खुद का घर हम सब का सपना होता है और घर चाहे छोटा हो या फिर बड़ा उसमें सुन्दर बगियाँ हो तो आशियाने का लुक बेहद आकर्षक हो जाता है और उसमें रहने का बरवस मन करने लगता है। हर घर में सुंदर सी बगियां का सपना हर किसी का होता है। अपने हाथों लगाये गये पेड़-पौधों को बढ़ता और फलता-फूलता देख मन मस्तिश्क प्रफुल्लित हो उठता है। बीज का अंकुरित होना, उसमें पहले दौर की पत्तियों का आना, पौधों का बढ़ना और फिर लंबे इंतजार के बाद उसमें सुन्दर फूल और फल आना-यकीन मानिए यह एक बेहद सुखद अनुभव है। अपने घर में उगाई गई सब्जियां, आपके कठिन परिश्र म का ही फल है जो सभी हांनिकारक रसायनों से मुक्त, शुद्ध और स्वादिष्ट होती है। वैसे तो हम सब हर रोज भांति-भांति की सब्जियों का जायका लेते है लेकिन वे स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होती है, इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।
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Kitchen garden – गृह वाटिका क्या है, किचेन गार्डेन में कौन कौन सी सब्ज़ियाँ उगाएँ – kitchen garden in hindi
दिन प्रति दिन सामने आ रही तमाम बीमारियों के पीछे एक कारण यह भी है कि आजकल इंसान को शुद्ध और ताजा फल-सब्जियाँ नसीब नहीं हो पा रही है। बाजार में उपलब्ध फल एवं सब्जियाँ अत्यंत हांनिकारक पेस्टीसाइड (खरपतवार, कीट व रोगों के नियंत्रण एवं पौध बढ़वार हेतु प्रयोग) व रासायनिक उर्वरकों (अधिकतम उत्पादन हेतु) की मदद से उगाई जाती है । और तो और आज कल विक्रेता रसायन में संरक्षित कर रखी गई सब्जियां एवं फल बेचते है जिसे हम सब मंहगे दामों में खरीद कर अपने ही प्रियजनों को परोसने में खुशी एवं गर्व महसूस करते है।
मुनाफा के चक्कर में लौकी जैसी सब्जियों का आकार बढ़ाने के वास्ते मुनाफाखोर सब्जी उत्पादक आॅक्सीटीसिन जैसा जहरीला इंजेक्शन लगा देते है तथा बहुतेरी सब्जियों विशेषकर परवल एवं खीरा में दुकानदार हाँनिकारक हरा रंग चढ़ा देते है जो कि स्वास्थ के लिए बेहद खतरनाक होता है। इस कारण बहुत से जागरूक नागरिक अपने घर में ही जैविक विधि (रसायन रहित) से फल-फूल एवं सब्जियां उगा लेते है। कुछ लोगों को बागवानी करने का शौक भी होता है जिन्हे प्रकृति को करीब से अनुभव करने में आनंद की अनूभूति भी होती है । कुछ लोग ऐसे भी है जो ऐसी सब्जियां जो बाजार में उपलब्ध नहीं है,उन्हे अपनी बगियां में उगाना चाहते है। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन अगर आप घर पर फल एवं सब्जियाँ उगाने की सोच रहे हैं तो इसे काम मत समझिएगा बल्कि इसमें आनंद का अनुभव करिएगा। यदि आपके पास थोड़ी सी भी खुली जगह है जहां तेज धूप आती है और मनमें कुछ मेहनत करने का जज्बा रखते है तो आइये अपनी पसंद की हरी-भरी सब्जियां-फल-फूल अपने घर पर उगाएं और अपने परिवार को जीवन भर की खुशियां देकर अपने आपको गौरान्वित करें।
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वस्तुतः सब्जियां हमारे पौष्टिक भोजन का महत्वपूर्ण अंश है । सब्जियाँ हमारे स्वास्थ का मूल आधार भी है क्योकि इनसे हमें ऐसे बहुमूल्य पौष्टिक तत्व उपलब्ध होते है जिनसे शरीर सुचारू रूप से कार्य करता है। वास्तव में साग-सब्जियां बहु-पौष्टिक तत्व युक्त खाद्य पदार्थ है। इनमें पर्याप्त मात्रा में रेशा तो पाया ही जाता है, साथ ही इनमें औषधीय गुण विद्यमान होने के कारण कई बीमारियों से हमारी रक्षा करती है। ध्यान रहें हमें अपने आहार में ताजा सब्जियों का इस्तेमाल करना चाहिए और ऐसी सब्जियों के सेवन से बचना चाहिए जो बहुत दिनों से शीत ग्रह में संरक्षित कर रखी गई है। ताजा सब्जियाँ जहां खाने में स्वादिष्ट और सुपौष्टिक होती है वहीं उनमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन जैसे पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। प्रायः देखा गया हैं कि हमारे देश के अधिकतर परिवारों में जो भोजन ग्रहण किया जाता है वह पोषक तत्वों की दृष्टि से अपौष्टिक व असंतुलित होता हैं । थोड़ी सी जानकारी व मेहनत से हम अपने भोजन केा सुपौष्टिक एवं स्वादिष्ट बना सकते हैं । मौसमी साग-भाजी को हम अपने घर-आंगन की बगियां में आसानी से उगा सकते है। पर्याप्त स्थान न होने पर वेल (लता) वाली सब्जियों को गमले, बेकार खाली डिब्बो, घर की छत-छप्पर पर आसानी से लगाया जा सकता है जिससे परिवार को कुछ तो पौष्टिक-ताजी हरी सब्जियाँ उपलब्ध हो सकती है। थोड़ी सी समझ एवं मेहनत से आपके परिवार का स्वास्थ भी अच्छा रहेगा और घर के आस-पास का परिवेश यानी पर्यावरण भी हरा-भरा सौहार्द्रपूर्ण बना रहेगा।
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गृह वाटिका क्या है – what is kitchen garden
