चीकू की खेती | चीकू उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक | Sapota Farming

चीकू ( Chiku ) या सपोटा (Sapota), सैपोटेसी कुल का पौधा है। भारत में चीकू अमेरिका के उष्ण कटिबन्धीय भाग से लाया गया था। चीकू का पक्का हुआ फल स्वादिष्ट होता है। चीकू के फलों की त्वचा मोटी व भूरे रंग का होती है। इसका फल छोटे आकार का होता है जिसमें 3 – 5 काले चमकदार बीज होते हैं।

चीकू की खेेेेती फल उत्‍पादन तथा लेटेक्स उत्पादन के लिए की जाती है। चीकू के लेटेक्‍स का उपयोग चूइंगम तैयार करने के लिए किया जाता है। भारत में चीकू की खेती मुख्यत: फलों के लि‍‍‍ए की जाती है। चीकू फल का प्रयोग खाने के साथ-साथ जैम व जैली आदि बनाने में किया जाता है।

चीकू फल के लाभ | Benwfits of Chiku Sapota Fruits

चीकू में विटामिन ए, ग्लूकोज, टैनिन, जैसे तत्‍व पाऐ जाते है जो कब्ज, एनिमिया , तनाव , बवासीर और ज़ख़्म को ठीक करने के लिए सहायक होतेे हैं ।
चीकू में कुछ खास तत्व पाए जाते हैं जो श्वसन तंत्र से कफ और बलगम निकाल कर और पुरानी खांसी में राहत देता हैं। चीकू में लेटेक्स अच्छी मात्रा में पाया जाता हैं इसलिए यह दाँत की कैविटी को भरने के लिए भी इस्तेमाल किया
जाता हैं।
चीकू की व्यावसायिक खेती | Sapota Commercial Farming

भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में इसकी बड़े क्षेत्रफल में खेती की जाती है। इस फल को उपजाने के लिये बहुत ज्यादा सिंचाई और अन्य रख-रखाव की जरूरत नहीं है। थोड़ा खाद और बहुत कम पानी से ही इसके पेड़ फलने-फूलने लगते हैं।

चीकू शेक के फायदे | Benefits of Chiku Sapota Sake

ठन्डे मीठे दूध या आइसक्रीम में चीकू को मिलाकर बनने वाले चीकू मिल्क शेक या चीकू शेक के फायदे कई तरह के है जिनमे खास तोर पर इसमें मोजूद प्राकृतिक ग्लूकोज एनर्जी,विटामिन A आँखों के लिए और विटामिन b स्किन के लिए साथ ही साथ चीकू में मोजूद कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन जैसे तत्व हड्डियों के लिए फायदेमंद है। चीकू को सीधे खाने के अलावा चीकू की चटनी ,चीकू का हलवा और चीकू की खीर, जैम, जैली,जूस बना कर भी खाया जाता है

चीकू के नुकसान | Side Effect of Chiku Sapota

किसी भी चीज की अति बहुत ही नुकसान दायक होती उसी तरह इसको ज्यादा खाने के भी कुछ नुकसान है चीकू के नुकसान या चीकू खाने के साइड इफ़ेक्ट की बात करे तो आधिक मात्रा में खाने से वजन बढ़ने और पेट में दर्द होने के साथ मुह में छाले तक हो सकते है 100 gm तक की मात्रा में चीकू का सेवन हर दिन करना फायदेमंद होता है

चीकू की तासीर

चीकू तासीर में शीतल होता है और गुणों में चीकू में टैनिन प्रचुर मात्रा में होने से ये पित्तनाशक, और पौष्टिक होता है इसका स्वाद मीठा और रूचिकारक होता है ।

चीकू की खेती के लिए जलवायु | Climate for Sapota Farming | Chiku ki Kheti

गर्म जलवायु में लगभग सभी तरह की भूमि में की जाने वाली चीकू की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ, बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है।

