धान की फसल में कीट नियंत्रण की तकनीक (Pest control techniques in paddy cultivation)
क्रम संख्या | असींचित दशा में | सिंचित दशा में |
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1 | दीमक | दीमक |
2 | जड़ की सूँड़ी | जड़ की सूँड़ी |
3 | पत्ती लपेटक | नरई कीट |
4 | गंधी बग | पत्ती लपेटक |
5 | सैनिक कीट | हिस्पा |
6 | बंका कीट | |
7 | तना बेधक | |
8 | हरा फुदका | |
9 | भूरा फुदका | |
10 | सफेद पीठ वाला फुदका | |
11 | गन्धी बग | |
12 | सैनिक कीट |
दीमक –
यह एक सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर रहते हैं। यह कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व एक राजा होते हैं। श्रमिक पीलापन लिये हुए सफेद रंग के पंखहीन होते है जो उग रहे बीज, पौधों की जड़ों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए। नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
जड़ की सूड़ी –
इस कीट की गिडार उबले हुए चावल के समान सफेद रंग की होती है। सूड़ियॉ जड़ के मध्य में रहकर हानि पहुँचाती है जिसके फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नरई कीट (गाल मिज) –
इस कीट की सूड़ी गोभ के अन्दर मुख्य तने को प्रभावित कर प्याज के तने के आकार की रचना बना देती है, जिसे सिल्वर शूट या ओनियन शूट कहते हैं। ऐसे ग्रसित पौधों में बाली नहीं बनती है।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। नरई कीट के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
पत्ती लपेटक कीट –
इस कीट की सूड़ियॉ प्रारम्भ में पीले रंग की तथा बाद में हरे रंग की हो जाती हैं, जो पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से उसके हरे भाग को खुरच कर खाती हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
हिस्पा –
इस कीट के गिडार पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर फफोले जैसी आकृति बन जाती है।प्रौढ़ कीट पत्तियों के हरे भाग को खुरच कर खाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
बंका कीट –
इस कीट की सूड़ियॉ पत्तियों को अपने शरीर के बराबर काटकर खोल बना लेती हैं तथा उसी के अन्दर रहकर दूसरे पत्तियों से चिपककर उसके हरे भाग को खुरचकर खाती हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। अच्छे जल निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं। बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
तना बेधक –
इस कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अंडा देती है।अंडों से सूड़ियां निकलकर तनों में घुसकर मुख्य सूट को क्षति पहुँचाती हैं, जिससे बढ़वार की स्थिति में मृतगोभ तथा बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई देती हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।तना बेधक कीट के पूर्वानुमान एवं नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे० प्रयोग करना चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
हरा फुदका –
इस कीट के प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं तथा इनके ऊपरी पंखों के दोनों किनारों पर काले बिन्दु पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं, जिससे प्रसित पत्तियां पहले पीली व बाद में कत्थई रंग की होकर नोक से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
भूरा फुदका –
इस कीट के प्रौढ भूरे रंग के पंखयुक्त तथा शिशु पंखहीन भूरे रंग के होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं किल्लों के मध्य रस चूस कर छति पहॅुचाते हैं, जिससे प्रकोप के प्रारम्भ में गोलाई में पौधे काले होकर सूखने लगते हैं, जिसे ‘हापर बर्न’ भी कहते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई करना चाहिए। भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर
सफेद पीठ वाला फुदका –
इस कीट के प्रौढ़ कालापन लिये हुए भूरे रंग के तथा पीले शरीर वाले होते हैं। इनके पंखों के जोड़कर सफेद पट्टी होती है। शिशु सफेद रंग के पंखहीन होते हैं तथा इनके उदर पर सफेद एवं काले धब्बे पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं किल्लों के मध्य रस चूसते हैं, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
गन्धी बग –
इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ लम्बी टांगो वाले भूरे रंग के विशेष गन्ध वाले होते हैं, जो बालियों की दुग्धावस्था में दानों में बन रहे दूध को चूसकर क्षति पहूँचाते हैं। प्रभावित दानों में चावल नहीं बनते हैं।
बचाव व रोकथाम –
धान के खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।गन्धी बग एवं सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
गन्धी बग के नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।
सैनिक कीट –
इस कीट की सूड़ियाँ भूरे रंग की होती हैं, जो दिन के समय किल्लों के मध्य अथवा भूमि की दरारों में छिपी रहती हैं। सूड़ियाँ शाम को किल्लों अथवा दरारों से निकलकर पौधों पर चढ़ जाती हैं तथा बालियों को छोटे–छोटे टुकड़ों में काटकर नीचे गिरा देती हैं।
बचाव व रोकथाम –
खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।