सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय की जानकारी

हमारे देश में सूअर की संख्या एवं मांस उत्पादन विश्व की तुलना में बहुत कम है | इसका मुख्य कारण सामाजिक प्रतिबंध, उचित नस्ल एवं समुचित पालन पोषण का अभाव तथा कुछ खास बीमारियाँ है इसलिए आवश्यक हो जाता है कि समाज के कमजोर वर्ग के आर्थिक उत्थान हेतु सूअर पालन को घरेलू व्यवसाय का रूप दिया जाये | हमारे देश में सूअर पालन एक विशेष वर्ग द्वारा किया जाता है जबकि विदेशों में यह यक बड़ा व्यवसाय बन गया है | हाल के वर्षों में सूअर पालन में अनेक नवयुकों ने रूचि दिखाई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लाभ की प्रत्याशा में जगह – जगह पर सूअर फार्म भी खुल रहे हैं | हमारे देश में सूअर की संख्या एवं मांस उत्पादन विश्व की तुलना में बहुत कम है | इसका मुख्य कारण सामाजिक प्रतिबंध, उचित नस्ल एवं समुचित पालन पोषण का अभाव तथा कुछ खास बीमारियाँ है इसलिए आवश्यक हो जाता है कि समाज के कमजोर वर्ग के आर्थिक उत्थान हेतु सूअर पालन को घरेलू व्यवसाय का रूप दिया जाये |

सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी - Pig farming in Hindi
सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी – Pig farming in Hindi

आज इस पोस्ट में हम सूअर कितने प्रकार के होते हैं, सूअर पालन ट्रेनिंग सेंटर, सुअर का भोजन, Sukar palan, सुअर बाजार, सूअर का मीट,सुअर भारत में बाजार की बिक्री, सुअर की कीमत 2020, सुअर की कीमत 2021 , झारखंड में सूअर पालन,सुअर पालन प्रशिक्षण संस्थान उत्तर प्रदेश,सूअर की सबसे अच्छी नस्ल,सुअर पालन मिशन, सूअर पालन के लिए लोन,Pig farming in india in Hindi, सूअर पालन ट्रेनिंग सेंटर UP, उत्तर प्रदेश में सुअर खेती के लिए ऋण,सुअर फार्म हाउस,सूअर पालन ट्रेनिंग सेंटर आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे वाले हैं ।

सूअर पालन की विशेषताएँ

पालन कम पूंजी एवं कम स्थान से शुरू किया जा सकता है | सूअर पालन में लागत धन की वापसी शीघ्र (9 – 12 माह) होती है | वंश वृद्धि शीघ्र एवं अधिकतम (8 – 12 माह) होती है | शारीरिक वृद्धि 500 – 800 ग्रा. / दिन होता है | आहार उपयोग दक्षता (3.5 : 1) अधिक होती है | उत्पादन में मजदूरी पर कम व्यय (10 प्रतिशत) होता है | बेकार खाध पदार्थ को कीमती उत्पादन में परिवर्तित करने की अद्भुत क्षमता होती है |
पालन कम क्षेत्रफल में किया जा सकता है । बेकार खाध पदार्थ को कीमती उत्पादन में परिवर्तित करने की अद्भुत क्षमता होती है | सूअर पालन में नस्ल सुधार की संभावना शीघ्र होती है | पालन कम क्षेत्रफल में किया जा सकता है |

सूकर की मुख्य प्रजातियाँ

देश में सूकर की काफी प्रजातियाँ हैं लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हल्का सफेद यॉर्कशायर, हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।

सफेद यॉर्कशायर सूकर –

यह प्रजाति भारत में बहुत अधिक पाई जाती है। हालांकि यह एक विदेशी नस्ल है। इसका रंग सफेद और कहीं-कहीं पर काले धब्बे भी होते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं जबकि चेहरा थोड़ा खड़ा होता है। प्रजनन के मामले में ये बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन 300-400 किग्रा. और मादा सुअर का वजन 230-320 किग्रा के आसपास होता है।

लैंडरेस सूकर –

इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर सुअर 270-360 किग्रा. वजनी होता है जबकि मादा 200 से 320 किग्रा. वजनी होती है।