गृह वाटिका अर्थात पोषण वाटिका अथवा रसोई-वाटिका उस वाटिका को कहा जाता है, जो घर के अगल बगल और घर के आंगन में ऐसी खुली जगह पर होती हैं, जहाँ पारिवरिक श्रम से परिवार के इस्तेमाल हेतु विभिन्न ऋतुओं में मौसमी फल तथा विभिन्न सब्जियाँ उगाई जाती है। पोषण वाटिका का मकसद रसोईघर के पानी व कूड़ा करकट का इस्तेमाल करके घर की फल व साग सब्जियों की दैनिक जरूरतों को पूरा करना है। गृह वाटिका के मुख्य तीन फायदे हैः
1.स्वास्थ्य:-
गृह वाटिका से परिवार एवं पड़ौसियों कों तरोताजा हवा, प्रोटीन, खनिज एवं विटामिनों से युक्त फल, फूल व सब्जियां प्राप्त होती है । साथ ही बगिया में कार्य करने से शारीरिक व्यायाम भी होता है , जिससे परिवार के सदस्य स्वस्थ्य एवं प्रशन्न रहते है।
2.समृद्धि:
प्रत्येक परिवार में ओसतन 50 से 100 रूपए की सब्जी एवं फल प्रति दिन बाजार से ख़रीदे जाते है। इस प्रकार प्रति माह हम 1500-3000 रूपए की बचत कर सकते है। इससे आप अपने परिवार का भोजन संबंधी बजट तैयार कर सकेंगे और आपकी आर्थिक बचत में भी सहायता मिलेगी ।
3.बुद्धिमत्ता:
स्वंय की मेहनत एवं पसीने से उपजी हरी-भरी तरो-ताजा सब्जियों को देखकर आपका तन-मन प्रफुल्लित होगा । इसके अतिरिक्त सब्जियाॅं खरीदने के लिए बाजार में जाने का आपका बहुमूल्य समय एवं पैसा भी बच जाता है । वास्तव में मेहनत से पैदा की गई सब्जियों का स्वाद और आनंद कुछ और ही होता है । इस प्रकार गृहवाटिका स्थापित करना परिवार के स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण कदम साबित होगा। क्योंकि हरी सब्जियां में होता है पोषक तत्वों का खजाना। विविध सब्जियों में बिद्यमान पोषक तत्वों का विवरण निम्नानुसार होता है-
1. कार्बोहाइड्रेटः आलू, शकरकंद, अरबी, चुकन्दर आदि ।
2. प्रोटीनःमटर, सेम, फेंचबीन, लोबिया, ग्वार, चैलाई, बांकला, आदि ।
3. विटामिन-एः गाजर, पालक, शलजम, चैलाई, शकरकंद, कद्दू, पत्ता गोभी, मेंथी, टमाटर, धनियाँ आदि ।
4. विटामिन-बी: मटर, सेम, लहसुन, अरबी आदि ।
5. विटामिन-सीः टमाटर, शलजम, हरी मिर्च, फूलगोभी, गांठगोभी, करेला, मूली की पत्तियां, चैलाई आदि ।
6. कैल्शियमः चुकन्दर, चैलाई मेथी, धनिया, कद्दू, प्याज, टमाटर आदि ।
7. पोटैशियमः शकरकंद, आलू, करेला, मूली सेम आदि ।
8. फाॅस्फोरस: लहसुन, मटर, करेला आदि ।
9. लोहाः करेला, चैलाई, मेथी, पुदीना, पालक, मटर आदि ।
गृह वाटिका में कब और क्या लगाएँ ?
आदर्श गृह वाटिका ऐसी है जिससे परिवार की दैनिक आवश्यकता हेतु फल एवं सब्जियाँ तथा पूजा के लिए पुष्प मिल जाएँ । गृह वाटिका को सुसज्जित करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए।
– क्यारियों की मेंड़ों पर मूली, गाजर, शलजम, चुकन्दर, बाकला, धनिया, पोदीना, प्याज व हरे साग वगैरह लगाने चाहिए।
– बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, तुराई, चप्पनकद्दू, परवल, करेला सीताफल वगैरह को बाड़ के रूप में किनारों पर ही लगाना चाहिए।
– वाटिका में पपीता, अनार, नींबू, करौंदा, केला, अंगूर, अमरुद वगैरह के पौधों को सघन विधि से इस प्रकार किनारे की तरफ लगाएं, जिस से सब्जियों पर छाया न पड़े और पोषक तत्त्वों के लिए मुकाबले न हो।
– पोषण वाटिका को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए उस में कुछ सजावटी पौधे भी लगाए जा सकते हैं
– गृह वाटिका में विभिन्न मौसमों में निम्नानुसार सब्जियां उगाई जा सकती हैं:
1. जाड़े या रबी का मौसम (अक्टूबर से फरवरी तक): आलू, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठ गोभी, ब्रोकोली, मूली, शलजम,सलाद, बैगन, टमाटर, शिमला मिर्च, गाजर, बीन्स, चुकन्दर, प्याज, लहसुन, मटर, पालक, मेथी, सरसों आदि ।
2. गर्मी का मौसम (मार्च से जून तक): भिन्डी, लोबिया, ग्वार फली, मिर्च, सेम, तोरई, कद्दू, लौकी, करेला, खीरा, खरबूजा, तरबूज, परवल, चैलाई, अरबी, मूली (गर्मी की किस्मंे), पालक आदि ।
3. वर्षा या खरीफ का मौसम (जुलाई से अक्टूबर तक): भिन्डी, लोबिया, ग्वार फली, मिर्च, सेम, कद्दू, तोरई, करेला, खीरा, टिन्डा,कुंदरू, परवल, मूली, गाजर, पालक, अरबी, चैलाई, बैंगन, टमाटर, शकरकंद आदि ।
गृह-वाटिका का आकार
एक वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 350 ग्राम सब्जियां (200 ग्राम हरी तथा 150 ग्राम जड़दार सब्जी) खानी चाहिए । आहार में हरी सब्जियों की मात्रा औसतन 250 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन तो होना ही चाहिए । अतः पाॅंच वयस्क सदस्यों वाले परिवार के लिए प्रतिदिन 250 ग्राम के हिसाब से 1.25 किग्रा. सब्जी की आवश्यकता पड़ेगी। इस प्रकार पूरे परिवार क¢ लिए वर्ष में 456 किग्रा सब्जी की आवश्यकता ह¨ती है । एक परिवार (5-6 सदस्य) के लिए सब्जियों की आवश्यकता पूरी करने के लिए 250 वर्गमीटर का क्षेत्र पर्याप्त रहेगा । इसमें 8-10 वर्गमीटर की सुविधानुसार क्यारियाँ निर्मित कर मनपसन्द सब्जियाँ लगाएं।
