभ मिलता है|कई सेक्स सम्बंधित समस्याओं को दूर करने में इसकी अहम् भूमिका होती है|
उल्टी/मिचली में राहत –
उल्टी आने पर भी कारगार साबित होती है|बहुत से लोग यात्रा के दौरान इसे अपने साथ में रखते हैं|
अन्य भाषाओं में इलाइची के विभिन्न नाम – Cardamom name in other languages –
भारत देश में कई भाषा बोली जाती है उसी तरह भारत में इलाइची भी अलग भाषा में अलग नाम से बोली जाती है|कुछ भारतीय राज्य जहाँ इलायची को अलग नाम से बोला जाता है । छोटी इलायची बंगाला, छोटी इलाची गुजराती,इलायची कन्नड,येलक्की कश्मीरी, ऑ-अल बुदुआ, अल मलयालम, एलत्तरी मराठी , वेलची उडिया, अलायची पंजाबी ,एलायची संस्कृत एला, तमिल येलक्काय या एलक्काय तेलुगु, येलाक कायलु या एलक्काय उर्दू इलायची विदेशों में भी इसकी ताजगी कम नहीं होती वह भी इसका उपयोग हर घर में किया जाता है|
इलायची के विदेशी नाम –
इलायची को विदेशी भाषा में क्या कहते हैं आइए जानते हैं –
स्पेन – Cardamom
फ्रेंच – Cardamom
जेर्मनी – Cardamom
स्वीडिश – Cardamom
अरब – Cardamom
इटली – Cardamom
पुर्तगाल – Cardamom
रूस – Cardamom
जापान – Cardamom
चीन – Cardamom
इलाइची की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु –
इलायची की खेती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है । इसकी खेती के लिए छाया और समुद्री हवा में नमी का होना जरूरी होता है । गर्मी और नमी दोनो सही होने पर इलायची उगा सकते है। इलायची को बीज से उगाने के लिये आद्रतायुक्त वातावरण चाहिये जो कि समुद्रतटीय इलाको में होता है। इलायची का पौधा केले के पौधे की तरह ज्यादा पानी और गर्म मौसम पसंद करता है । तापमान 10 डिग्री से 35 डिग्री सेल्सियस और 1500 मिमी से 4000 मिमी की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो में इसकी खेती की जाती है जो की समुद्री स्तर से 600 मीटर से 1500 मीटर की ऊचाई पर हो|
इलायची की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव –
इलायची को लाल और काली मिट्टी पसंद है । अगर आपके यहां बलुई चिकने काली मिट्टी है तो आप इलायची के पौधे को बड़ी आसानी से उगा सकते हैं। सबसे पहले आप अपने खेती के स्थान की जांच करा लें| इलायची की खेती के लिए मिट्टी का PH मान 4.5 से 7.0 तक ऐसी काली गहरी अम्लीय दोमट मिट्टी को इलायची की खेतो के लिए उपयुक्त माना जाता है| रेतीली भूमि में इलायची की खेती करना संभव नहीं है ।
उन्नतशील इलायची की खेती के लिए खेत की तैयारी –
इलायची की खेती के लिए पहले से की हुई फसल के अवशेष हटाकर और पलाऊ लगाकर गहरी जुताई करें । जुताई करने के बाद खेत में जल संरक्षण के लिए खेत में मेड बना दें । ताकि बारिश के पानी के कारण पौधों की सिंचाई की जरूरत कम हो । जल संरक्षण की जरूरत ढाल वाली भूमि और कम वर्षा वाले भागों में ज्यादा होती है । उसके बाद खेत में फिर से गहरी जुताई कर रोटावेटर चला दें । इससे खेत की मिट्टी समतल हो जायेगी । मिट्टी के समतल हो जाने के बाद उसमें अगर पौधे मेड पर लगाना चाहते हैं तो लगभग डेढ़ से दो फिट की दूरी पर मेड बना दे । और समतल में लगाने के लिए खेत में दो से ढाई फिट की दूरी रखते हुए गड्डे तैयार कर लें । इन गड्डों और मेड पर गोबर की खाद और रासायनिक खाद डालकर मिट्टी में मिला दें । खेत की तैयारी पौधे के लगाने के लगभग एक 15 दिन पहले की जाती है ।
