धान की फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन कैसे करें

धान की फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन

(अ) शस्य क्रियायेः

धान की फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन – गर्मी की मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करने से भूमि में कीटों की विभिन्न अवस्थायें जैसे- अण्डा, सूड़ी, शंखी एवं प्रौढ़ अवस्थायें नष्ट हो जाती हैं तथा चिडिया भी कीटों को चुगकर खा जाती हैं। इसके अतिरिक्त भूमि जनित रोगों यथा-उकठा, जड़ सड़न, डैम्पिंग आफ, कालर राट, आदि भी सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार खरपतवारों के बीज भी मिट्टी में नीचे दब जाते हैं, जिससे खरपतवारों को जमाव बहुत ही कम हो जाता है।

  • स्वस्थ एवं रोगरोधी प्रजातियों की बुवाई/रोपाई करना चाहिए।
  • बीज शोधन कर समय से बुवाई/रोपाई के साथ-साथ फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • नर्सरी समय से उठी हुई क्यारियों पर लगाना चाहिए।
  • पौधों से पौधों और लाइन से लाइन के बीच वॉछित दूरी रखना चाहिए।
  • उर्वरकों की संस्तुत मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
  • खेत के मेड़ों को घासमुक्त एवं साफ सुथरा रखना चाहिए।
  • जल निकास का समुचित प्रबंध करना चाहिए।
  • कटाई जमीन की सतह से करना चाहिए।
  • फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

 

(ब) यॉत्रिक नियंत्रणः

  • धान के पौधे की चोटी काटकर रोपाई करना चाहिए।
  • खेतों से अण्डों व सड़ियों को यथा सम्भव एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए।
  • कीट एवं रोग ग्रसित पौधों की पत्तियॉ अथवा आवश्यकतानुसार पूरा पौधा उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • खरपतवारों को निराई-गुड़ाई द्वारा खेत से निकाल देना चाहिए।
  • हिस्पा ग्रसित पौधों की पत्तियों का उपरी हिस्सा काट देना चाहिए।
  • केसवर्म की सूड़ियों को रस्सी द्वारा पानी में गिरा देना चाहिए।
  • खेतों में प्रकाश-प्रपंच का प्रयोग कर हानिकारक कीटों को नष्ट कर देना चाहिए।