ऊसर-सुधार कैसे करें ? रबी के मौसम में ऊसर सुधार कैसे करें ? हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें(Efforts Improvement Program: How To Improve Into Rabi Season Read the complete information in Hindi)
ऊसर सुधार कैसे करें ? रबी के मौसम में ऊसर सुधार कैसे करें ? – usar sudhar kaise kare in hindi
ऊसर सुधार कैसे करें ? रबी के मौसम में ऊसर सुधार कैसे करें ? – usar sudhar kaise kare in hindi
प्रायः ऊसर क्षेत्रों का उपचार का कार्यक्रम गर्मियों से ही प्रारम्भ किया जाता है।मृदा सुधारकों से क्षेत्र को उपचारित कर हरी खाद देने के बाद खरीफ में ऊसर सहनशील धानकी प्रजातियों की रोपाई की जाती है, परन्तु प्रायः प्रश्न उठता है कि क्या ऊसर क्षेत्रोंमें रबी में ऊसर सुधार का कार्यक्रम चलाया जा सकता है? वास्तव में रबी में ऊसर सुधारकार्यक्रम हेतु निम्न तीन परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है
वह क्षेत्र, जिसमें खरीफ में मृदा सुधारकों का प्रयोग किया गया हो और धान की फसल लीगयी हो।
वह क्षेत्र, जिसमें मृदा सुधारक का प्रयोग कर ऊसर क्षेत्र का उपचारित किया जा चुकाहो परन्तु किन्हीं कारणवश धान की रोपाई न की जा सकी हो।
वह क्षेत्र, जिसमें मृदा-सुधारक का प्रयोग कर रबी में ऊसर क्षेत्र कोउपचारित किया जाना हैं।
ऊसर भूमि के प्रभावी सुधार व अधिकतम पैदावार के लिए सर्वोत्तम फसल पद्धति धान-सरसों-हरीखाद व धान गेहूं हरी खाद ऊसर प्रभावी क्षेत्रों में अपनायी जानी चाहिये।
ऊसर भूमि सुधार के लिए सर्वोत्तम भूमि सुधारक जिप्सम 25 प्रतिशत + गोबर की खाद 10 टनप्रति हे0 की दर से उपचारित करके धान-गेहूं फसल पद्धति अधिक लाभदायक है।
(1) ऐसा खेत अथवा क्षेत्र,जिसमें मृदा सुधारकों के प्रयोग के पश्चात खरीफ में धान की फसलली गयी है –
खरीफ फसल के लिये मृदा सुधारक का प्रयोग प्रायः खरीफ मौसम के पूर्व में ही किया जाताहै ।
परन्तु यदि खरीफ की फसल काटने के बाद रबी में कोई फसल नहीं ली गयी तो कोशकीय क्रियाद्वारा हानिकारक लवण भूमि की निचली सतह से फिर से ऊपर आ जायेगे।
और ऊसर सुधार क्रियापूर्ण नहीं हो सकेगी।
इसलिये यह आवश्यक होगा कि इन उपचारित क्षेत्रों में बराबर खरीफ,रबी एवं जायद में फसल ली जाय ।
जिससे कि शस्य क्रियाओं के फलस्वरूप लवणों का प्रभाव पर्याप्तनिचले स्तरों तक सीमित रहे।
रबी में गेहूँ, सरसों, बरसीम या जौ की फसलें ली जा सकतीहैं।
अधिक लवण होने पर जौ की फसल लिया जाना उत्तम रहेगा।
रबी की बुआई के पूर्व जिसभूखण्डों पर ऊसरीले पैच दिखाई देते हों ।
जिप्सम का प्रयोग अधिक प्रभावित क्षेत्र परपुनः किया जा सकता है।
उपयुक्त होगा कि मृदा परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा इसके लिये मृदापरीक्षण करा ली जाय।
चूँकि पाइराइट के आक्सीकरण हेतु पर्याप्त समय चाहिए।
अतः समयाभावकी दशा में रबी में जिप्सम का प्रयोग करना श्रेयस्कर होगा।
अ- गेहूँ की खेती-
