भारत देश मे दलहनी फसल में मूंग एक महत्वपूर्ण है जिसकी खेती समस्त राजस्थान में की जाती है।
मिट्टी का चुनाव | Soil सिलेक्शन in Moong ki kheti
उच्च कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मृदा-
बुवाई के पूर्व 3 कि.ग्रा. जिंक (15 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा
हाइड्रेट या 9 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से तीन वर्ष के अन्तराल पर दें।
कम कार्बनिक पदार्थ वाली पहाड़ी बलुई दोमट मृदा-
2.5 कि.ग्रा. जिंक (12.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट
या 7.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से एक वर्ष के अन्तराल में प्रयोग करें ।
बोरॉन – बोरॉन की कमी वाली मृदाओं में उगाई जाने वाली मूँग की फसल में 0.5 कि.ग्रा. बोरॉन (5 कि.
ग्रा. बोरेक्स या 3.6 कि.ग्रा. डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइडेªट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।
मैंगनीज – मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मृदाओं में 2ः मैंगनीज सल्फेट के घोल का बीज उपचार
या मैंगनीज सल्फेट के 1ः घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है।
मॉलिब्डेनम – मॉलिब्डेनम की कमी वाली मृदाआंे मंे 0.5 कि.ग्रा. सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हैक्टर की दर से
आधार उर्वरक के रूप में या 0.1ः सोडियम मॉलिब्डेट के घोल का दो बार पर्णीय छिड़काव करना
चाहिए अथवा मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें। ध्यान रहे कि अमोनियम मॉलिब्डेनम का प्रयोग
तभी किया जाना चाहिए जब मृदा में मॉलिब्डेनम तत्व की कमी हो।
जायद मूंग की खेती पेटा कास्त वालेक्षेत्रों,जलग्रहण वाले क्षेत्रों एवं बलुई दोमट, काली तथा पीली मिट्टी जिसमें जल धारण क्षमता अच्छी होती है, में करना लाभप्रद होता है। अंकुरण के लिए मृदा में उचित तापमान होना आवश्यक है। जायद मूंग की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य करना उपर्युक्त रहता है । जायद मूंग की अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन करें।
मूंग की उन्नत किस्मे : Advanced Variety
आई पी एम -2-3 सत्या (एम एच-2-15), के-851,पूसा बैसाखी, एस.एम.एल.-668, एस.-8, एस.-9, आर.एम.जी.-62, आर.एम.जी.-268, आर.एम.जी.-344 (धनू), आर.एम.जी.-492, पी.डी.एम.-11, गंगा-1 (जमनोत्री), गंगा-8 (गंगोत्री) एवं एमयूएम-2, ये किस्में 60-65 दिन में पककर 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।
खेत की तैयारी : Field Preparation
इसकी बुवाई के लिये आवश्यकतानुसार एक या दो बार जुताई कर खेत को तैयार करें।
भूमि उपचार: Soil Treatment
भूमिगत कीटों व दीमक की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व एण्डोसल्फान 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें।
बीज की मात्रा एवं बुवाई : Seed Rate
एक हैक्टेयर क्षेत्रफल हेतु 15-20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेन्टीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेन्टीमीटर रखें।
फ़सल सुरक्षा प्रबंधन | Crop Protection Management
थ्रिप्स या रसचूसक कीट नियंत्रण
बुवाई के पूर्व बीजो को थायोमेथोक्जम 70 डब्ल्यूएस 2 मि.ली./कि.ग्राम बीज के हिसाब से उपचार
करें तथा थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यू जी 2 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करनें से
थ्रिप्स का अच्छा नियंत्रण होता है।
ट्राईजोफॉस 40 ई.सी. 2 मि.ली./ली. या इथियोन 50 ई.सी. 2 मि.ली./ली. का छिडकाव
आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
माहू एवं सफेद मक्खी
डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी
में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।
पीला चितकबरा रोग
रोगरोधी प्रजातियॉं जैसे नरेन्द्र मूंग-1, पन्त मूंग -3, पी.डी.एम.-139 (समा्रट), पी.डी.एम.-11, एम.यू.
एम.-2, एम.यू.एम.-337, एस.एम.एल. 832, आई.पी.एम. 02-14, एम.एच. 421 इत्यादि का चुनाव करना
चाहिए ; पपद्ध श्वेत मक्खी इस रोग का वाहक है। इससे बचाव करने के लिए श्वेत मक्खी के नियंत्रण हेतु
ट्रायजोफॉस 40 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति लीटर अथवा थायोमेथाक्साम 25 डब्लू. जी. 2 ग्राम/ली. या
डायमिथिेएट 30 ई.सी. 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
सफेद मक्खी से रासायनिक बचाव रोग से बचाव हेतु बीजोपचार के लिए बीजों को इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड घोल में डुबोकर रोपण करें। बीमार पौधों के शीर्ष भाग काट कर जला दें तथा सफेद मक्खी पर नियंत्रण के लिए पौध रोपण के 30 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड की 125 प्रति मिली. हेक्टेयर या मिथाइल डिमेटान या एसिफेट की 300 प्रति मिली हेक्टेयर छिड़काव करें। साथ ही प्रत्येक छिड़काव के समय सल्फेक्स 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर के मान से मिश्रित करें।
खाद एवं उर्वरक | Nutrition Management
मूंग के प्रति बीघा 10 किलो फास्फोरस तथा 5 किलो नाइट्रोजन बुवाई से पूर्व ड्रिल करें। 37.5 किलोग्राम प्रति बीघा जिप्सम का उपयोग बुवाई पूर्व ड्रिल करने पर उपज में वृद्धि होती है।
सिंचाई | Irritation And Water Drainage Management
मूंग की फसल में फूल आने से पूर्व (30-35 दिन पर) तथा फलियों में दाना बनते समय (40-50 दिन पर) सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है। तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार आवश्यकता होने पर अतिरिक्त सिंचाई देवें।
कटाई एवं मड़ाई | Crop Harvesting)
जब 70-80 प्रतिशत फलियां पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए। तत्पश्चात बण्डल
बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात सुखााने के उपरान्त डडें से पीट कर
या बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं।
उपज Yield in Moong ki kheti
मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर बर्षाकालीन फसल से 10 क्विंटल/हे. तथा ग्रीष्मकालीन
फसल से 12-15 क्विंटल/हे. औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/हे.
उपज प्राप्त की जा सकती है।
भण्डारण ( Storage )
भण्ड़ारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा
8-10ः रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।
मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए आवश्यक बाते
स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है।
किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
बीजोपचार अवश्य करें जिससे पौधो को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में
प्रभावित होने से बचाया जा सके।
मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वराषक्ति बनी रहती
है जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी है।
खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुबाई करें।
समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियो का समय पर