जंगली करेला की खेती Spine Gourd farming हमारे देश में देश के कई राज्यों में की जाती है । Spine gourd or Agakara यह करले की ही जंगली प्रजाति है । इस सब्जी कई और नाम से अलग अलग स्थानो में जाना जाता है । इसकी खेती उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में की जाती है।
जैसे –
– Agakara (Spine Gourd farming)
– मीठा करेला Sweet bitter gourd
– कँटीला परवल Thorny parwal
– ककरोल
– काकरोल
– भाट करेला
– कोरोला
– करटोली
– ककोड़ा
– ककोड़
– ककरोला
– कंटोला
– वन करेला
– जंगली करेला
वन करेला का परिचय व महत्व –
Introduction and importance of spine gourd –
वनस्पति विज्ञान में इस फल का वैज्ञानिक नाम मोमोरेख डाईगोवा है। यह गण – Cucurbitales व कुल- Cucurbitaceae परिवार का पौधा है । वंश – Momordica से इसका ताल्लुक़ है ।
मानसून में मिलने वाली वन करेला या कंटोला, एक तरह की वेज़ीटेबल है । यह आकार में बहुत छोटी होती है। इसके बाहरी आवरण के ऊपर कांटेदार रेशे होते हैं। हरी और गोलमटोल कांटे वाली इस सब्जी को ज्यादातर लोगों ने ज़रूर खाया और देखा होगा। इसे वन करेला, अथवा जंगली करेला इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस सब्जी को न तो उपजाया जाता है और न ही इसका बीज मिलता है।
Growing Spine Gourd from Seed Best Gardening Tips
अभी तक इसे जंगलों और खेतों की बाउंडरी में पाया जाने वाला सब्जी के रूप में ही लोग जानते थे । लेकिन बारिश का मौसम शुरू होते ही यह बाजार में दिखने लगता है। साथ यह सब्ज़ी अन्य सब्ज़ियों की तुलना में काफ़ी महँगी होती है । आम तौर पर स्थानीय बाज़ारों में यह 100-150 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकती है । वर्षा होने के बाद इसकी बेल अपने आप जंगलों और खेतों में किनारे दिखने लगती है। बारिश का सीजन खत्म होते ही पके ककोड़े के बीज ज़मीन पर गिर जाते हैं । और जैसे ही पहली बारिश होती है, ककोड़े (spiny gourd farming) की बेल जंगल में उग आती है। शायद इसी वजह से अभी तक एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में भी इसके बीज आसानी से नही मिलते हैं । वन करेला या ककोडा की बेल दो प्रकार के होते हैं।एक नर पेड़ और दूसरा मादा पेड़। ककोड़ा बेल की जड़ एक गांठ होती है।इसी गाँठ के द्वारा ही वन करेले का प्रवर्धन किया जाता है ।
वन करेले अथवा कटीलें करेले के औषधीय फ़ायदे –
Medicinal benefits of the van karela or spiny parval
– ककोडा/वन करेला के नर व मादा पौधे दोनो को मिलाकर सेवन करने से जहरीले सांप का विष भी आपके शरीर में से उतर जाता है।
– फाइबर से भरपूर ककोड़े में मोमोरेडीसिन तत्व पाया है। जिससे इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, एंटीडायबिटीज के गुण होते हैं।
– ककोड़े का टेस्ट थोड़ा कड़वा होता है, लेकिन सेहत के लिए फायदेमंद हैं।
– खास तौर से हाई ब्लडप्रेशर की बीमारी के लिए ककोड़ा बहुत कारगर दवा है। यह वजन कम करने के साथ हाई ब्लड प्रेशर को सही रखती है।
– ड्रैगन फ़्रूट की आधुनिक व उन्नत खेती Dragon Fruit Farming
– ककोड़ा की जड़ यानी कंद का इस्तेमाल मस्सों का खून रोकने और पेशाब की बीमारियों में दवा के रूप में किया जाता है।
– इस के फल को मधुमेह के मरीजों के लिए बहुत असरदार पाया गया है। इसके फल करेले की तरह कड़वे नहीं होते।
– फल के बीज से तेल निकाला जाता है, जिसका उपयोग रंग व वार्निश उद्योग में किया जाता है।
खेती किसानी डॉट ओर्ग का यह आर्टिकल बहुत उपयोगी है, इसमें हम जानेंगे –
– मीठा करेला की खेती कैसे करें
