मेथी की उन्नत व वैज्ञानिक खेती कैसे करें (methi ki kheti kaise kare)
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मेथी (fenugreek ) व सोया का साग तो आपने खाया ही होगा। औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके सूखे दाने का उपयोग मसालों के रूप में वर्षों से होता आ रहा है। आज भी लौकी की सब्ज़ी बनाने में मेथी का ही छौंका लगाने का प्रचलन है।
स्वास्थ्य के लिए अमृत है मेथी (fenugreek ) –
मोटापे से पीड़ित लोग मेथी (fenugreek ) के दाने का पानी सुबह पीते हैं । जिससे मोटापा कम होता है। सब्ज़ियों को छौक़ने, बघारने के अलावा इसका उपयोग अचार आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने में किया जाता है।मेथी में वसा,प्रोटीन,रेशा,कार्बोहाइड्रेट,मैग्निशियम,केल्सियम, पोटेशियम,लोहा,सल्फ़र के साथ-साथ विटामिन a, c व निकोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
आज हम बात करने वाले हैं मेथी की उन्नतशील खेती के बारे में। खेती किसानी डॉट ओर्ग के इस लेख में हम मेथी के व्यवसायिक उत्पादन के बारे में जानेंगे।
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साथियों मेथी की दो प्रजातियों की खेती हमारे देश में की जाती है –
एक तो सामान्य तरह की मेथी होती है । इसका वानस्पतिक नाम trigonella foenumgraecum है। वहीं दूसरी प्रजाति में कसूरी या चम्पा मेथी आती है । इसका वानस्पतिक नाम trigonella corniculata है। यह धीरे धीरे बढ़ती है व गुच्छो में रहती है। इसके फूल चमकीले नारंगी होते हैं। मेथी के गुणसूत्रों की संख्या 2n=16 होती है।
मेथी की खेती के लिए जलवायु की बात करें तो मेथी का पौधा ठंडे जलवायु का पौधा है। मेथी पाले के प्रति सहनशील होती है । मेथी के पौधे की वानस्पतिक बढ़वार व विकास के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है।
मिट्टी अथवा भूमि का चयन –
मेथी की खेती के लिए जीवांशयुक्त अच्छे जल निकास वाली दोमट चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम होती है । मेथी की खेती 5.5 – 6.5 तक ph मान वाली भूमि से आसानी से की जा सकती है।
भूमि की तैयारी –
मेथी की खेती के लिए भूमि को कल्टीवेटर अथवा देशी हल से 2 से 3 जुताइयाँ करनी चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए।
बुवाई का समय –
जलवायु के आधार पर मेथी के खेती के लिए बीजों की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती है जैसे –
भारत के उत्तरी मैदानी भागों में –
दाने हेतु – 15 सितंबर से 15 नवमबर तक ।
शाक पत्तियाँ हेतु – फ़रवरी से 7 मार्च तक ।
पर्वतीय इलाक़ों में –
मार्च से अप्रैल तक
एक बात और मेथी की दूसरी प्रजाति कसूरी मेथी की बुवाई अक्टूबर- से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक करें।
उन्नत क़िस्में
क्रम संख्या |
उन्नत किस्म का नाम |
विवरण |
1 | हिसार सोनाली | ऊँची बढ़ने वाली क़िस्म है ।पत्तियाँ हरी गहरी, बीज सुनहरे पीले होते हैं । 140-150 दिन में पक जाती है। 1600-1800 kg/हे0 उपज प्राप्त होती है। |
2 | लेम सेलेक्शन 1 | 68 दिन में पककर तैयार होने वाली यह अगेती क़िस्म है। इस क़िस्म के पौधे झाड़ीनुमा होते हैं। 750 – 800 किलोग्राम उपज इस क़िस्म से प्राप्त होती है। |
3 | राजेंद्र क्रांति | इस क़िस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले मध्यम,ऊँचाई वाले झाड़ीनुमा होते हैं। पत्ती रोग धब्बा प्रतिरोधी क़िस्म 120 दिन तैयार व 1200-1500 उपज । |