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गृह-वाटिका में लगाएं फल-फूल एवं साग-सब्जियां -Plant flowers and vegetables in the home garden
आपके घर-आंगन एवं आस-पास में खुली जमीन की उपलब्धता के अनुसार विभिन्न प्रकार की साग-सब्जियों को उगाया जा सकता है।यदि घर के पिछवाड़े में कम जमीन उपलब्ध हो तो फलों में 1-2 पेड़ नारियल, सहजन (मुनगा), पपीता, केला के अलावा सब्जियों में बैगन, टमाटर, मिर्च, गोभी,भिण्डी, अदरक और कुछ हिस्से में पत्तीदार सब्जियां जैसे पालक, मैंथी,धनियां उगाई जा सकती है। अधिक जमीन उपलब्ध है तो बड़े पैमाने पर यह कार्य किया जा सकता है। घर आंगन में अत्यंत सीमित खुली जगह होने पर पत्तीदार सब्जियां, बांस-बल्ली के मचान (ढांचे) पर तथा घर की छत-छप्पर पर वेल (लता) वाली सब्जियां यथा सेम, तोरई, लौकी, कुम्हड़ा,चिचिन्डा,करेला तथा साग (पुदीना, पालक, चौलाई, मैथी,धनियां आदि) प्रमुख रूप से उगाए जा सकते है। घर के बरामदे या अन्य बन्द स्थानों में मशरूम भी ढांचे या मचान बनाकर लगाया जा सकता है।
छाया में उगाई जाने वाली फसल – shade grown crops
पेड़-वृक्षों की दो कतार के बीच में फसल उगाना कृषि वानिकी कहलाता है। नव विकसित उद्यान के साथ अमूमन सभी प्रकार की सब्जियां उगायी जा सकती है, परन्तु छायादार वृक्षों के नीचे कुछ विशेष फसलों को ही उगाया जा सकता है । छायादार जगह पर हल्दी, अदरक, घुइयां (अरबी) एवं जिमीकंद लगा सकते है।
हल्दी एवं अदरक के फायदे – Health Benefits of Turmeric and Ginger
इनका प्रयोग मसाले तथा औषधि के रूप में किया जाता है। इनकी खेती हेतु लिए गर्म-नम जलवायु उपयुक्त होती है। बुवाई के समय कम वर्षा, पौध-बढ़वार के समय अधिक वर्षा एवं फसल पकने के समय शुष्क वातावरण उत्तम होता है। इन फसलों के लिए बलुई-दोमट मिट्टी तैयार कर 2-3 किग्रा.प्रति वर्गमीटर की दर से सड़ी गोबर की खाद, 25 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट एवं 15 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश उर्वरक मिलाएं ।कच्ची हल्दी एवं अदरक की 50 ग्राम वजन तथा 3 आँखों वाली 8-10 पुत्तियां प्रति वर्गमीटर की दर से अप्रैल-मई तक बोई जाती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40-45 सेमी. तथा पौध से पौध की दूरी 20 सेमी. रखना चाहिए। कतार में इनकी बोआई कर मिट्टी से ढ़ककर पुआल, भूसा या सूखी पत्तियों की तह लगाए। बुवाई के 15-20 दिन में अंकुरण हो जाता है। आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई कार्य करते रहें।बुवाई के 7-8 माह बाद जब पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगे तो आवश्यकतानुसार इनकी खुदाई करते रहें।
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अरबी के फायदे – Health Benefits of Arbi
अरबी को घुइयां या अरूई भी कहते है। इसके कंदों की स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। इसकी पत्तियों से पकोड़े या सब्जी बनाई जाती है । इसकी बुवाई मई-जून में की जाती है तथा नवम्बर-दिसम्बर में फसल तैयार हो जाती है। इसके बीज-कंदों को धान के पुआल या बोरे से 8-10 दिनों तक ढ़ंक दिया जाता है । अंकुरित 20-25 ग्राम कंद प्रति वर्गमीटर की दर से कतार से कतार 30 सेमी. एवं बीज से बीज 30 सेमी. की दूरी पर लगाये जाते है।
जिमीकंद (सूरन) के फायदे – Health Benefits of Sooran
यह एक बहुवर्षीय भूमिगत सब्जी है जिसे सूरन और ओल के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्वादिष्ट सब्जी ही नहीं वरन एक जड़ी बूटी भी है जिसके सेवन से हम निरोगी हो सकते है। इसके कंदों को सब्जी, भुरता एवं अचार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसे घर के पिछवाड़े में उगाया जा सकता है। पहले मिट्टी तैयार कर गोबर की खाद एवं उर्वरक मिलाएं । इसके बाद 50 ग्राम वाले सूरन की पुत्तियों को भूमि में 10 सेमी. की गहराई पर बोएं एवं मिट्टी से पूर्णतया ढंक दें। प्रति वर्गमीटर 4-5 पुत्तियां रोपी जा सकती है। जब पोधों की पत्तियां पीली पड़ने लगे तो कंदों को खोद कर निकाल लिया जाता है। लगभग 8-9 माह में 1.5-2 किग्रा. प्रति पौधा सूरन प्राप्त हो जाता है। इसकी गजेन्द्रा नामक किस्म लगाना चाहिए जिसके सेवन से गले में खरास-खुजलाहट नहीं होती।
खुले स्थान में उगाई जाने वाली सब्जियां – kitchen garden in hindi