पौधे लगाने का समय | Sapota Gardening Time

जुलाई से सितम्बर

चीकू की किस्मे | Advanced Varities For Sapota Farming

देश में चीकू की कई किस्में प्रचलित हैं। उत्तम किस्मों के फल बड़े, छिलके पतले एवं चिकने और गूदा मीठा और मुलायम होता हैं। क्रिकेट बाल, कालीपत्ती, भूरी पत्ती, पी.के.एम.1, डीएसएच-2 झुमकिया, आदि किस्में अति उपयुक्त हैं।

चीकू तीन तरह के होते है जिनमे

1 लम्बा गोल,2 साधारण लम्बा गोल,
3 गोल

काली पत्ती:

यह किस्म 2011 में जारी की गई है। यह अधिक उपज
वाली और अच्छी गुणवत्ता वाली किस्म है। इसके फल अंडाकार और कम बीज वाले होते हैं जैसे 1-4 बीज प्रति फल में होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 166 किलो प्रति वृक्ष होती है। फल मुख्यत: सर्दियों में पकते हैं।

क्रिकेट बाल:

यह किस्म 2011 में जारी की गई है। इसके फल बड़े, गोल आकार के होते हैै तथा गुद्दा दानेदार होता है । ये फल ज्यादा मीठे नहीं होते। इसकी औसतन पैदावार 157 किलो प्रति वृक्ष होती है।

बारामासी:

इस किस्म के फल मध्यम व गोलाकार होते हैं।

चीकू का पोधा सबसे आधिक चीकू के बीज द्वारा ही लगाया जाता है हालांकि कुछ व्यावसायिक स्तर पर इसे ग्राफ्टिंग और ऐसी ही अन्य तरीको से लगाया जाता हैं।
जुलाई से लेकर सितम्बर तक चीकू के पौधे लगाये जा सकते है।

पौधे की रोपाई | Plantation Methods for Chiku Farming

| Plantation Methods for Chiku Farming

चीकू की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जोताई करके ज़मीन को समतल करें। रोपाई के लिये गर्मी के दिनों में ही 7-8 मी. दूरी पर वर्गाकार विधि से 90 x 90 से.मी. आकार के गड्ढे तैयार कर लेना चाहिए। गड्ढा भरते समय मिट्टी के साथ लगभग 30 किलोग्राम गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद, 2 किलोग्राम करंज की खली एवं 5-7 कि.ग्रा. हड्डी का चूरा प्रत्येक गड्ढे के दल से मिला कर भर देना चाहिये। एक बरसात के बाद चीकू के पौधे को गढढे के बीचों बीच लगा दें तथा रोपने के बाद चारों ओर की मिट्टी अच्छी तरह से दबा कर थावला बना दें।

चीकू के पौधे को शुरुआत में दो – तीन साल तक विशेष रख-रखाव की जरूरत होती हैं।चीकू के एक पेड़ को करीब पांच से आठ साल लगते पूरी तरह फल देने लायक बनने में चीकू की घर पर पॉट में लगाना या अपने घर की छत पर किसी कंटेनर में भी लगाया जा सकता चीकू के रूट विकास के लिए एक पर्याप्त आकार का पॉट लेना है जो की व्यास में 18-24 इंच से आधिक और ऊंचाई में 20 ईंच से आधिक हो ।

खाद और उर्वरक | Nutrition Management for Cheeku Sapota Farming

पेड़ों में प्रतिवर्ष आवश्यकतानुसार खाद डालते रहना चाहिये जिससे उनकी वृद्धि अच्छी हो और उनमें फलन अच्छी रहें। रोपाई के एक वर्ष बाद से प्रति पेड़ 2-3 टोकरी गोबर की खाद, 2-3 कि.ग्रा. अरण्डी करंज की खली एवं एन.पी.के.की आवश्यक मात्रा प्रति पौधा प्रति वर्ष डालते रहना चाहिये। यह मात्रा 10 वर्ष तक बढ़ाते रहना चाहिए

तत्पश्चात 2200 : 3100 : 850 ग्रा. यूरिया : फॉस्फेट : पोटाश की मात्रा प्रत्येक वर्ष देना चाहिए। खाद एवं उर्वरक देने का उपयुक्त समय जून-जुलाई
है। खाद को पेड़ के फैलाव की परिधि के नीचे 50-60 सें.मी.चौड़ी व 15 सें.मी. गहरी नाली बनाकर डालने से अधिक फायदा होता है।

