गुुड़हल के फूल को अड़हुल का फूल भी बोलते हैं। गुड़हल या जवाकुसुम वृक्षों के मालवेसी परिवार से संबंधित एक फूलों वाला पौधा है। इसका वनस्पतिक नाम है- Hibiscus rosa-sinensis हीबीस्कूस् रोज़ा साइनेन्सिस। इस परिवार के अन्य सदस्यों में कोको, कपास, भिंडी और गोरक्षी आदि प्रमुख हैं। यह विश्व के समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और अर्द्ध उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। गुडहल जाति के वृक्षों की लगभग 200-220 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ वार्षिक तथा कुछ बहुवार्षिक होती हैं। साथ ही कुछ झाड़ियाँ और छोटे वृक्ष भी इसी प्रजाति का हिस्सा हैं। गुड़हल की दो विभिन्न प्रजातियाँ मलेशिया तथा दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय पुष्प के रूप में स्वीकार की गई हैं।
गुडहल की खेती : अड़हुल की बागवानी की जानकारी –
अधिकांशतः गुड़हल के फूल का इस्तेमाल पूजा-पाठ आदि कामों के लिए किया जाता है भारत देश मे सभी लोगों को सुबह की शुरूआत चाय से ही होती है। यदि चाय ना मिले तो उनके शरीर में अलग सी बैचेनी शुरू हो जाती है इसके साथ ही उनके सिर में दर्द होने लगता है। क्योकि सुबह होते ही चाय की ललक हर किसी इंसान को होती है। पर क्या आप जानते है कि चाय आपके शरीर के लिये कितनी नुकानदायक होती है। ये आपके एसिडिटी बढ़ाने के साथ ना जाने कितनी समस्याओं को पैदा करने का काम करती है। आज हम आपको एक ऐसी चाय के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे पीने से आपकी सेहत हमेशा अच्छी बनी रहेगी।
गुड़हल की चाय जिसे बारें में भले ही आपने ना सुना होगा। पर इसके फायदें अनेक है। गुड़हल का फूल हर किसी के घर के आंगन में खिला हुआ देखने को मिल सकता है पर लोग इसके फायदे से अनजान होने के कारण इसका उपयोग केवल देवी के अर्पित करने के लिए ही करते है। गुड़हल का फूल हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स, फाइबर, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं। जो कई बीमारियों से आपका बचाव करते हैं।
गुड़हल की चाय बनाने के तरीका –
सबसे पहले गुड़हल के फूलों को पानी से अच्छी तरह साफ कर लें। अब एक कप पानी को गैस पर रखें। जब ये उबलने लगे तो इसमें गुड़हल के फूलों की पत्तियां और दालचीनी का एक टुकड़ा डालकर अच्छे से उबालें। अब इसमें नींबू का रस और शहद की कुछ बूंदें डालें गर्म गर्म पियें।
गुडहल के फायदे – Health benefits of Gudhal Hibiscus
कैंसर की बीमारी के लिये फायदेमंद
गुड़हल की चाय पीने से आपके शरीर में कैंसर सेल्स पैदा नहीं हो पाते हैं। इसके साथ ही इसमें मौजूद एंटीआक्सीडेंट के गुण आपकी शरीर की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया को तेज बनाकर वजन को तेजी से कम करते हैं.यदि आप अपने वजन को कम करना चाहते हैं, तो नियमित रूप से एक कप गुड़हल की चाय का सेवन करें।
दिल से जुड़ी बीमारियों में कम करने में असरदार –
गुड़हल की चाय पीने से दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है। गुड़हल के फूलों में एंटी-ऑक्सीडेंट के गुण कोलेस्ट्रॉल कम करने के साथ ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करने में मदद करते है।
मधुमेह या डायबिटीज –
मधुमेह या डायबिटीज के रोगियों के लिय इसका सेवन करना सबसे अच्छा उपचार है।
किडनी की समस्या –
यदि आपको किडनी की समस्या है तो आप गुडहल की पत्ती से बनी चाय का सेवन रोज करे इसक डेली सेवन करने से किडनी स्टोन की समस्या में लाभ मिलेगा। इसी चाय का लाभ डिप्रेसन के लिए भी होता है।
मेमोरी पावर को बढ़ाने में –
