परवल की खेती की जानकारी

परवल को ट्राइकोसेन्थेस डियोका ( Trichosanthes dioica) या पाॅइंटि‍ड गोड (Pointed gourd) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बेल वाली सब्‍जी फसल है। सब्जी की एक कद्दूवर्गिया फसल है । यह बहुवर्षीय पौध है । जिसके नर तथा मादा फूल अलग – अलग पौधे पर आते है ।
परवल का सब्जियों में विशिष्ट स्थान है । इसके के फल सुपाच्य होते है तथा शरीर के परिसंचरण तंत्र को बल प्रदान करते है इससे मिठाइयां भी बनाई जाती है | परवल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है । परवल भारत में बहुत ही प्रचलित सब्जी है । आज के समय में किसान परवल की खेती करके काफी मुनाफा कमा रहे हैं आप भी परवल की खेती करके आसानी से हजारों लाखों कमा सकते हैं । परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है ।

परवल की खेती सालाना लाखों कमाएँ : Pointed Gourd Cultivation (Parwal Ki Kheti)
परवल की खेती सालाना लाखों कमाएँ : Pointed Gourd Cultivation (Parwal Ki Kheti)

विश्व में परवल की खेती भारत के अतिरिक्त चीन, रूस, थाईलैंड, पोलैंड, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका, मिश्र तथा म्यानमार में होती है। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल तथा तामिलनाडु राज्यों में विस्तारपूर्वक परवल की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश में परवल की खेती मुख्यतया बलरामपुर, बस्ती, गोरखपुर, गोंडा, बस्ती, बलिया. गाजीपुर, वाराणसी, सुलतानपुर एवं अन्य तराई क्षेत्रो में की जाती है । परवल की खेती व्यावसायिक स्तर पर जौनपुर, फैजाबाद, गोण्डा, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया तथा देवरिया जनपदों में होती है। भारत के बिहार में परवल की व्यावसायिक खेती पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, चम्पारण, सीतामढ़ी, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर तथा भागलपुर में होती है। बिहार में विस्तारपूर्वक इसकी खेती मैदानी तथा दियारा क्षेत्रों में की जाती है, परन्तु परवल की खेती बक्सर जिला से राधानगर साहेबगंज जिला तक गंगा दियारा के दोनों किनारों पर विशेष रूप से नगदी फसल के रूप में की जाती है। इसलिए परवल को दियारा क्षेत्रों का ‘ग्रीन गोल्ड’ अथवा ‘गोल्डेन बेजीटेबुल ऑफ़ दियारा’ कहा जाता है।

Pointed Gourd Local Names in India –

Pointed gourd (English), Parwal / Parval (Hindi), Paraval (Marathi and Gujarathi), Patol (Bengali and Assamese),Kommu Potla / Chedu Potla (Telugu), Kambupudalai (Tamil), Kaadu Padaval, Kadu padavala kayi (Kannada), and Patolam (Malayalam)

परवल की खेती करने के लाभ –

1- परवल भारतीय मूल की बहुवार्षिक सब्जी है।
2- यह शीतल, पित्तनाशक, शीघ्र पचने वाला, ह्रदय एवं मस्तिक को बलशाली बनाने वाला तथा दस्तावर होता है।
3- इसका उपयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है।
4- इसमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
5- स्वास्थ्य लाभ कर रहे व्यक्तियों को इसकी सब्जी पथ्य के रूप में दी जाती है।
6- इसकी खेती से अन्य सब्जी फसलों की तुलना में अधिक शुद्ध लाभ मिलता है।
7- फलों की तुड़ाई के बाद कई दिनों तक रखने पर भी खराब नहीं होते हैं। अत: इनका भंडारण कर दूर-दराज के बाजारों में बेचना अत्यंत सरल है।
8- दूर-दूर के शहरों के बाजारों में परवल को ट्रक या रेलगाड़ी द्वारा भेजने पर भी फलों की गुणवत्ता रहती है। अत: इसका विपणन आसान और अधिक लाभप्रद है।

