केले की खेती कैसे करें (kele ki kheti in hindi)

केले की खेती (kele ki kheti or banana cultivation)

वानस्पतिक नाम : Musa Spdentum, and Musa Paradisiaca,
कुल – Musaceae
गुणसूत्रों की संख्या – 2n 43
केला का उद्भव स्थान – दक्षिण पूर्व एशिया का उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
केला में पाए जाने वाले पोषक तत्व – केले में 20 प्रतिशत शर्करा पाई जाती है।  Vitamin A,B,C, B2, तथा प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । साथ ही केले में Mg,Ph,K,Na,Ca,लोहा पर पाया जाता है। पपीते में कोबाल्ट,जस्ता,आयोडीन,मैग्नीन भी आंशिक मात्रा में पाया जाता है।

जलवायु व तापमान (cilmate and temperature) :

केला का पौधा एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है । केले की खेती (kele ki kheti) के पूरे साल गर्म व तर तथा अधिक बारिश वाली जलवायु उत्तम होती है । केले के पौधे के सर्वांगीण वृद्धि व विकास के लिए सम्पूर्ण वर्ष 10 से 40 C तापमान उपयुक्त होता है । बहुत अधिक ठंडी इसके लिए हानिकारक है । 175 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में केला उत्पादन अधिक लाभकारी होता है ।

भूमि का चयन (bhumi jankari) :

इसके पौधे (banana plant) को अधिक जल की आवश्यकता होती है अतः इसकी बागवानी के लिए उपजाऊ,गहरी तथा अधिक जल धारण वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है । किसान भाई झील,तालाब अथवा नदी किनारे की नम भूमि पर रोपाई करके केले की खेती (kele ki kheti) से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं ।

भूमि की तैयारी (soil preparation)  –

केले की रोपाई हेतु भूमि को देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताई कर समतल बना लें । जुताई के दौरान निकले ढेलों को पाटा चलकर फोड़ दें । ताकि भूमि भरभूरी व समतल हो जाए । किसान भाई 50×50×50 सेंटीमीटर आकार से गड्ढे खोद लें । गड्ढों में गोबर की खाद व मिट्टी भर दें । गड्ढों में हल्की सिंचाई कर दें ताकि अधो भूस्तारी के रोपाई तक नमी बनी रहे ।

केला की बागवानी हेतु केले के पौधों की रोपाई का समय-

भारत के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में रोपाई का समय – वर्षा ऋतु जुलाई से अगस्त
भारत के पहाड़ी ढलानों में फरवरी से मार्च तक केले की खेती (kele ki kheti) करें
पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों में फरवरी तथा अगस्त व अक्टूबर में
देश के तटीय भागों में अप्रैल से जून अथवा अगस्त से सितंबर तक किसान भाई रोपाई करें ।
भारत के दक्षिण भागों में केले कि रोपाई का सही समय अप्रैल-जुलाई व सितम्बर-अक्टूबर है ।

उन्नत किस्में (kele ki unnat kisme)-

फल के रूप में खाई जाने वाली किस्में-
चम्पा,माल भोग,मोहनभोग,पंचनन्दन, अमृत सागर, हरी छाल,पूवन,लाल केला,बसराई, अलपना,
सब्जी के रूप में खाई जाने वाली किस्में-
हजारा,चम्पा,बंबई,कोलंबो,अमृतपान,काबुली,रामकेला,मंथन,माइकेल, मर्तमान,

केले का प्रवर्धन-

केले की खेती (kele ki kheti)  के लिए केले का प्रवर्धन अधो भूस्तारी या Sucker द्वारा किया जाता है । केले का प्रर्वधन दो प्रकार से किया जाता है –

तलवार सकर द्वारा(Sword sucker) :

इसकी पत्तियां कम चौड़ी होती हैं । जिनका आकार बिल्कुल तलवार के आकार का होता है । नए पौधे तैयार करने के लिए सकर उत्तम माने जाते हैं ।