गुड़हल की चाय या शर्बत दिल और दिमाग का पावर क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। जो लोग बढ़ते उम्र के साथ मेमोरी लॉस होने की समस्या से परेशान है या कम उम्र में याददाश्त कमजोर होने लगे तो गुड़हल इस समस्या को दूर करने का सबसे कारगार उपायों में से एक है।
मासिक धर्म के लिए –
शरीर की कई बीमारियों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना बहुत ही जरूरी है। गुड़हल की पत्तियां, शरीर को उर्जा प्रदान करती हैं और इम्यूनिटी लेवल को बढ़ाती हैं। इसकी पत्तियां मेनोपॉज और मासिक धर्म में बहुत ही फायदा करती है। जिन महिलाओं को मासिक धर्म सही समय पर नहीं आता उन्हें गुड़हल की पत्तियों की चाय पीनी चाहिए। मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को इसकी पत्तियों को सुखाकर गर्म पानी के साथ पीना चाहिए।
गुड़हल के पौधे लगाने के लिए दोमट मिट्टी को उत्तम माना गया है। इसको चिकनी मिट्टी के साथ-साथ लाल मिट्टी में भी लगाया जा सकता है। इसमें भी इसकी पैदावार तेजी से होती है। अगर इसको लाल मिट्टी में लगाया जाए तो इसके फूल बहुत ही अच्छे होते हैं। इसके अलावा इसके किसी तरह की मिट्टी में भी लगाया जा सकता है।
अन्य भाषाओं में गुड़हल के नाम (Name of Gudhal in Different Languages) –
गुड़हल का वानस्पतिक नाम हिबिस्कस रोजा-सायनेन्सिस (Hibiscus rosa-sinensis Linn., Syn-Hibiscus festalis Salisb. है, और यह मालवेसी (Malvaceae) कुल से है। अड़हुल के अन्य नाम ये भी हैं-
Gudhal in Hindi – जवा, ओड्रहुल, अढ़ौल, गुड़हल, जवाकुसुम, अड़हुल, Gudhal in English – शू फ्लावर (Shoe Flower), रोज मैलो (Rose mallow), रोज आफ चाइना (Rose of china), गार्डन हिबिस्कस (Garden hibiscus), चाइना रोज (China rose), Gudhal inSanskrit – औड्रफूल, जपा, अरुण, प्रतिका, अर्कप्रिया, हरिवल्लभ, त्रिसन्ध्या, Gudhal in Oriya – मोनदरो (Mondaro), ओडोफूलो (Odophulo), Gudhal in Kannada – दासणिगे (Dasnigae), दसवला (Dasavala), Gudhal in Gujarati – जासुद (Jasud), जासूवा (Jasuva), Gudhal in Telugu – दासनी (Dasani), दासनमु (Dasanamu), Gudhal in Tamil – सेम्बारुट्टी (Sembarattai), सेवारट्टी (Sevarattai), Gudhal in Bengali – ओरु (Oru), जुबा (Joba), Gudhal in Nepali – जपा कुसुम (Japa kusum), गुड़हल (Gudahal), Gudhal in Marathi – जास्वन्द (Jasavanda), जासवन्दी (Jassvandi), Gudhal in, Malayalam – चेम्पारट्टी (Chemparatti), शेम्पारट्टी (Shemparatti), Gudhal in Arabic – अंघारे हिन्दी (AngharaeHindi), Gudhal in Persian – अंगारेहिन्दी (AngaraeHindi)
जलवायु-
इसकी खेती के लिए गर्म व आद्र जलवायु उपयुक्त होता है। सभी गुड़हल के पौधे पूर्ण सूर्य में सबसे अच्छे होते हैं। यह 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक विकास करता है। 75°F (24°C) गुड़हल के पौधे के लिए एक आइडियल ब्लूमिंग टेम्परेचर होता है, हालांकि ये इससे भी गरम और ठंडे टेम्परेचर पर भी रह जाते हैं। आपके गुड़हल को लगाने के बाद फ़्रोस्ट का खतरा नहीं रहना चाहिए। अगर टेम्परेचर 45°F (7°C) के नीचे पहुँच जाता है, तो पौधा शायद रिकवर नहीं हो सकेगा ।
भूमि –
इसकी खेती के लिए हल्की रेतीली दोमट मिट्टी उत्तम होती है। इसके लिए नम लेकिन अच्छी तरह से सूखी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसका रोपण करने से पहले मिटटी का संशोधन आवश्य करें। भूमि का पी. एच. मान 6.5 के आसपास होना चाहिए।
उन्नत किस्में –
गुड़हल की मुख्यतया दो प्रजातियां होती हैं।
– जपा बड़ी (Hibiscus rosa-sinensis Linn.)