परवल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व तापमान –

परवल गर्म एवं नम जलवायु में अच्छी तरह उगता है | उत्तरी भारत के मैदानों में इसे वर्षा ऋतु की फसल के रूप में उगाया जाता है | यदि पोंधों को वर्षनुवर्शी फसल के रूप में उगाया जाय तो, शीतकाल में लता के उपर का भाग या तो सुसुप्तावस्था में चला जाता है या मर जाता है, परन्तु इस सम्पूर्ण अवधि में जड़े सुसुप्तावस्था में रहती हैं | बसंत ऋतु में तापमान बढने पर लता में कल्ले फुट जाते हैं |

परवल की खेती के लि‍ए भूमि का चुनाव –

परवल भारी मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, परन्तु परवल की अच्छी पैदावार के लिए जल निकासयुक्त दोमट, बलुई दोमट मिट्टी जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हो, अधिक उपयुक्त होती है। परवल को हमेशा ऊँचे स्थान पर लगाना चाहिए, जहां पानी का जमाव नहीं होता हो। उत्तरप्रदेश, बिहार तथा बंगाल में परवल की खेती पान के बरेजों में अंतरावर्ती फसल के रूप में करने की प्रथा अत्यंत पुरानी है, जहां के परवल के फल उच्च कोटि के गुणवत्ता वाले होते हैं। परवल को ठण्डे क्षेत्रों में न के बराबर उगाया जाता है ।

खेत की तैयारी जुताई भूमि की तैयारी-

मई-जून के महीनों में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत को एकबार जुताई कर खुला छोड़ देना चाहिए ताकि हानिकारक कीड़े-मकोड़े मर जायें तथा खरपतवार सुख जायें। लत्तर की रोपाई के लगभग एक महीना पहले मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिला देना चाहिए। लत्तर रोपाई के समय खेत को 3-4 बार देशी हल से जुताई करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा तथा समतल बना लेना आवश्यक है। यदि इसे ऊँची जमीन में लगाना है तो 3 जुताई देशी हल से करके उसके बाद पाटा लगा देना चाहिए

परवल की उन्नत क़िस्में –

परवल की कि‍स्‍में – परवल की प्रमुख उन्नतशील किस्मे निम्नवत है –
परवल में दो प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है,प्रथम क्षेत्रीय प्रजातियां जैसे की बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्यानी, निरिया, संतोखिया एवं सोपारी सफेदा आदि है द्धितीय उन्नतशील प्रजातियां जैसे की एफ. पी.1, एफ. पी.3, एफ. पी.4, एच. पी.1, एच. पी.3, एच. पी.4 एवं एच. पी.5 है इसके साथ ही छोटा हिली, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4 तथा चेस्क सिलेक्शन 1 एवं 2 इसके साथ ही चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 तथा स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा तथा संकोलिया आदि है ।

किस्मे विशेषता
एफ. पी- 1 इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते है, तथा यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश एवं बिहार में उगाई जाती है |
एफ. पी- 3 इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार होते है तथा इनपर हरे रंग की धारियां होती है | तथा ये पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त प्रजाती है |
एफ. पी- 4 इस प्रजाती के फल हलके हरे रंग के एवं पर्वल्याकार होते है, तथा उसर भूमी के लिए उपयुक्त किस्म है, प्रति हेक्टेयर 100-110 कुंतल उपज प्रदान करती है |
राजेन्द्र परवल-1 यह किस्म मुख्या रूप से बिहार के दियारा क्षेत्र में उगाई जाती है |
राजेंद्र परवल-2 ये किस्म यू.पी. एवं बिहार के लिए उपयुक्त है |
स्वर्ण  अलौकिक इस प्रजाति की फल 5-8 से.मी लम्बे;सब्जी तथा मिठाई बनाने हेतु उपयुक्त है |
स्वर्ण रेखा फलो की लम्बाई 8-10  से.मी.; सब्जी तथा मिठाई बनाने हेतु उपयुक्त है |