हैम्पशायर सूकर –

इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किग्रा. वजनी होती है।

घुंघरू सूकर –

इस प्रजाति के सूकर पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है।सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं। इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।

रानी, गुवाहाटी के राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र पर घुंगरू सूअरों को मानक प्रजनन, आहार उपलब्धता तथा प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है। भविष्य में प्रजनन कार्यक्रमों में उनकी आनुवंशिक सम्भावनाओं पर मूल्यांकन जारी है तथा उत्पादकता और जनन के लिहाज से यह देशी प्रजाति काफी सक्षम मानी जाती है। कुछ चुनिन्दा मादा घुंगरू सूअरों ने तो संस्थान के फार्म में अन्य देशी प्रजाति के सूकर की तुलना में 17 बच्चों को जन्म दिया है।

सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी - Pig farming in Hindi
सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी – Pig farming in Hindi

सूअर पालन की विधि –

भारत में सूअर की नस्ल –

देशी सूअरों का शरीरिक भार विदेशी सूअरों की अपेक्षा आधा होता है | इनकी प्रजनन क्षमता जैसे – लैंगिक परिपक्वता , बच्चे का जन्म दर भी विदेशी नस्लों की अपेक्षा बहुत कम होता है | इसलिए सूअर पालक को चाहिए कि वे लार्ज हवाइट यार्क शायर या लैंड्रेस नस्ल के सूअर पाले | यह नस्लें यहाँ के वातावरण के लिए उपयुक्त है | इस प्रजाति की मादा 8 माह में व्यस्क हो जाती है तथा वर्ष के अन्दर प्रथम ब्यात, प्रति ब्यात 8 – 12 बच्चे , प्रतिवर्ष दो ब्यात तथा सभी प्रकार के खाद पदार्थों को पौष्टिक मांस में परिवर्तन की अधिकतम क्षमता (3.50 : 1) रखती है | इसके बच्चे एक वर्ष में 70 से 90 किलोग्राम तक शारीरिक वजन प्राप्त कर लेते हैं ।

नस्ल सुधार

विदेशी नस्ल के सूअर पालन से अधिक लाभ है अत: ऐसे सूअर पालक जो देशी नस्ल पाल रखे हैं किसी सरकारी या व्यवस्थित फार्म से इस प्रजाति के बच्चे लेकर प्रजनन द्वारा देशी नस्ल का सुधार करें | इस प्रकार प्राप्त संकर नस्ल के सूअर ऊष्मा एवं रोग प्रतिरोधी होते हैं तथा ग्रामीण परिवेश में भली – भांति पाले जा सकते हैं |

दिन में ही सूकर से प्रसव-

गर्भ विज्ञान विभाग, राँची पशुपालन महाविद्यालय ने सूकर में ऐच्छिक प्रसव के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने मान्यता प्रदान की है। इसमें कुछ हारमोन के प्रयोग से एक निर्धारित समय में प्रसव कराया जा सकता है। दिन में प्रसव होने से सूकर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूकर पालकों को काफी फायदा हुआ है। जन्म देने से एक सप्ताह पहले गर्भवती सुअर को पर्याप्त स्थान, चारा, पानी उपलब्ध कराके उसका विशेष ध्यान रखा जा सकता है |जन्म देने की अपेक्षित तारीख से 3-4 दिन पहले गर्भवती सुअर और साथ ही जन्म देने के स्थान को विसंक्रमित किया जाना चाहिए और अच्छी तरह से बिस्तर बनाने के बाद उसमें सुअर को रखा जाना चाहिए |

सुअर के छौनों के देखभाल का तरीक़ा

सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी - Pig farming in Hindi
सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी – Pig farming in Hindi