घर-आंगन के खुले स्थानों पर उगाई जाने वाली सब्जियों में प्रमुख रूप से पत्तीदार सब्जियां (धनियां, मैथी, पालक,चौलाई, पुदीना), प्याज, लहसुन,मूली,गाजर, बैगन, टमाटर, मिर्च, गोभी, भिंडी आदि है। इनका चयन उपलब्ध स्थान एवं मौसम के अनुसार करना चाहिए। परिवार के संतुलित पोषण के लिए ये सभी सब्जियां महत्वपूर्ण है।
धनियां के फायदे – Health Benefits of Coriander
सब्जियों में मनमोहक खुशबू एवं स्वाद बढ़ाने में धनियाँ की महत्वपूर्ण भूमिका है। यही नहीं बगैर धनियां बीज के मसालों का जायका भी अधूरा रहता है। स्वास्थ की दृष्टि से भी यह श्वास, खांसी एवं कृमि रोग में लाभकारी है। प्रतिदिन वर्ष भर हमें धनियां की आवश्यकता पड़ती है। सबसे पहले क्यारी की मिट्टी को भुरभुरी बनाएं तथा गोबर की खाद एवं उर्वरक मिलाएं। प्रति वर्गमीटर एक से डेढ़ ग्राम धनियां बीज की आवश्यकता होती है। शुद्ध धनियां बीज को दल कर दो फांकें करें और 8-10 घंटे पानी में भिगोएं। अब बीज को छाया में कुछ समय तक फैलाए । इसमें राख मिलाकर नम अवस्था में एक सूती कपड़े में बांधकर बंद जगह में रखें। अंकुरण शुरू होने पर तैयार क्यारी में पंक्तियां बनाकर बुवाई करें। समय-समय पर निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई करने से अच्छी फसल प्राप्त ह¨ती है। बुवाई के एक माह बाद ताजा धनियां पत्ती खाने में उपयोग करने लायक हो जाती है।
चौलाई के फायदे – Health Benefits of Chaulai
हरी सब्जियों में सर्व सुलभ चौलाई अनेक प्रकार की होती है, मसलन छोटी चौलाई, बड़ी चौलाई, राजगिरा एवं खेड़ा भाजी। राजगिरा या रामदाना के बीजों से स्वादिष्ट लड्डू बनाएं जाते है। खेड़ा भाजी के पत्तों की भाजी एवं तने से स्वादिष्ट सब्जी (मठा या दही के साथ) बनाई जाती है। चौलाई एक बहुप्रचलित देशी साग है जो कि शीतल, सुपाच्य, मूत्रवर्धक, ज्वरनाशक, कफ, पित्त,रक्त विकार, ब्रोन्काइटिस,यकृत के रोग आदि में उपयोगी है। चौलाई की हरी एवं रंगीन पत्तियों में प्रोटीन, खनिज तत्व, विटामिन-ए, रेशा जैसे अनेकों पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। वैसे तो इसे वर्ष भर उगाया जा सकता है, परन्तु गर्मियों में उगाई गई चौलाई अधिक पौष्टिक होती है। ग्रीष्म ऋतु में इसे मार्च-अप्रैल में उगाया जाता है। इसक¢ लिए क्यारी की मिट्टी क¨ भुरभुरा बनाकर गोबर या कम्पोस्ट खाद और आवश्यकतानुसार उर्वरक मिलातेे है। अब चौ लाई के बीज (0.5-1.0 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से) को राख या रेत के साथ मिलाकर कतारों में 20-25 सेमी. की दूरी पर बोकर भुरभुरीे मिट्टी से ढंक देते है। बुवाई के 4-5 दिन बाद सिंचाई करें। अंकुरण के 8-10 दिन पश्चात भाजी काटने योग्य हो जाती है। पहली कटाई पश्चात थोड़ा सा उर्वरक देकर सिंचाई कर देते है। अब प्रत्येक सप्ताह एक बार कटाई कर चौलाई का ताजा एवं पौष्टिक साग प्राप्त कर सकते है।
पालक के फायदे – Health Benefits of Spinach
यह देश के प्रत्येक भाग में उगाया जाने वाला सबसे अधिक प्रचलित एवं पौष्टिक साग है। इसकी बुवाई फरवरी-मार्च, सितम्बर-नवम्बर एवं जून-जुलाई में करते है। अन्य सब्जियों की भांति क्यारी तैयार कर 2-3 ग्राम बीज प्रति वर्गमीटर की दर से बोया जाता है। शीघ्र बीज अंकुरण के लिए बीज को पानी में रात भर भिंगो कर 2-3 दिन तक कपड़े में बांधकर रखें तथा अंकुरित होने पर बुवाई करें। बुवाई कतारों में 20 सेमी. की दूरी एवं 2-3 सेमी. की गहराई पर करें तथा बीज को भुरभुरी मिट्टी से हल्का ढंक दें। बुवाई के एक माह बाद पालक प्रथम कटाई योग्य हो जाती है। फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिंचाई करते रहें । प्रत्येक कटाई पश्चात फसल में उर्वरक देकर सिंचाई करने से पौध बढ़वार बेहतर होती है।
मेंथी के फायदे – Health Benefits of Methi
मेंथी का पौधा,पत्ता साग-भाजी एवं बीज मसाले के रूप में बखूबी से प्रयुक्त किया जाता है।औषधीय गुणों से परिपूर्ण मैथी स्वास्थवर्धक एवं शक्तिवर्धक होती है। इससे प्लीहा एवं यकृत की कार्यक्षमता बढ़ती है। इसकी पत्तियां प्रोटीन, विटामिन एवं खनिज पदार्थो से भरपूर होती है। इसलिए घर की बगियां में इसे अवश्य लगाएं। इसकी बुवाई सितम्बर से मार्च तक की जा सकती है। क्यारी तैयार कर प्रति वर्गमीटर 2.5 से 3 ग्राम की दर से उन्नत किस्म के मैथी बीज की बुवाई करें। बोने के बाद बीज मिट्टी से ढंक दें। लगभग 5-7 दिन में बीज अंकुरित हो जाते है और 20-25 दिन में मेंथी की भाजी प्रथम कटाई योग्य हो जाती है। फसल में निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई आवश्यकतानुसार करते रहें। मैथी की कसूरी प्रजाति सबसे अधिक लोकप्रिय, सुगन्धित एवं स्वादिष्ट होती है।
राई-सरसों के फायदे – Health Benefits of Sarso