परवल की बुआई व रोपाई की विधि –

बीज द्वारा परवल के पौधों को तैयार करना

इसे बीज एवं तना कलम के द्वारा प्रसारित कर सकते है |पके फलों से बीज निकालकर सर्वप्रथम इन्हें बालूदार नर्सरी क्यारियों में बोआई कर बिचड़े तैयार कर लेते हैं तथा दो-तीन महीने पुराने बिचड़ों को तैयार खेत में संध्या के समय रोपाई कर पानी दे देना चाहिए। बीजू पौधे कमजोर होते है तथा उनमे लगभग 50 प्रतिशत नर एवं इतनी ही मादा लताये होती है | व्यापारिक फसल के लिए तने के टुकडो का प्रयोग करते हैं | अधिकांश कलम मादा लताओ से लेते हैं | 5-10 प्रतिशत कलम नर लता से लेते है ताकि परागण अच्छा हो सके| सितम्बर – अक्टूबर में बलों के टुकड़े नर्सरी मं लगाते हैं | उनके द्वारा जड़ पकड़ लेने पर उन्हें फरवरी-मार्च में खेतों में लगा देते हैं| कुछ उत्पादक लताओ की कटिंग को अक्टूबर में सीधे ही खेत लगा देते हैं | कलम दो प्रकार से लगाई जाती है |बीज द्वारा परवल की खेती करने में कठिनाई यह है कि नर पौधे अधिक हो जाते है तथा मादा पौधे की संख्या कम होने से उपज घट जाती है। अत: यह विधि लोकप्रिय नहीं हैं।

जड़ों की कलम द्वारा –

इस विधि में जड़ों के साथ तना का 1 या 2 इंच भाग जिस पर पांच-छ: गांठें हो, लगते हैं। इस विधि में पौधे जल्द बढ़ते हैं तथा फलन अगात होती है परन्तु कठिनाई यह है कि बड़े पैमाने पर परवल की रोपाई हेतु अत्यधिक संख्या में जड़ वाली कलमों का उपलब्ध होना एक प्रमुख समस्या भी है।

सीधी लता वाली विधि-

परवल की खेती से सालाना लाखों कमाएँ : Pointed Gourd Cultivation -Parwal Ki Kheti kisani
इसमें 30 से.मी.गहरी नाली खोद कर उसे कम्पोस्ट एवं मिटटी के मिश्रण से भर देते हैं| इसमें 50 से.मी.लम्बी कलम को छोर से दो मीटर के अंतर पर 10 से.मी.की गहराई पर रख देते हैं|

छल्ला विधि –

इसमें 8-10 पर्व वाली 1.0 से 1.5 मीटर लम्बी कलम का अंग्रेजी के आठ के आकार का छल्ला सा बनाते हैं तथा उसे दो मीटर के अंतर पर लगाते हैं| एक बार लगाई हुई लताएँ 4-5 वर्ष तक अच्छी फसल देती हैं| अत: प्रति वर्ष नई लता नहीं रोपते हैं | कलम इस प्रकार लगते हैं कि 8-10 मादा लताओ की कलम के बाद एक नर लता की कलम देते है | एक हैक्टर के लिये 6000 से 7500 कलम की आवश्यकता होती है|

लत्ताओं की लच्छी द्वारा –

इस विधि में सालभर पुरानी लताएँ जिनकी लम्बाई कम से कम 120-150 सेंमी. हो को लच्छी बनाकर रोपते हैं। कहीं-कहीं लच्छी का दोनों किनारा जमीन से ऊपर रखते हैं और बीच का हिस्सा मिट्टी में दबा देते हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार में व्यावसायिक स्तर पर परवल लगाने की यह एक लोकप्रिय विधि है।

बीज का मात्रा –

2500-3000 लताएँ (बेलें) या लच्चियाँ लच्छीयाँ/कटिंग्स/हें. की आवश्यकता होती है।

परवल की खेती हेतु रोपाई का समय –

रोपाई का समय भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग होता है। मैदानी भागों में परवल की रोपनी का उचित समय मध्य जुलाई से अक्टूबर तक और दियारा क्षेत्रों में सितम्बर से अक्टूबर तक होता है।

