पपीते की उन्नत खेती कैसे करें,हिंदी में पूरी जानकारी Papaya ki Kheti in hindi (How to cultivate papaya in a modern and scientific way)
वानस्पतिक नाम : सारिका पपाया (Carica Papaya)
कुल : Caricaceae
गुणसूत्रों की संख्या : 18.36
उद्भव स्थल : ऊष्ण कटिबन्धीय अमेरिका
पपीता की उन्नत किस्में –
- पूसा मजेस्टी,पूसा नन्हा,पूसा डेलिशियस,पूसा ड्वार्फ,पूसा जायंट
- कोयम्बटूर 1,2,3,4,5,6
- सूर्या
- वाशिंगटन
- सिंगापुर पिंक
- पन्त पपीता 1
- हनीड्यू
- कुर्ग हनीड्यू
पपीते के लिए जलवायु व तापमान-
पपीता एक ऊष्ण जलवायु का पौधा है इसे ऊष्ण तथा उपोष्ण दोनों जलवायु में सफतापूर्वक उगाया जाता है । पपीते की बागवानी 38 से 43०C तापमान पर लाभकारीहै । कम तापमान व पाला इसके पौधों के लिए किसी दुश्मन से कम नही है । पौधे के साथ-साथ पपीते के फल पर भी इसका बुरा असर पड़ता है । समुद्र तल से 1000 से1200 मीटर ऊंचाई तक पपीता की खेती की जाती है ।
भूमि का चयन-
पपीते के पौधे की उचित वृद्धि व विकास के लिए सिंचित व उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है । पपीते की बागवानी के लिए भूमि का पीएच 6.5 से 7.0 होना चाहिए । इसकी खेती दोमट मृदा के अलावा बलुई दोमट,हल्की काली भूमि में भी सफलतापूर्वक की जाती है ।
बीज की मात्रा-
पपीते की एक हेक्टेयर पौध के लिए 250 से 400 ग्राम पर्याप्त होता है ।
बीजों को उपचारित करना –
बुवाई से पूर्व बीज को रोगों से बचाव हेतु किसी भी फफूंदनाशी जैसे थायरम या कप्तान की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए ।
पपीते के पौध तैयार करने में लिए नर्सरी तैयार करना (प्रवर्धन) :
रोपाई का समय –
हमारे देश में पपीते की रोपाई साल में तीन बार की जाती है –
वर्षा ऋतु के आगमन – जून से जुलाई
वर्षा ऋतु के गमन – सितम्बर से अक्टूबर
बसन्त ऋतु में – फरवरी से मार्च
सबसे उपयुक्त पपीते की रोपाई का समय वर्षा ऋतु में यानी जून से जुलाई माह ही रहता है ।

पपीते की रोपाई हेतु गड्ढों का निर्माण व रोपाई –
सबसे पहले किसान भाई आवश्यकतानुसार भूमि में 2.5×3 मीटर की दूरी पर 50×50×50 सेंटीमीटर के गड्ढे बना लें । इन गढ़ों में 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद,BHC 10% धूल 300 ग्राम,1.25 किलोग्राम हड्डी का चूरा,मिट्टी में मिलाकरगड्ढे में भर दें । शाम के समय पपीते की रोपाई करना उपयुक्त होता है । रोपाई के लिए 15 से 25 सेंटीमीटर ऊंचे पौधों को प्रत्येक गड्ढे में 25 आए30 सेंटीमीटर की दूरी में 2 से 3 पौधे समभुजिया त्रिकोण में रोपें । खाली गड्ढों को किसान भाई मिट्टी व खाद से भर दें । रोपाई के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें ।
खाद व उर्वरक –
पपीते की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाई गोबर की खाद 15 से 20 किलोग्राम,नाइट्रोजन 250 ग्राम,फॉस्फोरस 250 ग्राम व म्यूरेट ऑफ पोटाश 500 ग्राम की मात्रा को 2 माह से अंतराल पर 6 बार दें । यह वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुति की गई खाद व उर्वरक की मात्रा है ।पौधों पर जिबरेलिक अम्ल(50PPM) का छिड़काव करने से मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि होती है ।
पपीते में सिंचाई