राई-सरसों की अनेक किस्में प्रचलित है, जिसमें राई सरसों, जापानी सरसों के पत्ते अधिक पौष्टिक एवं चाव से खाये जाते है। इसका साग प्रोटीन, खनिज एवं विटामिन से भरपूर होता है। इसकी बुवाई अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। प्रति वर्गमीटर 1 ग्राम बीज पंक्तियों में 25 सेमी. की दूरी पर 2-3 सेमी. की गहराई पर लगाया जाता है। बोने के बाद बीज मिट्टी से ढंक दें। अंकुरण 5-6 दिन में हो जाता है। बुवाई के 25-30 दिन पश्चात राई-सरसों के मुलायम तने सहित पत्तों को साग के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
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सलाद के फायदे – Health Benefits of Salad
सलाद गृह वाटिका की अनिवार्य सब्जी मानी जाती है। इसकी पत्तियों को सलाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पत्ति मेंयों खनिज एवं विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है। यह सुपाच्य, रक्त शोधक, क्षुधावर्धक, पित्तनाशक, ह्रदय एवं उदर रोग में लाभदायक होती है। इसे अक्टूबर-नवम्बर में लगाया जाता है। अच्छी प्रकार से तैयार क्यारि में यों 2-2.5 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से 45-60 सेमी. की दूरी पर कतारों में लगाते है। समयानुसार गुड़ाई एवं सिंचाई करें। पत्तियों के पूर्ण रूप से विकसित हो जाने पर कटाई की जाती है।
गाजर के फायदे – Health Benefits of carrot
प्रकृति प्रदत्त उत्तम टॉनिक का कार्य करने वाली गाजर सलाद व सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है । शर्दियों में गाजर का हलुआ लोकप्रिय मिष्ठान के रूप में प्रयुक्त होता है। गाजर से मुरब्बा, जैम तथा अचार भी तैयार किया जाता है। इसका रस स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है। गाजर में विटामिन-ए अधिक मात्रा में पाया जाता है, साथ ही इसमें कैल्शियम,फाॅस्फ़ोरस, विटामिन-बी समूह एवं विटामिन ई भी पाया जाता है। यह क्षुधावर्धक, दस्तर रोधी, वातनाशक, पित्तनाशक, उत्तेजक एवं ह्रदय को शक्ति प्रदान करने वाली कंद है। इसका सेवन पीलिया में भी लाभदायक होता है। इसकी बुवाई अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। अच्छी प्रकार से तैयार क्यारियों में 1-2 किग्रा. गोबर की खाद 12-15 ग्राम यूरिया, 20-25 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फ¢ट एवं 12-15 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाएं। प्रति वर्ग मीटर 1-1.5 ग्राम बीज क¨ राख में मिलाकर कतारों में 45 सेमी. की दूरी पर बुवाई करें। निराई-गुड़ाई, मिट्टी चढ़ाने का कार्य एवं सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। गाजर 40-70 दिन में खाने योग्य हो जाती है।
मूली के फायदे – Health Benefits of Radish
मूली अल्प समय में तैयार होने वाली बहुप्रचलित सबसे प्राचीन सब्जी है। इसकी पत्तियों को भाजी एवं जड़ को सलाद, सब्जी व आचार के रूप में चाव से खाया जाता है। सलाद के रूप में मूली का प्रयोग साल भर बखूबी से किया जाता है और इसके बगैर सलाद का जायका अधूरा रहता है। इसकी फल्लिओ से भी स्वादिष्ट सब्जी और कड़ी बनाई जाती है।मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन ए भी होता है। विटामिन बी और सी भी इससे प्राप्त होते हैं। इसे अकेले या अन्य सब्जियों के साथ या फिर क्यारी की मेंड़ पर लगाया जा सकता है। स्वास्थ की दृष्टि से मूली क्षुधावर्धक, दस्तकारक, बवासीर एवं यकृत रोगों के लिए गुढ़कारी माना जाता है। अतः घर की बाड़ी में मूली को अवश्य ही लगाएं। तैयार क्यारियों या फिर उनकी मेंड़ पर 10-12 सेमी दूरी पर बीज की बुवाई करें तथा आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई करते रहे। बुवाई के 20-25 दिन में इसे खाने के लिए खोद कर निकाला जा सकता है। स्वास्थ्य तथा की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली अधिक उपयोगी मानी जाती है ।
प्याज के फायदे – Health Benefits of Onion
भारतीय रसोई की शान प्याज ना केवल सलाद एवं सभी प्रकार की सब्जियों का तड़का लगाने व स्वाद बढ़ाने में प्रयुक्त किया जाता है वरन यह किसी ओषधि से काम नहीं है। भारत में प्याज की कमी से अनेक बार सरकार को भी मुसीबत में डाल दिया है। प्याज के कंद में तीखापन उसमे उपस्थित एक वाष्पशील तेल एलाइल प्रोपाइल डाय सल्फाइड के कारण होता है। इसकी पत्तियां एवं बल्बो को खाने में प्रयुक्त किया जाता है। वैसे तो यह शीतकाल की फसल है परन्तु वातावरण अनुकूल हो तो इसे ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में भी उगाया जा सकता है। इसका बीज सितम्बर-अक्टूबर में पौधशाला में बोया जाता है तथा नवम्बर-दिसम्बर में क्यारिओं में पौध रोपी जाती है। अच्छी प्रकार से तैयार क्यारी में खाद एवं उर्वरक मिलाएं। पौध ध की रोपाई 10-15 सेमी. की दूरी पर पंक्तियों में करते है। प्रति वर्गमीटर 1-2 ग्राम बीज बुवाई हेतु लगता है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई देते रहें। इसकी फसल फरवरी-मार्च में तैयार हो जाती है।