– बाड़ उपलब्ध कराके नवजात सुअर के छौने का ख्याल रखना |
– नाल के कटते ही आयोडीन के टिंचर से उसका उपचार/विसंक्रमण किया जाना चाहिए |
– पहले 6-8 सप्ताह माँ के दूध के साथ घोंटा आहार (एक क्रीप आहार उसी समय आरंभ करना चाहिए जब वे अपनी माँ का दूध पी रहे हों) दें |
– विशेष रूप से पहले दो महीनों के दौरान विषम मौसम की स्थिति में सुअर के छौने को सुरक्षित रखें |
– सुअर के छौने माँ के थन को नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए जन्म के बाद शीघ्र ही उनके सुई दांतों को छांट दें |
– मजबूत छौना अपने लिए वह थन सुरक्षित रखता है जिसमें अधिक दूध होता है और किसी भी अन्य छौने को उस चूची से दूध नहीं पीने देता |
– सिफारिश किए गए टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सुअर के छौनों का टीकाकरण करें |
– सुअर के छौनों में एनीमिया को रोकने के लिए आईरन के पूरक की आवश्यकता होती है |
– प्रजनन करने वाले सुअर के रूप में बेचे जाने वाले छौने को ठीक से पाला जाना चाहिए |
– प्रजनन के लिए चयनित नहीं किए गए सुअर के छौनों की अधिमानत: 3-4 सप्ताह की आयु में बधिया की जानी चाहिए जिससे पके मांस में सुअर की गंध को रोका जा सके | सभी नवजात सुअर के छौनों के उचित उपचार के लिए स्तनपान कराने वाली सुअर की अतिरिक्त आहार की आवश्यकताओं को पूरा करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए |

सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी - Pig farming in Hindi
सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी – Pig farming in Hindi

सूअर आवास (बाड़ा)

आवस के लिए पर्याप्त स्थान एवं पानी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए | आवसा में हवा, प्रकाश एवं जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो | मौसम के अनुसार आवास थोडा खुली छत वाला भी हो | फर्श पक्का तथा छत घास – फूस या खपरैल से बना सकते हैं | दीवार की ऊँचाई 4 – 5 फूट रखें | सूअर

सूअर आहार –

छोटे सूअर पालक प्राय: सूअरों को घर में रखकर नहीं खिलते है उन्हें खुले खेतों मैदानों में घुमाकर पलते हैं | सस्ते आहार हेतु घरों , होटलों का बच्चा भोजन एवं जूठन खिला सकते हैं | बेकार सब्जियां फल, फलों के अवशेष, गेहूं का आकार का चोकर, धान की भूसी, बेकार अनाज इत्यादि | सूअर चाव से खाते हैं | सूअर को थोड़ी मात्रा में हरे मुलायम पत्तीदार सब्जियां एवं चारा भी दे सकते हैं | सूअर पालन बड़े पैमाने पर करने हेतु हर वर्ग के लिए अलग – अलग सन्तुलित आहार देना चाहिए जिसे सूअर – पालक स्वयं बना सकते हैं | सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है।सूकरो के दाने में आप मिक्चर-मिनरल्स Chelated Growmin Forte चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट और Immune Booster (Feed Premix) इम्यून बुस्टर प्री-मिक्स मिला कर निम्नलिखित तरीके से दाना तैयार कर सकतें हैं।अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए निम्नलिखित दाना मिश्रण का इस्तेमाल करे –

विभिन्न श्रेणी में सूअर – आहार संरचना (प्रतिशत) –

खाध्य अवयव
शावकों (बच्चों) का आहार
बढ़ते सूअरों का आहार
व्यस्क सूअरों का आहार
दरा मक्का 55 – 58 48  – 52 32 – 36
गेंहू का चोकर / चावल पालिस 18 – 22 20 – 24 40 – 45
मूंगफली की खली 14 – 16 18 – 20 14 – 16
मछली का चुरा 4 – 6 4 – 6 4 – 5
खनिज मिश्रण 2 2 2
साधारण नमक 1 1 1

दैनिक आहार की मात्रा

– ग्रोअर सूकर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
– ग्रोअर सूकर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
– फिनसर पिगः 2.5 किलो दाना मिश्रण।
– प्रजनन हेतु नर सूकरः 3.0 किलो।
– गाभिन सूकरीः 3.0 किलो।
– दुधारू सूकरी: 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
– दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
– गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।
सूकर पालन के लिए दवा और टॉनिक : सूकरों को महीने में एक बार, निम्नांकित दवा अवश्य दें ,ये दवाएं १०० % प्रभावकारी है ,इसकी हम गारंटी देतें हैं ।

ग्रोलिवफोर्ट (Growlive Forte)