सिंचाई करते समय किसान भाई ध्यान रखें कि पानी सीधे तने में सम्पर्क में न आये अन्यथा पौधा तना विगलन रोग का शिकार हो सकता है । इसके लिए पपीते में बेसिन विधि से सिंचाई करना सर्वोत्तम रहता है । जाड़ों में 10 से 15 व ग्रीष्म ऋतु में पपीते में 7 से 8 दिन के अंतर पर किसान भाई नियमित सिंचाई करें ।
निराई – गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण –
जब पौधा 1 से 1.5 मीटर लम्बा हो जाये । पपीते के पौधों में नियमित रूप से निराई गुड़ाई कर अनावश्यक खरपतवारों को निकाल देना चाहिए । निराई करते समय जड़ें न कटें इसके लिए सावधानी बरतनी चाहिए । पेड़ों की जड़ों पर मिट्टी भी चढ़ा देना चाहिए । जिससे जड़ें खुली न रहें। खरपतवार नियंत्रण हेतु डेलापान या डाययुरोन का छिड़काव करते हैं ।
नर पौधों को उखाड़ने की विधि –
पपीते में रोपाई के 6 माह बाद फूल निकलने लगते हैं । पपीते की खेती में लगभग साल भर में फल आने शुरू हो जाते हैं । फूल आने के बाद मादा तथा नर पौधों में 10 : 1 के अनुपात में रखते हुए बाकी के नर पौधों को उखाड़ देना चाहिए । अतः 100 पौधों के लिए 10 नर पौधें पर्याप्त होते हैं ।
पपीते में कीट नियंत्रण –
रेड स्पाइडर माइट- यह कीट पपीते की पत्तियों का रस चूसता है । जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं ।
कीट नियंत्रण – इस कीट से पौधों के बचाव हेतु प्रभावित पौधों में साइपरमेंथ्रिन 0.15% दवा का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।
पपीते के पौधों में रोग नियंत्रण –
यह तना व जड़ विगलन व आर्द विगलन – एक फफूंदजनित रोग है । तना विगलन रोग पिथियम एकेनीडरमेटस कवक से मृदा द्वार पौधों में फैलता है । इस रोग के प्रभाव से पौधे का तना व जड़ सड़ने लगती है जिससे पौधा मुरझाकर मर जाता है ।
बचाव व रोकथाम :
- इस रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए ।
- जहां पर पपीते की बागवानी हो वहां पर जल निकासी का उचित प्रबन्धन करना चाहिए ।
- तना विगलन से प्रभावित पौधे के तने पर बोर्डो पेस्ट(कॉपर सल्फेट,बुझा हुआ चूना,अलसी का तेल क्रमश: 1:2:3 अनुपात में मिलाकर लगाएं
- प्रभावित पौधे के तने के चारों ओर कम सांद्रता वाला बोर्डो मिश्रण घोल(कापर सल्फेट 6 किलोग्राम बुझा चूना 6 किलोग्राम व 500 लीटर पानी) बनाकर 15 से 20 दिन के अंतर पर छिड़काव करें ।
- तना व जड़ व आर्द विगलन से रोकथाम हेतु ब्लाइटॉक्स – 50 का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर बीजों को बुवाई से पहले अथवा पपीते के बीजों के अंकुरण के समय डालें ।
फलों की छंटाई –
पपीते की खेती से अधिकतम लाभ हेतु फलों की छँटाई महत्वपूर्ण काम है , पौधों से अविकसित छोटे अथवा बौने फलों को हटा देना चाहिए । जिससे फल सुडौल व गुणवत्ता युक्त बने ।
फलों की तुड़ाई –
रोपाई के साल भर बाद फल आने शुरू हो जाते हैं । पपीते से फलों में जब पीलापन आना शुरू हो जाये उनकी तुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए । पपीते के फलों को प्राकृतिक रूप से पकने के इंतजार नही करना चाहिए। इनके फलों को कृत्रिम रूप से पकाना अधिक लाभकारी होता है । पपीते के फलों को कागज अथवा बोरों में लपेटकर रख देते हैं । इस प्रकार रखने से ये फल 3 से 5 दिनों में पक जाते हैं।
पपीते की बागवानी से उपज –
एक हेक्टेयर पपीते की खेती से 250 से 300 कुन्तल उपज प्राप्त होती है।