लहसुन के फायदे – Health Benefits of Garlic
इसका प्रयोग मसाले, चटनी एवं आचार के रूप में किया जाता है। लहसुन के कंद में भी तीखापन एलाइल प्रोपाइल डाय सल्फाइड की उपस्थिति के कारण होता है। इसमें तीखी गंध कंद में उपस्थित एलायसिन तत्व के कारण होती है जिसकी बजह से लहसुन में औषधिय गुण होते है। स्वास्थ की दृष्टि से लहसुन बहुत ही फायदेमंद होता है। ह्रदय रोग, बुखार, ब्रोनकाइटिस, वात रोग, शरीर में जोड़ों का दर्द आदि में लाभदायक है। इसके नियमित सेवन से रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। इसकी पत्तियां एवं बल्बो को खाने में प्रयुक्त किया जाता है। इसकी बुवाई अक्टूबर से दिसम्बर तक की जा सकती है। दोमट, बलुई दोमट एवं मटियार दोमट मिट्टी को भुरभुरी बनाकर एवं उसमें गोबर की खाद एवं उर्वरक डालकर अच्छी प्रकार मिलाएं। बीज के लिए लहसुन की कलियां उपयोग में लाई जाती है।लहसुन की प्रत्येक पुत्ती (कली) को अलग-अलग करके बोया जाता है । प्रति वर्गमीटर में 40-50 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुआई पंक्ति में 15 सेमी. की दूरी पर करते है तथा पौध से पौध के मध्य 7.5 सेमी. का फासला रखा जाता है। क्यारिओं की मेड़ पर भी लहसुन लगाया जा सकता है। इसकी फसल फरवरी-मार्च में तैयार हो जाती है।
फूलगोभी के फायदे – Health Benefits of Cauliflower
फूल गोभी जिसे हम सब्जी के रूप में प्रयोग करते है, दरअसल अविकसित पुष्पक्रम है, जिसके पुष्प छोटे तथा घने होकर एक ठोस रूप निर्मित करते है। शीतकालीन सब्जियों में यह सर्वाधिक लोकप्रिया एवं स्वादिष्ट सब्जियो में शुमार है। इसमें प्रोटीन, कैल्सियम, फाॅस्फ़ोरस के अलावा विटामिन-ए,सी तथा निकोटीनिक एसिड पाया जाता है। इनकी अगेती फसल मई-जून, मध्यवर्ती फसल जुलाई-अगस्त एवं पछेती फसल अक्टूबर-नवम्बर में लगायी जाती है। अच्छी उपज के लिए कार्बन खाद युक्त बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। क्यारी तैयार करते समय प्रति वर्ग मीटर 1.5-2 किग्रा. गोबर की खाद, 25-25 ग्राम यूरिया एवं सिंगल सुपर फाॅस्फेट तथा 12 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश का प्रयोग करें। क्यारी में रोपाई करने के लिए 3-4 पत्तों वाली पौध अच्छी रहती है। क्यारी में पंक्ति से पंक्ति एवं पौध से पौध की दूरी 40-45 सेमी. रखते हुए र¨पाई करें। इस प्रकार प्रति वर्गमीटर 4-5 पौधे रोपे जाते है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई, सिंचाई एवं पौध संरक्षण उपाय करते रहे। पौध रोपण के तीन माह में सब्जी योग्य ताजे फूल तैयार हो जाते है। गोभी के फूल 700-800 ग्राम वजन के हो जाए तो काटकर सब्जी या सलाद के रूप में प्रयोग करें।
पत्तागोभी के फायदे – Health Benefits of Cabbage
पत्तागोभी पत्तियों का समूह है, जिसे सब्जी व सलाद के रूप में वर्ष भर उपयोग किया जाता है। इसमें विशेष मनम¨हक सुगंध सिनीग्रिन ग्लूकोसाइड के कारण होती है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन-ए, सी एवं कैल्शियम, फाॅस्फ़ोरस तथा मध्यम मात्रा में विटामिन-बी समूह पाया जाता है। पत्तागोभी को अगस्त से लेकर अक्टूबर तक फूलगोभी की भांति लगाया जाता है। इसके पत्ते ठोस रूप में बंध जाएं, तब सब्जी के लिए काट लेना चाहिए।
टमाटर के फायदे – Health Benefits of Tomato
हरी साग-सब्जियों में टमाटर अत्यन्त लोकप्रिय तथा पोषक तत्वों से युक्त फलदार सब्जी है। टमाटर के बिना भोजन का स्वाद नहीं बनता है। घर में टमाटर सब्जी, सूप, साॅस, चटनी, आचार, सलाद आदि विभिन्न रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह अत्यन्त गुणकारी कच्चा और पकाकर उपयोग किया जाता है। सेव, मौसम्मी, संतरे एवं अंगूर आदि फलों की अपेक्षा टमाटर में खून उत्पन्न करने की क्षमता कई गुणा अधिक होती है। इसके सेवन से त्वचा में निखार आता है। टमाटर में विटामिन ए,बी एवं सी प्रचुर मात्रा में पाये जाते है । इसके अलावा पोटाश, लोहा, कैल्शियम, मैगनीज, फास्फेटतत्व जैसे पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते है । अनेक प्राकृतिक अम्लों से परिपूर्ण होने के कारण हमारे पाचन संस्थान के लिए अत्यन्त ही लाभदायक है। सुस्त यकृत को उत्तेजित कर पाचक रसों के स्त्राव में यह सहायक होता है। टमाटर को वर्ष