प्रति सूकर महीने में ग्रौलिव फोर्ट दस दिनों तक अवस्य दें । ग्रोलिवफोर्ट(Growlive Forte) के अनेको फायेदें हैं । यह दवा सूकरों के लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी लिवर और किडनी से सम्बंधित बीमारी से बचाता है । सूकरों को दस्त और कब्ज की स्थिति में काफी फायदेमंद है और उनका उपचार करता है । सूकरों के खाने की छमता को बढ़ाता है और जो दाना सूकर खातें हैं वो उनके शरीर में तुरंत काम करता है और सूकरों के खाने के खर्चे में कमी आती है । सूकरों के पाचन शक्ति को काफी मजबूत करता है। सूकरों में फ़ीड रूपांतरण अनुपात को बढ़ाता है।सूकरों में दूध बढाने में मदद करता है।ग्रौलिव फोर्ट सूकरों की भूख बढ़ता है और पाचन शक्ति को सुदृढ़ करता है ,जो की सूकरों के वजन को तेजी से बढ़ने में मदद करता है।

अमीनो पॉवर (Amino Power)

प्रति सूकर महीने में अमीनो पॉवर दस दिनों तक अवस्य दें ।अमीनो पॉवर(Amino Power) 46 शक्तिशाली अमीनो एसिड, विटामिन और खनिज का एक अनोखा मिश्रण है और इसके उल्लेखनीय परिणाम है। ये दवा पशु डॉक्टरों द्वारा हमेशा देने की सिफारिश की गई है । यह एक सुपर और शक्तिशाली टॉनिक है जो सूकरों के तेजी से वजन बढ़ने, स्वस्थ विकास रोगों प्रतिरोधी के लिए काफी उपयोगी है ।विटामिन , प्रोटीन और सूअरों में पोषण संबंधी विकारों के सुधार के लिए काफी उपयोगी हैं । किसी भी तनाव और बीमारियों के बाद एक त्वरित ऊर्जा बूस्टर के रूप में काम करता हैं ।सूकरों में दूध बढाने में मदद करता है ।

इसके अलावा सूकरों के बाड़ें में नियमित रूप से विराक्लीन का छिड़काव करें ,उनके खाने के नाद को इससे सफाई , इससे फायदा ये होगा की बीमारी और महामारी फैलने का डर काम रहेगा । आप सूकरों के चारे में नियमित रूप से ग्रोवेल का मिक्चर-मिनरल्स Chelated Growmin Forte चिलेटेड ग्रोमिन फोर्ट और Immune Booster (Feed Premix) इम्यून बुस्टर प्री-मिक्स भी दे सकतें हैं ,इन सभी दवाईयों और टॉनिक देने से फायदा ये होगा की उनका वजन तेजी से बढ़ेगा और आपका खर्च काम और लाभ अधिक होगा ।बस एक बार हमारी सलाह को अपना कर देखें ,आपको फायदा ही फायदा होगा आपके सुकर पालन के ब्यवसाय में।

सूअर को होने वाले रोग

सूअर पलकों को चाहिए कि सूअर ज्वर तथा खुरपका – मुंहपका से बचाव के लिए ढाई से तीन माह की आयु में टीकाकरण करें | अत: परजीवियों के नियंत्रण के लिए पिपराजीन दवा 4 ग्राम / 10 किलोग्राम आहार की दर से , आधा दाने में सुबह तथा आधा डेन में शाम को दें | दुसरे दिन 4 ग्राम थायोवेंडालाज / किलोग्राम आहार में मिलाकर देने से लार्वा व बड़े कृमि दोनों मर जाते हैं | दवा देने से पूर्व सूअरों को थोडा भूखा रखते हैं ताकि दवा मिश्रित आहार पुर्न रूप से खा सकें |

उत्पादकता को प्रभावित करने और जानवर की असामयिक मौत का कारण बन सकने वाली विभिन्न बीमारियों से सुअरों की रक्षा के लिए निम्नलिखित टीके प्रदान किए जाने चाहिए |

क्र.सं.

