बेल की खेती | Wood Apple Farming | बेल की उन्नत बागवानी

बेल एक बागबानी फसल है, जिसके फलो की खेती औषधीय रूप में भी की जाती है | इसकी जड़े, पत्ते, छाल और फलो को औषधीय रूप से इस्तेमाल में लाया जाता है |बेल एक घरेलू फल वाला वृक्ष है, जिसकी भारत में धार्मिक रूप में भी बहुत महत्ता हैं|

Bael Ki Kheti – Wood Apple Gardening Full Details In Hindi |

इसको बंगाली बेल, भारती बेल, सुनहरी सेब, पवित्र फल, पथरीला सेब आदि नाम के साथ भी जाना जाता हैं|इसके अलावा इसे शैलपत्र, सदाफल, पतिवात, बिल्व, लक्ष्मीपुत्र और शिवेष्ट के नाम से भी जानते है | हिन्दू धर्म में इस पौधे को बहुत ही पवित्र माना जाता है, तथा वैदिक संस्कृत साहित्य में इस वृक्ष को दिव्य वृक्ष का दर्जा दिया गया है | ऐसा भी कहा जाता है, कि इसकी जड़ो में महादेव शिव निवास करते है | जिस वजह से इस पेड़ को शिव का रूप भी कहते हैँ। बेल को प्राचीन काल से ही ‘श्रीफल’ के नाम से भी जाना जाता है |

बेल में पाए जाने वाले पोषक तत्व | Nutrition Value in Wood apple

बेल को पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है| बेल का फल पोषक तत्व और औषधीय गुणों से भरपूर होता है | इसके फल में विभिन्न प्रकार के एल्कलाॅइड, सेपोनिन्स, फ्लेवोनाॅइड्स, फिनोल्स कई तरह के फाइटोकेमिकल्स विटामिन-ए, बी.सी., खनिज तत्व व कार्बोहाइड्रेट पाये जाते हैं। बेल के फल के गूदे (Pulp) में अत्यधिक ऊर्जा, प्रोटीन, फाइबर, विभिन्न प्रकार के विटामिन व खनिज और एक उदारवादी एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है । इससे अनेक प्रकार के पदार्थ मुरब्बा, शरबत को बनाया जाता है |

बेल का औषधीय उपयोग | Wood Apple Uses On Ayurveda

फलों के गूदे का उपयोग पेट के विकार में किया जाता है। फलों का उपयोग पेचिश, दस्त, हेपेटाइटिस बी, टी वी के उपचार में किया जाता है। पत्तियों का प्रयोग पेप्टिक अल्सर, श्वसन विकार में किया जाता है।
जडों का प्रयोग सर्पविष, घाव भरने तथा कान सबंधी रोगों के इलाज में किया जाता है। बेल सबसे पौष्टिक फल होता है इसलिए इसका प्रयोग कैंडी, शरबत, टाफी के निर्माण में किया जाता है।

बेल के जड़, छाल, पत्ते शाख और फल औषधि रूप में मानव जीवन के लिये उपयोगी हैं। बेल से तैयार दवाइयाँ दस्त, पेट दर्द, फूड पाईप, मरोड़ आदि के लिए प्रयोग की जाती हैं| इसका प्रयोग शुगर के इलाज, सूक्ष्म-जीवों से बचाने, त्वचा सड़ने के इलाज, दर्द कम करने के लिए, मास-पेशियों के दर्द, पाचन क्रिया आदि के लिए की जाने के कारण, इसको औषधीय पौधे के रूप में जाना जाता हैं| इससे अनेक परिरक्षित पदार्थ (शरबत, मुरब्बा) बनाया जा सकता है।

Botanical Details of Wood Apple | बेल का वानस्पतिक विवरण

यह एक पतझड़ वाला वृक्ष हैं, जिसकी ऊंचाई 6-8 मीटर होती है और इसके फूल हरे-सफ़ेद और मीठी सुगंध वाले होते हैं| इसके फल लम्बाकार होते है, जो ऊपर से पतले और नीचे से मोटे होते हैं|