– जपा छोटी (Malvaviscus arboreus Cav.)।
गुड़हल के लगभग 200-220 प्रजातियां हैं और वे सभी रंग, आकार में भिन्न हैं। कुछ प्रसिद्ध प्रजातियाँ हैं। देशी गुड़हल के अलावा इसकी कई किस्में होती है। देशी गुड़हल, बेंगलुरु गुड़हल,कोलकाता गुड़हल, इंग्लिश गुड़हल,अमरीकन गुड़हल नाम की कई किस्में देखने को मिलती हैं।
उष्णकटिबंधीय-
यह फूल ज्यादातर हवाई में बढ़ता है। वे मालवसे परिवार के हैं और उनके उज्ज्वल पत्तों और जीवंत फूलों से पहचाना जाता है। यह बहुत सारे रंग में उपलब्ध है।
बारहमासी-
यह हिबिस्कस के उन समूह में से हैं जो सर्दियों में गायब हो जाते हैं और वसंत में फिर से दिखने लगते हैं। आमतौर पर यह ठंडा सहिष्णु है, लेकिन 28 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान होने पर मर जाते हैं।
हार्डी-
यह मल्लो परिवार का है। इसके 7-8 इंच चौड़े फूल होते हैं। यह अधिकतर सफेद, गुलाबी एवं लाल रंग में पाया जाता है, ठंड के मौसम में ये बहुत कठोर हो जाते हैं। इनका विकास बहुत अधिक गर्मी में नही हो पता है, लेकिन ठंडी और शुष्क जलवायु में बहुत अच्छी तरह से विकसित होते हैं।
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चाइना रोज-
इस फूल को “रोज ऑफ चाइना” नाम से भी जाना जाता है। इसे कालापन करने वाला पौधा भी कहा जाता है। यह 14 से 25 फीट की ऊंचाई का प्रसिद्ध एशियाई झाड़ी है। यह अंडाकार आकृति में है जो 3 से 4 इंच लंबा होता है। लाल रंग का यह फूल औषधीय गुणों से भरा होता है। किडनी की समस्या और कैंसर जैसे कई रोगों के इलाज में इसका इस्तेमाल से काफी लाभप्रद साबित होता है।
रॉक-
यह फूल मैक्सिको और अमेरिका का है। इसकी ऊंचाई लगभग 2000 फीट तक हो सकती है। इसके पत्ते भूरे रंग क होते हैं तथा इसका फूल सफेद एवं बैंगनी रंग का होता है।
मोशेयूटोस-
यह एक बहुरंगा फूल है। जिसकी ऊंचाई 36 से 96 इंच तक हो सकती है, जिसका रंग सफ़ेद से गहरे गुलाबी होता है। पंखुड़ी लगभग 30 सेमी गहरे हरे रंग की पत्ती और पीले रंग की पुंकेसर के साथ होती हैं।
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गुड़हल की बागवानी के लिए प्रवर्धन – गुड़हल की कलम लगाने का तरीका
गुड़हल को उगाने के लिए आपके पास गुलहड़ की अच्छी सी ब्रांच होनी चाहिए ।साथ ही साथ इसके लिए हमें नॉर्मल मिट्टी प्रयोग करनी है उसमें गोबर खाद का मिश्रण तैयार करके हम गुड़हल की कटिंग को उगा सकते हैं। गुलहड़ को cutting से उगाने के लिये ज्यादा नयी या ज्यादा पुरानी शाखा ना चुनें। एक वर्ष पुरानी शाखा Cutting बनाने के लिये सबसे अच्छी रहती है। Cutting को 45° के कोण से काटना है।Cutting काटते समय Cutting फटनी नही चाहिये। Cutting ज्यादा लंबी नही होनी चाहिये।
– कम से कम आधा इंच मोटी गुड़हल की कलम लगनी चाहिए, जिसमे छोटे छोटे कल्ले निकले हों।
– अगर आपने अपने गुड़हल की ताजी कलम काटी है, तो उसे लगाने से पहले 1 घंटा पानी में डालकर रखें।
– अगर गुड़हल की कलम काटे हुए 2 से 3 घंटे हो गए हैं, तो उसे लगाने से पहले 10 से 12 घंटो के लिए पानी में डालकर के रखें।
– गुड़हल की कलम लगाने वाली मिट्टी में सूखा गोबर मिला लेना चाहिए और जिस गमले में लगाए उसकी तली में छोटा छेद कर देना चाहिए।
– गुड़हल की कलम का जो हिस्सा आप मिट्टी में लगाए उसे आधा इंच छील लें।