चीकू में समय समय पर दिए जाने वाले खाद और उर्वरक की बात करे नत्रजन सुपरफास्फेट व पोटाश के बजाय हम अपने खेतो में केंचुएं से बनी हुयी खाद का प्रयोग करके भी चीकू की खेती में अच्छे परिणाम पाये जा सकते है।

चीकू में अंतरफसली | Inter Cropping In Sapota Cultivation

| Inter Cropping In Sapota Cultivation

सिंचाई की उपलब्धता और जलवायु के आधार पर अनानास और कोकोआ, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, मटर, कद्दू, केला और पपीता को अंतरफसली के तौर पर उगाया जा
सकता है।

चीकू फसल का रख-रखाव | Caring Management for Sapota Cropping

| Caring Management for Sapota Cropping

चीकू के पौधे को शुरुआत में दो-तीन साल तक विशेष रख-रखाव की जरूरत होती है। उसके बाद बरसों तक इसकी फसल मिलती रहती है। जाड़े एवं ग्रीष्म ऋतु में
उचित सिंचाई एवं पाले से बचाव के लिये प्रबंध करना चाहिये।

छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिये पुआल या घास के छप्पर से इस प्रकार ढक दिया जाता है कि वे तीन तरफ से ढके रहते हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा धूप एवं प्रकाश के लिये खुला रहता है। चीकू का सदाबहार पेड़ बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है।

इसका तना चिकना होता है और उसमें चारों ओर लगभग समान अंतर से शाखाएँ निकलती है जो भूमि के समानांतर चारों ओर फ़ैल जाती है। प्रत्येक शाखा में
अनेक छोटे-छोटे प्ररोह होते हैं, जिन पर फल लगते है। ये फल उत्पन्न करने वाले प्ररोह प्राकृतिक रूप से ही उचित अंतर पर पैदा होते हैं और उनके रूप एवं आकार में इतनी सुडौलता होती है कि उनको काट-छांट की आवश्यकता नहीं होती।

चीकू के पेड की काट-छाँट

पौधों की रोपाई करते समय मूल वृंत पर निकली हुई टहनियों को काटकर साफ़ कर देना चाहिए। पेड़ का क्षत्रक भूमि से 1 मी. ऊँचाई पर बनने देना चाहिए। जब
पेड़ बड़ा होता जाता है, तब उसकी निचली शाखायें झुकती चली जाती है और अंत में भूमि को छूने लगती है तथा पेड़ की ऊपर की शाखाओं से ढक जाती है।इन शाखाओं में फल लगने भी बंद हो जाते हैं। इस अवस्था में इन शाखाओं को छाँटकर निकाल देना चाहिये।

चीकू के पेड की काट-छाँट

पौधों की रोपाई करते समय मूल वृंत पर निकली हुई टहनियों को काटकर साफ़ कर देना चाहिए। पेड़ का क्षत्रक भूमि से 1 मी. ऊँचाई पर बनने देना चाहिए। जब
पेड़ बड़ा होता जाता है, तब उसकी निचली शाखायें झुकती चली जाती है और अंत में भूमि को छूने लगती है तथा पेड़ की ऊपर की शाखाओं से ढक जाती है।

इन शाखाओं में फल लगने भी बंद हो जाते हैं। इस अवस्था में इन शाखाओं को छाँटकर निकाल देना चाहिये।
पुष्पन | Flowering in Sapota Farming

वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार चीकू के पौधों में दो वर्षो के बाद फूल एवं फल आना आरम्भ हो जाता है। इसमें फल साल में दो बार आता है, पहला फरवरी से
जून तक और दूसरा सितम्बर से अक्टूबर तक।

