कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहलाता है। रेशम उत्पादन का आशय बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम उत्पादक जीवों का पालन करना होता है। इसने अब एक उद्योग का रूप ले लिया है। यह कृषि पर आधारित एक कुटीर उद्योग है। इसे बहुत कम कीमत पर ग्रामीण क्षेत्र में ही लगाया जा सकता है। कृषि कार्यों और अन्य घरेलू कार्यों के साथ इसे अपनाया जा सकता है। श्रम जनित होने के कारण इसमें विभिन्न स्तर पर रोजगार का सृजन भी होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह उद्योग पर्यावरण के लिए मित्रवत है। अगर भारत की बात करें तो रेशम भारत में रचा बसा है।

हजारों वर्षों से यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अंग बन चुका है। कोई भी अनुष्ठान किसी न किसी रूप में रेशम के उपयोग के बिना पूरा नहीं माना जाता। रेशम उत्पादन में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। रेशम के जितने भी प्रकार हैं, उन सभी का उत्पादन किसी न किसी भारतीय इलाके में अवश्य होता है। भारतीय बाजार में इसकी खपत काफी ज्यादा है।
रेशम की खेती : रेशम कीट पालन, शहतूत की खेती कैसे करें | mulberry-silkworm farming, Sericulture silk production in hindi
विशेषज्ञों के अनुसार रेशम उद्योग के विस्तार को देखते हुए इसमें रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। फैशन उद्योग के काफी करीब होने के कारण उम्मीद की जा सकती है कि इसकी डिमांड में कमी नहीं आएगी। पिछले कुछ दशकों में भारत का रेशम उद्योग बढ़ कर जापान और पूर्व सोवियत संघ के देशों से भी ज्यादा हो गया है, जो कभी प्रमुख रेशम उत्पादक देश हुआ करते थे। भारत रेशम का बड़ा उपभोक्ता देश होने के साथ-साथ पांच किस्म के रेशम- मलबरी, टसर, ओक टसर, एरि और मूंगा सिल्क का उत्पादन करने वाला अकेला देश है। मूंगा रेशम के उत्पादन में भारत का एकाधिकार है। यह कृषि क्षेत्र की एकमात्र नकदी फसल है, जो 30 दिन के भीतर प्रतिफल प्रदान करती है। रेशम की इन किस्मों का उत्पादन मध्य और पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय लोग करते हैं और यहां चीन से भी ज्यादा मलबरी कच्चा सिल्क और रेशमी वस्त्र बनता है। रेशम का मूल्य बहुत अधिक होता है और इसके उत्पादन की मात्रा बहुत ही कम होती है। विश्व के कुल कपड़ा उत्पादन का यह केवल 0.2 फीसदी ही है। रेशम आर्थिक महत्त्व का मूल्यवर्द्धित उत्पाद प्रदान करता है।
रेशम कीट पालन हेतु शहतूत की खेती कैसे करें -रेशम की खेती की जानकारी, किसान भाई रेशम कीट पालन में शहतूत एक महत्वपूर्ण कारक है | आप इस पौधे के बिना रेशम कीट पालन की कल्पना नही कर सकते हैं | शहतूत का पौधा एक बहुवर्षीय वृक्ष है। इसके पौधे का वृक्षारोपण एक बार करने पर आगामी 15 वर्षो तक इसकी उच्च गुणवत्ता की शहतूत पत्तियाँ रेशम कीट को प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। अत: प्रथम शहतूत वृक्षारोपण करते समय तकनीकी मापदण्डों को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि कोया उत्पादन लागत में लगभग 50 प्रतिशत धनराशि शहतूत पत्तियों के उत्पादन में ही व्यय होती है। अत: यह आवश्यक है कि प्रति इकाई क्षेत्र में अधिकतम शहतूत पत्तियों का उत्पादन हो जिससे रेशम उद्योग से अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