में तीन बार (जुलाई-अगस्त, सितंबर-अक्टूबर और नवंबर-अक्टूबर) लगाया जा सकता है। टमाटर उगाने के लिए मटियार अथवा मटियार दोमट मिट्टी अच्छी होती है। क्यारी की मिट्टी को बारीक़ भुरभुरी बनाकर प्रति वर्गमीटर 2-3 किग्रा. गोबर की खाद, 25 ग्राम अमोनियम सल्फेट, 50 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट एवं 15 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश अच्छी प्रकार से मिला देते है। टमाटर की पौध को क्यारियों में कतार से कतार 50 सेमी. व पौध से पौध 30-40 सेमी. की दूरी पर लगाया जाता है। समय-समय पर निराई, गुड़ाई एवं सिंचाई करना आवश्यक है। फल लगने पर पौधों को लकड़ी का सहारा भी देना चाहिए। टमाटर की फसल अवधि 60-120 दिन की होती है। पौध रोपण के 50-60 दिनों पश्चात फल पक कर तैयार होने लगते है।
बैगन के फायदे – Health Benefits of Brinjal
गरीबो की सब्जी बैगन बारहमासी फसल है जिसका फल लंबा, गोल, छोटा और बड़ा होता है। इसके सेवन का सही समय शीत ऋतु ही है, क्योंकि यह तासीर में गरम होता है। बैंगन दो रंगों में मिलता है, सफेद और बैंगनी। बैंगन में कार्बोहाइड्रेट, चर्बी, प्रोटीन, विटामन ‘ए’, बी-2, सी, लौह तत्व तथा कुछ क्षारों का समावेश होता है। इसके डंठल में पौष्टिक तत्वों की अधिकता होती है। बगीचे के खुले स्थान पर क्यारी बनाकर एक से डेढ़ माह की पौध (3-4 पत्तियों वाली) को दो कतारों 60-70 सेमी. की दूरी पर लगाया जाता है।
मिर्च के फायदे – Health Benefits of Chilli
हर घर में मिर्च का उपयोग प्रतिदिन किया जाता है। इसके बिना भोजन का स्वाद बिगड़ जाता है। इसका उपयोग मसाला, अचार और चटनी के रूप में किया जाता है। इसके फलों में तीखापन केप्सेसिन तत्व के कारण होता है। हरी मिर्च में प्रोटीन, विटामिन-ए एवं सी, फाॅस्फ़ोरस, पोटेशियम एवं अन्य खनिज तत्व पाये जाते है। 100 ग्राम हरी मिर्च में 111 मिग्रा. विटामिन सी पाया जाता है। यह बारह माह उपलब्ध होती है तथा घर की बगियां में इसकी पौध जुलाई (वर्षा ऋतु की फसल), सितम्बर (शरद ऋतु की फसल) एवं जनवरी (ग्रीष्म ऋतु की फसल) में लगाया जाता है। लगभग 20-25 दिन की पौध (6-10 सेमी.) को क्यारियों में इस प्रकार रोपा जाता है जिससे पंक्ति से पंक्ति एवं पौध से पौध के बीच 40-50 सेमी. की दूरी स्थापित हो जाए। फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई एवं सिंचाई करते रहे ।पौध लगाने के लगभग एक माह बाद मिर्च की फसल मिलने लगती है ।
फ्रैंचबीन के फायदे – Health Benefits of French bean
फ्रैंचबीन गृह वाटिका की प्रमुख सब्जी है जिसके पौधे झाड़ीनुमा तथा बेल वाले होते है। बीन्स की हरी गूदेदार फल्लियां तथा सूखे दानों (राजमा) को सब्जी के रूप में उपयोग में लाया जाता है। फ्रेंच बीन्स में मुख्यतः प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि विभिन्न प्रकार के खनिज और विटामिन मौजूद होते हैं। बीन्स घुलनशील फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं और इस कारण ह्रदय रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं। बीन्स रोज खाने से रक्त में कोलेस्टेरोल की मात्रा काफी कम हो सकती है। बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्सियम व मेग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है और लवणों का इस प्रकार का समन्वय सेहत के लिए लाभदायक है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता तथा ह्रदयाघात का खतरा टल सकता है।फ्रैंच बीन खुली जगह पर लगाई जाती है। बीन की बुवाई हेतु मिट्टी क¨ तैयार कर लेते है । तैयार क्यारी में 2-3 किग्रा. गोबर की खाद 10-12 ग्राम यूरिया, 25-30 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट 10 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश उर्वरक मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देते है। इसके बीज को सितम्बर-अक्टूबर में 30-35 सेमी. की दूरी पर बोते है। प्रति वर्गमीटर 2-3 ग्राम बीज लगता है । आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई करते रहें। बुवाई करने के 50-60 दिन बाद बीन की मुलायम फल्लियां खाने के लिए तोड़ी जा सकती है।
ग्वारफली के फायदे – Health Benefits of Bean