फूल लगने से लेकर फल पककर तैयार होने में लगभग चार महीने लग जाते हैं। चीकू में फल गिरने की भी एक गंभीर समस्या है। फल गिरने से रोकने के लिये पुष्पन के समय फूलों पर जिबरेलिक अम्ल के 50 से 100 पी.पी.एम. अथवा फल लगने के तुरन्त बाद प्लैनोफिक्स 4 मिली./ली.पानी के घोल का छिड़काव करने से फलन
में वृद्धि एवं फल गिरने में कमी आती है।

चीकू में लगने वाले रोग और उपचार | Plant Protection Management in Sapota Gardening

चीकू में लगने वाला एक प्रमुख रोग है जिसमे पोधे की की पत्तिायों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। उसके नियन्त्रण के लिये मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से हर 15 दिन में छिडकाव करते रहना चाहिए जिससे चीकू की

एक रिपोर्ट के अनुसार एक हैक्टेयर में चीकू की अच्छी तरह बागवानी और खेती करके पांच महीने में 5 लाख से भी ज्यादा कमाया जा सकता हैं।

चीकू के कीट और रोकथाम

चीकू के पौधों पर रोग एवं कीटों का आक्रमण कम होता है। लेकिन कभी-कभी उपेक्षित बागों में पर्ण दाग रोग तथा कली बेधक, तना बेधक, पप्ती लपेटक एवं
मिलीबग आदि कीटों का प्रभाव देखा जता है।

पत्ते का जाला:

इससे पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। जिससे पत्ते सूख जाते हैं और वृक्ष की टहनियां भी सूख जाती हैं।

उपचार:

नई टहनियां बनने के समय या फलों की तुड़ाई के समय कार्बरील 600 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।

कली की सुंडी :

इसकी सुंडियां वनस्पति कलियों को खाकर उन्हें नष्ट करती हैं।

उपचार:

क्विनलफॉस 300 मि.ली. या फेम 20 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

बालों वाली सुंडी:

ये कीट नई टहनियों और पौधे को अपना भोजन बनाकर नष्ट कर देते हैं।

उपचार:

क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

चीकू के रोग

पत्तों पर धब्बा रोग:

गहरे जामुनी भूरे रंग के धब्बे जो कि मध्य मे से सफेद रंग के होते हैं देखे जा सकते हैं। फल के तने और पंखुड़ियों पर लंबे धब्बे देखे जा सकते हैं।

उपचार:

कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

तने का गलना :

यह एक फंगस वाली बीमारी है जिसके कारण तने और शाखाओं के मध्य में से लकड़ी गल जाती है।
उपचार: कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम या डाइथेन जेड-78 को 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

एंथ्राक्नोस :

तने और शाखाओं पर, कैंकर के गहरे धंसे हुए धब्बे देखे जा सकते हैं और पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

उपचार:

कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

चीकू फलों की तुड़ाई

चीकू के फलों की तुड़ाई जुलाई – सितंबर महीने में की जाती है। कि‍सानों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनपके फलों की तुड़ाई ना करें। तुड़ाई मुख्यत: फलों के हल्के संतरी या आलू रंग के होने पर जब फलों में कम चिपचिपा दुधिया रंग हो, तब की जाती है। फलों को वृक्ष से तोड़ना आसान होता है।

चीकू की खेती से प्राप्त उपज / पैदावार | Yields in Sapota Gardening

चीकू में रोपाई के दो वर्ष बाद फल मिलना प्रारम्भ हो जाता है। जैसे-जैसे पौधा पुराना होता जाता है। उपज में वृद्धि होती जाती है। मुख्यत: 5 – 10 वर्ष का वृक्ष 250-1000 फल देता है। एक 30 वर्ष के पेड़ से 2500 से 3000 तक फल प्रति वर्ष प्राप्त हो जाते है।

चीकू के फल का भंडारण | Storage Management in Sapota Commercial Farming

तुड़ाई के बाद, छंटाई की जाती है और 7-8 दिनों के लिए 20 डिगरी सेल्सियस पर स्टोर किया जाता है। भंडारण के बाद लकड़ी के बक्सों में पैकिंग की जाती
है और लंबी दूरी वाले स्थानों पर भेजा जाता है।