रेशम कीट पालन हेतु शहतूत की उन्नत प्रजातियाँ –

किसान भाई शहतूत की उन्नत प्रजातियों जैसे के-2, एस-146 टी.आर. -10, एस-54, प्रजातियों का चयन शहतूत पौधालय की स्थापना हेतु करें |
भूमि का चयन –
किसान भाई शहतूत के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करें जो उसरीली न हो साथ ही जहां पानी का ठहराव न हो, एवं सिंचाई व्यवस्था हो,सामान्यत : उचित जल निकास वाली भूमि शहतूत के पौधे के लिए उपयुक्त होती है |बलुई-दोमट भूमि शहतूत वृक्षारोपण के लिए उत्तम होती है |
रेशम कीट पालन हेतु शहतूत की खेती कैसे करें ? हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें
भूमि की तैयारी –
किसान भाइयों शहतूत के वृक्षारोपण हेतु मानसून की वर्षा से पूर्व भूमि की तैयारी प्रारम्भ की जाती है। भूमि को देशी हल अथवा रोटावेटर की मदद से 30-35 से.मी. गहरी जुताई करें साथ ही प्रति एकड़ की दर से 8 मे.टन गोबर की की सड़ी खाद भूमि में मिलाई जाती है। भूमि में यदि दीमक के प्रकोप की सम्भावना हो तो गोबर की खाद के साथ-साथ लगभग 100 कि०ग्रा० बी0एच0सी0 पाउडर 20प्रतिशत एल्ड्रीन 5 प्रतिशत दीमक की रोकथाम के लिए मिट्टी में मिलाया जाना चाहिए।
वृक्षारोपण का समय –
जुलाई/ अगस्त
दिसम्बर/ जनवरी (सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में)
शहतूत पौधालय हेतु पौधों का प्रवर्धन –
किसान भाइयों शहतूत के पौधे निम्न विधियों द्वारा तैयार किये जाते हैं –
– शहतूत बीज द्वारा
– शहतूत कटिंग द्वारा
– लेयरिंग द्वारा
– ग्राफ़्टिंग द्वारा
सामान्यत : कम लागत एवं अच्छी गुणवत्ता के पौधें कटिंग विधि से तैयार की जाती है। इस प्रचलित विधि में शहतूत की टहनियों (जो छ: से नौ माह पुरानी हो) से कटिंग तैयार की जाती है। टहनियों को 6 इंच से 8 इंच लम्बी काट दी जाती है, जिसमें 4-5 कलियां हो। उक्त कटिंग का रोपण नर्सरी हेतु तैयार खेत में किया जाता है।
कटिंग को जमीन में तिरछा गाड़ते है एवं उसके चारों ओर मिट्टी को दबाकर सिंचाई कर दी जाती है। कटिंग में उपलब्ध भोज्य पदार्थ के उपयोग से कुछ ही दिनों में कटिंग से पत्तियां निकल आती है एवं लगभग 6 माह में 3-4 फुट लम्बी शहतूत पौध तैयार हो जाती है, जो शहतूत वृक्षारोपण हेतु उपयुक्त होती है।
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सामान्यत: नर्सरी से कटिंग का रोपण जुलाई/ अगस्त अथवा दिसम्बर/ जनवरी में किया जाता है। जुलाई/ अगस्त में रोपित कटिंग से दिसम्बर/ जनवरी में पौध रोपण हेतु एवं दिसम्बर/ जनवरी में रोपित कटिंग से जुलाई/ अगस्त में पौध वृक्षारोपण हेतु प्राप्त होती है। प्रदेश में पौध आपूर्ति के दो स्रोत है।राजकीय शहतूत उद्यान एवं व्यक्गित क्षेत्र की किसान नर्सरी में उपरोक्त विधि से तैयार पौधों की आपूर्ति की जाती है।
शहतूत पौध तैयार करने हेतु कटिंग की तैयारी-
