शिकाकाई की खेती कैसे करें | Shikakai Ki Kheti

शिकाकाई की खेती – दोस्तों आपने शिकाकाई के नाम से ज़रूर परिचित होंगे। शिकाकाई का मतलब “बालो के लिए फल” |  हमारे देश में शिकाकाई का उपयोग बालों की देखभाल के लिए सदियों से आयुर्वेदिक शैम्पू की तरह होता आया है । शिकाकाई का वानस्पतिक नाम एकेशिया कॉनसिना (acacia concinna) है। यह मिमोसेऐसी (Mimosaceae) कुल का पौधा है । यह भारत सहित चीन और मलाया में भी यह पाया जाता है। मध्य भारत, और दक्षिण भारत, तथा गर्म मौसम वाले क्षेत्रों में यह व्यापक रूप से मिलता है। मध्य प्रदेश राज्य में यह बहुत अधिक पाया जाता है । भारत सहित तमाम एशियाई देशों में शिकाकाई की खेती व्यवसायिक रूप से की जाती है । बालों के शैम्पू और साबुन के लिए यह कच्चे माल के रूप उपयोग किया जाता है ।

शिकाकाई की खेती कैसे करें | Shikakai Ki Kheti in Hindi

शिकाकाई का पेड़ एक आरोही झाड़ीदार पेड़ होता है । पौधें में कांटे छोटे और चपटे होते हैं। शाखाएं कॉंटेदार जिस पर  भूरे रंग की चिकनी धारिया होती हैं । इसके फलों को सुखाकर पीसकर पाउडर बना लिया जाता है। यही पाउडर मार्केट खूब बिकता है। शिकाकाई के फल में एल्केलॉयड  होते हैं, साथ ही एंटीऑक्सीडेंट्स के साथ ही विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन डी भरपूर पायी जाती है। जिससे बालों को भरपूर पोषण और नरिसमेंट मिलता है है । जिससे बाल काले घने, लम्बे, खूबसूरत और मज़बूत होते हैं । आज तो मार्केट में शिकाकाई ने नाम से तमाम उत्पाद भी उपलब्ध हैं जैसे – जैसे- शिकाकाई साबुन, शिकाकाई आयल, शिकाकाई शैम्पू, शिकाकाई पाउडर। शिकाकाई का प्रयोग कपड़े धोने के लिए भी किया जाता है।

शिकाकाई का वानस्पतिक स्वरूप –

शिकाकाई का पेड़ 4 से 5 मीटर तक की ऊँचाई बढ़ता है। इसकी पत्तियाँ के डंठल 1 – 1.5 से. मी. लंबे और पत्तियाँ दो सुफने में 5-7 जोड़े में पायी जाती है । शिकाकाई के फूल गुलाबी रंग के होते है। साथ ही फूलों के सिरे परिपक्व होने पर 1 से.मी. व्यास के होते है। फल फलियों में होते हैं । फल मांसल, चोंचदार और संकीर्ण होते है। शिकाकाई के एक फली में 6-10 बीज होते है।

शिकाकाई के फ़ायदे –

शिकाकाई बालों को समय से पहले सफ़ेद होने से रोकता है । बालों में होने वाली फफूँदीजनित संक्रमण से बचाता है । इसके फलियों के अर्क के इस्तेमाल से शरीर में स्किन रोगों के बचाव में मदद मिलती है । शिकाकाई की फलियों का काढ़ा पित्त की बीमारियों और रेचक से छुटकारा दिलाता है। इसकी तासीर ठंडी होती है इसलिए गहरी नींद आती है । मलेरिया के बुख़ार में शिकाकाई की पत्तियाँ प्रभावकारी परिणाम देती है ।

शिकाकाई के अन्य भाषाओं में नाम –

शिकाकाई को अलग अलग भाषाओं में जैसे –
Hindi : शिकाकाई
English : सोप पौड (Soap pod)
Sanskrit : चर्मकषा, सप्तला, केश्या,
Arabic: शिकाकाई (Shekakai)
Bengali: बनरीठा (Banritha)
Marathi: रीठा (Reetah), शिकेकाई (Shikekai)
Telugu:चीकाया (Cheekaya), सिकाया (Sikaya)
Kannada: शीघ्रे (Sheegae), सिगे (Sige)Gujrati : रीठा (Reetha), चिकाकाई (Chikakai), शिकाकाई (Shikakai)
Malayalam:चीयाकायी (Cheeyakayi), शिकाई (Shikai), कार्मालेन्टा (Karmalenta), चिनिक्का (Chinikka)।
Tamil: चिकेइक्केई (Chikeikkei), चिक्केई (Chikkei)
Konkani: शीकायी (Shikayi)
Nepali: सिकाकाई (Sikakaee), अराअरे (Araare);

जलवायु और तापमान –

यह एक उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है जो, गर्म और शुष्क मैदानों में अच्छी उगती है। शिकाकाई को उगने के लिए भरपूर सूरज की रोशनी की आवश्यक्ता होती है ।

भूमि की तैयारी (soil selection :

पौधो को मध्यम उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसे उदासीन से अम्लीय मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।शिकाकाई के पौधे को मध्यम उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है । शिकाकाई के पौधे को पानी की बहुत आवश्यक्ता होती है। यदि बारिश न हो रही है तो समय समय पर सिंचाई करते रहना होगा। रोपाई से पहले भूमि में अच्छी तरह हल चला लेना चाहिए ।खेत में क्यारियों के बीच उचित दूरी रखना चाहिए।

पौधों की रोपाई | फसल पद्धति विवरण (crop systems) :

पूर्ण प्रकाश में पौधे को लगाया जाता है। बीजों को बसंत ऋतु में जब तापमान 180 C से अधिक होता है तब उन्हे बोया जा सकता है। बुबाई के पहले बीजों को गरम पानी में भिगोया जाता है। रोपण के तुंरत बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (fertilizers and manures management) :

भूमि की तैयारी के समय मि में FYM – Farm Yard Manures यानी गोबर की खाद मिलाना चाहिए। रोपण के बाद फसल की आवश्यकतानुसार उर्वरक दिये जाते है।

सिंचाई प्रबंधन (irrigation and water management)  :

जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि शिकाकाई पौधे को पानी की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए फसल की जलमाँग के अनुसार पानी दें, एक बात और यदि वर्षा नहीं हो रही है तो नियमित अंतराल से सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई रोपण के 15 दिनों के बाद करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण प्रबंधन weed control ) :

समय समय नियमित निराई गुड़ाई पौधे के विकास के लिए अच्छी होती है। इससे खरपतवार तो नष्ट होते ही हैं साथ ही जड़ों में वायु का संचार होता है जिससे पौधे का अच्छा विकास होता है। आमतौर 30 दिन के अंतराल पर हाथ से की गई निदाई खरपतवार को नियत्रित करने में मदद करती है।

तुडाई, फसल कटाई का समय (harvesting) :

जब फलियाँ पक जाती है तब उन्हे एकत्रित किया जा सकता है। फल इकट्ठा करने के बाद तुरंत सुखाने के लिए भेजे जाते है। साफ फलियों को सुखाने के लिए नीचे फैलाया जाता है। सुखाने के बाद फालियों को पीसने के लिए भेजा जाता है। वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पालीथीन या नायलाँन के थैलों में पैक करना चाहिए।

भडांरण (Storage) :

चूर्ण को सूखे स्थानों में संग्रहीत करना चाहिए।गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है। शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।