Bael Farming in india | भारत में बेल की खेती कहाँ होती है

भारत में बेल की खेती को उत्तर पूर्वी राज्यों में मुख्य रूप से उगाया जा रहा है | यह हिमालय तलहठी, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तरांचल, झारखंण्ड, मध्य प्रदेश, डैकनी पठान और पूर्वी तट आदि क्षेत्रों में पाया जाता हैं | इसके अलावा झारखण्ड राज्य के तक़रीबन सभी जिलों में बेल की खेती अधिक मात्रा में की जा रही है | बेल की व्यापारिक खेती धनबाद, गिरिडीह, चतरा, कोडरमा, बोकारो, गढ़वा, देवघर, राँची, लातेहार और हजारीबाग में की जा सकती है |

तापमान एवं जलवायु | Suitable Cimate and Temperature Wood Apple Farming

बेल का पौधा शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु वाला होता है | सामान्य सर्दी और गर्मी वाले मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है | किन्तु अधिक समय तक सर्दी का मौसम बने रहने और गिरने वाला पाला पौधों को कुछ हानि पहुँचाता है | इसके पौधों को वर्षा की जरूरत नहीं होती है | इसके पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करते है | बेल के पौधे अधिकतम 50 डिग्री तथा न्यूनतम 0 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है, तथा 30 डिग्री तापमान पर पौधे अच्छे से विकास करते है । समुद्रतट से 700-800 मीटर ऊंचाई तक के प्रदेषों में इसके पौधे हरे-भरे पाए जाते है ।

बेल की खेती के उपयुक्त मिट्टी का चयन | Fied/Soil Selection for Bel Farming/Bel ki kheti

बेल की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है | इसकी फसल को पठारी, कंकरीली, बंजर, कठोर, कंकरीली, खादर, बीहड़ रेतीली सभी तरह की भूमि में आसानी से ऊगा सकते है |

किन्तु बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल-निकासी वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव में इसके पौधों में कई रोग लग जाते है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5 से 8 के मध्य होना चाहिए |

बेल के खेती हेतु भूमि की तैयारी और उवर्रक प्रबंधन (Vine Field Preparation and Fertilizer)

बेल के पौधों की रोपाई गड्डो में की जाती है | इसलिए खेत में गड्डो को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है | इसके बाद कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत में पानी लगा दिया जाता है, पानी लगाने के पश्चात् जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, उस दौरान रोटावेटर लगाकर खेत की जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | मिट्टी को भुरभुरा करने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दे | इस तरह से खेत तैयार हो जाता है | इसके बाद समतल खेत में 6 मीटर की दूरी रखते हुए एक से डेढ़ फ़ीट चौड़े और एक फ़ीट गहरे गड्डो को तैयार कर लिया जाता है | यह सभी गड्डे खेत में 5 से 6 मीटर की दूरी रखते हुए कतारों में तैयार करे | इन गड्डो को तैयार करते समय उसमे रासायनिक और जैविक खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर गड्डो में भर दिया जाता है | इसके लिए 10 KG जैविक खाद और 50GM पोटाश, 50GM नाइट्रोजन और 25GM फास्फोरस की मात्रा को ठीक तरह से मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भर दे | यह सभी गड्डे पौध रोपाई से एक माह पूर्व तैयार किये जाते है |

उवर्रक की इस मात्रा को पौधों पर फल लगने के समय तक देना होता है, तथा पूर्ण रूप से तैयार पौधे को वर्ष में 20 से 25KG जैविक खाद तथा 1KG रासायनिक खाद की मात्रा को देना होता है | उवर्रक की मात्रा देने के पश्चात् खेत की सिंचाई कर दी जाती है, इससे पौधों की जड़ो तक पोषक तत्व आसानी से पहुंच जाते है |

बेल की प्रजातियां (Advanced Improved Varieties for Wood apple/Vine Species)

सी आई एस एच बी

बेल की इस क़िस्म को तैयार होने में सामान्य समय लगता है | इसके पौधे अप्रैल से मई माह तक पैदावार देना आरम्भ करदेते है | इसके पौधों में निकलने वाले फलो का आकार अंडाकार होता है, तथा फल स्वाद में स्वादिष्ठ और मीठे होते है |