उन्नत प्रजाति की शहतूत छट्टियों (6 माह से एक वर्ष तक पुरानी) कटिंग हेतु प्राप्त करनी चाहिए। टहनियों/छट्टियों को साये में पेड़ के नीचे रखना चाहिए जिससे सूखने न पाये। टहनियों से पेंसिल अथवा तर्जनी की मोटाई का 22 सेमी, की कटिंग तैयार किया जाना चाहिए जिसमें कम से कम तीन चार बड़ हों। कटिंग के सिरे लगभग 45 डिग्री कोण तेज धार के औजार से काटे जायें, जिससे सिरे पर छाल निकलने न पाये। यदि कटिंग तुरन्त लगाने की स्थिति में न हो तो कटिंग की गड्डियों को उलटाकर गहरी क्यारी अथवा गडढे में लाइनों में लगाकर उस पर मिट्टी की हल्की परत डालकर फव्वारे द्वारा प्रतिदिन हल्का-हल्का पानी डालें ताकि नमी बने रहे व सूखने न पाये। आवश्यकतानुसार इस उल्टी कटिंग के बण्डलों को निकालकर सीधा खेत में रोपित करें।
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रेशम कीट पालन शहतूत के पौधे कटिंग का रोपण एवं रख-रखाव –
भूमि की तैयारी के उपरान्त क्यारियों अथवा रेज्ड वेड को तैयार कर लिया जाए । क्यारी अथवा रेज्ड वेड में छ:-छ: इंच की दूरी पर लम्बाई में लाईन बना लें। तैयार की गई कटिंग को लगभग 2/3 भाग 3.00 इंच की दूरी पर लाईनों मे गहरा गाड़ देवें। कटिंग रोपड़ के बाद कटिंग के चारों ओर की मिट्टी को दबा दिया जाये । ताकि खाली जगह में हवा जाने से सूखने की सम्भावना न हो। कटिंग रोपण के बाद गोबर की भुरभुरी खाद की एक पतली पर्त क्यारी में फैलाकर तुरन्त सिंचाई अवश्य की जाय। प्रथम माह में कटिंग रोपित क्यारी में मिट्टी की ऊपरी पर्त सूखने पर पानी दिया जाय जिससे नमी बनी रहे।
कटिंग रोपण के समय क्यारी में 8-10 लाईनों के रोपण के पश्चात एक फिट स्थान छोड़कर कटिंग रोपण किया जाए जिससे निराई करने में आसानी हो। एक एकड़ पौधालय पर लगभग 100 कि०ग्रा० यूरिया उचित विकास हेतु उपयुक्त है। इसका प्रयोग 4 से 6 बार लगभग 15-20 दिवस के अन्तराल पर पत्तियों को बचाते हुए किया जाना चाहिए। तत्पश्चात् तुरन्त सिंचाई की जानी चाहिए। रासायनिक उर्वरक का प्रथम प्रयोग पौध में 6-8 पत्तियों की अवस्था आने पर किया जाए। पौधालय का समय-समय पर निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए । कि कीटों द्वारा पौधों को कोई हानि तो नहीं पहुंचाई जा रही है। दीमक के प्रकोप में एल्ड्रीन का छिड़काव उपयोगी होगा। कटिंग से तैयार पौधों को 6 माह के उपरान्त ट्रान्सप्लान्ट करना चाहिए। तैयार पौधों को नर्सरी से निकालते समय इस बात पर ध्यान दिया जाय कि पौधों की जड़ों को कोई नुकसान न पहुंचे। उपरोक्तानुसार कटिंग रोपण से प्रति एकड़ लगभग 2.00 से 2.25 लाख कटिंग का रोपण नर्सरी से किया जा सकता है।
अंतरण : रोपण एवं पौध दूरी –
सामान्यत: झाड़ीनुमा वृक्षारोपण में 3′ x 3′ अथवा 6′..3′ x 2′ की दूरी पर वृक्षारोपण किया जाता है। इस प्रकार एक एकड़ में लगभग 5000 पौध की आवश्यकता होती है। प्रथम वर्ष शहतूत वृक्षारोपण की स्थापना से एक वर्ष शहतूत पौध के विकास में लगता है। तीसरे वर्ष में उक्त वृक्षारोपण से समयान्तर्गत एवं समुचित मात्रा में खाद/ उर्वरक के प्रयोग एवं कर्षण कार्यों से एक एकड़ क्षेत्र से लगभग 8 से 10 हजार कि०ग्रा० प्रतिवर्ष शहतूत पत्ती का उत्पादन हो सकेगा।
उक्त पत्ती पर वर्ष में 800-900 डी०एफ०एल्स० का कीटपालन किया जा सकता है, जिससे लगभग 300 कि०ग्रा० कोया उत्पादन होगा। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सामान्यत: प्रति 100 डी०एफ०एल्स० रेशम कीटपालन हेतु 800-900 कि०ग्रा० शहतूत पत्ती की आवश्यकता होती है। प्रति कि0ग्रा0 रेशम के उत्पादन पर लगभग 20 से 25 कि0ग्रा0 पत्ती का उपयोग होता है।