– गुड़हल की कलम को मिट्टी में 3 इंच तक दबा देना चाहिए।
– मिट्टी में पानी डालने के बाद ही गुड़हल की कलम लगाएं।
– मिट्टी में कलम लगाने के बाद उसे झिल्ली से ढक दें और 2 दिन तक पानी ना डालें। पानी की मात्रा ज्यादा होने से इसकी जड़े सड़ने लगती हैं।
– आपने जिस गमले में गुड़हल की कलम लगायी है, उसे ज्यादातर छाया वाली जगह पर ही रखें।
– आप गमले में थोड़ा सा कोयला पीस के डाल दीजिये, इससे कलम के ऊपरी हिस्से काले नहीं होंगे।
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गुड़हल हिबिस्कस रोपण की तैयारी –
1.गुड़हल की रोपाई ले लिए गड्ढा खोदना –
रोपण के लिए अपने छेद तैयार करने के लिए एक फावड़ा या बागवानी ट्रॉवेल का उपयोग करें। प्रत्येक छेद (एक पौधे या हिबिस्कस बीज के लिए) जड़ों के समान गहरा होना चाहिए, और कम से कम दो बार, यदि तीन बार नहीं, तो चौड़ा हो। संयंत्र के चारों ओर की ढीली मिट्टी बेहतर जल निकासी की अनुमति देगी, और इसे नीचे नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक हिबिस्कस पौधे को एक दूसरे से कम से कम 2–3 फीट (0.6–0.9 मीटर) दूर रखें।
ठंडी जलवायु में, सामान्य रूप से आप की तुलना में गहरे बल्ब लगाएंगे। गर्म और घनीभूत जलवायु में, सतह के करीब बल्ब लगाए।
2.गुड़हल को लगाना –
सावधानी से प्रत्येक हिबिस्कस संयंत्र को अपने स्वयं के व्यक्तिगत गड्ढे में रखें, जड़ गेंद को नुकसान न करने के लिए सावधान रहें। मिट्टी के साथ गड्ढे को फिर से भरना, केवल स्टेम के आधार के रूप में उच्च जा रहा है। मिट्टी के साथ उपजी को कवर करने से समय के साथ पौधे की मौत हो सकती है। रोपाई के झटके के जोखिम को कम करने के लिए रोपण के तुरंत बाद अपने हिबिस्कस को एक पंक्ति में दो से तीन बार भारी पानी दें।
गुड़हल के पौधे की देखभाल –
3.अपने हिबिस्कस को नियमित रूप से पानी दें। अपने हिबिस्कस पौधों को नम रखने की कोशिश करें, लेकिन गीला नहीं भिगोएँ। सुनिश्चित करें कि आपके हिबिस्कस में जो मिट्टी है वह हर समय नम है, क्योंकि जब वह सूख जाती है, तो यह पौधों में विल्टिंग और हीट स्ट्रोक का कारण बन सकता है। सर्दियों में जब पौधा सुप्त होता है, तभी पानी जब मिट्टी बहुत सूख जाती है। सुनिश्चित करें कि आप पौधों को निषेचित करने से पहले एक से दो सप्ताह प्रतीक्षा करें।
गुड़हल की देखभाल –
4.किसी भी कीट का प्रबंधन करें। अपने हिबिस्कस बगीचे में गीली घास की एक परत जोड़ना फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे नमी में खरपतवार और जाल बाहर निकल जाएंगे। किसी भी मातम को दृष्टि से बाहर खींचो, ताकि आपके हिबिस्कस को अंतरिक्ष और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर न किया जाए। ट्रॉपिकल हिबिस्कस में कीटों के मुद्दे होते हैं, जो हार्डी किस्मों से अधिक हैं। यदि आप पत्तियों को खोदते या सड़ते हुए देखते हैं, तो किसी भी बीमारी या कीड़े को मारने के लिए जैविक कीटनाशक का उपयोग करने का प्रयास करें जो हिबिस्कस को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
गुड़हल की प्रूनिंग –