इलाइची की किस्में – Cardamom improved varieties
90 के दशक में एक नयी किस्म की खोज की गयी जो की नजल्लानी नाम की है|इसका मुख्यत रूप से मसाले के लिए उपयोग किया जाता है |
हरी इलायची –
हरी इलायची को छोटी इलायची के नाम से जाना जाता है । इसका इस्तेमाल कई तरह से खाने में किया जाता है । इसका इस्तेमाल मुखशुद्धि, औषधि, मिठाई और पूजा पाठ में किया जाता है । इसके पौधे 10 से 12 साल तक पैदावार देते हैं ।
काली इलायची – बड़ी इलायची –
काली इलायची को बड़ी इलायची के नाम से भी जाना जाता है । बड़ी इलायची का इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जाता है । इसका आकार छोटी इलायची से काफी बड़ा होता है । इसका रंग हल्का लाल काला होता है । काली इलायची में कपूर के जैसी खुशबू पाई जाती है । बड़ी इलायची में भी दो श्रेणियां पाई जाती है । जिनके बारें में पूरी जानकारी काली इलायची वाले आर्टिकल में हम आपको बताने वाले हैं ।
Mudigere-1
CCS-1,
PV-1,
ICRI-1
ICRI-2
SKP-14
इलायची खेती के लिए रोपण सामग्री –
किसी भी अभिजात वर्ग के बागान से एकत्र किया जा सकता है। हालांकि, तरीकों कार्बनिक मानकों के अनुरूप होना चाहिए अंकुरों को ऊपर उठाने के लिए पीछा किया। Rhizomes सामग्री रोपण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहे हैं, वृक्षारोपण कम से कम एक वर्ष पूर्व संग्रह करने के लिए उत्पादन की जैविक विधियों का पालन किया जाना चाहिए था। टिशू कल्चर पौधे प्रचार के प्राकृतिक तरीकों के साथ निष्ठा रखने के क्रम में रोपण सामग्री के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। बीज के एसिड उपचार ट्राइकोडर्मा संस्कृति (बीज के 100 ग्राम के लिए 50 मिलीलीटर बीजाणु निलंबन) के साथ बीज का उपचार नर्सरी सड़ांध रोगों के प्रबंधन के लिए एक रोगनिरोधी उपाय के रूप में वांछनीय है, बचा जाना चाहिए। बेड की तैयारी के समय, VAM का समावेश किया जा सकता है । कार्बनिक पदार्थ में समृद्ध मिट्टी, अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर या वर्मीकम्पोस्ट और रेत polybag के अंकुर (अधिमानतः जैव degradable polybags) जुटाने के लिए, potting मिश्रण का उपयोग करके तैयार किया जा सकता है। इस VAM करने के लिए और ट्राइकोडर्मा भी जोड़ा (अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की 25 किलो के साथ मिश्रित बड़े पैमाने पर कई मीडिया के 250 ग्राम) किया जा सकता है। पौध की वृद्धि नहीं पर्याप्त है, तो एक महीने में एक बार vermiwash छिड़काव वांछनीय (संयंत्र प्रति 20 मिलीग्राम) है। नर्सरी में रोगों नियमित निगरानी और पादप उपायों को गोद लेने के द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है। बोर्डो मिश्रण के प्रतिबंधित आवेदन 1% प्रारंभिक चरण में ही सड़ांध रोग को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। नर्सरी साइट बदलने से कीट और रोगों और पौध की जोरदार वृद्धि के लिए चौकसी करने के लिए लाभ हुआ है।
इलायची उगाने के तरीके-
इलायची का पौधा दो तरीके से उगाया जा सकता है।
1- इलायची के बीज से
2- इलायची के पौधे से निकलने वाले पौधे से
बीज से इलायची को उगाना-