नरेन्द्र बेल

इस क़िस्म के पौधों पर निकलने वाले फल आकार में गोल और अंडाकार पाए जाते है | इसके पौधों पर पूर्ण रूप से पके फलो का रंग हल्का पीला होता है, तथा फलो का गुदा अधिक मीठा होता है | इसके पूर्ण विकसित एक पौधे से 50 KG का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है | यह क़िस्म फैज़ाबाद की नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार की गयी है |

गोमा यशी

यह किस्म सेंट्रल हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन, गोधरा (गुजरात) के माध्यम से तैयार किया गया है | इस क़िस्म की बेल कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार की गयी है | इस क़िस्म के एक पेड़ से सालाना 70 KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |

नरेन्द्र बेल 5

बेल की यह क़िस्म नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैज़ाबाद द्वारा तैयार की गयी है | इसके पौधों में लगने वाला फल हल्का चपटा और सामान्य आकार का पाया जाता है, जो स्वाद में मीठा होता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा प्रति वर्ष औसतन 70 से 80KG की पैदावार दे देता है |

नरेन्द्र बेल 7

इस क़िस्म के बेल में निकलने वाले फल आकार में बड़े होते है, जिसके एक फल का वजन तक़रीबन 3KG के आसपास होता है | इसका पूर्ण विकसित पौधा वर्ष में 80 KG का उत्पादन दे देता है | बेल की यह क़िस्म फैज़ाबाद, नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी द्वारा तैयार की गयी है |

पंत अर्पणा

बेल की इस क़िस्म में पौधों पर अधिक शाखाएं पाई जाती है, जिस वजह से शाखाएं नीचे की और झुकी हुई होती है | इसमें निकलने वाले फल सामान्य आकार के होते है, जिसमे मीठा और स्वादिष्ट गुदा पाया जाता है | इसका एक पौधा एक वर्ष में 50 KG का उत्पादन दे देता है |

पंत सुजाता

बेल की इस क़िस्म में निकलने वाले पौधे सामान्य लम्बाई के होते है, तथा पौधों पर बनने वाली शाखाए अधिक चौड़ी होती है | इसके पौधों पर निकलने वाले फलो का सिरा चपटा और आकार सामान्य होता है | इस क़िस्म में निकलने वाले फल हल्के पीले रंग होते है, जिसमे अधिक मात्रा में रेशेदार गुदा पाया जाता है |

पूसा उर्वशी

इस क़िस्म के पौधों की लम्बाई अधिक पाई जाती है, तथा यह क़िस्म कम समय में अधिक पैदावार दे देती है | इसके पौधों पर लगने वाले फल अंडाकार आकार के होते है, जिसमे गुदा अधिक मात्रा में पाया जाता है | इस क़िस्म का एक पौधा 60 से 80 KG की पैदावार दे देता है |

बेल की बागवानी के लिए गड्ढे की तैयारी | Planting Preparation for Bel ki Bagwani

गड्ढ़ों का आकार 90 × 90 × 90 सेन्टीमीटर तथा एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी 8 मीटर रखनी चाहिए। बूंद-बूंद सिंचाई विधि से 5 X 5 मीटर की दूरी पर सधन बाग स्थापना की जा सकती है। यदि जमीन में कंकड़ की तह हो तो उसे निकाल देना चाहिए। इन गड्ढों को 20-30 दिनों तक खुला छोड़कर वर्षा शुरू होते ही बाग़ की मिट्टी और 25 किलो रूडी की खाद, 1 किलो नीम तेल केक और 1 किलो हड्डीओं के चूरे का मिश्रण गड्ढों में डालें| ऊसर भूमि में प्रति गड्ढे के हिसाब से 20-25 किलोग्राम बालू तथा पी.एच मान के अनुसार 5-8 किलोग्राम जिप्सम/ पाइराइट भी मिला कर 6-8 इंच ऊँचाई तक गड्ढों को भर देना चाहिए। एक-दो वर्षा हो जाने पर गड्ढ़े की मिट्टी जब खूब बैठ जाए तो इनमें पौधों को लगा देना चाहिए।