गेहूँ की बुवाई के लिये धान की फसल काटने के बाद खेत में पलेवा कर देना चाहिए और ओटआने पर खेत की जुताई कर बुवाई हेतु सामान्य रूप से खेत तैयार कर लेना चाहिए।
प्रजाति का चयन-
गेहूँ की ऊसर सहनशील प्रजातियों का चयन करना चाहिए। इसके लिए नरेन्द्र 1067 के0 आर0एल0 1-4, के.आर.ल.-19 के.आर.एल. 210, 16 आर.एल. 213, प्रजातियों का चयन करना चाहिए।
बुवाई एवं उर्वरक का प्रयोग-
नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक बुवाई की जानी चाहिए। बीज की दर सामान्य से 25 प्रतिशतअधिक करनी चाहिए। मृदा परीक्षण के आधार पर ही संस्तुत उर्वरकों का प्रयोग श्रेयस्करहोगा। गेहूँ की फसल में 25-30 किग्रा० जिंक सल्फेट एवं 150 किग्रा०नत्रजन का प्रयोगप्रति हे० करना चाहिए। बुवाई के समय जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधीमात्रा का प्रयोग किया जाये। शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई पर टाप ड्रेसिंगके रूप में की जाये। यदि मिट्टी में फास्फेट एवं पोटाश की कमी हो तो इनकी सम्पूर्णमात्रा बुवाई के समय ही करना चाहिए।
सिंचाई व जल प्रबंधन –
सुविधाजनक सिंचाई व्यवस्था हेतु 15 × 20 फीट की छोटी-छोटी क्यारियॉ बना ली जायं। ऊसरसुधार के लिए उत्तम जल प्रबंध आवश्यक है। प्रत्येक सिंचाई 2 इंच पानी से अधिक नहींहोना चाहिए। हल्की सिंचाई कई बार आवश्यक होती है। ध्यान रहे कि सिंचाई के बाद पानीखेत में 15-20 घन्टे से अधिक न खड़ा रहे। इसके लिए जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनीचाहिए। गेहूँ की फसल में अन्य क्रियाएँ सामान्य की तरह की जाये। ऊसर क्षेत्र में गेहूँकी पहली सिंचाई 28-30 दिन पर करनी चाहिए।
ब- बरसीम की खेती-
बरसीम चारे की सर्वोत्तम फसल है। इसकी अच्छी उपज ऊसर क्षेत्रों में होती है। बरसीमकी खेती के लिए “मेस्कावी” प्रजाति का चयन करना चाहिए।
खेत की तैयारी-
बरसीम के लिए समतल भूमि होनी चाहिए।
जिसमें खरपतवार न हो।
धान की कटाई के बाद ओट आनेपर जुताई करके भूमि को समतल कर दिया जाय।
और पाटा लगाकर खरपतवार को भूमि में दबा करसड़ा दिया जाय।
बुवाई सितबर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक अच्छी मानी जाती है।
बुवाई के पूर्व बरसीम के बीज को बरसीम कल्चर से शोधित कर लेना चाहिए।
एक हैक्टर क्षेत्रकी बुवाई के लिए 20-50 किग्रा० बीज के लिए 2-3 पैकेट कल्चर पर्याप्त होता है।
1/2 किग्रा०गुड दो तीन लीटर पानी में अच्छी प्रकार से घोलकर उसमें कल्चर मिला दिया जाय एवं बीजपर छिड़क देना चाहिए।
बरसीम के बीज के साथ कासनी खरपतवार का बीज होता है ।
इसे अलग करनेके लिए एक प्रतिशत नमक के घोल में बीजों को डुबो कर तैरते हुए बीजों को फेंक देना चाहिए।
अच्छी पैदावार के लिए 25 किग्रा० नत्रजन तथा 75 किग्रा० फास्फेट तत्व के रूप में प्रतिहेक्टर प्रयोग बुवाई से पूर्व करना चाहिए।
स- जौ की खेती-
धान की फसल कटने के पश्चात् खेत में पानी लगा दिया जाय और खेत की तैयारी करने से पूर्वपानी निकाल दिया जाय और ओट अपने पर खेत में जुताई कर उसे जौ की बुवाई के लिये तैयारकर लिया जाय।