– Agakara (Spine Gourd) farming
– कँटीला परवल की खेती कैसे करें
– ककरोल की खेती कैसे करें
– भाट करेला की खेती कैसे करें
– कोरोला की खेती कैसे करें
– करटोली की खेती कैसे करें
– ककोड़ा की खेती कैसे करें
– ककोड़ की खेती कैसे करें
– ककरोला की खेती कैसे करें
– कंटोला की खेती कैसे करें
– वन करेला की खेती कैसे करें
– जंगली करेला की खेती कैसे करें
जलवायु व तापमान –
Climate and temperature –
जंगली वन करेला अथवा कँटीलें परवल के पौधे गर्म आर्द्र जलवायु में अच्छा पनपते हैं । व वानस्पतिक विकास अच्छा होता है । इसे उन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है,जहां तापमान 25 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो । तथा वार्षिक वर्षा के साथ 180-200 सेमी तक होती है ।
भूमि की जानकारी व भूमि का चयन –
Soil selection –
वन करेला की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों व जीवांश से भरपूर दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है । इसके अलावा बलुई मिट्टी में भी इसकी खेती की जाती है । दोमट मृदा में यह बहुत अच्छी तरह से बढ़ता है । मीठा करेला की खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6.0-7.0 से लेकर होना अच्छा माना जाता है ।
उन्नत क़िस्में
Advanced Varieties –
जंगली वन करेला की दो क़िस्में खेती के रूप में उगायी जाती है –
छोटे आकार वाले वन करेला, लोकल मार्केट में छोटे वन करेले से हाइब्रिड प्रजाति से अधिक महँगे होते हैं ।
दूसरी किस्म इंदिरा अगाकारा (आरएमएफ 37) हाइब्रिड किस्म एक नई व्यावसायिक किस्म है । यह किस्म इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है।यह उत्कृष्ट किस्म आम तौर पर प्रतिरोधमुक्त है।
वन करेले का प्रवर्धन –
Spine gourd propagation –
जंगली करेला अथवा वन करेले का प्रवर्धन कंद या बीज द्वारा है। वन करेला की खेती हेतु हमेशा अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करना चाहिए । बेहतर होगा की अच्छे गुणवत्ता वाले बीज अथवा कंद किसी अच्छे ट्रेडमार्क वाले प्रतिष्ठान से ख़रीद लें । बीजों को बुवाई के पहले उपचारित अवश्य कर लें । इसी प्रकार अगर आप कंद का उपयोग कर रहे हैं तो ज़रूर उपचारित कर लें । बीज उपचारित करने वाले रसायन आपके स्थानीय मार्केट में उपलब्ध होंगे ।बीज को सही तरीके से उपचारित करने से पहले, यह कई कवक रोगों से छुटकारा दिलाएगा।
बीजों की बुवाई व अंकुरण –
Sowing and germination of seeds –
वन करेला की बुवाई में किसी स्पेशल टेक्नीक की ज़रूरत नही होती है । बीजों को रात में गर्म पानी में रात भर के लिए भिगो देना चाहिए । इससे अंकुरण अच्छा होता है । इसके बाद 3 से इंच की दूरी पे बीज बो दें । बुवाई के दौरान स्पेसिंग ज़रूरी है ताकि सभी पौधों की जड़ें सभी दिशाओं में अच्छी तरह से फैल सकें। नमी के अनुसार समय समय पर पानी देते रहें । 25 से 40 डिग्री सेल्सियस का इष्टतम तापमान विकास के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। पाँच छ दिन में नन्हे पौधे दिखने लगेंगे ।
किचन गार्डेन पंडोरा/ वन करेले की बुवाई –
Kitchen Garden Pandora / Spine Gourd sowing –
सबसे पहले गमलों को सूरज की तेज रोशनी में दिन भर के लिए रख दें । फिर उसमें मिट्टी व जैविक खाद भरकर दें । हल्का पानी डाल दें । ताकि नमी हो जाए । इसके बाद एक गमले में तीन से चार इंच की दूरी पर बीज की बुवाई करने के बाद मिट्टी से बीजों को ढक दें । अमूमन एक 20 लीटर वाले गमले में तीन से चार बीज बोए जा सकते हैं ।