धान के पौधों में कीटों के प्रकोप का आर्थिक क्षति स्तर कैसे जाने-धान की खेती में आर्थिक क्षति स्तर के अनुसार पादप रक्षा प्रबंधन
क्रम संख्या | कीट का नाम | फसल की अवस्था | आर्थिक क्षति स्तर |
१ | जड़ की सूड़ी | वानस्पतिक अवस्था | 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे |
२ | नरई कीट | वानस्पतिक अवस्था | 5 प्रतिशत सिल्वर सूट |
३ | पत्ती लपेटक | वानस्पतिक अवस्था | 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज |
४ | हिस्पा | वानस्पतिक अवस्था | अवस्था 2 प्रकोपित पत्ती या 2 प्रौढ़ प्रति पुंज |
५ | बंका कीट | वानस्पतिक अवस्था | 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज |
६ | तना बेधक | बाली अवस्था | 5 प्रतिशत मृत गोभ प्रति वर्ग मी० |
७ | हरा फुदका | वानस्पतिक एवं बाली अवस्था | 1-2 कीट प्रति वर्ग मी० अथवा 10-20 कीट प्रति पुंज |
८ | भूरा फुदका | वानस्पतिक एवं बाली अवस्था | 15-20 कीट प्रति पुंज |
९ | सफेद पीठ वाला फुदका | वानस्पतिक एवं बाली अवस्था | 15-20 कीट प्रति पुंज | |
१० | गन्ध बग | बाली की दुग्धावस्था | 1-2 कीट प्रति पुंज | |
११ | सैनिक कीट | बाली की परिपक्वता की अवस्था | 1 4-5 सूड़ी प्रति वर्ग मी० |
धान की फसल में लगने वाले कीटों नियंत्रण के उपाय :
- खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना
- समय से रोपाई करना चाहिए।
- फसल की साप्ताहिक निगरानी करना चाहिए।
- कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए।
- दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
- उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए।
- जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई करना चाहिए।
- अच्छे जल निकास वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं।
- तना बेधक कीट के पूर्वानुमान एवं नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे० प्रयोग करना चाहिए।
- नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है।
- ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर पार कर गया हो तो निम्नलिखित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
दीमक एवं जड़ की सूड़ी के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 ली०प्रति हे० की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए। जड़ की सूड़ी के नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी 10 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में बुरकाव भी किया जा सकता है।
- नरई कीट के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
- मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
- फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
- थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
- डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
- क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
- क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
- एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
- क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
- क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
- ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
- मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
गन्धी बग एवं सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।
- मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
- मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
- फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
गन्धी बग के नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।
- तना बेधक कीट के आंकलन एवं नियंत्रण हेतु फेरोमोन प्रपंच का प्रयोग करना चाहिए।
- खेत में यथा सम्भव वर्ड पर्चर का प्रयोग करना चाहिए।
- पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण हेतु बेर की झाडियों से फसल के उपरी भाग परघुमा देने से पत्तियॉ खुल जाती हैं,जिससे सूड़ियॉ नीचे गिर जाती है।
(स) जैविक नियंत्रणः
- खेत में मौजूद परभक्षी यथा मकड़ियॉ, वाटर वग, मिरिड वग, ड्रेगन फ्लाई,मिडोग्रासहा पर आदि एवं परजीवी यथा ट्राइकोग्रामा (बायो एजेण्ट्स) कीटों कासंरक्षण करना चाहिए।
- परजीवी कीटों को प्रयोगशाला में सवंर्धित कर खेतों में छोड़ना चाहिए।
- शत्रु एवं मित्र (2:1) कीटों का अनुपात बनाये रखना चाहिए।
- आवश्यकतानुसार बायोपेस्टीसाइड्स का प्रयोग करना चाहिए।
(द) रासायनिक नियंत्रणः
- कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु कीटनाशी रसायनों का प्रयोग अंतिम उपाय के रूप में करना चाहिए।
- सुरक्षित एवं संस्तुत रसायनों को उचित समय पर निर्धारित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
- रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानियॉ अवश्य बरतनी चाहिए।
- खरपतवार नाशकों का प्रयोग दिशा-निर्देशों के अनुसार ही करना चाहिए।
धान की फसल पर लगने वाले प्रमुख रोग :
- क्र०सं० रोग क्र०सं० रोग
- 1 1. सफेदा रोग 5 भूरा धब्बा
- 2 2. खैरा रोग 6 जीवाणु झुलसा
- 3 3. शीथ ब्लाइट 7 जीवाणु धारी
- 4 4. झोंका रोग 8 मिथ्य कण्डुआ
सफेदा रोगः
यह रोग लौह तत्व की कमी के कारण नर्सरी में अधिक लगता है। नई पत्ती कागज के समान सफेद रंग की निकलती है।
बचाव व रोकथाम –
सफेदा रोग के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
खैरा रोगः
यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
खैरा रोग के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 20-25 किग्रा० प्रति हे० की दर से बुवाई/रोपाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है।
जीवाणु झुलसा/जीवाणुधारी रोगः
के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.50 किग्रा० प्रति हे० की दर से 10-20 किग्रा० बारीक बालू में मिलाकर बुवाई/रोपाई से पूर्व उर्वरकों की तरह से बुरकाव करना लाभप्रद होता है। उक्त बायो पेस्टीसाइड्स की 2.50 किग्रा० मात्रा को प्रति हे० 100 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाया जा सकता है।
शीथ ब्लाइटः
इस रोग में पत्र कंचुल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिसका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का होता है।
बचाव व रोकथाम –
शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। शीथ ब्लाइटः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
ट्राइकोडर्मा विरडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5-10 ग्राम प्रति ली० पानी (2.5 कि०ग्रा०) 500 ली० पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव।
- 1 कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
- 2 थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
- 3 हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
- 4 प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत र्इ०सी० 500 मिली०
- 5 कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
झोंका रोगः
इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डण्ठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं।
बचाव व रोकथाम –
झोंका रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। झोंका रोग के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- 1 कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
- 2 एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
- 3 हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
- 4 मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
- 5 जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
- 6 कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
- 7 आइसोप्रोथपलीन 40 प्रतिशत र्इ०सी० 750 मिली प्रति हे०
- 8 कासूगामाइसिन 3 प्रतिशत एम०एल० 1.15 ली० प्रति हे०
भूरा धब्बाः
इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अण्डाकार धब्बे बन जाते हैं। इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिये हुए कत्थई रंग का होता है।
बचाव व रोकथाम –
भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये | भूरा धब्बा के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- 1 एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
- 2 मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
- 3 जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
- 4 जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
- 5 थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
जीवाणु झुलसाः
इस रोग में पत्तियाँ नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारीः के नियंत्रण हेतु 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० के साथ मिलाकर प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
जीवाणु धारीः
इस रोग में पत्तियों पर नसों के बीच कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियॉ बन जाती हैं |
बचाव व रोकथाम –
जीवाणु धारी रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।
मिथ्या कण्डुआः
इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले हो जाते हैं।
बचाव व रोकथाम –
मिथ्य कण्डुआ रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। मिथ्य कण्डुआ के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
- कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
- कापर हाइड्राक्साइड 77 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०