बेल के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Vine Plants Right time and Method of Transplanting)

बेल के बीज की रोपाई पौध के रूप में की जाती है | इन पौधों को खेत में तैयार कर लिया जाता है, या किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लिया जाता है | इसके बाद इन पौधों को खेत में एक महीने पूर्व तैयार गड्डो में लगा दिया जाता है | पौधा रोपाई से पहले तैयार गड्डो के बीच में एक छोटे आकार का गड्डा बना लिया जाता है | इसी छोटे गड्डे में पौधों की रोपाई कर उसे चारो तरफ अच्छे से मिट्टी से ढक दिया जाता है |

पौध रोपाई से पूर्व बाविस्टीन या गोमूत्र की उचित मात्रा से गड्डो को उपचारित कर लिया जाता है | इससे पौधों को आरम्भ में रोग लगने का खतरा कम हो जाता है, और पौधों का विकास भी अच्छे से होता है | बेल के पौधों की रोपाई किसी भी समय की जा सकती है, किन्तु सर्दियों का मौसम पौध रोपाई के लिए उपयुक्त नहीं होता है | यदि किसान भाई बेल की खेती व्यापारिक तौर पर कर रहे है, तो उन्हें पौधों की रोपाई मई और जून के महीने में कर देना चाहिए| सिंचित जगहों पर इसके पौधों की रोपाई मार्च के महीने में भी की जा सकती है |

बेल का प्रवर्धन

बेल का प्रवर्धन साधारणतया बीज द्वारा ही किया जाता है. प्रवर्धन की इस विधि से पौधों में विभिन्नता आ जाती है. बेल को वानस्पतिक प्रवर्धन से भी उगाया जा सकता है. जड़ से निकले पौधे को मूल तने से इस प्रकार अलग कर लेते हैं कि कुछ हिस्सा पौधे के साथ निकल सके इन पौधों को बसन्त में लगाने से काफी सफलता मिलती है. बेल को चष्में द्वारा भी बड़ी सरलता तथा पूर्ण सफलता के साथ उगाया जा सकता है. मई या जून के महीने में जब फल पकने लगता है, पके फल के बीजों को निकालकर तुरन्त नर्सरी में बो देना चाहिए. जब पौधा 20 सेन्टीमीटर का हो जाए तो उसे दूसरी क्यारियों में 30 सेन्टीमीटर दूरी पर बदल देना चाहिए. दो वर्ष के पश्चात् पौधों पर चष्मा बांधा जाता है. मई से जुलाई तक चष्मा बांधने में सफलता अधिक प्राप्त होती है.

चष्मा बांधने के लिए उस पेड़ की जिसकी कि कलम लेना चाहते हैं, स्वस्थ तथा कांटों से रहित अधपकी टहनी से आंख का चुनाव करना चाहिए, टहनी से 2-3 सेन्टीमीटर के आकार का छिलका आंख के साथ निकालकर दो वर्ष पुराने बीजू पौधे के तने पर 10-12 सेन्टीमीटर ऊंचाई पर इसी प्रकार के हटाये हुए छिलके के खाली स्थान पर बैठा देना चाहिए. फिर इस पर अलकाथीन की 1 सेन्टीमीटर चैड़ी तथा 20 सेन्टीमीटर लम्बी पट्टी से कसकर बांध देना चाहिए. इस क्रिया के 15 दिन बाद बंधे हुए चष्मों के 8 सेन्टीमीटर ऊपर से बीजू पौधे के शीर्ष भाग को काटकर अलग कर देना चाहिए. जिससे आंख से कली शीघ्र निकल आए. चष्मा बांधने के बाद जब तक कली 12 से 15 सेन्टीमीटर की न हो जाए उनकी क्यारियों को हमेषा नमी से तर रखना चाहिए जिससे कली सूखने न पाए.