परवल की रोपाई की विधि –

परवल में अलग-अलग पौधों पर नर और मादा फूल उत्पन्न होते हैं। नर पुष्पों से फल नहीं बनते हैं बल्कि वे मादा पुष्पों में परागण का कार्य करते हैं जिसमें मादा पुष्पों से फल बनना सम्भव होता है। नर पुष्प बड़े और सफेद होते हैं, जबकि मादा पुष्प थोड़ा छोटा और सफेद होता है, उसके नीचे गर्भाश्य जुड़ा रहता है जो कुछ दिनों में परागण के बाद बढ़कर फल बन जाता है। इसका विस्तार लताओं या बेलों द्वारा किया जाता है। परवल लगाने के समय नर और मादा पौधों का अनुपात 1:19 होना अनिवार्य है। उपरोक्त अनुपात नहीं रहने पर उत्पादन में काफी कमी हो जाती है। खेत में कतार से कतार की दूरी 2.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 1.5 मीटर रखना चाहिए साथ ही थल्ले, भूमि की सतह से 6-8 सेंमी. ऊँचाई पर बनाने चाहिए। एक वर्ष पुरानी लताओं से 120-150 सेंमी. लम्बे टुकड़े काटकर इस प्रकार मोड़ना चाहिए कि लच्छी की लम्बाई 30 सेंमी. हो जाये तथा 10 सेंमी. गहरे थालों में इस प्रकार लगाया जाय कि दोनों सिरे ऊपर खुले रहें।

खेत की तैयारी के साथ अच्छी सड़ी गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए. उसके बाद नत्रजन 90 किग्रा. फास्फोरस 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटास को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में देना चाहिए.फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के साथ देना चाहिए बाकि बची हुई नत्रजन को पौधे में फूल आने के समय देना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक

प्रति थाला 3-4 किलोग्राम कम्पोस्ट, 250 ग्राम अंडी की खल्ली, 10 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 25 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश एवं 25 ग्राम एलड्रीन धूल 10 प्रतिशत मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। जिस मिट्टी में चूना की कमी हो उसमें प्रति थाला 100 ग्राम चूना अवश्य मिला देना चाहिए।

एस प्रकार थाला भरकर 10 दिन तक छोड़ देना चाहिए। फरवरी के मध्य में प्रति थाला 20 ग्राम यूरिया का उपरिवेशन तथा मार्च माह के अंत में प्रति वाला यूरिया के बदले 35 ग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेड का व्यवहार करना चाहिए। उर्वरकों के प्रयोग के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

निकाई-गुड़ाई –

रोपनी के बाद और फल लगने के समय तक 4-5 बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए ताकि लताओं की शाकीय वृद्धि तेजी से हो। लताओं के बढ़ जाने पर इसकी अनावश्यक वृद्धि को रोकने के लिए बार-बार लताओं को हाथ से उलटते-पलटते रहना चाहिए। ऐसा करने से गांठों से जड़ें निकलकर जमीन में प्रवेश नहीं कर पाती है और फलन अधिक होता है।

मचान बनाना या सहारा देना –

फरवरी माह में जब पौधों में नये कल्ले फूटने लगते हैं तब मचान बनाने का काम शुरू कर देना चाहिए। परवल के दो कतारों के बीच 2 मी. चौड़ाई में 2-2 मी. की दूरी खम्बे गाड़ते हैं। जमीन की सतह से 1-1.25 मीटर की ऊँचाई पर बांस को लम्बाई-चौड़ाई और बीच में इस प्रकार सुतली से बांधते हैं कि मचान के रूप में बन जाये। मचान के ऊपर अरहर के डंठलों को फैलाकर सुतली से बाँध देना चाहिए। प्रत्येक कतार के साथ 50 सेंमी. खाली स्थान रास्ता छोड़ना चाहिए ताकि दवा का छिड़काव, निकाई-गुड़ाई, सिंचाई तथा फलों की तुड़ाई आदि कृषि क्रियाओं को आसानी-पूर्वक किया जा सके। लताओं को मचान पर अरहर के डंठलों के सहारे चढ़ाना चाहिए। मचान मजबूत बनाना चाहिए ताकि वर्षा ऋतु में गिरने न पाये।