इलायची को बीज सा उगाना आसान काम नही है। क्योकि सबसे जरूरी चीज बीज है जो कि अच्छी क्वालटी का होना चाहिये ज्यादा पुराना बीज उगने में परेशान करता है। ताजा इलायची का बीज होने पर यह आसानी से उगाया जा सकता है।
इलायची की खेती में रोपण का समय और तरीका –
इलायची की पौध – इलायची की खेती के लिए पौध रोपण का काम एक से दो महीने पहले किया जाता है । उसके बाद इन पौधों को बारिश के मौसम में जुलाई माह के दौरान खेतों में उगाना चाहिए, जिससे पौधों को सिंचाई की भी जरूरत नही होती । और पौधा अच्छे से विकास भी करता है । इलायची के पौधे को छायादार जगह की ज्यादा आवश्यकता होती है । इसके लिए पौधे को छायादार जगह पर ही लगाना चाहिए । इलायची के पौधे को खेत में लगाते वक्त उन्हें तैयार किये गए गड्डों या मेड पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. मेड पर जिगजैग तरीके से पौधे की रोपाई करनी चाहिए । इलायची के पौधे पर फरवरी-मार्च के बाद अप्रैल में बहुत सुंदर सुंदर फूल आते हैं। बरसात के समय इस पर फल लगते हैं जो कि गुच्छों के रूप में होते हैं। छोटी छोटी इलायची देखने में बड़ी सुंदर दिखती है।
इलायची की खेती में खाद एवं पोषण प्रबंधन – nutrition management in Cardamom farming-
इलायची के पौधे के लिए गोबर खाद सबसे बेहतर खाद होती है ऑर्गेनिक खाद से उगाया गया पौधा काफी अच्छा मजबूत और तेजी से विकास करता है इसके अलावा इससे जो इलायची हमें मिलती है वह पूर्ण रूप से शुद्ध होती है उसके अंदर कोई भी जहरीले तत्व या कीटनाशक नहीं होते।
Cardamom crop protection management : इलायची की फसल में कीट नियंत्रण – फसल सुरक्षा प्रबंधन
Drooping सूखे पत्ते, सूखी पत्ती म्यान, पुराने panicles और अन्य शुष्क संयंत्र भागों का हटाया बागान में कीट inoculum को कम करने के लिए सिफारिश की एक महत्वपूर्ण स्वच्छता विधि है। मैकेनिकल संग्रह और कीट के अंडे की जनता का विनाश, बालों कमला (Eupterote सपा) और जड़ GRUB (Balepta fuliscorna) की भृंग के लार्वा कीट क्षति को कम करने में अन्य दृष्टिकोण हैं। बाद के पुनरुत्थान कम किया जा सकता है, ताकि जैसे ही स्टेम बोरर (Conogethes punctiferalis) के बोर होल गौर कर रहे हैं, के रूप में बोर होल में बेसिलस thuringiensis तैयारी (10 मिलीलीटर पानी में 0.5 मिलीग्राम) के इंजेक्शन के लार्वा को मार देंगे। खेती की जैविक विधियों सफेद मक्खियों के प्रकोप को अपनाया जहाँ भी रहे हैं (Dialeurodes cardamomi) शायद ही कभी मनाया जाता है। हालांकि इस तरह के प्रकोप, न्यूनतम कास्टिक सोडा (500 मिलीलीटर नीम और पानी की 100 लीटर में 500 ग्राम नरम साबुन) से बाहर कर दिया नरम साबुन के साथ नीम का तेल छिड़काव द्वारा पीला चिपचिपा जाल और nymphs के नियंत्रण का प्रयोग वयस्कों के संग्रह की स्थिति में होना करने के लिए है पीछा किया। नेमाटोड, के लिए प्रवण क्षेत्रों में (Meloidogine सपा।) को कुचल दिया नीम के बीज के आवेदन की समस्याओं की देखभाल कर सकते हैं। मछली के तेल राल साबुन के अनुप्रयोग के प्रबंध कीटों (Sciothrips cardamomi) के लिए किया जा सकता है। मालाबार किस्मों एक निश्चित सीमा तक कीटों के प्रति सहनशील होना पाया जाता है। नियमित निगरानी समय पर पता लगाने और इलायची को प्रभावित करने वाले कीटों के खिलाफ उपचारात्मक उपायों को अपनाने के लिए बिल्कुल जरूरी है ।