5.पौधों को प्रून करें। यद्यपि प्रूनिंग काउंटरिंटुइएट लगता है, यह वास्तव में नई वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करता है और अधिक फूल दिखाई देता है। छंटाई के कई तरीके हैं, लेकिन वे सभी झाड़ी के केंद्र से एक कोण पर एक नोड (पत्ती संयुक्त) के ठीक ऊपर शाखाओं को काटकर काम करते हैं। यह पौधे को इस स्थान पर अधिक शाखाएं विकसित करने के लिए एक संकेत भेजेगा, झाड़ी के केंद्र से बाहर और दूर। यदि आपके हिबिस्कस का कोई हिस्सा मर जाता है, तो आपको सुधारात्मक छंटाई करनी चाहिए और इसे काट देना चाहिए। यह पौधे के भद्दे हिस्से को हटा देगा, और इसे खरोंच से फिर से उगने का कारण भी हो सकता है।कभी भी एक बार में एक शाखा से अधिक cut नहीं काटें, क्योंकि यह हिबिस्कस को मदद करने से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
सिंचाई –
सर्दीयों के दिनों में इसमें अच्छे से फूल नहीं आते हैं। धूप मिलने पर इसका विकास बढ़िया तरीके से होता है। इसके पौधे को हमेशा अपनी जड़ तक पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है। गुड़हल में पानी तथा हवा के आवागमन वाली मिट्टी की आव्यशकता होती है। अर्थात खेती में जलवायु का काफी महत्व है। सिंचाई की भी उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक-
गुडहल को लगाने के बाद इसमें आर्गेनिक खाद का प्रयोग करना चाहिए। इससे गुड़हल का पेड़ तेजी से फैलता है और इसके साथ ही इसमें फूल भी अच्छे लगते हैं। इमसें गोबर खाद का अगर प्रयोग समय-समय पर किया जाए तो यह पौधा जल्द ही विशाल पेड़ का रूप ले लेता है। इसमें गोबर खाद डालने के लिए कम से कम 12 से 15 दिन का अंतर होना बहुत ही जरूरी है। अगर इसको धूप मिलती रहे तो इसका विकास बढ़िया तरीके से होता है। केले के छिलके से बनाया गया फर्टीलाइजर गुड़हल के वृक्ष के लिए अगर इस्तेमाल किया जाए तो यह बहुत ही बढ़िया रहता है। इसका प्रयोग अगर महीने में दो बार कर दिया जाए तो इसमें बहुत जल्दी फूल आने लगते हैं। गुड़हल के पौधों को पनपने के लिए बहुत सारे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। गर्मियों के समय में, एक उच्च पोटेशियम उर्वरक का उपयोग करें। इसके लिए वाणिज्यिक उर्वरकों के पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता नहीं होती है। खाद या जैविक उर्वरक अच्छी तरह से काम करेंगे। बाकी मृदा परीक्षा के आधार पर उर्वरकों की मात्रा तय की जा सकती है।
गुड़हल में लगने वाले रोग एवं नियंत्रण –
डायबैक रोग-
यह एक ऐसी रोग है जिसमें केवल एक शाखा या फूल का हिस्सा ही मुरझा जाता है। बाकि पौधे का भाग स्वस्थ रहता है। इसका कारण फूल हो सकता है जो पौधे से पूरी तरह से नहीं गिरते हैं। यह सर्दियों के मौसम में अधिक होता है जब कवक सक्रिय होते हैं।
नियंत्रण- पौधे का वह हिस्सा काट देना चाहिए जो रोगग्रस्त हो। इससे प्रूनिंग में भी मदद मिलेगी जो समय-समय पर एक पौधे की जरूरत होती है। कटाई के बाद रोग को रोकने के लिए उस स्थान में मोम लगाना चाहिए।
फंगस रोग-
इस रोग में फूल और पत्तियों के साथ धीरे-धीरे उसकी शाखाएं भी सुख जाती हैं।
नियंत्रण- नीम के तेल और पानी का मिश्रण पाउडर फफूंदी के लिए एक सुरक्षित, जैविक समाधान है। आप एक जैविक स्प्रे भी बना सकते हैं जिसमें एक चम्मच बेकिंग सोडा, वनस्पति तेल की कुछ बूंदें और पानी का एक चौथाई हिस्सा होता है।
कीमत- बाजार में इसकी लागत हर किलो के लिए 170-350 हो सकती है। नए और सूखे खिलने की लागत में भी उतार-चढ़ाव होता है। ताजे एवं सूखे फूल का मूल्य भी भिन्न होता है।