गैप-फिलिंग –
शहतूत पौध के वृक्षारोपण के लगभग एक माह के पश्चात् वृक्षारोपण का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है। जो पौध सूख गये हों, उनके स्थान पर नयी शहतूत पौध का रोपण किया जाता है। इसे गैपफिलिंग कहते हे। गैपफिलिंग का कार्य वृक्षारोपण के पश्चात् एक या डेढ़ माह के अन्दर पूर्ण किया जाना चाहिए, अन्यथा बड़े पौधों के बीच छोटी पौध लगाने पर उसका विकास सही से नही होता है। प्रति पेड़ पौध घटने से पत्ती का उत्पादन एवं तदनुसार कोया उत्पादन घटता है। फलस्वरूप आय भी प्रभावित होती है।
खाद व उर्वरक का प्रयोग –
वृक्षारोपण के 2-3 माह उपरापन्त वृक्षारोपण में 50 किग्रा० नाइट्रोजन का उपयोग प्रति एकड़ दर से किया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ जुलाई/ अगस्त में स्थापित वृक्षारोपण सितम्बर/ अक्टूबर में एवं दिसम्बर/ जनवरी में स्थापित वृक्षारोपण में मार्च/ अप्रैल में उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए।
शहतूत वृक्षारोपण के दो माह के उपरान्त एक हल्की गुड़ाई की जानी चाहिए। उसके उपरान्त पुन: निराई की जानी चाहिए। इसके पश्चात प्रत्येक प्रूनिंग के पश्चात गुड़ाई एवम निराई की जानी चाहिए।
सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण –
मानसून काल में कराये गये वृक्षारोपण में प्राकृतिक वर्षा के कारण शरद काल में कराये गये वृक्षारोपण से कृषि लागत कम आती है। फिर भी वर्षाकाल मे यदि 15-20 दिवस वर्षा न हो, तो वृक्षारोपण में कृषि सिंचाई की जानी आवश्यक है। सिंचाई की व्यवस्था माह मई के बीच अवश्य की जानी चाहिए। इस समय में 15-20 दिवस के अन्दर पर भूमि की किस्म के अनुरूप सिंचाई आवश्यक है।
कटाई/छंटाई (प्रूनिंग)-
किसान भाइयों सामान्यत: शहतूत वृक्षारोपण में एक वर्ष में दो बार प्रूनिंग की जाती है। जून/जुलाई में बाटम प्रूनिंग (जमीन के सतह से 6 इंच की ऊंचाई पर), एक दिसम्बर के मध्य प्रूनिंग (जमीन के सतह से 3 फीट की ऊँचाई पर ) की जाती है। तात्पर्य यह है कि शहतूत पौधों की कटाई-छंटाई वर्ष में दो बार इस भाँति की जाती है कि जिससे कीटपालन के समय पौष्टिक एवं प्रचुर मात्रा में शहतूत पत्तियाँ कीटपालन हेतु उपलब्ध हो सकें।
शहतूत की झाड़ियों का माह दिसम्बर में 3 फीट की उँचाई से काट (प्रून) दिया जाता है एवं मुख्य शाखाओं से निकली पतली शाखाओं को भी काटा-छाँटा जाता है। तत्पश्चात भूमि की गुड़ाई-निराई करते हूए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है कि रासायनिक खाद के प्रयोग में एवं कीटपालन हेतु पत्ती तोड़ने के सयम के बीच 20 से 25 दिन का अन्तराल हो।
इसी भाँति वर्षाकाल के प्रारम्भ में शहतूत झाड़ियों को भूमि की सतह से 6 इंच से 9 इंच की ऊंचाई पर काट लिया जाता है एवं गुड़ाई/ खाद का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है एवं प्रूनिंग करते समय इस बात की सावधानी रखी जाती है कि शहतूत टहनियों को क्षति न पहुंचे एवं इसकी छाल भी न उखड़े। वृक्षनुमा शहतूत पेड़ों में वर्ष में एक बार प्रूनिंग माह दिसम्बर में की जानी चाहिए।