4 | को0 1 | इसमें 20-30% प्रोटीन होता है। पत्तों व मसालों के लिए लोकप्रिय क़िस्म 90 दिन में पककर तैयार होती है। 4-6 टन शाक व 700 kg बीज उपज । |
5 | UM 305 | यह क्यारियों में बोयी जाने वाली क़िस्म है। पौधे मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं। |
6 | RMT 143 | यह क़िस्म चूर्णी फफूँदी प्रतिरोधी होती है। भारी मृदा में उगाने के लिए उपयुक्त यह क़िस्म 140-150 दिन में तैयार हो जाती है। 1300-1500 तक उपज। |
7 | RMT 1 | यह भी चूर्णी फफूँदी के प्रति सहनशील होती है। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होने वाली यह क़िस्म 1300-1500 किलोग्राम तक उपज देती है। |
8 | HM 103 | इस क़िस्म के पौधे अर्धसीधे झाड़ीनुमा होते हैं। दाने पीले व आकर्षक होते हैं। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होती है। उपज 1800-2000 किलोग्राम। |
बीज की मात्रा –
शाक व बीजों के लिए सामान्य रूप से 25-30 किलोग्राम व कसूरी मेथी की खेती (kasoori methi ki kheti in hindi ) के लिए 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ती है। किसान साथी ध्यान रखें बीज सुडौल,समान आकार के व रोग रहित उन्नत क़िस्म का होने चाहिए।

पौधों का अंतरण –
मेथी व कसूरी मेथी की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए अंतरण ज़रूरी होता है । लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सेंटीमीटर व पौध से पौध की दूरी 10-15 सेंटीमीटर किसान भाई रखें।
मेथी के बीजों का बीज उपचार –
अच्छे अंकुरण व बीजों को रोगों से बचाने के लिए राइजोबियम मेलोलोरी कल्चर से बुवाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए।
मेथी व कसूरी मेथी की बुवाई कैसे करें ( kasoori methi ki kheti kaise kare ) –
हमारे देश में किसान भाई मेथी व कसूरी मेथी की खेती के लिए दो बुवाई की विधियाँ उपयोग में लाते है – पहली है छिटकवाँ और दूसरी विधि है पंक्तियों में बुवाई ।
खाद व उर्वरक –
मेथी की खेती व कसूरी मेथी की खेती में प्रति हेक्टेयर इस प्रकार खाद व उर्वरक की मात्रा को प्रयोग में लाते है –
गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट – 10-15 टन व 40 किलोग्राम नत्रजन व 40 किलोग्राम फ़ोस्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश ।
नत्रजन की आधी व फ़ोस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। तथा नत्रजन की आधी मात्रा हर कटाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में मेथी के फ़सल में डालें।
सिंचाई –
बुवाई के बाद शुरुआत में बीजों के अंकुरण के लिए नमी का होना अच्छा होता है इसलिए हल्की सिंचाई करें । इसके पश्चात हर सप्ताह करना चाहिए। साथी ही मौसम के अनुसार भी सिंचाई की संख्या कम अथवा अधिक की जाती है।
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कटाई –
मेथी का साग के उद्देश्य से उगाने वाले किसान भाई बुवाई के माह भर बाद मेथी की कटाई शुरू कर दें । कसूरी मेथी की 5-6 कटाइयों के बाद बीज उत्पादन के लिए छोड़ देना चाहिए। परंतु सामान्य मेथी को जड़ के पास से 4 से 6 कटाई के बाद जड़ सहित उखाड़कर बाज़ार में बेंचने के लिए भेज दें। ऐसा करने से अगली फ़सल हेतु फ़सल अवशेष हटाने की दिक़्क़त नही उठनी पड़ेगी।
उपज –
किसान भाइयों मेथी की खेती से प्राप्त उपज मृदा की उर्वरा शक्ति, बीज की क़िस्म व देखभाल पर निर्भर करती है। फिर भी एक औसत उपज पर बात करें तो एक हेक्टेयर से लगभग 70-80 कुन्तल हरा साग व 15-20 कुन्तल मेथी के बीज मिल जाता है। वहीं कसूरी मेथी की खेती से 90-100 कुन्तल प्रति हेक्टेयर साग प्राप्त हो जाता है।