रोग का नाम

टीके का प्रकार

टीकाकरण का समय

प्रतिरक्षा की अवधि

टिप्पणी

1 बिसहरिया (एंथ्रेक्स) स्पोर टीका साल में एक मानसून –पूर्व टीकाकरण एक मौसम
2 हॉग हैजा क्रिस्टल वायलेट टीका दूध छुड़ाने के बाद एक साल
3 खुर और मुँह की बीमारी पॉलीवेलेंट टिशु कल्चर टीका लगभग छह महीने की उम्र में चार महीने के बाद बूस्टर के साथ एक मौसम हर साल अक्टूबर/नवंबर में टीकाकरण दोहराएं
4 स्वाइन इरिसिपेलास फिटकिरी में उपचारित टीका दूध छुड़ाने के बाद 3-4 सप्ताह के बाद एक बूस्टर खुराक के साथ लगभग एक साल
5 तपेदिक बी सी जी टीका लगभग छह महीने की उम्र में एक से दो साल हर 2 या 3 साल में दोहराया जाना चाहिए

 

सूअर के उपयोग एवं फायदे –

सूअर वध से 80 प्रतिशत खाने योग्य मांस प्राप्त होता है जिसमें 15 – 20 प्रतिशत प्रोटीन होता है | इसके अलावा ऊर्जा, खनिज (फास्फोरस, लोहा) एवं विटामिन (थायमिन, रिबोफ्लेविन, नाईसिन, बी – 12) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं |लगभग 200 – 300 ग्राम बाल प्रति सूअर प्राप्त होता है जिससे शेविंग, धुलाई, चित्रकारी के ब्रश, चटाइयां एवं पैराशूट के सीट बनाये जाते हैं | चर्म उधोग में सूअर चर्म की अत्यधिक मांग है | चर्बी पशु आहार, मोमबत्ती, उर्वरक, शेविंग, क्रीम, मलहम तथा रसायन बनाने के काम आता है | सूअर रक्त , चीनी शुद्ध करने , बटन, जूतों की पालिश, दवाईयाँ, ससेज, पशु आहार, खाद, वस्त्रों की रंगाई – छपाई हेतु प्रयोग किया जाता है | अन्त:स्रावी ग्रंथियाँ जैसे एड्रिनल, पैराथायरायड, थायमस, पियूश ग्रंथि, अग्नाशय, थायरायड, पिनियल, इत्यादि से मनुष्यों के लिए दवाइयां एवं इंजेक्शन बनाये जाते हैं | सूअर से प्राप्त कोलेजन से औधोगिक सरेस एवं जिलेटिन बनाया जाता है । हड्डियाँ, खुर व आतों का प्रयोग कई तरह के औधोगिक उत्पाद बनाने में किया जाता है ।

सूकर पालन में आने वाला खर्च

सुअर पालन की शुरुआत करते समय मुख्य रूप से रहने की व्यवस्था, मजदुर- कर्मचारी , भोजन सामग्री, प्रजनन और दवाओं पर खर्च होता है। यदि कोई व्यक्ति 20 मादा सुअर का पालन करता है तो इस हिसाब से 20 वर्ग गज के लिए 150 रुपए प्रति वर्ग गज के हिसाब से 60,000 रूपए, 2 सुअर के लिए 70 प्रतिवर्ग गज के हिसाब से 25,200 रूपए, स्टोर रूम पर आने वाला खर्च लगभग 30,000 रूपए और लेबर में आने वाला खर्च लगभग 60,000 रूपए सालाना खर्च आता है। यदि देखा जाए तो पहले सालाना खर्च लगभग 2,80,000 रूपए आता है। दूसरे साल में इनके प्रजनन और बच्चों पर आने वाला खर्च लगभग 3,00,000 रूपए के आस-पास आता है। इसके अलावा पहले साल का लाभ लगभग 21,200 रूपए, दूसरे साल का लाभ 7,80,000 रूपए और तीसरे साल 16,50,000 रूपए होता है। आने वाले वर्षों में यह आय इसी क्रम में बढ़ती जाती है। आने वाले खर्च के विपरीत किसान इस व्यवसाय से एक अच्छी आय आर्जित सकते हैं।