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रेशम कीट पालन घर (200-250 डीएफएलएस के लिए)
– 200-250 डीएफएलएस को समायोजित करने के लिए एक ऊंचे और छायादार स्थान पर 50 फीट x 20 फीट x10 फुट आकार का पालन घर बनाएं।
– पालन घर के आसपास 3 फीट का बरामदा रखें।
– पालन घर के अंदर हवा के मुक्त संचलन के लिए पर्याप्त खिड़कियां और झरोखे बनवाएं।
– उजी मक्खियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए खिड़कियों और झरोखों को नायलॉन के जाल से ढकें।
रेशम की किस्में
व्यावसायिक महत्व की कुल 5 रेशम किस्में होती हैं जो रेशमकीट की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती हैं तथा जो विभिन्न खाद्य पौधों पर पलते हैं । किस्में निम्न प्रकार की हैं :
– शहतूत
– ओक तसर एवं उष्णकटिबंधीय तसर
– मूंगा
– एरी
विश्व के वाणिज्यिक रूप में लाभ उठाए जाने सेरिसिजीनस कीट एवं उनके खाद्य पौध
सामान्य नाम | वैज्ञानिक नाम | मूल स्थान | प्राथमिक खाद्य पौध |
शहतूत रेशमकीट | बोम्बिक्स मोरी | चीन | मोरस इंडिका एम.अल्बा एम.मल्टीकॉलिस एम.बोम्बिसिस |
उष्णकटिबंधीय तसर रेशमकीट | एन्थीरिया माइलिट्टा | भारत | शोरिया रोबस्टा टेर्मिनेलिया टोमेन्टोसा टी.अर्जुन |
ओक तसर रेशमकीट | एन्थीरिया प्रॉयली | भारत | क्युरकस इनकाना क्यू. सेराट्टा क्यू. हिमालयना क्यू. ल्यूको ट्राइकोफोरा क्यू. सेमीकार्पिफोलिया क्यू. ग्रिफ्ती |
ओक तसर रेशमकीट | एन्थीरिया फ्रिथी | भारत | क्यू. डीलाडाटा |
ओक तसर रेशमकीट | एन्थीरिया कॉम्प्टा | भारत | क्यू. डीलडाटा |
ओक तसर रेशमकीट | एन्थीरिया पेर्निल | चीन | क्यू. डेनडाटा |
ओक तसर रेशमकीट | एन्थीरिया यमामाई | जापान | क्यू. एकयूटिसिमा |
मूगा रेशमकीट | एन्थीरिया असामा | भारत | लिटसिया पोलियन्ता एल. सिट्राटा मेशिलस बोम्बिसाईन |
एरी रेशमकीट | फिलोसामिया रिसिनी | भारत | रिसिनस कम्यूनिस मणिहॉट यूटिलिस्मा इवोडिया फ्राग्रेन्स |
शहतूत के अलावा रेशम के अन्य गैर-शहतूती किस्मों को सामान्य रूप में वन्या कहा जाता है । भारत को इन सभी प्रकार के वाणिज्यिक रेशम का उत्पादन करने का गौरव प्राप्त है ।
पालन के उपकरण –
बिजली का स्प्रेयर, पालन स्टैंड, पालन ट्रे, फोम पैड, मोम पुता पैराफिन कागज, नायलॉन के जाल, पत्ते रखने के लिए टोकरी, चटाई बैग, रोटरी या बांस के माउंटेज/या नेट्राइक।
ऊष्मायन और ब्रशिंग-
एक ट्रे पर रखे गए एक पैराफिन कागज पर अंडों को एक परत में फैला दें। एक दूसरे पैराफिन कागज से अंडों को ढक दें। कमरे का तापमान 25-26 डिग्री सेल्सियस और सापेक्ष आर्द्रता 80% पर बनाए रखें। जब नीला सिरा प्रकट होता है, अंडों को एक टिशू पेपर में (25-50 डीएफएलएस प्रत्येक) लपेटें और अंडों को 1-2 दिनों के लिए काले रंग से रंगे हुए बक्से में रख दें या काले कपड़े या कागज से ढक कर रखें। अगले दिन अंडों को हल्की धूप या छाया में रखें।
अंडे से निकले नए कीड़े की ब्रशिंग –
अंडे से निकले नए कीड़े को एक नरम ब्रश या पंख से सावधानीपूर्वक एक पालन ट्रे पर रखे एक पैराफिन पुते कागज पर स्थानांतरित करें। कीड़ों को 0.5-1 सेमी आकार में कटी हुई कोमल पत्तियों (शाखा के शीर्ष से तीसरी और चौथी पत्ती) खिलाएं।
चॉकी पालन –