परवल के फलों कटाई तुड़ाई –

साधारणत: मार्च माह के मध्य से पौधों पर फल लगना शुरू हो जाता है। प्रारम्भ में फल लगने के 10-12 दिनों के बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। इस प्रकार मार्च एवं अप्रैल माह में फलों की तोडनी प्रति सप्ताह एक बार तथा मई में प्रति सप्ताह दो बार अवश्य करनी चाहिए। फलों की तोड़ाई मुलायम एवं हरी अवस्था में सूर्योदय से पहले करनी चाहिए। इससे फल अधिक समय तक ताजे बने रहते हैं। परवल की अधिक पैदावार के लिए इसकी बेलों की छटाई करनी पड़ती है अब हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा है बेलों कि छटाई कब की जाए इसकी छटाई करने का उपयुक्त समय पहले साल की फसल लेकर नवम्बर -दिसंबर में 20-30 से.मी.कि बेल छोड़कर सारी बेल काट देनी चाहिए क्योंकि इस समय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है तने के पास 30 से.मी.स्थान छोड़कर फावड़े से पुरे खेत की गुड़ाई कर लेनी चाहिए इस बेलोंका फुटाव कम हो जाता है जिनसे लताएं निकलती है और उनमे मार्च में फल लगने शुरू हो जाते है ।

ऊपज। व पैदावार –

अनुशंसित किस्मों को उन्नत तौर-तरीके से लगाकर प्रथम वर्ष औसतन 75-90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अलग तीन-चार वर्षो तक 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फलों की उपज प्राप्त की जा सकती है। दियारा क्षेत्रों में परवल की पैदावार बाढ़ आने के समय पर निर्भर करती है। यदि बाढ़ अगस्त के मध्य में आयी हो तो औसतन ऊपज 175-200 क्विंटल/हें. प्राप्त होती है। यदि बाढ़ का समय जुलाई माह के मध्य होता है, तो औसतन उपज 80-90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही सीमित रह जाती है। पान के साथ परवल की मिश्रित खेती करने पर फसलों की औसत उपज एक चौथाई ही प्राप्त होती है परन्तु फलों की गुणवत्ता उच्च कोटि की होती है।

लताओं की कटाई-छटाई –

अक्टूबर-नवम्बर में जब पौधों पर फल लगना बंद हो जाता है, तब लताओं को जमीन की सतह से 20-25 सेंमी. तक छोड़कर शेष उपरी भाग को काट देना चाहिए। ऐसा करने से शेष भाग से नई शाखाएँ निकलती है। ये शाखाएँ पुन: मार्च से फल देना शुरू कर देती है।

परवल की पेड़ी ‘रैटून’ फसल –

अक्टूबर-नवम्बर में लताओं की छटाई करने के बाद दूसरे एवं तीसरे वर्ष अच्छी फलन के लिए खेत की निकाई-गुड़ाई करके 200-250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से थालों के चारों तरफ मिट्टी में मिलाकर सिंचाई कर देनी चाहिए। एक वर्ष और दो वर्ष पुरानी पौधों में जब जनवरी-फरवरी माह में नये कल्ले फूटने लगें, तब अच्छी उपज के लिए अनुशंसित खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर अवश्य देनी चाहिए।

परवल की खेती में लगने वाले प्रमुख हानिकारक कीड़े एवं उनकी रोकथाम –

1. लाल भृंग कीट

परवल में पत्ती बनने के समय ही इसका आक्रमण हो जाता है और पत्तियों को खाकर छलनी कर देता है, जिससे पौधे मर जाते हैं। इसकी नियंत्रण के लिए गोयठे की राख में किरासन तेल मिलाकर पत्तों पर प्रात: काल छिड़काना चाहिए। डायमेक्रोन या नुवान का भी छिड़काव 3 मिली. 10 लीटर पानी में घोलकर करना लाभकारी होती है ।
इसे भी पढ़ें – 50+ देशी साग-भाजियों के नाम व गुण के बारे में जाने

लाल भृंग कीट का जैविक रोकथाम-

20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 30 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.

2. फलों की मक्खी –

यह मुलायम फलों की त्वचा के नीचे अंडे देती है जहां से इस कीड़े की गिडार फलों के गुद्दे को खाकर फलों को सड़ा देते हैं जिससे फसल को भारी नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए मालाथियान 1-1.5 मिली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना अत्यंत आवश्यक है। तेज धूप में दवा का छिड़काव नहीं करनी चाहिए।

फल की मक्खी का जैविक नियंत्रण –

20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 450 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.

