मत्स्यजीवी सहकारी समतियों का गठन के बारे में जाने,उद्देश्य, संगठनात्मक ढांचा,व कार्य क्षेत्र के बारे में हिंदी में जाने
मत्स्य-जीवी सहकारी समितियों का गठन :-
उद्देश्य :
- अधिकाधिक प्राथमिक,मत्स्य सहकारी समितियों व जनपदीय संघों को सदस्यता कार्यक्रम के अन्तर्गत आच्छादित करते हुए संघ की संगठनात्मक स्थिति सुदृढ़ किया जाना।
- संघ की सदस्य प्राथमिक मछली पालन हेतु मत्स्य सहकारी समितियों/जनपदीय संघों की सामाजिक आर्थिक व व्यवसायिक स्थिति सुदृढ़ किये जाने हेतु प्रोन्नतीय कार्यों के साथ-साथ संघ को अपने आप में स्वावलम्बी बनाये जाने हेतु प्रयास।
- सहकारी के माध्यम से मत्स्य व्यवसाय कार्यक्रमों के संचालन में गतिशीलता लाकर प्रदेश में मत्स्य सहकारिता की नींव सुदृढ़ किया जाना संघ की मूलभूत धारणा है।
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संगठनात्मक सदस्यता कार्यक्रम-
सहकारिता की मूल भावना के अन्तर्गत संघ की स्थिति सुदृढ़ किये जाने हेतु सदस्यता कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है।
(अ) मत्स्य विभाग से पंजीकृत / मान्यता प्राप्त प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियों व जनपद स्तरीय मत्स्य संघों के लिए प्रादेशिक मत्स्य संघ की सदस्यता ग्रहण किया जाना ऐच्छिक है।
(ब) प्रादेशिक मत्स्य संघ की सदस्यता हेतु प्रवेश शुल्क रू० 10/- है तथा अंशधन प्राथमिक समितियों के लिए रू० 1000/- व जनपदीय संघ के लिए रू० 10000/- है।
(स) सदस्यता ग्रहण किये जाने से सम्बन्धित समस्त निर्धारित प्रारूप संघ कार्यालय से नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
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वित्तीय सहायता (संघ के माध्यम से संचालित शक्तिकरण योजना)-
प्रदेश में लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु मछुआ समुदाय के आर्थिक एवं सामूहिक विकास हेतु भारत सरकार की शक्तिकरण योजना के अन्तर्गत उ०प्र० मत्स्य जीवी सहकारी संघ के माध्यम से इसकी सदस्य प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियों व जनपद स्तरीय मत्स्य संघों को क्रियाशील किये जाने हेतु वित्तीय सहायता उपलबध करायी जाती है।
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प्रचार-प्रसार-
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प्रशिक्षण कार्यक्रम-
मत्स्य सहकारिता कार्यक्रमों के संचालन में मत्स्य विभाग के जनपद स्तरीय अधिकारियों की भूमिका प्रभावी व सशक्त किये जाने के उद्देश्य से अल्पकालिक प्रबन्धकीय विकास कार्यक्रम के आयोजन में भी सहयोग किया जाता है।