बेल के पौधों की सिंचाई (Irrigation in Vine Plants)

बेल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | इसके अलावा गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 8 से 10 दिन के अंतराल में पानी देना होता है, तथा सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी दे | बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पौधों को पानी दे | जब इसका पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, उस दौरान इसके पेड़ो को वर्ष में केवल 4 से 5 सिंचाई की ही आवश्यकता होती है |

खाद एवं उर्वरक | Nutrition Management in Bel ki kheti

साधारणतया यह पौधा बिना खाद और पानी के भी अच्छी तरह फलता-फूलता रहता है. लेकिन अच्छी फलत प्राप्त करने के लिए इसको उचित खाद की मात्रा उचित समय पर देना आवष्यक है | पांच वर्ष के फलदार पेड़ के लिए 375 ग्राम नत्रजन, 200 ग्राम फासफोरस एवं 375 ग्राम पोटाष की मात्रा प्रति पेड़ देनी चाहिए. चूंकि बेल में जस्ते की कमी के लक्षण पत्तियों पर आते हैं अतः जस्ते की पूर्ति के लिए 0.5 प्रतिषत जिंक सल्फेट का छिड़काव क्रमषः जुलाई, अक्टूबर और दिसम्बर में करना चाहिए । खाद को थालों में पेड़ की जड़ से 0.75 से 1.00 मीटर दूर चारों तरफ छिड़ककर जमीन की गुड़ाई कर देनी चाहिए. खाद की मात्रा दो बार में, एक बार जुलाई-अगस्त में तथा दूसरी बार जनवरी-फरवरी में देनी चाहिए

ज़मीन की तैयारी के समय 25 किलो रूडी की खाद, 1 किलो नीम तेल केक और 1 किलो हड्डियों का चूरा डालें और मिट्टी में मिला दें| पनीरी लगाने के बाद 10 किलो रूडी की खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 फास्फोरस और 500 ग्राम पोटाशियम प्रति पौधे में डालें| कटाई के बाद फलों के बनावटी स्टोरेज के लिए एथ्रेल (2-क्लोरोइथेन फोस्फोनिक एसिड ) 1,000 से 15,000 ppm डालें और 86° फारनहीट(30°सैल्सिअस) पर स्टोर करें|

संधाई-छंटाई

पौधों की सधाई का कार्य शुरू के 4-5 वर्षो में करना चाहिए। मुख्य तने को 75 सें.मी. तक शाखा रहित रखना चाहिए। इसके बाद 4-6 मुख्य शाखायें चारों दिशाओं में बढ़ने देनी चाहिए। बेल के पेड़ों में विशेष छंटाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है परन्तु सूखी, कीड़ों एवं बीमारियों से ग्रसित टहनियों को समय-समय पर निकालते रहना चाहिए।

अंत: फसलें | Inter Cropping in Wood apple Gardening

शुरू के वर्षो में नये पौधों के बीच खाली जगह में अंत: फसल लेते समय ऐसी फसलें न लें जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता हो और वह बेल के पौधों को प्रभावित करें। टांड की फसलें लगाकर उन्हें वर्षा ऋतु में पलट देने से भूमि की दशा में भी सुधार किया जा सकता है।

फलत

बीजू पौधे रोपण के 7-8 वर्ष बाद फूलने लगते हैं. लेकिन यदि चष्में से तैयार किए गए पौधे लगाए जाएं तो उनकी फलत 4-5 वर्ष पश्चात् ही शुरू हो जाती है. बेल का पेड़ लगभग 15 वर्ष के बाद पूरी फलत में आता है. दस से पन्द्रह वर्ष पुराने पेड़ से 100-150 फल प्राप्त होते हैं. बेल के पेड़ में फूल, जून-जुलाई में आते हैं और अगले वर्ष मई-जून में पककर तैयार हो जाते हैं.