गरीबों की सब्जी मानी जाने वाली ग्वारफली स्वास्थ के लिए अत्यन्त लाभकारी होती है। आजकल ग्वारफली के दानों का उपयोग गोंद बनाने में बढ़े पैमाने पर किया जाने लगा है। इसकी फल्लियों में प्रोटीन, लोहा, विटामिन-ए एवं बी प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।इसे ग्रीष्म (फरवरी-मार्च) एवं वर्षा (जून-जुलाई) ऋतु में लागाया जाता है। प्रति वर्गमीटर भूमि में 1.2-2 ग्राम बीज की बुवाई कतारों में 30-40 सेमी. की दूरी पर करें तथा दो पौधों के मध्य 20-25 सेमी. का अंतर रखें। निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई समय पर करते रहें। बर्ष ऋतु में भूमि से थोड़ी उठी हुई क्यारी बनाएं जिससे जलनिकास हो सके । तैयार क्यारी में 1.5-2 किग्रा. गोबर की खाद 6-7 ग्राम यूरिया, 25-30 ग्राम सिंगल सुपर फाॅस्फेट 10 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश उर्वरक मिलाने के बाद बुवाई करें।
बरबटी के फायदे – Health Benefits of Barbati
बरबटी को लोबिया भी कहा जाता है जो कि फल्लीदार सब्जी है जिसका बीज एवं फल्ली दोनों ही सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।इसमें प्रोटीन के अलावा कैल्शियम तथा विटामिन-ए पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसे वर्ष में दो बार ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में लगाया जा सकता है। बीज, खाद-उर्वरको का प्रयोग ग्वारफली की भांति करें। इसकी बेल को लकड़ीओ का सहारा देने से उपज अच्छी मिलती है। बीज बोने से लगभग 45-50 दिन से फल्लियां प्राप्त होने लगती है। प्रत्येक 3-4 दिन के अन्तराल पर सब्जी के लिए मुलायम फल्लियों की तुड़ाइ की जा सकती है।
मचान या छप्पर पर फैलने वाली सब्जियां -kitchen garden in hindi
लौकी के फायदे – Health Benefits of Lauki
लौकी शीघ्र पाचक, रक्तवर्धक तथा शीतलता प्रदान करने वाली सब्जी है। रोगियों लिए यह बेहद लाभप्रद होती है। इससे सब्जी,सूप एवं मिठाइयां बनाई जाती है। आयुर्वेद के अनुसार यह पौष्टिक हो =ती है एवं कई रोगों (कफ, पित्तजनक, कृमि,श्वास, खांसी एवं मूत्र रोग) को दूर रखती है। इसके रस का सेवन करने से ह्रदय एवं मधुमेह के रोगियों को लाभ मिलता है। इसके पके सूखे हुए फल से कई तरह के वाद्य यंत्र जैसे इकतारा, तानपुरा, सितार आदि बनाये जाते है। इसके महत्व को देखते हुए घर की बगियां में 1-2 थालों में लौकी की बुवाई अवश्य करें। लौकी को ग्रीष्म ऋतु (जनवरी से मार्च) एवं वर्षा ऋतु (जून-जुलाई) में लगाया जा सकता है। यह लंबी अवधि तक फल देने वाली सब्जी है और बुवाई के 60-70 दिन बाद फल देने लगती है। इसे कतार से कतार 1.5 से 2 मीटर तथा पौध से पौध 1.5 मीटर की दूरी पर थालों (घरुआ) में लगाते है। एक थाले में 2-3 बीज बोये जाने चाहिए। बेल को बांस-बल्ली का मचान बनाकर, छप्पर या छत पर चढाने से उपज अच्छी प्राप्त होती है। पौधों में 2-4 पत्तियां आने पर मैलिक हाइड्राजाइड या टीबा 50 पीपीएम का घोल बनाकर छिड़कने से फल अधिक बनते है।
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तुरई के फायदे – Health Benefits of Turai
भारत में उगाई जाने वाली वेल वाली सब्जियों में तुरई (गिल्की) एक महत्वपूर्ण सब्जी है। इसके फल मुलायम अवस्था में ही खाये जाते है। पूर्ण पके फलों के सूखे रेशेदार (स्पंज) भाग का उपयोग बरतन धोने एवं कारखानों में निस्पन्दक के रूप में किया जाता है। खरीफ में इसकी बुवाई जून माह के अंत से लेकर मध्य जुलाई तक करते है। बसंत या गर्मी के मौसम में इसकी बुवाई फरवरी से मध्य मार्च तक की जा सकती है। बुवाई के 60 दिनं बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है।
करेला के फायदे – Health Benefits of Bitter gaurd
करेला जो स्वाद में कड़वा होता है लेकिन फिर भी पौष्टिकता एवं ओषधीय गुणों में बेजोड़ एवं लाभकारी होता है । एक चाइनीस कहावत है कि रोज के खाने में कुछ कड़वा जरूर होना चाहिए।यह लोह तत्व, कैल्शियम एवं विटामिनों का अच्छा स्त्रोत है। इसका उपयोग तलकर, उबालकर भरवां सब्जी बनाने में किया जाता है। करेले को घर पर उगाना बेहद आसान है। गर्मी, खरीफ व रबी मौसम की फसल के लिए बीज की बुवाई क्रमशः जनवरी-फरवरी, मई-जून व सितम्बर-अक्टूबर में करनी चाहिए। आप करेले क¨ भूमि में या फिर बड़े 10-12 इंच के गमले में भी उगा सकते है। बुवाई के दो सप्ताह बाद लताओं को बांस-बल्ली एवं रस्सी की सहायता से चढ़ाना चाहिए। इसके पौधों की बढ़वार एवं फलन के लिए तेज धूप आवश्यक है। वर्षा ऋतु को छोड़कर गर्मी में एक एवं शरद में दो दिन के अन्तराल पर पानी देना चाहिए। बुवाई के लगभग 50-60 दिन बाद करेला के फल तैयार हो जाते है।
इस प्रकार से हम देखते है की घर की बगियाँ में परिवार के सदस्यों की थोड़ी सी महेनत और लगन से आपको पूरे साल ताजी, पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्द्धक सब्जियां, फल और फूल मिल सकते है जिनके सेवन से आपके परिवार को अतुलित सुख व आनंद की अनभूति होगी । यही नहीं, गृह वाटिका से आपके आसपास का वातावरण भी प्रदुषण से बचेगा, परिवार का व्यायाम होेगा और आर्थिक लाभ भी होगा ।