3. लाही –

ये छोटे-छोटे कीड़े पौधे पर समूह में मौजूद होते हैं तथा ये पौधों के पत्तों एवं नये तनों का रस चुसकर पत्तियों एवं पौधों को पीला बना देते हैं। जिससे पौधे सुखकर मर जाते हैं। इस कीड़े के नियंत्रण के लिए 0.1 प्रतिशत मालाथियान या पाराथियान का छिड़काव सप्ताह में एक बार तब तक करते रहना चाहिए जब तक की कीड़े पूर्णरूप से समाप्त नहीं हो जायें। इस दवा की मात्रा एक हेक्टेयर के लिए 2 लीटर होती है जिसे 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

परवल की खेती में लगने। वाले प्रमुख रोग एवं उनकी रोकथाम –

1. चूर्णिल आसिता –

पौधे के सभी हरे भागों पर सफेद पाउडर दिखाई पड़ता है। बाद में पत्तियाँ सुख जाती है, पौधों की वृद्धि रुक जाती है। नम मौसम में रोग तेजी से फैलता है। इसके नियंत्रण के लिए खेत के आस-पास लत्तरदार फसलों को नहीं उगने देना चाहिए। सल्फेक्स की 2.5 किलोग्राम मात्रा को या कैराथेन की 1 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

परवल की खेती में लगने वाले चूर्णिल आसिता रोग का जैविक रोकथाम-

20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 460 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 20 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.

2. मृदुरोमिल आसिता –

पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे बनते हैं। इन धब्बों को ठीक नीचे पत्ती की निचली सतह पर धूल रंग के फफूंद के जाल दिखाई पड़ते हैं। पत्तियाँ मर जाती हैं और पौधों को बढ़वार रुक जाती है। इसके निदान के लिए इंडोफिल एम.-45 की 2 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
इसे भी पढ़ें – लाल भिंडी की खेती : लाल भिंडी की उन्नतशील खेती की जानकारी

3. फल सड़न रोग –

यह रोग खेत तथा भंडारण में कहीं भी लग सकता है। फलों पर गीले गहरे रंग के धब्बे बनते हैं, ये धब्बे बढ़कर फल को सड़ा देते हैं तथा इन सड़े फलों से बदबू आने लगती है जो फल जमीन से सटे होते हैनं वे ज्यादा रोगी होते हैं। सड़े फल पर रुई जैसा कवक दिखाई पड़ता है। इसके नियंत्रण के लिए फलों को जमीन के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए। इसके लिए जमीन पर पुआल या सरकंडा को बिछा देना चाहिए। इंडोफिल एम-45 की 2 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

4. मोजैक –

यह एक वाइरस जनित रोग है। रोग ग्रस्त पत्तियाँ झुरिदार, छोटी तथा नीचे की ओर मुड़ जाती है। रोगी पौधों के तनों का रंग हरा एवं पीला हो जाता है। रोगग्रस्त फल सफेद हो जाते हैं और फलों का आकार छोटा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगी पौधों को उखाड़कर फेंक देना चाहिए साथ ही साथ रोगर नामक दवा की 0.03 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
परवल की खेती से सालाना लाखों कमाएँ : Pointed Gourd Cultivation -Parwal Ki Kheti kisani

5. सुत्रकृमि –

इसके प्रकोप से जड़ों पर छोटे-छोटे ग्रंथियाँ बन जाती है। छोटी तथा पीली पत्तियों का होना इसका मुख्य लक्षण है। इसके रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों की जड़ों को निकाल देना चाहिए। नीम अथवा अंडी की खल्ली या लकड़ी का बुरादा 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से फसल लगाने के 3 सप्ताह पहले खेत में डालना अत्यंत लाभप्रद होता है। साथ ही इसकी रोकथाम हेतु परवल की खेती गेंदा फूल के फसल चक्र के साथ करनी चाहिए।

परवल की खेती से होने वाली आमदनी –

परवल की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती करने से सभी मदों पर लगभग 20,000/- रूपये का खर्च पड़ता है। यदि कुल 100 क्विंटल परवल की उपज हो जिसे कम से कम 500/- रूपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जाये तो कुल 50,000/- रूपये की आमदनी होती है। इसमें से लागत खर्च के बीस हजार रूपये की शुद्ध आमदनी प्रति हेक्टेयर होती है। इस प्रकार एक रूपये लागत पर परवल की खेती से 1.50 रूपये की शुद्ध प्राप्त होती है।