पानी वाले सकर द्वारा(Water Sucker) –

इस सकर कक पत्तियां चौड़ी तो होती हैं किंतु तलवार सकर के मुकाबले बेहद कमजोर होती हैं । इसलिए पानी वाले सकर को रोपाई हेतु प्रयोग में लेने से पूर्व यह स्पष्ट कर लें की चयन किया गया सकर ओजस्वी व परिपक्व हो साथ ही किसी रोग से संक्रमित न हो ।

केले के संवर्धन  के लिए 3 से 4 माह पुराने सकर अच्छे माने जाते हैं ।केले के संवर्धन हेतु 60 से 90 सेंटीमीटर ऊंचाई वाले सकर अथवा पुत्तियाँ उत्तम माने जाते हैं ।

केले के पौधे शीघ्र प्राप्त करने हेतु प्रकन्द जिसमें कम से कम एक कली अवश्य हो को,काटकर प्रयोग में लाएं । किसान भाइयों इस विधि में प्रकंदों से पौधा बनने से कुछ अधिक समय तो लगेगा । लेकिन केले की खेती (kele ki kheti) केले से उपज अच्छी प्राप्त होगी ।

बागवानी की सफलता के मूल मंत्र जाने

केले के अधोभूस्तारी को उपचारित करना –

केले की खेती (kele ki kheti) को रोपाई से पहले केले के सकर यानी अधोभूस्तारी को फफूंदनाशक सेरेसान अथवा एगलाल के 0.25 प्रतिशत घोल से एक मिनट तक डुबोकर उपचारित करना चाहिए ।

केले के अधोभूस्तारी अथवा Sucker की रोपाई –

केले की रोपाई शाम के समय करना उत्तम होता है । केले के सकर को 50×50×50 भूमि की तैयारी के दौरान तैयार किये गड्ढों में रोपाई कर देनी चहिये । रोपाई के दौरान प्रति हेक्टेयर करीब 200 कुन्तल गोबर की सड़ी खाद का उपयोग करना चाहिए ।
केले के सकर की रोपाई यदि नालियों में करनी हो तो 2 मीटर की दूरी पर 50 सेंटीमीटर चौड़ी व 50 सेंटीमीटर गहरी नाली में सकर की रोपाई करनी चाहिए । केले में सकर की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ।

सिंचाई व जल निकास प्रबंधन –

किसान भाइयों केले की सिंचाई के लिए कहावत है कि-
धान, पान व केला ।
ये तीनों पानी के चेला ।।
कहावत से स्पष्ट है कि केला में सिंचाई की काफी आवश्यकता होती है ।

वर्षा तथा जाड़े के समय – 25से 30 दिन के अंतराल पर
गर्मी के समय  – 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए । केले के छोटे पौधों में सिंचाई थाला विधि द्वारा तथा बड़े पौधों में सिंचाई नाली प्रवाह द्वारा की जानी चाहिए ।
ढलवा तथा ऊंचे नीचे स्थानों में केले के पौधों पर सिंचाई छिड़काव विधि से करनी चाहिए 

केले की बागवानी में खाद व उर्वरक –

केले के पौधे की रोपाई करते समय 18 से 20 किलोग्राम प्रति पौधा गोबर की सड़ी खाद दें । केले को खेती से समुचित लाभ लेने के लिए मृदा परीक्षण कर ही खेत में खाद व उर्वरक दें । किन्ही कारणवश मिट्टी की जांच न हो पाए  तो नाइट्रोजन 250 ग्राम,फॉस्फोरिक अम्ल 100 ग्राम,200 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रति पौधा दें ।इसके अलावा केले की खेती (kele ki kheti) में  अंडी की खली की नियमित रूप से तीन बार टॉप ड्रेसिंग द्वारा हर पौधे को खुराक दें ।