बेल के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Bael Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

बेल के पौधों को पैदावार देने में 7 वर्षा का समय लग जाता है |बेल का डण्ठल इतना मजबूत होता है कि फल पकने के बाद भी पेड़ पर काफी दिन तक लगे रहते हैं. कच्चे फल का रंग हरा तथा पकने पर पीला सुर्ख हो जाता है. साधारणतया ऐसा देखा जाता है कि फल का जो हिस्सा धूप की तरफ पड़ता है उस पर पीला रंग जल्दी आ जाता है और इस कारण पेड़ पर लगे फलों को पकने में असामानता आ जाती है. फल को अच्छी तरह तथा समान रूप से पका हुआ प्राप्त करने के लिए उसे पाल में पकाना चाहिए।

जब फलों में पीलापन आना शुरू हो जाए उस समय उनको डण्ठल के साथ तोड़ लेना चाहिए. इनके लम्बे-लम्बे डण्ठलों को केवल 2 सेन्टीमीटर फल पर छोड़कर काट देना चाहिए और उनको टोकरियों में बेल पत्तों से ढककर कमरे के अन्दर रख देना चाहिए. इस तरह के फल 10-12 दिन में अच्छी तरह पककर तैयार हो जाते हैं. फल आकार में बड़े होने के कारण इनकी संख्या पेड़ पर कम होती है. बेल के एक पौधे से आरम्भ में तक़रीबन 40KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | यह उत्पादन पेड़ की आयु बढ़ने के साथ-साथ बढ़ जाता है | पूर्ण फलत में आए हुए बेल से 1-1.5 क्ंवटल फल की उपज प्राप्त होती है ।फलो की तुड़ाई कर उन्हें बाजार में बेचने के लिए एकत्रित कर ले | बेल का बाज़ारी भाव काफी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई बेल की खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है |

Plant Protection Management in Wood apple gardening

बेल वृक्ष के रोग | Diseases on Wood apple Plants

बेल का कैंकर

यह रोग जैन्थोमोनस विल्वी बैक्टीरिया द्वारा होता है। प्रभावित भागों पर पानीदार धब्बे बनते हैं जो बाद में बढ़ कर भूरे रंग के हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन सल्फेट (200 पी.पी.एम.) को पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

डाई बैक

इस रोग का प्रकोप लेसिया डिप्लोडिया नामक फफूंद द्वारा होता है। इस रोग में पौधों की टहनियां ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) का दो छिड़काव सूखी टहनियों को छांट कर 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

पत्तियों पर काले धब्बे

बेल की पत्तियाँ पर दोनों सतहों पर काले धब्बे बनते हैं, जिनका आकार आमतौर पर 2-3 मि.मी. का होता है। इन धब्बों पर काली फफूंदी नजर आती है, जिसे आइसेरेआप्सिस कहते हैं। इसके रोकथाम के लिए बैविस्टीन (0.1 प्रतिशत) या डाईफोलेटान (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए।

फलों पर गांठें पड़ना

यह बीमारी जेथोमोनस बिलवई कारण होती है| यह बीमारी पौधे के हिस्सों, पत्तों और फलों पर धब्बे डाल देती है| इसकी रोकथाम के लिए दो-मुँह वाली टहनियों को छाँट दें और नष्ट कर दें या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट(20 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी)+ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड(0.3%) 10-15 दिनों के फासले पर डालें|

फल का फटना और गिरना

यह दोनों बीमारियां फल की बनावट को बिगाड़ देती है| इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स 0.1% दो बार फूल के खिलने पर और फल के गुच्छे बनने के समय डालें|

पत्तों पर सफेद फंगस

यह बीमारी भी बेल की फसल में आम पायी जाती है और इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर+क्लोरपाइरीफोस/ मिथाइल पैराथियान+गम एकेशियाँ (0.2+0.1+0.3%) की स्प्रे करें|

बेल के कीट | Pest control on Wood apple Gardening

नींबू की मक्खी

यह पपीलियो डेमोलियस के कारण होती है| इसकी रोकथाम के लिए नरसरी वाले पौधों पर स्पिनोसेड @ 60 मि.ली. की छिड़काव 8 दिनों के फासले पर करें|

बेल की तितली

यह बेक्टोसेरा ज़ोनाटा के कारण होती है| इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर स्पिनोसेड @ 60 मि.ली. की छिड़काव 10-15 दिनों के फासले पर करें|

पत्तें खाने वाली सुंडी

यह सुंडी नये पौधे निकलते समय ज्यादा नुकसान करती है और इसकी रोकथाम के लिए थियोडेन 0.1% डालें|