ट्रे में कीड़ों को समान रूप से वितरित करें। रेशमकीट को पौष्टिक और रसीले पत्ते खिलाएं। पहले चरण के दौरान कोमल पत्तियों के 0.5-2 सेमी के टुकड़े काट कर 3-4 बार खिलाएं | पहले इनस्टार में कीड़े के लिए 5किलो/100 डीएफएलएस और दूसरे इनस्टार में 18 किलो/100 डीएफएलएस की दर से पत्तियां उपलब्ध कराएं। दूसरे चरण के दौरान, पत्तियों को 2-4 वर्ग सेमी के आकार में काटें और 3-4 बार खिलाएं। तापमान 27-28 डिग्री सेल्सियस और सापेक्ष आर्द्रता 80-90% पर बनाए रखें। प्रत्येक दिन दूसरी बार खिलाने से पहले, पिछली बार खिलाने में उपयोग की गई पत्तियों को सूखने लिए बिस्तर में फैला दें। पहली और दूसरी बार केंचुली उतरने के समय एक बार और 3 चरण के दौरान प्रतिदिन कपास के 0.5 वर्ग सेमी मेस आकार के जाल से बिस्तर की सफाई करना सुनिश्चित करें। केंचुली उतरने से पहले बिस्तर मोटाई कम करें। जब 97% कृमि गलने के लिए व्यवस्थित हो जाते हैं, तो भोजन करना बंद कर दें और कीड़े के शरीर पर चूना लगा दें।

अधिक उम्र में पालन –
दूसरी केंचुली के बाद रेशम के कीड़ों को कोंपलों के रैक में स्थानांतरित कर दें। कोंपलों के पालन रैक लोहे, लकड़ी या बांस के बने होते हैं। इसमें 3 स्तरों का होना आदर्श होता है। रैक की चौड़ाई 5 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए। निचला स्तर जमीन की सतह से 1 फुट ऊपर होना चाहिए। दो स्तरों के बीच न्यूनतम 2 फुट का फासला होना चाहिए। लार्वा को खिलाने के लिए कोंपलों को 50-60 दिनों का होना चाहिए। दिन में 2 या 3 बार खिलाने की सिफारिश की गई है। बिस्तर की सफाई 5वें इनस्टार के चौथे दिन पर केवल एक बार की जाती है। क्रॉस वेंटिलेशन प्रदान करें। बिस्तर में सही फासला (800-900 वर्गफुट/100 डीएफएलएस) रखें और (2500 किलो कोंपल /100 डीएफएलएस) पर्याप्त रूप से खिलाएं।
केंचुली छोड़ने के दौरान देखभाल –
जब 90% कीड़े केंचुली में प्रवेश कर जाएं तब खिलाना बंद कर दें। बिस्तर को उचित रूप से सुखाने और वेंटिलेशन के लिए फैला दें। नमी को कम रखने के लिए बिस्तर पर चूना पाउडर की धूल डालें।
रेशम कीट को माउंटेज में चढ़ाना और कटाई –
चढ़ाने के लिए पूरी तरह से पके कीड़ों को उठाएं । रोटरी, प्लास्टिक के बंधन या बांस माउंटेजों जैसे उपयुक्त माउंटेज में चढ़ाएं। प्रति वर्ग फुट क्षेत्र में 40-45 कीड़े चढ़ाएं। रोगग्रस्त और मरे हुए कीड़ों को निकाल दें। 27-28 डिग्री सेल्सियस का तापमान और 60-70% का आरएच बनाए रखें। अतिरिक्त नमी को दूर करने के लिए वेंटिलेशन प्रदान करें | तेज रोशनी से बचाव करें। चढ़ाने के 5 वें दिन कोकूनों को समेटें। कमजोर, दागदार और अनियमित आकार के कोकूनों (रेशम के कोयों) को निकाल दें।
रेशम कीट पालन और व्यक्तिगत स्वच्छता
पालन घर में प्रवेश करने के पूर्व किसी विसंक्रामक (कीटाणुनाशक) से हाथ धो लें। पालन में शामिल लोगों के अलावा अन्य व्यक्ति का प्रवेश रोकें।
5-6 दिनों के अंतराल पर पालन घर के आसपास 5% उच्च स्तरीय ब्लीचिंग पाउडर छिड़कें। रोगग्रस्त कीड़ों को एकत्र करें और (उन्हें जलाएं या दफनाएं) ठीक से निपटाएं। बिस्तर साफ करने से पहले और बाद में 2% ब्लीचिंग पाउडर के घोल से पालन घर के फर्श को साफ करें। जब लार्वा केंचुली से बाहर आते हैं तब लार्वा पर, बिस्तर कीटाणुनाशक का प्रयोग करें।