केले में निराई – गुड़ाई व फसल की देखभाल –

केले के खेत में खरपतवार के नियंत्रण हेतु नियमित रूप से आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए । गुड़ाई कर मिट्टी केले की जड़ों में चढ़ानी चाहिए । ताकि पौधे को अधिक से अधिक मजबूती और स्तम्भन शक्ति मिल सके । पौधे के अधिक वृद्धि व विकास के लिए पैतृक वृक्ष से निकले हुए अन्य दूसरे अधोभूस्तारी को मुख्य पौधे में फल आम तक वृद्धि करने से रोकना चहिये । अन्यथा ये अनैच्छिक अधोभूस्तारी केले के फल उत्पादन पर बुरा प्रभाव डालते हैं । केले के पौधे फल आने पर एक तरफ झुक जाते हैं अधिक भार पड़ने पर पौधे टूट सकते हैं इसके लिए पौधों में बांस अथवा लकड़ी की स्टेपनी का सहारा दें । साथ ही केले के पौधों की जड़ों में 25 से 30 सेंटीमीटर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए 

केले में पुष्पन व फलों का लगना :

हमारे देश में केले की अगेती किस्मों में रोपाई के 7 से 8 माह में  लाल रंग में पुष्प आने लगते हैं । केले के पुष्प में नर व मादा दोनो पाए जाते हैं । केले में पुष्प आने के 6 से 7 माह में केले की फलियां पकने लगती है ।केले की रोपाई के बाद पहली फलन लगभग 14 से 16 माह में होती है । केले की दूसरी फलन 22  से 25 माह में प्राप्त होती है ।

किसान भाई ध्यान दें जिस पौधें में एक बार फलन हो जाती है उस पर दोबारा पुष्प नही लगते इसलिए पोषक तत्वों के दुरुपयोग से बचाव हेतु फलन के बाद उस पौधे को काटकर गिरा दें । तने को एक ही बार में न काटें । जिससे अधिक मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त कर पुत्तियाँ पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े । केले के घौर कटने के करीब 15 से 20 दिन में अंतराल में दो बार करके तना काटें । जिससे पौधे के जड़ों के पास निकली अधोभूस्तारी पुत्तियाँ खुली हवा व पोषक तत्व पाकर जल्दी से विकसित हो जाती है।

‎फलों की कटाई : (Harvesting) –

केले की घौर में लगे केलें जब पर्याप्त रूप से विकसित व सुड़ौल हो जाएं तब घौर को लगभग 30 सेंटीमीटर डंठल सहित काट लें 

उपज :

1 हेक्टेयर केले की खेती (kele ki kheti) से लगभग 250-300 कुन्तल केला प्राप्त होता है।
एक पेड़ से केवल एक ही घौर प्राप्त होती है । एक घौर में करीब 50 से 100 फ़लियाँ होती हैं। 1 हैक्टेयर में करीब 3335 घौर प्राप्त होते हैं 

केले के फलों को पकाने की विधि  :

घौर के रूप में केलों को परिरक्षित करने के लिए मोम अथवा वैसलीन लगाकर अधिक दिनों के लिए परिरक्षित कर सकते हैं । कम समय के लिए केले के डंठल में बुझे हुए चूने का पानी लगाना चाहिए ।
केलों को पकाने के लिए घौर को केले की पत्तियों,पुवाल अथवा बोरा से ढककर कमरे में बंद कर रख देते हैं । 6 से 8 दिनों में घौर की सभी फ़लियाँ पक जाती हैं ।
व्यवसायिक रूप से केलों को कार्बाइड रसायन से पकाते हैं 
केले के घौर को बंद कमरे में 2 से 2.5 मीटर की ऊंचाई पर टांगकर 18 से 24 घण्टे तक धुँवा धुँवा देने के बाद बिना धुँवा वाले कमरे में रख देते हैं । 2 से 4 दिन में फ़लियाँ पक जाती हैं ।

आशा है kheti kisani का यह आलेख केले की खेती (kele ki kheti) पसंद आया होगा । पपीते की खेती कैसे करें,हिंदी में पूरी जानकारी (Papaya ki Kheti in hindi) पढ़ें