सुअर पालन के लिए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता –

सुअर पालन के लिए सरकार ऋण भी उपलब्ध करवाती है। इस व्यवसाय की शुरुआत के लिए वैसे तो आने वाला खर्च उनकी संख्या, प्रजाति और रहने की व्यवस्था पर निर्भर करता है। व्यवसाय में आने वाले खर्च के लिए कुछ सरकारी संस्था जैसे नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा ऋण सुविधा उपलब्ध है। बैंकों और नाबार्ड द्वारा दिए जाने वाले इस ऋण पर ब्याज दर और समयावधि अलग-अलग होती है। वैसे ऋण पर ब्याजदर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष होती है। इस व्यवसाय के लिए कागजी कार्यवाही के बाद ऋण आसानी से मिल जाता है। हालांकि किसान को निश्चित समयावधि के दौरान लिया गया कर्ज चुकाना होता है। अधिक जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बैंक अथवा नाबार्ड के कार्यालय से इसकी जानकारी ले सकते हैं।

सुअर पालन प्रशिक्षण संस्थान

सुअर पालन व्यवसाय करने के पहले उसका प्रशिक्षण लेना आवश्यक है जिससे कि यदि कोई समस्या आती है तो व्यवसायी उससे स्वयं निपटने की क्षमता रखे। अगर आप ग्रोवेल एग्रोवेट के वेबसाइट पर सुकर पालन से सम्बंधित किताबें और लेख अच्छी तरह से पढेंगें और समझेंगें तो आप खुद सुकर पालन से सम्बंधित विशेषज्ञ बन जायेंगें ।
सुअर पालन का प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थान हैं। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसन्धान केंद्र, पशु चिकित्सा विद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों को समय-समय पर सुअर पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। आचार्य एन.जी. रंगाराव कृषि विश्वविद्यालय, एआईसीआरपी आंध्र प्रदेश, एआईसीआरपी आनंद कृषि विश्वविद्यालय, एआईसीआरपी जबलपुर और आईवीआरआई इज्जतनगर आदि संस्थानों में शोधकार्य होता है।

सूकर का विपणन और बाजार

सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी - Pig farming in Hindi
सुअर खेती : सूअर पालन व्यवसाय उन्नत जानकारी – Pig farming in Hindi

वैसे तो भारत और नेपाल में सुकर की मांस की काफी अच्छी मांग है। हालांकि क्षेत्रीय मांग के अलावा विदेशों में भारत से इसके मांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह ऐसा पशु है जिसके मांस से लेकर चर्बी तक को काम में लिया जाता है। भारत से लगभग 6 लाख टन से ज्यादा सुअर का मांस दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। इसके मांस का प्रयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधनों और कैमिकल के रूप में प्रयोग होता है इसलिए यह व्यवसाय किसानों के लिए लाभकारी है जिससे वो अच्छा लाभ ले सकते हैं

संकर सूकर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें –

देहाती सूकर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है। विलायती सूकर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है। विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूकर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूकर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूकर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ। इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है । इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है। एक बड़ा सूकर 3 किलों के लगभग दाना खाता है। इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए। साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूकर की नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा देशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शरीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति देसी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है। सूकर पालन के लिए जरुरी है एक ऐसे स्थान का चुनाव करना जो थोड़ा खुले में हो और आसानी से इन पशुओं के रहने की व्यवस्था हो सके। यदि 20 सुअर हैं तो उनके लिए कम से कम 2 वर्ग मीटर प्रति सुअर रहने का स्थान उपलब्ध हो। साथ ही उनके प्रजनन के लिए स्थान होना आवश्यक है।

सूकर पालन व्यवसाय में कितना लाभ होता है ? सूकर पालन से होने वाले फ़ायदे –

पूरी तरह विकसित सूकर की कीमत 8 हजार रुपये, महज एक नर और एक मादा से कोई भी इस धंधे को शुरु कर सकता है। एक बार में छह या इससे ज्यादा सूकर के बच्चे पैदा होते हैं, इस तरह तीन महीने के अंदर 10 सूअर हो जाता है। सूकर का एक बच्चा करीब ढाई हजार रुपये में बिकता है, पूर्ण विकसित सूकर आठ हजार रुपये में तक बिकता है। दो एकड़ जमीन पर एक बार में 50 सूअर का पालन हो सकता है। एक साल में एक हजार सूअर का उत्पादन कर 30 लाख रुपये कमाई की जा सकती है।