प्रजाति का चयन-
ऊसरीली भूमि के लिये जौ की अम्बर, ज्योति विजय नरेन्द्र जौ-1, नरेन्द्र जौ-3 एन.डी.वी.-1173 एवं आजाद प्रजाति की संस्तुति की जाती हैं।
बुवाई एवं उर्वरक का प्रयोग-
जौ की बुवाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़ें में की जाय। 100 किग्रा० बीज का प्रयोग प्रतिहेक्टर किया जाय।
ऊसर भूमि में बुवाई के समय 25-30 किग्रा० जिंक सल्फेट का प्रयोग अवश्य किया जाय। इसकेअतिरिक्त 30 किग्रा० नत्रजन तथा 20 किग्रा० फास्फेट बुवाई के समय में कूँड़ में डालेतथा 15 किग्रा० नत्रजन का उपयोग पहली सिंचाई पर टाप ड्रेसिंग द्वारा करें।
सिचाई व जल प्रबंधन –
सिंचाई हेतु 15× 20 फुट की छोटी-छोटी क्यारियॉ बना ली जाये और क्यारियों की दो लाइनोंके बीच सिंचाई की नाली रखी जाय। जौ में 2 इंच पानी से अधिक सिंचाई न करें, चाहे कईबार पानी क्यों न देना पड़े। 15-20 घन्टे से अधिक पानी खेत में न खड़ा रहे, जिसके लिएजल निकास की अच्छी व्यवस्था की जाय। जौ में अन्य क्रियाए सामान्य रूप से की जाय।
(2) जिसमें मृदा सुधारक का प्रयोग किया गया हो लेकिन धान की रोपाईनहीं की जा सकी हो-
ऐसे क्षेत्रों में रबी की बुवाई के पूर्व रिसाव की क्रिया जारी रखना अच्छा रहेगा। उपयुक्तहोगा कि ढैंचा की हरी खाद की फसल ले ली जाय। इस फसल के लिए 40 किग्रा० फास्फेट, सुपरफास्फेट के माध्यम से बुवाई के समय प्रयोग करें। 60 किग्रा०/हे० बीज बुवाई से पूर्वएक रात भिगोकर अगले दिन प्रातः छिटकवॉ विधि से बीज को बिखेर दें। बीज जमने के पश्चात्रिसाव की क्रिया जारी रखें। 40-45 दिन की फसल को खेत में पलटकर पत्तियों को सड़ने केलिये छोड़ दें। यह क्रिया अक्टूबर के अन्त तक पूर्ण कर लेनी चाहिए जिससे नवम्बर के दूसरेसप्ताह में गेहूँ के लिये खेत की तैयारी प्रारम्भ की जा सके। गेहूँ की फसल ऊपर दी हुईविधियों से लेनी चाहिए।
(3) वह क्षेत्र,जिसमें कि मृदा सुधारक का कार्यक्रम रबी में चलाना हो-
जिन ऊसर क्षेत्रों ऊसर सुधार की क्रिया रबी के मौसम में प्रारम्भ करनी हो ।
उसके लिएमृदा नमूनों का विश्लेषण समय से कराना आवश्यक होगा।
रबी में ऊसर सुधार हेतु उन क्षेत्रोंका चयन किया जाय जिसका पी.एच.मान 9.5 से कम हो।
मृदा सुधारक की माँग लगभग 10 मी.टन/हे०जिप्सम से अधिक न हो।
ऐसे चयनित क्षेत्रों में जी.आर. वेल्यू के 50 प्रतिशत के बजायजी.आर. वेल्यू के 75 प्रतिशत मृदा सुधारक का प्रयोग करें। मृदा सुधारक का प्रयोग रबीकी फसल बोने के लगभग 45 दिन पूर्व करना आवश्यक होगा।
जिप्सम का प्रयोग खेत में बुरककर चाहिए कल्टीवेटर से लगभग 2 इंच गहराई तक मिला देना चाहिए।
तदन्तर खेत में पानी भरकररिसाव की क्रिया करनी चाहिए।
यदि पाइराइट का प्रयोग किया जाता है तो उसे नम खेत मेंबिखेर दें ।
और 8-10 दिन तक आक्सीकरण पूर्ण होने पर पानी भरकर रिसाव करायें।
अक्टूबरके अतिंम सप्ताह में पानी खेत से बाहर निकाल दे ।
और ओट आने पर रबी के लिए खेत की तैयारीकर उपरोक्त विधि के अनुसार गेहूँ की फसल ली जाये।